नोटबंदी
और जीएसटी कदमों के कारण बैकफुट पर आई मोदी सरकार को मूडीज़ अपग्रेड से काफी
मदद मिलेगी। इसके पहले विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत 30
पायदान की लंबी छलांग के साथ 100वें स्थान पर पहुंच गया था। यह पहला मौका था, जब
भारत ने इतनी लंबी छलांग लगाई। विशेषज्ञों की मानें तो कारोबार करने के मामले में
भारत की रैंकिंग में सुधार से कई क्षेत्र को लाभ होगा। हालांकि मूडीज़ रैंकिंग का
कारोबारी सुगमता रैंकिंग से सीधा रिश्ता नहीं है, पर अंतरराष्ट्रीय पूँजी के
प्रवाह के नजरिए से रिश्ता है। देश की आंतरिक राजनीति के लिहाज से भी यह खबर
महत्वपूर्ण है, क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर सरकार पर हो रहे प्रहार अब
हल्के पड़ जाएंगे।
मोदी
सरकार आर्थिक नीति के निहायत नाजुक मोड़ पर खड़ी है। अगले हफ्ते अर्थ-व्यवस्था की
दूसरी तिमाही की रिपोर्ट आने की आशा है। पिछली तिमाही में आर्थिक संवृद्धि की दर
गिरकर 5.7 फीसदी हो जाने पर विरोधियों ने सरकार को घेर लिया था। उम्मीद है कि इस
तिमाही से गिरावट का माहौल खत्म होगा और अर्थ-व्यवस्था में उठान आएगा। ये सारे कदम
जादू की छड़ी जैसे काम नहीं करेंगे। मूडीज़ ने भी भारत को ऋण और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के
ऊंचे अनुपात पर चेताया है। उसने यह भी कहा है कि भूमि और श्रम सुधारों का एजेंडा
अभी पूरा नहीं हुआ है।
यूपीए
सरकार भी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से रेटिंग सुधारने का आग्रह करती रही थी। संयोग
है कि इसके पहले मूडीज़ ने भारत की रैंकिंग 2004 में सुधारी थी। उस वक्त अटल
बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। वह सरकार चुनाव में हार गई थी। कहा जा सकता है कि
आर्थिक सुधार चुनाव जीतने में मददगार नहीं होते। सरकारें जोखिम मोल लेने से घबराती
हैं। सन 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद 1996 में कांग्रेस सरकार दुबारा जीतकर नहीं
आई। ज्यादा बड़ा सच यह है कि देश की किसी सरकार ने आर्थिक सुधारों को गलत नहीं
बताया है। सवाल इस संदेश को जनता तक पहुँचाने का है।
रेटिंग
में सुधार से भारत में पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, रुपया मजबूत होगा और भारतीय कंपनियों को
विदेशों से कम ब्याज दर पर पूंजी मिल सकेगी। इसका असर शुक्रवार को सेंसेक्स में
दिखाई पड़ा, जो 235.98 अंक उछलकर 33,342.80 पर बंद हुआ। सोमवार को बाजार खुलने के
बाद यह असर और ज्यादा साफ नजर आएगा। पर सेंसेक्स ही अर्थ-व्यवस्था का पैमाना नहीं
है। अभी देखना यह है कि मूडीज़ के बाद स्टैंडर्ड एंड पुअर और फिंच जैसी एजेंसियों
की रेटिंग क्या आती है।
मूडीज़
की नई रेटिंग के अनुसार भारत का परिदृश्य स्थिर है। इसका मतलब है सुधारने और
बिगाडऩे वाले कारक अभी लगभग बराबर हैं। हालांकि चीन की रेटिंग हमसे बेहतर है, पर छह
महीने पहले मूडीज़ ने उसकी सॉवरिन रेटिंग एक पायदान नीचे कर दी थी। यानी धीरे-धीरे
भारत आगे बढ़ रहा है। मूडीज़ ने सरकार के सुधार कार्यक्रमों में जीएसटी, मौद्रिक नीति ढांचे में सुधार, बैंकिंग प्रणाली में फंसे कर्ज की
