Thursday, March 30, 2023

सोमवार को चेन्नई में दिखाई पड़ेगी विरोधी दलों की एकता

साभार सतीश आचार्य का पुराना कार्टून

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने और राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के साथ विरोधी दलों की एकता के प्रयासों में फिर से तेजी आ गई है। सोमवार 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 16 विरोधी दलों की बैठक बुलाई है। जिन दलों को निमंत्रण दिया गया है, उनमें बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी शामिल है। वे आएंगे या नहीं इसे लेकर कयास हैं। ये दोनों दल अभी तक विरोधी दलों के किसी भी गठबंधन में शामिल होने से बचते रहे हैं।

वाईएसआर कांग्रेस ने गुरुवार को कहा भी है कि हमें बुलाया नहीं गया है और हम शामिल भी नहीं होंगे। बीजद ने भी बैठक में भाग लेने के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अलबत्ता इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं का कहना है कि बीजद के राज्यसभा मुख्य सचेतक सस्मित पात्रा बैठक में शामिल होंगे। विरोधी दलों के नेता यह भी मानते हैं कि ये दोनों दल एनडीए के करीब रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब सस्मित पात्रा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि मैं कह नहीं सकता कि बीजद इस बैठक में शामिल होगा या नहीं। मेरे पास इसमें हिस्सा लेने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

एकता के सूत्र

बहरहाल बैठक के आयोजकों के अनुसार डीएमके की इस बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, जेएमएम, राजद, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, नेकां, बीआरएस, कम्युनिस्ट पार्टी, माकपा, राकांपा, आम आदमी पार्टी, आईयूएमएल, एमडीएमके को आमंत्रित किया गया है। अब पहली बार मोदी विरोध के नाम पर ही सही कम से कम 14 या 15 दल अब एक साथ बैठने को तैयार नज़र आ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ का लोकलुभावन बजट

गत 6 मार्च को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ के आप्त-वाक्य के साथ वर्ष 2023-24 के लिए एक लाख 21 हज़ार 500 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तुत किया। यह बजट इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ को स्थापित करना चाहता है। इस साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी हैं। इस दृष्टि से तमाम लोकलुभावन योजनाओं की भी इसमें भरमार है। खासतौर से बेरोजगारों को 2500 रुपये महीने क बेरोजगारी भत्त की घोषणा। इस योजना की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गणतंत्र दिवस पर कर चुके थे। बजट में केवल उसे औपचारिक रूप दिया गया है।

वित्तीय दृष्टि से राज्य आरामदेह स्थिति में है। राज्य के स्वयं की राजस्व प्राप्तियों को बढ़ाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का परिणाम सकारात्मक रहा है। इस वर्ष राज्य के स्वयं के राजस्व में 26 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है। एक और उपलब्धि यह है कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा राज्य के विकास कार्यों हेतु वर्ष 2012-13 से निरंतर बाजार ऋण लिया जा रहा था। विगत तीन वर्षों में कुशल वित्तीय प्रबंधन अपनाते हुए वर्ष 2022-23 में सरकार ने अब तक बाजार ऋण नहीं लिया है।

आर्थिक संवृद्धि

बजट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई प्रकार की घोषणाएं की गई हैं, जिनमें खासतौर से स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर है। हालांकि अर्थव्यवस्था का विकास देश के सभी इलाकों में हुआ है, पर छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जिनका विकास अपेक्षाकृत तेज है। मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2001 में जो पहला बजट पेश किया था, वह साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का था। संशोधित अनुमानों को जोड़ने के बाद वह 5,705 करोड़ रुपए का हो गया था। इस साल यह एक लाख 12 हजार करोड़ रूपये का है। 22 साल में इसका आकार करीब 22 गुना हो गया है।

Wednesday, March 29, 2023

पश्चिम एशिया में ‘डी-अमेरिकनाइज़ेशन?’

