Friday, August 26, 2022

गुलाम नबी का इस्तीफा और नाज़ुक घड़ी में कांग्रेस


इसे कांग्रेस के लिए संकट का समय न भी कहें, तो बहुत नाजुक समय जरूर कहेंगे। पार्टी को अगले तीन हफ्तों में अपने अध्यक्ष का चुनाव करना है। साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वले हैं। अगले साल कर्नाटक
, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं।

दूसरे कई राज्यों में भी चुनाव हैं, पर पाँच में पहले चार राज्यों में कांग्रेस के महत्वपूर्ण हित जुड़े हुए हैं। तेलंगाना में उसकी स्थिति फिलहाल अच्छी नहीं है, पर कांग्रेस की राष्ट्रीय स्थिति को बनाए रखने में तेलंगाना की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पर राजनीति की निगाहें इससे आगे हैं, वह 2024 और 2029 के चुनावों तक देख रही है।

गुलाम नबी के रहने या जाने से कांग्रेस की सेहत पर भले ही बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं हो, फिर भी उनके इस्तीफे से धक्का जरूर लगेगा। ऐसी परिघटनाओं से कार्यकर्ता का मनोबल गिरता है। उनके इस्तीफे के पहले पार्टी-प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने इस्तीफा दिया है। दोनों ने बदहाली के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार माना है। इसके पहले भी जो लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, सबका निशाना राहुल गांधी रहे हैं।

चुनाव-कार्यक्रम

घोषित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस के अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच पूरी की जानी है। चुनाव की तारीख कार्यसमिति तय करेगी, जिसकी बैठक 28 को होने जा रही है। इस चुनाव में सभी राज्यों के 9,000 से अधिक प्रतिनिधि मतदाता होंगे। मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता में पार्टी की चुनाव-समिति ने कहा है कि हम समय पर चुनाव के लिए तैयार हैं।

वर्तमान स्थितियों में लगता है कि इस प्रक्रिया को पूरा करने में 20 सितंबर की समय सीमा का उल्लंघन हो सकता है। पार्टी के संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल ने स्पष्ट किया है कि चुनाव टाले नहीं जा रहे हैं। अलबत्ता कुछ तकनीकी कारणों से उनमें देरी हो रही है। कहा यह भी जा रहा है कि बीच में पितृ-पक्ष पड़ने के कारण पार्टी देरी कर रही है। राज्यों के अध्यक्षों का चुनाव भी 20 अगस्त तक होना था, लेकिन यह प्रक्रिया किसी भी राज्य में पूरी नहीं हुई है।

पाकिस्तान के संकट का क्या हमें फायदा उठाना चाहिए?


भारत और पाकिस्तान ने इस साल एक साथ स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए हैं। पर दोनों के तौर-तरीकों में अंतर है। भारत प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है, और पाकिस्तान दुर्दशा के गहरे गड्ढे में गिरता जा रहा है। जुलाई के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तान सरकार ने देश चलाने के लिए विदेशियों को संपत्ति बेचने का फैसला किया है। एक अध्यादेश जारी करके सरकार ने सभी प्रक्रियाओं और नियमों को किनारे करते हुए सरकारी संपत्ति को दूसरे देशों को बेचने का प्रावधान किया है। यह फैसला देश के दिवालिया होने के खतरे को टालने के लिए लिया है, पर सच यह है कि पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है। अध्यादेश में कहा गया है कि इस फैसले के खिलाफ अदालतें भी सुनवाई नहीं करेंगी।

आर्थिक-संकट के अलावा पाकिस्तान में आंतरिक-संकट भी है। बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से लगे पश्तून इलाकों में उसकी सेना पर विद्रोहियों के हमले हो रहे हैं। हाल में 2 अगस्त को बलूचिस्तान में बाढ़ राहत अभियान में तैनात पाकिस्तानी सेना का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सवार एक लेफ्टिनेंट जनरल और पांच वरिष्ठ फौजी अफसरों सैन्य अधिकारियों की मौत हो गई। पता नहीं यह दुर्घटना थी या सैबोटाज, पर सच यह है कि इस इलाके में सेना पर लगातार हमले हो रहे हैं।

बलूच स्वतंत्रता-सेनानियों के निशाने पर पाकिस्तान और चीन के सहयोग से चल रहा सीपैक कार्यक्रम है। इससे जुड़े चीनी लोग भी इनके निशाने पर हैं। पंजाब को छोड़ दें, तो देश के सभी सूबों में अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं।  बलूचिस्तान, वजीरिस्तान, गिलगित-बल्तिस्तान और सिंध में अलगाववादी आँधी चल रही है। भारत से गए मुहाजिरों का पाकिस्तान से मोह भंग हो चुका है। वे भी आंदोलनरत हैं।

हम क्या करें?

