उत्तर भारत के तीन
राज्यों में बनी कांग्रेस सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणाएं की हैं।
उधर भाजपा शासित गुजरात में 6.22 लाख
बकाएदारों के बिजली-बिल और असम में आठ लाख किसानों के कर्ज माफ कर दिए गए हैं।
इसके पहले उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब
और कर्नाटक में किसानों के कर्ज माफ किए गए। अचानक ऐसा लग रहा है कि कर्ज-माफी ही
किसानों की समस्या का समाधान है। गुजरात और असम सरकार के फैसलों के जवाब में राहुल
गांधी ने ट्वीट किया कि कांग्रेस गुजरात और असम के मुख्यमंत्रियों को गहरी नींद से
जगाने में कामयाब रही है, लेकिन प्रधानमंत्री अभी भी सो रहे हैं। हम
उन्हें भी जगाएंगे।
मोदीजी
भी सोए नहीं हैं, पहले से जागे हुए हैं। उनकी पार्टी ने घोषणा
की है कि यदि हम ओडिशा में सत्ता में आए तो किसानों का कर्ज
माफ कर देंगे। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। एक तरफ उनके नीति
आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है कि कृषि-क्षेत्र की बदहाली का इलाज
कर्ज-माफी नहीं है, वहीं उनकी पार्टी कर्ज-माफी के हथियार का इस्तेमाल राजनीतिक
मैदान में कर रही है।
राहुल
गांधी ने हाल में जब कहा कि हमने असम और गुजरात के मुख्यमंत्रियों को जगा दिया है,
तो असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके वित्तमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने
कहा कि हमने तो इस साल के बजट में ही इसकी घोषणा कर दी थी। कोई भी पीछे नहीं रहना
चाहता। सब मानते हैं कि कृषि-क्षेत्र की दशा खराब है और खेती करना घाटे का सौदा
होता जा रहा है। बावजूद इसके ज्यादातर राजनीतिक दल लोकलुभावन तरीकों से इस समस्या
का समाधान करने की जुगत में लगे हैं।
कोई
नहीं देख पा रहा है कि इस होड़ के पीछे एक खतरा छिपा हुआ है। एकबार को यह शुरू हुई
तो इसे रोकना मुश्किल हो जाएगा। इसका लाभ भी ईमानदार और मेहनती किसानों को नहीं
मिलेगा, बल्कि तिकड़मी लोग इसका फायदा उठा ले जाएंगे। कुछ ऐसा ही पिछले दिनों मध्य
प्रदेश की भावांतर योजना में हुआ था। जबतक सरकारें चेतेंगी, तबतक देर हो चुकी
होगी। अभी जुलाई के महीने में केन्द्र सरकार ने संसद में घोषणा की थी कि हम
किसानों की कर्ज-माफी के विकल्प पर विचार नहीं कर रहे हैं। पर बीजेपी ने ही सन
2017 के उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले अपने घोषणापत्र में कर्ज-माफी का वादा किया था
और सरकार बनने के बाद कर्ज-माफी की। उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी इसी आशय की
घोषणा की।
पिछले
बुधवार को नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कृषि ऋण माफी से किसानों
के एक तबके को ही लाभ होगा और कृषि समस्या के हल के लिए यह कोई समाधान नहीं है।
साथ में उन्होंने यह भी कहा कि यह राज्य-विषय है। इस मामले में केन्द्र की कोई
भूमिका नहीं है। राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति को देखना चाहिए कि वे कर्ज-माफ
कर सकते हैं या नहीं। नीति आयोग के सदस्य (कृषि) रमेश चंद ने कहा, जो
गरीब राज्य हैं, वहां केवल 10 से 15 प्रतिशत किसान कर्ज माफी से लाभान्वित होते हैं। ऐसे
राज्यों में बैंकों या वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या
बहुत कम है। यहां तक कि 25 प्रतिशत किसान भी संस्थागत कर्ज नहीं लेते।
एक
बात यह भी सामने आई है कि कृषि-ऋण के नाम पर ली गई काफी रकम का इस्तेमाल खेती पर
होता ही नहीं। उसका इस्तेमाल उपभोक्ता सामग्री खरीदने में हो जाता है। दूसरे अब
लोगों को समझ में आ रहा है कि कर्जा-माफ हो जाएगा, तो वे ब्याज और मूल राशि चुकाना
पहले ही बंद कर देते हैं। ऐसे में नुकसान में वे रहते हैं, जो कर्जा-चुकाते हैं।
उनकी ईमानदारी उनके जीवन में बाधा बनती है।
विशेषज्ञ
जो भी कहें, सच यह है कि कर्ज-माफी अब एक वास्तविकता है और लगता है कि आने वाले
समय में राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में इसका जमकर इस्तेमाल होगा। हमें इस सवाल
को दो तरह से देखना चाहिए। पहला यह कि क्या राज्यों के पास इतने साधन हैं कि वे
साल-दर-साल किसानों के कर्जे माफ करते रहें? दूसरे यदि साधन हैं, तो उनका इस्तेमाल क्या किसी दूसरे
तरीके से नहीं हो सकता?