KAL's Cartoon इकोनॉमिस्ट से साभार

देस-परदेश

बुधवार 22 मार्च को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की अपनी यात्रा का समापन किया और अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति की शुरुआत की. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा-प्रणाली’ बनाने का संकल्प करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ नए मोर्चे की शुरुआत की है.

गत 10 मार्च को सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराते हुए चीन ने दो संदेश दिए हैं. एक, चीन महत्वपूर्ण और जिम्मेदार शक्ति है और दूसरे यह कि वह अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. चीन ने पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप करके अपने आपको शांति-स्थापित करने वाले देश के रूप में स्थापित किया है. साथ ही अमेरिका की छवि झगड़े कराने वाले देश के रूप में बनी है. इसे पश्चिम एशिया में डी-अमेरिकनाइज़ेशनकी शुरुआत कहा जा रहा है.

15 अगस्त, 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा किया था, तब भी ऐसा ही कहा गया था. जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पश्चिमी फ्री-मार्केट की अवधारणा से जुड़ी है और संरा और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं कारगर हैं, तब तक यह मान लेना आसान नहीं है कि अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा. अलबत्ता पश्चिम एशिया के घटनाक्रम ने सोचने-विचारने के लिए कुछ नए तथ्य उपलब्ध कराए हैं.

ईरान का प्रतिरोध

अमेरिका के मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में चीन का नाम लिया जा रहा है, पर हमें ईरान के प्रतिरोध पर भी ध्यान देना चाहिए. ईरान ने चार बातें साफ की हैं. एक, अरब देशों के साथ रिश्तों को सुधारने में उसे दिक्कत नहीं हैं. वह चीन पर भरोसा करता है. उसे अमेरिका पर भरोसा कत्तई नहीं है. चौथी, यूक्रेन युद्ध में वह रूस का समर्थक है. इसके प्रमाण हैं ईरान में बने सैकड़ों कामिकाज़े ड्रोन, जिनके अवशेष यूक्रेन के नागरिक इलाकों में मिले हैं.

इन सब बातों के अलावा वह अपने नाभिकीय कार्यक्रम को अमेरिका-समर्थित विश्व-व्यवस्था के हवाले करने को तैयार नहीं है. अब स्थिति यह है कि ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे आंदोलन के खिलाफ सरकारी कार्रवाई छठे महीने में प्रवेश कर गई है. दूसरी तरफ मार्च के तीसरे हफ्ते में ईरान, चीन और रूस की नौसेनाओं ने ओमान की खाड़ी में संयुक्त युद्धाभ्यास किया है, जिससे आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं.

Sunday, March 26, 2023

खालिस्तानी आंदोलन के खतरे


भारत सरकार और पंजाब सरकार ने खालिस्तानी आंदोलन के खिलाफ हालांकि कार्रवाई शुरू की है, पर लगता है कि इसमें कुछ देर की गई है। दो-तीन साल से जिस बात की सुगबुगाहट थी, वह खुलकर सामने आ रहा है। दिल्ली की सीमा पर एक साल तक चले किसान-आंदोलन के दौरान सोशल मीडिया पर खालिस्तान समर्थक सक्रिय हुए थे। 26 जनवरी, 2021 को लालकिले के द्वार तोड़कर जब भीड़ ने अपना झंडा फहराया था, तब मसले की गंभीरता की आशंका व्यक्त की गई थी। उन्हीं दिनों टूलकिट-प्रकरण उछला, जिसे सबसे पहले स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सोशल मीडिया पर शेयर किया था। किसान आंदोलन शुरू होने के पहले ही पंजाब में पाकिस्तान से भेजे गए ड्रोनों की मदद से हथियार गिराने की घटनाएं हुई थीं। कनाडा स्थित कुछ समूहों ने सन 2018 से ‘रेफरेंडम-2020’ नाम से एक अभियान शुरू किया था, जिसके लक्ष्य बहुत खतरनाक हैं। हालांकि यह रेफरेंडम सफल नहीं हुआ, पर इससे साबित हुआ कि दुनिया में भारत-विरोधी गतिविधियाँ चल रही हैं। उन्हें जब भारत के भीतर समर्थन नहीं मिला, तो बाहर से अपने आदमी को प्लांट किया। इन बातों का सकारात्मक पक्ष यह है कि सिख समुदाय ने इन प्रवृत्तियों का विरोध  किया है।