पाकिस्तान जब संकट से घिरा है, तब हमें क्या करना चाहिए?  जब लोहा गरम हो, तब वार करना चाहिए। तभी वह रास्ते पर आएगा। पाकिस्तान के रुख और रवैये में बदलाव करना है, तो उसपर भीतर और बाहर दोनों तरफ से मार करने की जरूरत है। बेशक हमें गलत तौर-तरीकों पर काम नहीं करना चाहिए, पर लोकतांत्रिक और मानवाधिकार से जुड़े आंदोलनों को समर्थन जरूर देना चाहिए।  

क्या हम पाकिस्तानी कब्जे से कश्मीर को मुक्त करा पाएंगे?  गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है।

15 अगस्त, 2016 को लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित और बलूचिस्तान के बिगड़ते हालात का और वहाँ के लोगों की हमदर्दी का जिक्र किया। उन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का मामला भी उठाया। उनकी बात से बलूचिस्तान के लोगों के मन में उत्साह बढ़ा था। यह पहला मौका था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तरह खुले-आम बलूचिस्तान का ज़िक्र किया था। इसपर स्विट्ज़रलैंड में रह रहे बलूच विद्रोही नेता ब्रह्मदाग़ बुग्ती ने कहा था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे बारे में बात कर हमारी मुहिम को बहुत मदद पहुंचाई है।

पाकिस्तानी तिकड़म

इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान ने तिकड़म करके कश्मीर और बलूचिस्तान पर कब्जा किया है। 1947 में बलूचिस्तान और पश्तूनिस्तान भी पाकिस्तान से जुड़ना नहीं चाहते थे। भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजी शासन की वापसी के दौरान, बलूचिस्तान को दूसरी देसी रियासतों की तरह भारत में शामिल होने, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था। उस दौर के इतिहास को पढ़ें तो पाएंगे कि भारत के तत्कालीन नेतृत्व ने इस इलाके की उपेक्षा की, जिसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि पाकिस्तान के हौसले बढ़ते गए।

Monday, August 22, 2022

संवाद बरास्ता सोशल मीडिया!

 



गांधी!
सावरकर!

नेहरू जी!
गुरु जी!

मोदी!
केजरीवाल!

इडली!
पराठा!

रोटी!
बोटी!

पेप्सी!
लस्सी!

 पप्पू!
गप्पू!

कश्मीर!
बलूचिस्तान!

सैमसंग!
आईफोन!


एलोपैथी!
होम्योपैथी!


हॉलीवुड!
बॉलीवुड!

कंगना!
पन्नू!

विकास!
सत्यानाश!

लाल!
भगवा!

शांति!
क्रांति!
  
चुप!
धत!

ट्रॉल!
ठुल्ला!

पाजी!
नालायक!

शट अप!
खामोश!

तू!
तड़ाक!

फूँ!
फटाक!

ब्लॉक!
डबल ब्लॉक! !

Sunday, August 21, 2022

भविष्य के भारत की ‘विराट-संकल्पना’ से जुड़ा प्रधानमंत्री का राजनीतिक वक्तव्य


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले के प्राचीर से जो भाषण दिया है, वह उनके इसी मंच से दिए गए पिछले आठ भाषणों से कुछ मायने में अलग था। उनके 82 मिनट के भाषण में सीमा पर तनाव और यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में आई बेचैनी और देश के सामने खड़ी आर्थिक-चुनौतियों का जिक्र नहीं था, बल्कि भविष्य के भारत की परिकल्पना थी। शायद यह 2024 के चुनाव की पूर्व-पीठिका है। परिवारवाद और भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम का उल्लेख करके उन्होंने इस बात की पुष्टि भी की है। उन्होंने अपने पहले वर्ष के भाषण में स्टेट्समैन यानी राजनीति से ऊपर उठे राजनेता की भूमिका पकड़ी थी, पर अब वे खांटी राजनेता के रूप में बोल रहे हैं।  उन्होंने कहा कि अपनी पूर्ण क्षमता को हासिल करने के लिए भारत को न सिर्फ उन सभी बाधाओं को दूर करने में समर्थ होना होगा जो इसके आगे बढ़ने का रास्ता रोके हुए हैं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों, संपत्ति के समान वितरण और स्वास्थ्य एवं शिक्षा तक समान पहुंच के मानकों को पूरा करने के लिए बाकी दुनिया के साथ कदम-ताल करना होगा। भारत को भले ही अन्य देशों के अनुमोदन की जरूरत नहीं है, लेकिन अपेक्षाकृत समतावादी समाज के निर्माण के मामले बेहतर करने की जरूरत है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि भारत को कई दशकों के बाद एक स्थिर सरकार मिली है, जिसकी बदौलत त्वरित निर्णय करना संभव हो पा रहा है।

