Thursday, November 2, 2017

ट्रंप के नाम आतंक की खुली चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप के नाम यह खुली चुनौती है, क्योंकि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद से इस्लामी आतंकवाद की अपने किस्म की बड़ी घटना है. राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया से जिस इस्लामी आतंकवाद के सफाए की जिम्मेदारी ली है वह उनके घर के भीतर घुसकर मार कर रहा है. शायद इसीलिए लोअर मैनहटन में हुए नवीनतम आतंकी हमले के बाद उनकी प्रतिक्रिया काफी तेजी से आई है.

ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा है कि आइसिस को हमने पश्चिम एशिया में परास्त कर दिया है, उसे हम अमेरिका में प्रवेश करने नहीं देंगे. ट्रंप ने मैनहटन की घटना को बीमार व्यक्ति की कार्रवाई बताया है. इस साल इस तरह की यह दूसरी घटना है. इससे पहले बोस्टन में इसी तरह की घटना में एक सिरफिरे ने कार को भीड़ के ऊपर चढ़ा दिया था. वहाँ 11 लोग घायल हुए थे. 

यह नवीनतम आतंकी कार्रवाई कई मानों में 11 सितम्बर 2001 के बाद के सबसे खतरनाक हमलों में से एक है और यह एक नए किस्म के खतरे का संकेत दे रहा है. यह घटना उस इलाके में हुई है जहाँ 9/11 की घटना हुई थी. तबसे अबतक अमेरिका में कई हमले हुए हैं, जिनके पीछे अल-कायदा या इस्लामिक स्टेट से जुड़े लोग रहे हैं. पर इस हमले में तकनीक नई है. यूरोप में शुरू हुआ मोटरगाड़ियों का इस्तेमाल, अब अमेरिका में भी प्रवेश कर गया है.

अमेरिका में बंदूक की संस्कृति है और सामूहिक हिंसाओं में गोलीबारी भी होती रही है. वह अमेरिकी संस्कृति की अलग समस्या है. पर यह हमला इस्लामी आतंकवाद से प्रेरित-प्रभावित है, इसलिए अमेरिकी प्रशासन के लिए यह कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है. हताहतों की संख्या के लिहाज से 12 जून 2016 को फ्लोरिडा के पल्स नाइट क्लब, ओरलैंडो में हुआ हमला ज्यादा बड़ा था, पर सामान्य जन-जीवन को देखते हुए मैनहटन का नवीनतम कांड खतरे की चेतावनी है. न्यूयॉर्क में तो यह 9/11 के बाद की सबसे बड़ी घटना है ही.

अमेरिका की चुस्त सुरक्षा प्रणाली ने लम्बे अरसे तक आतंकवाद को अपने देश से दूर ही रखा. सारी दुनिया में हवाई सेवाएं इतने कड़ी व्यवस्था के तहत संचालित होती हैं कि विमान अपहरण जैसे अपराध नियंत्रण में आ गए हैं. पर अब यूरोप में जो घटनाएं हो रही हैं, वे एक नए खतरे की ओर इशारा कर रहीं हैं. न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू कोमो ने इसे लोन वुल्फ अटैक बताया है. इस तरह के हमलों को 'लोन वुल्फ' इसलिए कहा जाता है क्योंकि अकेला व्यक्ति हमले को अंजाम देता है. लोन वुल्फ अटैक यानी ऐसा हमला जो बिना टीम के किया जाता है. भेड़िया जिस तरह अकेले हमला करता है उसी की तर्ज पर ऐसे हमलों को लोन वुल्फ' अटैक कहा जाता है. आमतौर पर भावनात्मक रूप से किसी विचारधारा से गहरे तौर पर प्रभावित व्यक्ति ऐसे हमले करते हैं. ऐसे में उसके पीछे के गिरोह या गुट का पता भी नहीं लग पाता है.