अमृतपाल की भरती

इन बातों का संदर्भ अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में हुई घटनाएं और फिर उसकी गिरफ्तारी की कोशिशों से जुड़ा है। पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 1 सितंबर 2022 को एक सभा के दौरान अमृतपाल सिंह पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि अमृतपाल दुबई से आया है और उसका पूरा परिवार दुबई में है। ऐसे में उसे भारत किसने भेजा? इसका पता लगाना पंजाब की आप सरकार की जिम्मेदारी है। अमृतपाल की अगुआई में उसके हजारों समर्थकों ने गत 23 फरवरी को अमृतसर के अजनाला थाने पर जिस तरह से हमला किया था, उसके बाद उनके इरादों को लेकर कोई संशय नहीं रह गया था। अमृतपाल दुबई में ट्रक ड्राइवर था। उसे पाकिस्तानी आईएसआई ने भारत में गड़बड़ी फैलाने के लिए तैयार किया। वे चाहते हैं कि पंजाब की नई पीढ़ी के मन में उन्माद भरा जाए, ताकि एकबार फिर से देश में अराजकता की लहर फैले जैसी अस्सी के दशक में पंजाब में चले खालिस्तानी आंदोलन के दौरान फैली थी। उसकी परिणति 1984 के ऑपरेशन ब्लूस्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में देखने को मिली थी। उन परिघटनाओं से पैदा हुआ गर्द-गुबार छँट ही रहा था कि भारत की एकता से ईर्ष्या रखने वालों ने दूसरी योजनाओं पर काम शुरू कर दिया।

सीमा पर हरकतें

भारतीय खुफिया एजेंसियों का कहना है कि पाकिस्तान से सक्रिय आतंकी ग्रुप सोशल मीडिया में काफी एक्टिव है और वे युवाओं को बरगला कर आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए मना रहे हैं। इन संगठनों का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। इस काम में पंजाब और कश्मीर के उन अपराधियों को भी शामिल किया जा रहा है, जो नशे का अवैध कारोबार करते हैं। हाल में पंजाब से सटी पाकिस्तानी सीमा आईएसआई  की गतिविधियों में इजाफा देखने को मिल रहा है। पाक रेंजर्स और आईएसआई की मदद से सीमा के नजदीक कई जगहों पर भारत में ड्रग्स और हथियार भेजने के लिए स्मगलरों और आतंकियों को ड्रोन्स मुहैया कराए गए हैं। फ़िरोज़पुर और अमृतसर के बीच कई पाकिस्तानी ड्रोन-गतिविधि काफी बढ़ गई है। पाकिस्तान की तरफ से सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए डमी ड्रोन्स का सहारा भी लिया जा रहा है।

Saturday, March 25, 2023

भारतीय भाषाओं का मीडिया और शब्द चयन


हाल में प्रकाशित डॉ सुरेश पंत की किताब 'शब्दों के साथ-साथ'  को पढ़ते हुए मेरे मन में तमाम पुरानी बातें कौंधती चली गई हैं। एक अरसे से मैं भाषा को लेकर एक किताब लिखने का विचार करता रहा हूँ। संभव है मैं उसे तैयार कर पाऊं। मैं भाषा-विज्ञानी नहीं हूँ। केवल भाषा को बरतने वाला हूँ। विचार को ज्यादा बड़े फलक पर व्यक्त करने के पहले अपने ब्लॉग पर मैं स्फुट विचार व्यक्त करता रहा हूँ। हिंदी को लेकर भी 20-25 से ज्यादा लेख मैंने ब्लॉग में लिखे हैं। काफी बातें मेरी डायरियों में दर्ज हैं, जिन्हें मैं समय-समय पर लिखता रहा हूँ।

