इस बारे में दो राय
नहीं हैं कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में दशा खराब है, यह भी सच है कि बड़ी
संख्या में किसानों को आत्महत्या करनी पड़ रही है, पर यह भी सच है कि इन समस्याओं
का कोई जादुई समाधान किसी ने पेश नहीं किया है। इसकी वजह यह है कि इस संकट के कारण
कई तरह के हैं। खेती के संसाधन महंगे हुए हैं, फसल के दाम सही नहीं मिलते, विपणन,
भंडारण, परिवहन जैसी तमाम समस्याएं हैं। मौसम की मार हो तो किसान का मददगार कोई
नहीं, सिंचाई के लिए पानी नहीं, बीज और खाद की जरूरत पूरी नहीं होती।
नब्बे के दशक में
आर्थिक उदारीकरण के बाद से खासतौर से समस्या बढ़ी है। अचानक नीतियों में बदलाव
आया। कई तरह की सब्सिडी खत्म हुई, विदेशी कम्पनियों का आगमन हुआ, खेती पर न तो
पर्याप्त पूँजी निवेश हुआ और तेज तकनीकी रूपांतरण। वामपंथी अर्थशास्त्री सारा देश
वैश्वीकरण के मत्थे मारते हैं, वहीं वैश्वीकरण समर्थक मानते हैं कि देश में आर्थिक
सुधार का काम अधूरा है। देश का तीन चौथाई इलाका खेती से जुड़ा हुआ था। स्वाभाविक
रूप से इन बातों से ग्रामीण जीवन प्रभावित हुआ। राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था में अचानक
खेती की हिस्सेदारी कम होने लगी। ऐसे में किसानों की आत्महत्या की खबरें मिलने
लगीं।
ज्यादातर
आत्महत्याएं ऐसे राज्यों में हो रहीं हैं, जो खेती में अपेक्षाकृत बढ़े-चढ़े हैं। आंध्र
प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में यह समस्या
ज्यादा बड़ी है। इसकी बड़ी वजह है खेती में घाटा, जिसके कारण किसान अपने ऊपर लदे
कर्ज को चुकाने में असमर्थ पाता है। किसान, आत्महत्याएं और कर्ज। ये तीन शब्द
मीडिया पर इस कदर हावी हुए हैं कि ग्रामीण बदहाली के व्यापक पहलुओं पर ध्यान देने
के बजाय हमारा सारा ध्यान इन तीन बातों पर ही केन्द्रित हो गया है। इस बीच
राजनीतिक दलों ने कर्ज-माफी को एक जादुई समाधान के रूप में पेश करना शुरू कर दिया
है। बेशक कर्जों के भुगतान में राहत देकर किसानों की मदद की जा सकती है, पर हम
गलतफहमी में हैं कि सारी समस्या कर्जों को लेकर है। बड़ी संख्या में ऐसे किसान
हैं, जो कर्जदार नहीं हैं, पर परेशान हैं।
उत्तर भारत के तीन
राज्यों में बनी कांग्रेस सरकारों ने आते ही किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणाएं कर
दीं। उधर भाजपा शासित गुजरात में 6.22 लाख
बकाएदारों के बिजली-बिल और असम में आठ लाख किसानों के कर्ज माफ कर दिए गए हैं।
इसके पहले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब
और कर्नाटक में किसानों के कर्ज माफ किए गए। गुजरात और असम सरकार के फैसलों के
जवाब में राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि कांग्रेस गुजरात और असम के मुख्यमंत्रियों
को गहरी नींद से जगाने में कामयाब रही है, लेकिन प्रधानमंत्री अभी भी सो रहे हैं। हम उन्हें
भी जगाएंगे। राहुल गांधी ने उत्साह में ट्वीट किया है। उनकी
सरकारों ने कर्ज माफ कर दिया, पर इन राज्यों के किसानों की तमाम परेशानियाँ अभी
बाकी होंगी। सरकारों ने आते ही अपने साधनों का काफी हिस्सा कर्ज-माफी के नाम कर
दिया, पर उन्हें तो सम्बद्ध राज्यों के समुचित विकास के रास्ते खोजने हैं। क्या यह
सोच दूरगामी साबित होगा?
