घरेलू राजनीति, सांस्कृतिक
टकरावों, आर्थिक उतार-चढ़ाव और विदेश नीति के गूढ़-प्रश्नों के लिहाज से यह साल
कुछ बड़े सबक देकर जा रहा है. पिछले डेढ़-दो साल से अर्थ-व्यवस्था में नजर आने
वाला गिरावट का रुख थमा जरूर है, पर नाव अभी डगमग है. शायद जीएसटी के पेच आने वाले
साल में कम हो जाएंगे. गुजरात के चुनावों का सबक लेकर सरकार आने वाले वर्ष में
गाँवों और किसानों के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं करेगी. दूसरी ओर सरकार के ऊपर राजकोषीय
घाटे को काबू में रखने का दबाव भी है. इसलिए परीक्षा की घड़ी है.
राष्ट्रीय राजनीति के संकेतक
बता रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता फिर भी बदस्तूर है. दूसरी ओर उनके
प्रतिस्पर्धी के रूप में राहुल गांधी कमर कस रहे हैं. अब अगला मुकाबला मार्च-अप्रेल
में कर्नाटक में है. इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा
चुनाव हैं. इसलिए बीजेपी और कांग्रेस को दम-खम परखने के कई मौके मिलेंगे. नरेन्द्र
मोदी को सत्ता संभाले साढ़े तीन साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है, पर लोगों का भरोसा अभी कायम
है. प्यू रिसर्च सेंटर के इस साल के सर्वे का निष्कर्ष है कि 10 में से 9 भारतीय नरेंद्र
मोदी के प्रति सकारात्मक राय रखते हैं, जबकि 2015 में यह 10 में से 7 का था.
साल के शुरू में ही पाँच
राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें बीजेपी को बड़ी सफलता मिली. तब तक राजनीतिक
पर्यवेक्षकों को उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बढ़ती भूमिका नजर तो आ रही थी, पर वे
सपा और बसपा की भारी हार का अनुमान नहीं लगा पा रहे थे. उत्तर प्रदेश के पूरे परिणाम
आने के पहले ही मायावती ने वोटिंग मशीनों का मसला उठा दिया. उत्तर प्रदेश की हार
के बाद से विपक्ष ने ईवीएम-विरोधी अभियान छेड़ रखा है.
मोदी सरकार ने इस साल ‘संकल्प से सिद्धि’ कार्यक्रम दिया. यह नए
किस्म की सांस्कृतिक पंचवर्षीय योजना है. 1942 की अगस्त क्रांति से लेकर 15 अगस्त
1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच साल की अवधि. मोदी ने कांग्रेस से यह रूपक
छीनकर उसे अपने सपने के रूप में जनता के सामने पेश किया है. मोदी अब 2022 के
लक्ष्य सामने रख रहे हैं. शायद वे 2019 की विजय को लेकर आश्वस्त हैं. साल के अंत
में गुजरात जीत लेने के बाद नरेन्द्र मोदी ने सगर्व घोषणा की है कि देश के 19
राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है. श्रीमती इंदिरा गांधी के सबसे
चमत्कारिक दौर में कांग्रेस 18 राज्यों में सत्तारूढ़ थी.
मोदी के जवाब में
कांग्रेस पार्टी महागठबंधन बनाना चाहती है. संयोग से बिहार का वह मॉडल अपने घर में
ही बिखर गया. पर कांग्रेस ने मोदी के समांतर राहुल गांधी को खड़ा करने में सफलता
प्राप्त कर ली है. साल के अंतिम महीने में पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उनका
राज्याभिषेक हो गया. उनके अध्यक्ष चुने जाने के फौरन बाद कांग्रेस की गुजरात के
चुनाव में पराजय हुई. राहुल गांधी ने उसे अपनी नैतिक जीत घोषित किया है.