अमेरिका में लोन वुल्फ वारदात बढ़ रहीं हैं. अलबत्ता ज्यादातर घटनाएं गोलीबारी की होती हैं और इनके पीछे जो लोग होते हैं, वे मानसिक रोगी होते हैं. बहरहाल पुलिस ने सेफुलो साइपोव नाम के जिस 29 वर्षीय व्यक्ति को गिरफ्तार किया है वह उज्बेकिस्तान का नागरिक बताया जा रहा है. वह किसी संगठन के साथ जुड़ा है या नहीं, यह जाँच से पता लगेगा. हाल में यूरोप में वाहनों पर बैठकर जो हमले हुए हैं, उनके पीछे आतंकवादियों के संगठित गिरोह रहे हैं.

इस साल अगस्त में स्पेन के बार्सिलोना में एक शख्स ने भीड़ के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी, जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के कुछ ही घंटे बाद स्पेन के तटीय शहर कैम्ब्रील्स में कुछ अन्य संदिग्ध आतंकवादी इसी तरह की एक घटना को अंजाम देने की कोशिश में पाँच लोग पुलिस के हाथों मारे गए थे. ऐसी ही घटना 9 अगस्त को पेरिस में हुई, जब सैनिकों के एक ग्रुप पर एक व्यक्ति ने बीएमडब्ल्यू चढ़ा दी.

लंदन में 9 जून को फिंसबरी पार्क में एक मस्जिद के बाहर वैन से हमला किया गया. उसके पहले 3 जून को लंदन ब्रिज पर तीन आतंकियों ने राहगीरों को वैन से रौंदा. 7 अप्रैल को स्टॉकहोम में एक व्यक्ति ने एक डिपार्टमेंट स्टोर में लॉरी चढ़ा दी. मार्च में लंदन के वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर कार ने राह चलते लोगों को कुचल डाला. उसके पहले 19 दिसम्बर 2016 को बर्लिन में क्रिसमस मार्केट में ट्रक घुसाकर एक शख्स ने 12 लोगों की जान ले ली. उसके पहले 14 जुलाई 2016 को फ्रांस के नीस शहर में आतंकवादी ने भीड़ पर ट्रक चढ़ाकर 86 लोगों की जान ले ली.

अमेरिका में 9/11 हमले में आतंकवादियों ने उच्च तकनीक की मदद ली थी. उसका तोड़ वैश्विक पुलिस व्यवस्था ने निकाल लिया. तकनीकी इंटेलिजेंस और हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करके उनकी गतिविधियों को काफी सीमित कर दिया था. अब आतंकवादी जिस रास्ते पर जा रहे हैं उसमें मामूली तकनीक का इस्तेमाल है. इसे विशेषज्ञ माइक्रो-आतंकवाद बता रहे हैं.

मैनहटन के हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट यानी दाएश का हाथ है या यह केवल एक व्यक्ति का पागलपन है, इसका पता कुछ समय बाद लगेगा. इतना साफ है कि दाएश ने ऐसे लोगों को इस्तेमाल करना शुरू किया है, जिनपर आसानी से शको-शुब्हा न हो. उसने बड़े ऑटोमेटिक हथियारों के बजाय सामान्य चाकुओं, बल्कि कारों का इस्तेमाल शुरू किया है, जिन्हें हथियार कहा भी नहीं जा सकता. उद्देश्य है दहशत फैलाना.

आधुनिक, लोकतांत्रिक और खुले समाजों के हामी लोगों के लिए यह बड़ी चुनौती है. आतंकवाद से लड़ाई दो सतह पर होगी. पहली, काउंटर टैररिज्म व्यवस्था को और ज्यादा चुस्त और चौकस बनाकर. इसके लिए वैश्विक स्तर पर सहयोग और समन्वय चाहिए. संयुक्त राष्ट्र को आतंकवाद विरोधी संधि को जल्द से जल्द पास करना चाहिए. दूसरे दुनिया को मध्ययुगीन धार्मिक कट्टरपंथी समझ से बाहर निकलना चाहिए. क्या यह संभव है? सोचिए दाएश और अल-कायदा रूप बदल कर बार-बार क्यों आते हैं?
inext में प्रकाशित

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पृथ्वीराज कपूर और सोमनाथ शर्मा - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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