Saturday, November 21, 2020

तुर्की का कट्टरपंथी उभार


अब से दस साल पहले तुर्की एक प्रगतिशील देश था। भूमध्य सागर क्षेत्र और पश्चिम एशिया और खासतौर से मुस्लिम देशों में उसकी विदेश-नीति की बहुत तारीफ होती थी। दस साल पहले उसके तत्कालीन विदेशमंत्री अहमत दावुतुगोलू ने पड़ोसी देशों के साथ ‘जीरो प्रॉब्लम्स’ नीति पर चलने की बात कही थी। आज यह देश पड़ोसियों के साथ जीरो फ्रेंडली रह गया है। वह अफगानिस्तान से लेकर फलस्तीन तक की समस्याओं के समाधान में मध्यस्थ बनता जा रहा था। यहाँ तक कि अमेरिका और ईरान के रिश्तों को सुधारने का जिम्मा भी तुर्की ने अपने ऊपर ले लिया था। पर अब सीरिया, लीबिया और आर्मेनिया-अजरबैजान के झगड़े तक में तुर्की ने हिस्सा लेना शुरू कर दिया है।

सबसे बड़ी बात है कि तुर्की संकीर्ण कट्टरपंथी सांप्रदायिक शब्दावली का इस्तेमाल कर रहा है। हाल में फ्रांस में हुए हत्याकांडों के बाद उसके राष्ट्रपति एर्दोगान ने इस्लामोफोबिया को लेकर जैसी बातें कहीं, वे ध्यान खींचती हैं। एर्दोगान ने मुस्लिम देशों से कहा कि वे फ्रांसीसी सामान का बहिष्कार करें। मैक्रों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘फ्रांस की बागडोर जिनके हाथों में है वह राह भटक गए हैं।’

लगता नहीं है यह वही तुर्की है, जिसे बीसवीं सदी में अतातुर्क कमाल पाशा ने आधुनिक देश बना दिया था, जो धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था का हामी था। तुर्की की नई विदेश नीति पश्चिम विरोधी है। शायद उसका आकलन है कि पश्चिमी देशों का प्रभाव घट रहा है और उसे चीन और रूस जैसे देशों के साथ अपने ताल्लुकात बढ़ाने चाहिए। तुर्की के व्यवहार से ऐसा भी लगता है कि इस्लामी देशों की बची-खुची एकता समाप्त हो रही है।

Friday, November 20, 2020

क्या चीन चाहता है कि अमेरिकी खेमे में जाए भारत?


एक धारणा है कि लद्दाख में चीनी आक्रामकता के कारण भारत ने अमेरिका का दामन पकड़ा है। यदि चीन का खतरा नहीं होता, तो भारत अपनी विदेश-नीति को संतुलित बनाकर रखता और अमेरिकी झुकाव से बचा रहता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस बीच एक आलेख मुझे ऐसा पढ़ने को मिला, जिसमें कहा गया है कि चीन ने भारत को अमेरिकी खेमे में जाने के लिए जान-बूझकर धकेला है, ताकि दुनिया में फिर से दो ध्रुव तैयार हों। भारत के रहने से दो ध्रुव ठीक से बन नहीं पा रहे थे और चीन के खेमे में भारत के जाने की संभावनाएं थी नहीं।

इंडियन एक्सप्रेस में श्रीजित शशिधरन ने लिखा है कि लद्दाख में चीनी गतिविधियों की तुलना इतिहास की एक और घटना से की जा सकती है, जिसे सेवन ईयर्स वॉर के नाम से याद किया जाता है, जिसके कारण दुनिया की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। 1756 से 1763 के बीच फ्रांस और इंग्लैंड के बीच वह युद्ध एक तरह से वैश्विक चौधराहट के लिए हुआ था। क्या भारत-चीन टकराव के निहितार्थ उतने ही बड़े हैं? शशिधरन के अनुसार चीन की कामना है कि उसका और रूस का गठबंधन बने और दुनिया सीधे-सीधे फिर से दो ध्रुवों के बीच बँटे। उसकी इच्छा यह भी है कि भारत किसी न किसी तरह से अमेरिका के खेमे में जाए।

Thursday, November 19, 2020

हाफिज सईद को सजा या सब नौटंकी है?


पाकिस्तान की एक अदालत ने मुंबई हमले के सरगना और जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद को आतंकवाद के दो और मामलों में 10 साल जेल की सजा सुनाई है। दोनों मामले आतंकवाद के लिए पैसे जुटाने से जुड़े हुए हैं। यह खबर जितने जोरदार तरीके से भारतीय मीडिया में प्रकाशित की जा रही है, उतने जोरदार तरीके से पाकिस्तानी मीडिया में नहीं है। पाकिस्तान के डॉन और ट्रिब्यून जैसे अखबारों की वैबसाइट पर यह खबर इन पंक्तियों के लिखे जाते समय यानी शाम 6.00 बजे के आसपास आई भी नहीं थी।