विराट-रूपरेखा

किसी खास योजना, किसी खास नीति या किसी खास विचार के बजाय उन्होंने भारत की एक दीर्घकालीन विराट-रूपरेखा पेश की। कह सकते हैं कि उन्होंने 2047 का खाका खींचा, जिसके लिए अगले 25 वर्षों को अमृत-काल बताते हुए कुछ संकल्पों और कुछ संभावनाओं का जिक्र किया। एक देश जिसने अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए हैं, और जो 100 वर्ष की ओर बढ़ रहा है, उसकी महत्वाकांक्षाओं और इरादों को इसमें पढ़ना होगा। मेड इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत जैसे बड़े लक्ष्यों पर चलते हुए देश के भविष्य का खाका उन्होंने खींचा। उनके विचार से शत-वर्षीय भारत विकसित देश होगा। इस यात्रा में नारी-शक्ति की जिस भूमिका को उन्होंने रेखांकित किया है, उसपर हमें ध्यान देना होगा। नारी-शक्ति का जिक्र उन्होंने पहली बार नहीं किया है। इसे वे देश की पूँजी मानते हैं।

इनसाइडर व्यू

प्रधानमंत्री ने कहा, जब सपने बड़े होते हैं, संकल्प बड़े होते हैं तो पुरुषार्थ भी बड़ा होता है। इसे संवाद-शैली कहें या दृष्टि नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता-दिवस भाषणों में क्रमबद्धता है। 15 अगस्त 2014 में उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा, मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर रहा हूं, पर दो महीने में जो इनसाइडर व्यू लिया तो चौंक गया। ऐसा लगता है कि जैसे एक सरकार के भीतर दर्जनों सरकारें चल रहीं हैं। बहरहाल अब वे आउटसाइडर नहीं हैं। तब उन्होंने कहा था, देश बनाना है तो जनता बनाए और दुनिया से कहे कि भारत ही नहीं हम दुनिया का निर्माण करेंगे। उसी संबोधन में ‘कम, मेक इन इंडिया’ वाक्यांश सामने आया था, जो आज नीति की शक्ल ले चुका है। उन्होंने कहने का प्रयास किया था कि हम किसी नए भारत का आविष्कार नहीं, उसका पुनर्निर्माण करने जा रहे हैं। उनकी बातों में सामाजिक बदलाव का जिक्र भी था। स्त्रियों को मुख्यधारा में लाने, उनका सम्मान करने, सरकारी सेवकों को अपनी जिम्मेदारी समझने, सांप्रदायिकता और जातिवाद से जुड़े मसलों को कम से कम एक दशक तक भूल जाने और केवल देश निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया था।

Saturday, August 20, 2022

कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर असमंजस जारी


घोषित कार्यक्रम के अनुसार कांग्रेस के अध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच पूरी की जानी है। चुनाव की तारीख कार्यसमिति तय करेगी। अभी तक कार्यसमिति की बैठक का कार्यक्रम तय नहीं है। इस चुनाव में सभी राज्यों के 9,000 से अधिक प्रतिनिधि मतदाता होंगे। मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता में पार्टी की चुनाव-समिति ने कहा है कि हम समय पर चुनाव के लिए तैयार हैं। फिर भी लगता नहीं कि चुनाव हो पाएंगे। राज्यों के अध्यक्षों का चुनाव भी 20 अगस्त तक होना था, लेकिन यह प्रक्रिया किसी भी राज्य में पूरी नहीं हुई है।

चुनाव टलते जाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि राहुल गांधी फिर से इस पद पर वापसी के लिए तैयार नहीं हैं और पार्टी किसी दूसरे व्यक्ति के नाम को लेकर मन बना नहीं पाई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ही इस पद पर आएं या फिर परिवार का कोई दूसरा सदस्य इस पद पर आए। पर राहुल और सोनिया गांधी कई बार कह चुके हैं कि गांधी परिवार से अब कोई अध्यक्ष नहीं बनेगा।

अब सुना जा रहा है कि किसी ऐसे नेता को पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी की जा रही है, जो परिवार का विश्वस्त हो। शायद कुछ नेता खुद को दावेदार मानते हैं, पर वे खुलकर नहीं कहते। चुनाव की खुली घोषणा हो, तो नाम सामने आ भी सकते हैं। पर परिवार किसी एक नाम का इशारा करेगा, तो उसपर सहमति बन जाएगी। इस बीच जो नाम निकल कर आ रहे हैं, उनमें अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे, मुकुल वासनिक, सुशील कुमार शिंदे, मीरा कुमार, कुमारी शैलजा और केसी वेणुगोपाल शामिल हैं। पर ज्यादातर कयास हैं।