हाल में जब मध्य प्रदेश सरकार ने मेडिकल पुस्तकों को हिंदी में प्रकाशित किया, तब मैंने कुछ लेख लिखे थे और उन्हें आगे बढ़ाने का विचार किया। इसके लिए मैंने फलस्तीन, इसरायल, अरबी और अफ्रीका की भाषाओं में मेडिकल पढ़ाई से जुड़े प्रश्नों पर नोट्स तैयार किए। पर जब उस मसले को राजनीति ने घेर लिया, तब मैंने अपना हाथ रोक लिया। पढ़ने वाले यह समझने की कोशिश करने लगते हैं कि मैं संघी हूँ, कांग्रेसी हूँ, लोहियाइट हूँ, लाल झंडा हूँ या आंबेडकरवादी? काफी लोगों ने इन शब्दों के परिधान पहन रखे हैं। और वे दुनिया को इसी नज़र से देखना चाहते हैं। जब किताब लिखूँगा, तब इस विषय पर भी लिखूँगा। तकनीकी शब्दावली और आम-फहम भाषा से जुड़े मसले भी मेरी दृष्टि में हैं। एक बड़ा रोचक मसला हिंदी-उर्दू का है। दोनों की लिपियों का अंतर उन्हें अलग करता है, पर क्या आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की मौखिक भाषा में दोनों के फर्क को मिटाया जा सकता है? बहरहाल।  

मैं केवल हिंदी-नज़रिए से नहीं देखता। मेरी नज़र भाषा और खासतौर से भारतीय भाषाओं पर है। लेखक और पत्रकार के रूप में भारतीय भाषाओं के विस्तार का सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि हम कतार में सबसे पीछे खड़े व्यक्ति तक उसकी भाषा में बात पहुँचा सकते हैं। ऐसे में दो-तीन बातों को ध्यान में रखना होता है। एक, हमारा दर्शक या श्रोता कौन है? उसका भाषा-ज्ञान किस स्तर का है? केवल उसके ज्ञान की बात ही नहीं है बल्कि देखना यह भी होगा कि वह जिस क्षेत्र का निवासी है, वहाँ के मुहावरे और लोकोक्तियों का हमें ज्ञान है या नहीं।

पाठक से सीखें

यह दोतरफा प्रक्रिया है। हमें भी अपने लक्ष्य से सीखना है। खासतौर से तब, जब संवाद लोकभाषा में हो। इसके विपरीत अपेक्षाकृत नगरीय क्षेत्र में मानक-भाषा का इस्तेमाल करने का प्रयास करना चाहिए। लोकभाषा से लालित्य आता हो, तब तो ठीक है, अन्यथा किसी दूसरे क्षेत्र के लोक-प्रयोग कई बार दर्शक और श्रोता को समझ में नहीं आते।

पाकिस्तान में इन दिनों आटे का संकट है। दोनों देशों में दाल-आटे का भाव आम आदमी की दशा पर रोशनी डालता है। भारतीय भूखंड में आटे की व्याप्ति पर डॉ पंत की किताब में अच्छी जानकारी पढ़ने को मिली। आटा संस्कृत आर्द (जोर से दबाना) और प्राकृत अट्ट से व्युत्पन्न हुआ है। अर्थ है किसी अनाज का चूरा, पिसान, बुकनी, पाउडर। कई तरह का चूर्ण बेचने वाला कहलाया परचूनी या परचूनिया। आटा के लिए फारसी शब्द है आद, जो संस्कृत के आर्द का प्रतिरूप लगता है। गुजराती में आटो, कश्मीरी में ओटू, मराठी में आट के अलावा पीठ शब्द भी चलता है, जो पिष्ट या पिसा हुआ से बना है। हिंदी में पिट्ठी या पीठी भी पीसी हुई दाल है। नेपाली में पीठो, कन्नड़ में अट्टसु, पंजाबी, बांग्ला और ओडिया में भी आटा, पर तमिष और मलयाळम में इन सबसे अलग है मावु।