कांग्रेस
की देखा-देखी बीजेपी ने घोषणा की है कि हम ओडिशा में सत्ता में आए तो किसानों का कर्ज माफ कर देंगे। राज्य में अगले
साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव के पहले
बीजेपी के घोषणापत्र में कर्ज-माफी का वादा था और कर्ज-माफी हो गई। बावजूद इसके
उत्तर प्रदेश के किसान नाराज हैं। गन्ना किसानों को गन्ने का मूल्य नहीं मिला, गेहूँ
और धान पैदा करने वालों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता। सब्जी और फल उगाने
वाले किसानों को सही कीमत नहीं मिलती। आलू उगाने वाले किसानों को अपना आलू फेंकना
पड़ता है। पशुओं को पालने वालों को दूध की कीमत नहीं मिलती, दूध के उपभोक्ताओं को
सही दूध नहीं मिलता। बाजार में माल नहीं पहुँचता और जहाँ माल है, वहाँ वितरण की
व्यवस्था नहीं है।
खेती
चूंकि राज्यों का विषय है, इसलिए अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग समस्याएं हैं। कृषि-उत्पादों
के वितरण और
मार्केटिंग के नियम बन ही रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारे यहाँ खेती भी
व्यवसाय नहीं, जीवन-पद्धति है। जब उसकी स्थिति कारोबार की होगी, तो बाजार में खड़े
रहने की ताकत भी उसे बनानी होगी। आज बाजार उसे दबाए रखता है। इन सारे सवालों पर
अलग से और विस्तार से विचार करने की जरूरत है। फिलहाल कर्ज-माफी के जादू की छड़ी
के बारे में विचार करना चाहिए। पिछले
बुधवार को नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कृषि ऋण माफी से किसानों
के एक तबके को ही लाभ होगा और कृषि समस्या के हल के लिए यह कोई समाधान नहीं है।
साथ में उन्होंने यह भी कहा कि यह राज्य-विषय है। इस मामले में केन्द्र की कोई
भूमिका नहीं है। राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति को देखना चाहिए कि वे कर्ज-माफ
कर सकते हैं या नहीं। नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने कहा, जो
गरीब राज्य हैं, वहां केवल 10 से 15 प्रतिशत किसान कर्ज माफी से लाभान्वित होते हैं। ऐसे
राज्यों में बैंकों या वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या
बहुत कम है। यहां तक कि 25 प्रतिशत किसान भी संस्थागत कर्ज नहीं लेते।
एक
बात यह भी सामने आई है कि कृषि-ऋण के नाम पर ली गई काफी रकम का इस्तेमाल खेती पर
होता ही नहीं। उसका इस्तेमाल उपभोक्ता सामग्री खरीदने में हो जाता है। दूसरे अब
लोगों को समझ में आ रहा है कि कर्जा-माफ हो जाएगा, तो वे ब्याज और मूल राशि चुकाना
पहले ही बंद कर देते हैं। ऐसे में नुकसान में वे रहते हैं, जो कर्जा-चुकाते हैं।
उनकी ईमानदारी उनके जीवन में बाधा बनती है।
इस
होड़ के पीछे एक खतरा छिपा हुआ है। एकबार को यह शुरू हुई तो इसे रोकना मुश्किल हो
जाएगा। इसका लाभ ईमानदार और मेहनती किसानों को नहीं मिलेगा, बल्कि तिकड़मी लोग
इसका फायदा उठा ले जाएंगे। कुछ ऐसा ही पिछले दिनों मध्य प्रदेश की भावांतर योजना
में हुआ था। इस वक्त जरूरत है कि हम खेती से जुड़े सभी पहलुओं पर संजीदगी से बात
करें। यह काम राजनीति नहीं कर सकती। वह इसे सत्ता-प्राप्ति का साधन मानती है,
समस्या नहीं मानती।
हरिभूमि में प्रकाशित
https://www.thehindu.com/news/national/government-eyeing-quick-fix-for-farm-sector/article25809055.ece
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-12-2018) को "परमपिता का दूत" (चर्चा अंक-3196) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लेकिन यह समस्या का हल नहीं है , यह चुनाव हारने की समस्या का एक अल्पकालिक निदान हो सकता है , हमारे बेवकूफ नेता यह नहीं समझ रहे हैं कि अब वे ज्यादा समय वे जनता को बुद्धू नहीं बना सकते क्यंकि संचार वाहन के साधनों व सोशल मीडिया से अब यह बात भी फैलने लगी है कि दल अपने बजट से ये कर्ज माफ़ करें जनता के टैक्स से जमा पूंजी को लुटाने का अधिकार सरकार को नहीं होना चाहिए फिर तो अन्य कर भी माफ़ कर दिए जाएँ ,
ReplyDeleteआज ईमानदार किसान पचता रहा है जिस ने जिम्मेदार नागरिक की तरह कर्ज चुकाया या चूका रहा है , जिन का माफ़ हुआ वे दुबारा कर्ज ले लेंगे व फिर सरकार के आगे माफ़ करने के लिए आंदोलन करना शुरू कर देंगे यह सिलसिला खत्म होने वाला नहीं है
सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना चाहिए सभी दलों की यह निति होगी तब ही काम चल पायेगा वर्ण आज इस कारण एक दल की सरकार जा रही है तो पांच साल बाद दूसरी सरकार जायेगी