सोशल मीडिया पर भारत के लोगों की पहली प्रतिक्रिया यह है कि यह भी किसी किस्म की नौटंकी है। शायद फरवरी में होने वाली एफएटीएफ बैठक की पेशबंदी है। सच यह है कि पाकिस्तान सरकार ने पिछले साल संरा सुरक्षा परिषद से अनुरोध करके हाफिज सईद की पेंशन बँधवाई थी। हाफिज सईद को सजा दी गई है इसका मतलब साफ है कि यह किसी बात की पेशबंदी है। वह तो पाकिस्तानी सेना से जुड़ा व्यक्ति है और उसे देश का हीरो माना जाता है। बीबीसी के एक विश्लेषण के अनुसार विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान लगातार एफएटीएफ को निराश करता है और उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है तो इसके गंभीर वित्तीय और कूटनीतिक नतीजे होंगे।

कश्मीर के ‘राष्ट्रद्रोही’, करगिल में बीजेपी के सहयोगी


जम्मू-कश्मीर में बने गुपकार गठबंधन को अमित शाह ने गुपकार गैंग कहा है, वहीं अब खबर यह है कि गुपकार गठबंधन की मुख्य पार्टी नेशनल कांफ्रेंस, लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल, करगिल में बीजेपी की सहयोगी है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लरेशन (पीएजीडी) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की पार्टी के 10 सदस्य लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल (LAHDCK) के 26 निर्वाचित सदस्यों में शामिल हैं, वहीं आठ कांग्रेस से और तीन बीजेपी से हैंपांच सदस्य निर्दलीय हैं। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने चार सदस्यों को मनोनीत किया है, इस प्रकार यह संख्या 30 हो गई है।

इसे सहयोग कहा भी कहा जा सकता है, पर दूसरे शब्दों में कहें, तो इस क्षेत्र के विकास के लिए ये सभी दल एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगे। दो अलग-अलग इलाकों में दोनों दलों की राजनीति की दिशा भी अलग-अलग है। यह उस प्रकार का राजनीतिक
गठबंधन नहीं है, जिस प्रकार से दो राजनीतिक दल एक एजेंडा लेकर साथ आते हैं।
कौंसिल में नेशनल कांफ्रेंस और बीजेपी की साझेदारी के बारे में पूछे जाने पर लद्दाख में बीजेपी के सांसद और पार्टी की लद्दाख इकाई के अध्यक्ष, जम्यांग तर्सिंग नामग्याल ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के साथ बीजेपी खुले तौर पर साझेदार है, और आगे भी रहेगी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के गुपकार गठबंधन के संबंध में कहा कि वे लोग जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य बनाना चाहते हैं, और अनुच्छेद 370 की बहाली चाहते हैं, लेकिन लद्दाख में ऐसा नहीं है। लद्दाख अनुच्छेद 370 के खिलाफ है।

Wednesday, November 18, 2020

भारत-द्रोही लॉर्ड नज़ीर की लॉर्ड्स सभा से बर्खास्तगी की सिफारिश

 


युनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ लॉर्ड्स की आचरण समिति ने गत मंगलवार 17 नवंबर को एक रिपोर्ट अपने एक सदस्य लॉर्ड नज़ीर के बारे में प्रकाशित की, जिसमें सिफारिश की गई थी कि इस व्यक्ति को सदन की सदस्यता से बर्खास्त कर देना चाहिए। इस बर्खास्तगी से पहले ही लॉर्ड नज़ीर ने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है और वे 14 नवंबर को सदस्यता से मुक्त हो चुके हैं। यह रिपोर्ट वस्तुतः लॉर्ड नज़ीर की कमिश्नर फॉर स्टैंडर्ड्स की एक जाँच रिपोर्ट के विरुद्ध याचिका को खारिज करते हुए दी गई थी। अब यह रिपोर्ट 19 नवंबर को हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पेश की जाएगी। यह पहला मौका है जब किसी हाउस ऑफ लॉर्ड्स के किसी सदस्य की बर्खास्तगी हुई हो।

ब्रिटेन में नज़ीर अहमद नाम का पाकिस्तानी मूल का यह नागरिक बीस साल पहले हाउस ऑफ लॉर्ड्स का सदस्य बनाया गया था। ब्रिटेन में भारत-विरोधी अभियानों का यह मुख्य संचालक था। सन 2019 में उसके खिलाफ एक शिकायत आई थी कि उसने सहायता माँगने आई एक महिला का यौन शोषण किया। सन 2017 में ताहिरा ज़मां नामक एक महिला ने उनके पास आकर माँग की थी कि एक मुस्लिम पीर या ओझा की जाँच कराई जाए, जो स्त्रियों के लिए खतरनाक है।

ताहिरा ज़मां ने पिछले साल बीबीसी के कार्यक्रम न्यूज़नाइट में बताया था कि लॉर्ड नज़ीर ने मुझे बार-बार डिनर पर बुलाया और अंत में मैं इसके लिए तैयार हो गई। इसके बाद उसने मुझे पूर्वी लंदन स्थित अपने घर पर चलने को कहा। दोनों के बीच सहमति से सहवास भी हुआ, पर ताहिरा का कहना है कि मुझे मदद की जरूरत थी और इस आदमी ने इसका फायदा उठाया और अपने पद का गलत इस्तेमाल किया।