राहुल गांधी के तौर-तरीके
बदले हैं. सोशल मीडिया पर उनकी लगभग शून्य उपस्थिति थी. उसमें नाटकीय बदलाव हुआ
है. गुजरात के चुनाव के पहले राहुल ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान बदली हुई
राजनीति को मीडिया के सामने रखा है. राहुल के सामने फिलहाल राष्ट्रीय महागठबंध
तैयार करने की चुनौती है. इस साल राष्ट्रपति पद के चुनाव के पहले सोनिया गांधी ने
उसकी पृष्ठभूमि तैयार की थी. देखना होगा कि राहुल उसे किस दशा में ले जाते हैं.
मोदी सरकार के सामने गाँव
और किसान की बदहाली और बेरोजगारी दो बड़े मसले खड़े हैं. अगले बजट से पता लगेगा कि
उनके पास समाधान क्या है. अगले कुछ महीनों में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के कुछ तहत
बड़े कार्यक्रमों की आशा है. ज्यादातर घोषणाएं रक्षा कार्यक्रमों से जुड़ी हैं.
इनमें सिंगल इंजन फाइटर जेट विमान और पनडुब्बियों का अगला प्रोजेक्ट 75आई शामिल
है. भारत ने रक्षा सामग्री के निर्यात का भी फैसला किया है. अगले साल भी पिछले साल
की तरह इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े निवेश की आशा है. इस साल इसरो ने 104 उपग्रहों का
एकसाथ प्रक्षेपण करके विश्व रिकॉर्ड बनाया था. अगले साल इसरो की योजना हर महीने एक
प्रक्षेपण की है. चंद्रयान-2 के बारे में इस साल कोई महत्वपूर्ण घोषणा की जा सकती
है.
नरेन्द्र मोदी की सफलता
के पीछे एक बड़ा कारण है उनकी विदेशी-सक्रियता. सामान्य वोटर उन्हें केवल
राष्ट्रीय नीतियों के आधार पर ही नहीं परखता. वह अमेरिका, चीन, रूस, जापान और
पाकिस्तान के बरक्स मोदी की रीति-नीति पर भी नजर रखता है. आने वाली 26 जनवरी को
दिल्ली की परेड में आसियान देशों के दस राष्ट्राध्यक्ष एक साथ अतिथि बनने वाले
हैं. यह घटना भारत के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करेगी.
इधर भारत, अमेरिका, जापान
और ऑस्ट्रेलिया का चतुष्कोणीय सहयोग सामरिक गठजोड़ की शक्ल ले रहा है. गत 11-12
नवम्बर को फिलीपींस की राजधानी मनीला में आसियान शिखर सम्मेलन के हाशिए पर इन
चारों देशों के अधिकारियों ने प्रस्तावित गठजोड़ के सवालों पर विचार किया. चारों
देश वैचारिक सहमति की प्रक्रिया में हैं. अब मंत्रि-स्तरीय बैठकें होंगी और फिर
शिखर बैठकें.
इस साल भारत ने ईरान के
चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान को गेहूं की पहली खेपकर दो महत्वपूर्ण राजनयिक
परिघटनाओं की ओर इशारा किया है. एक, अफगानिस्तान को पाकिस्तानी दबाव से मुक्त कराने
की कोशिश और दूसरे ईरान के रास्ते सेंट्रल एशिया से सम्पर्क के नए रास्तों की
तलाश. हिंद महासागर में भारतीय नौसेना ने अपनी भूमिका को बढ़ाना शुरू कर दिया है.
साल के अंतिम दिनों में भारत के दलबीर भंडारी को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में
स्थान मिलना भी एक बड़ी सफलता मानी जाएगी. वासेनार ग्रुप का सदस्य बनना सकारात्मक
समाचार है. पर एनएसजी में चीनी अड़ंगा और मसूद अजहर को आतंकी घोषित करा पाने में
विफलता भी साल की सुर्खियों में शामिल हैं.
inext में प्रकाशित
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