समस्या से निपटने के लिए किए गए उपाय, नोटबंदी, आधार और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण को गिनाया है।
देश
के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम ने इस साल मई में रेटिंग एजेंसियों के
प्रति नाराज़गी ज़ाहिर की थी। उन्होंने स्टैंडर्ड एंड पुअर को ‘पुअर स्टैंडर्ड’ की संज्ञा दी थी। उनका कहना था कि ये एजेंसियाँ हमारी कोशिशों की
अनदेखी कर रहीं हैं। उन्होंने पिछले बजट के पहले जारी अर्थव्यवस्था की समीक्षा में
भी इस बात की जिक्र किया था। बहरहाल इस साल सरकार ने एकसाथ कई तरह के बड़े कदम
उठाए हैं। इनमें जीएसटी के अलावा बैंकों के लिए 2.11 लाख करोड़ रुपये की पूँजी
जुटाने का कदम है।
सार्वजनिक
बैंक इस वक्त देश की अर्थ-व्यवस्था के गले में हड्डी की तरह अटके हैं। उनकी यह
हालत अतीत में उनके आचरण के कारण पैदा हुई है। उन्हें पूँजी देने मात्र से समस्या
का समाधान नहीं होगा। अब उनकी रीति-नीति में भारी बदलाव की जरूरत है। इस बीच
कम्पनियों को दिवालिया घोषित करने का कानून पास हुआ है, जो बैंकों की पूँजी को
वापस लाने में मददगार होगा। रिजर्व बैंक अब ऐसे अकाउंटों की सूची बना रहा है, जो
दबाव में हैं और एनपीए की दिशा में जा रहे हैं। अब समय रहते हस्तक्षेप करके बैंकों
की पूँजी की रक्षा की जा सकेगी। समस्या के समाधान में ही कुछ नई समस्याएं छिपी
होती हैं। बैंकों की पूँजी बढ़ाने के कारण सरकार पर राजकोषीय दबाव पड़ेगा।
भारत
पर पिछले साल सितंबर में मूडीज़ के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में वित्त मंत्रालय के
अधिकारियों से मुलाकात की थी। उस वक्त उनके सूत्रों ने मीडिया को बताया था कि भारत
का रेटिंग अपग्रेड फिलहाल एक-दो साल बाद ही होगा। स्टैंडर्ड एंड पुअर की भी यही
राय थी। भारत सरकार ने जापान और पुर्तगाल का उदाहरण दिया, जिनपर उनकी अर्थव्यवस्था का दोगुना उधार है। उनकी
रेटिंग्स भारत से बेहतर हैं।
सन
2004-05 में भारत पर कर्ज जीडीपी का 79.5 फीसदी था, जो अब घटकर 69 फीसदी हो चुका है। मूडीज़ का कहना था कि भारत को अब
बीएए2 की जो रेटिंग दी गई है, उसमें 10 देशों का कर्ज अनुपात 42.8 फीसदी का है।
हालांकि इस ग्रुप में इटली का प्रतिशत 132.1 और बल्गारिया का 26.2। बहरहाल भारत
सरकार पर अपने खर्चों को कम करने और कर राजस्व बढ़ाने और राजकोषीय घाटे को काबू
में रखने की चुनौती है।
भारत
सरकार का यह भी कहना है कि विकसित देश विकास की जिस अवस्था में हैं, भारत अभी उसपर नहीं है, फिर भी हमारे लिए ये मानक अपनाए जा रहे हैं, जबकि हमने अर्थ-व्यवस्था को बेहतर बनाया है।
पिछले साल स्टैंडर्ड एंड पुअर ने कहा था कि भारत सरकार आर्थिक सुधारों में तेजी
लाए और कर्ज को जीडीपी के 60 फीसदी के नीचे ले आए तो संभावनाएं बन सकती हैं। इस
संस्था ने देश में जीएसटी लागू होने की प्रक्रिया को सकारात्मक माना है। वह चाहती
है कि देश में व्यापारिक माहौल बने, श्रमिकों
से जुड़े कानूनों में सुधार हो और ऊर्जा सेक्टर में सुधार लाए जाएं। इन सुधारों के
लिए केंद्र को राज्यों के सहयोग की जरूरत है। वर्तमान राजनीतिक हालात में इसकी
जिम्मेदारी केन्द्र पर है।
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