हाल में दिल्ली
में हुई दो दिन की किसान रैली ने किसानों की बदहाली को राष्ट्रीय बहस का विषय
बनाने में सफलता जरूर हासिल की, पर राजनीतिक दलों के नेताओं की उपस्थिति और
उनके वक्तव्यों के कारण यह रैली महागठबंधन की चुनाव रैली में तब्दील हो गई।
खेती-किसानी की समस्या पर केन्द्रित यह आयोजन एक तरह से विरोधी दलों की एकता की
रैली साबित हुआ। एक बड़ा सच यह है कि इन रैलियों में काफी बड़ी संख्या में
खेत-मजदूर होते हैं। उनके पास जमीन भी नहीं होती। उनके सवाल भी अलग होते हैं, जो
अक्सर पीछे रह जाते हैं।
ग्रामीण-जीवन
की विडंबनाओं को हमें व्यापक फलक पर देखना चाहिए। हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश
में कृषि की विकास दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा रही है, फिर
भी वहाँ आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद बढ़ी। पिछले साल रिकॉर्ड फसल के
बावजूद किसानों का संकट बढ़ा, क्योंकि दाम गिर गए। खेती अच्छी हो तब भी किसान
रोता है, क्योंकि दाम नहीं मिलता। कई बार नौबत आती है, जब
वह अपने टमाटर, प्याज, मूली, गोभी से लेकर अनार तक नष्ट करने को मजबूर होता है।
इस
रैली का आयोजन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने किया था।
यह 200 से ज्यादा किसान संगठनों का अम्ब्रेला समूह है, जिसका
इसका गठन जून 2017 में अखिल भारतीय किसान सभा और दूसरे वामपंथी किसान संगठनों के
तत्वावधान में हुआ था। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता और सांसद राजू शेट्टी ने
2017 में लोकसभा में दो निजी सदस्य विधेयक (किसान मुक्ति बिल) पेश किए थे ताकि
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर कृषि उत्पादों के लिए उचित दाम की गारंटी
और कर्ज़ माफ़ हो सके।
शेट्टी
एआईकेएससीसी से भी जुड़े हैं। महाराष्ट्र में स्वाभिमानी पक्ष के नाम से उनका
राजनीतिक संगठन है। वे पहले एनडीए से जुड़े थे और अब महागठबंधन के साथ हैं।
उन्होंने हाल में राजनीतिक दलों से कहा है कि वे अपने घोषणापत्रों में कर्जा-माफी
के वायदे को शामिल करें। यानी कर्ज-माफी को स्थायी रूप दिया जाए। वे समर्थन मूल्य
की एक स्पष्ट व्यवस्था के अलावा ऋण राहत आयोग बनाने की माँग भी कर रहे हैं, जो
संकटग्रस्त क्षेत्रों में तीन साल तक ऋणमुक्ति का प्रावधान कर सके।
किसानों
की समस्या के कई रूप हैं और सारे किसान एक जैसे हैं भी नहीं। खाद, बीज तथा कृषि पर
लगने वाली सामग्री, कृषि-बीमा, फसल –सुरक्षा, भंडारण, वितरण और उचित-मूल्य तमाम
सवाल कई स्तर पर हैं। उनपर हमें गम्भीरता से जरूर सोचना चाहिए। उसे शहरीकरण,
औद्योगीकरण के बरक्स ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में देखना चाहिए,
भावुक राजनीति के नजरिए से नहीं।
राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित
सुनील जैन का यह लेख भी पढें
राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित
सुनील जैन का यह लेख भी पढें
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-12-2018) को "कर्ज-माफी का जादू" (चर्चा अंक-3194) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक आलेख
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