Sunday, November 10, 2019

सर्वानुमति इस फैसले की विशेषता है


अयोध्या फैसले के कानूनी पहलू, अपनी जगह हैं और राजनीतिक और सामाजिक पहलू अपनी जगह। असदुद्दीन ओवेसी का कहना है कि हमें नहीं चाहिए पाँच एकड़ जमीन। हम जमीन खरीद सकते हैं। उन्हें फैसले पर आपत्ति है। उन्होंने कहा भी है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को यह संदेश देकर जाएंगे। जफरयाब जिलानी साहब अभी फैसले का अध्ययन कर रहे हैं, पर पहली नजर में उन्हें खामियाँ नजर आ गईं हैं। कांग्रेस पार्टी ने फैसले का स्वागत किया है। प्रतिक्रियाएं अभी आ ही रही हैं।

इस फैसले का काफी बारीकी से विश्लेषण होगा। पहली नजर में शुरू हो भी चुका है। अदालत क्यों और कैसे अपने निष्कर्ष पर पहुँची। यह समझ में आता है कि अदालत ने परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाक्रम को देखते हुए माना है कि इस स्थान पर रामलला का विशिष्ट अधिकार बनता है, जबकि मुस्लिम पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विशिष्ट अधिकार उसका है। अदालत ने 116 पेज का एक परिच्छेद इस संदर्भ में अपने फैसले के साथ लगाया है।

अलबत्ता अदालत ने बहुत साफ फैसला किया है और सर्वानुमति से किया है। सर्वानुमति छोटी बात नहीं है। छोटे-छोटे मामलों में भी जजों की असहमति होती है। पर इस मामले में पाँचों जजों ने कॉमा-फुल स्टॉप का अंतर भी अपने फैसले में नहीं छोड़ा। यह बात अभूतपूर्व है। 1045 पेज के इस फैसले की बारीकियों और कानूनी पहलुओं पर जाने के अलावा इस फैसले की सदाशयता पर ध्यान देना चाहिए।

सन 1994 में पीवी नरसिंहराव सरकार ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर सलाह मांगी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राय देने से मना कर दिया था, पर आज उसी अदालत ने व्यापक हित में फैसला सुनाया है। इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। 

यह भी कहा जा रहा है कि अयोध्या तो पहला मामला है, अभी मथुरा और काशी के मामले उठेंगे। उनके पीछे एक लंबी कतार है। शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि सन 1991 में पीवी नरसिंह राव की सरकार ने धार्मिक स्थल कानून बनाकर भविष्य में ऐसे मसलों की संभावना को खत्म कर दिया था।

Friday, November 8, 2019

दिल्ली के पुलिस-वकील टकराव के सबक


दिल्ली की सड़कों पर मंगलवार को और अदालतों में बुधवार को जो दृश्य दिखाई पड़े, वे देश की कानून-व्यवस्था और न्याय-प्रक्रिया पर बड़े सवाल खड़े करते हैं. देश में सांविधानिक न्याय और कानून-व्यवस्था की रक्षक यही मशीनरी है, तो फिर इसका मतलब है कि हम गलत जगह पर आ गए हैं. यह देश की राजधानी है. यहाँ पर अराजकता का यह आलम है, तो फिर जंगलों में क्या होता होगा? गाँवों और कस्बों की तो बात ही अलग है. कानून के शासन की धज्जियाँ वे लोग उड़ा रहे हैं, जिनपर कानून की रक्षा की जिम्मेदारी है.
दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में एक पुलिसकर्मी और एक वकील के बीच पार्किंग को लेकर मामूली से विवाद ने एक असाधारण राष्ट्रीय समस्या का रूप ले लिया. पार्किक विवाद से शुरू हुआ यह मामला दो समूहों के बीच संघर्ष के रूप में तब्दील हो गया. शनिवार को तीस हजारी कोर्ट में हुए इस संघर्ष में आठ वकील और 20 पुलिस वाले घायल हुए. एक पुलिस वाले ने गोली भी चलाई. इसके बाद सोमवार को साकेत अदालत के बाहर फिर टकराव हुआ. कड़कड़डूमा कोर्ट के बाहर एक पुलिसकर्मी की पिटाई कर दी गई.
टकराव की छोटी-मोटी कई खबरें सुनाई पड़ीं. इस बीच मोटरसाइकिल पर सवार एक वर्दीधारी पुलिसकर्मी को कोहनी मारते और उसे थप्पड़ मारते हुए वीडियो सामने आने के बाद पुलिस वालों का गुस्सा भड़का और मंगलवार को उन्होंने दिल्ली पुलिस के मुख्यालय को घेर लिया. मुख्यालय की सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस को तैनात करना पड़ा. समझाने-बुझाने के बाद अंततः पुलिसकर्मियों का आंदोलन वापस हो गया, पर अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया.
उधर तीस हजारी में हुए टकराव को लेकर बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई भी हुई. अदालत ने दोनों पक्षों को सलाह दी कि वे साथ बैठकर आपसी झगड़े को सुलझाएं. कोर्ट ने कहा कि वकीलों और पुलिस के जिम्मेदार प्रतिनिधियों के बीच संयुक्त बैठक होनी चाहिए, ताकि विवाद को सुलझाने की कोशिशें हो सकें. कोर्ट ने कहा, बार कौंसिल और पुलिस प्रशासन दोनों कानून की रक्षा के लिए हैं. न्याय के सिक्के के ये दो पहलू हैं और उनके बीच कोई भी असंगति या टकराव शांति और सद्भाव के लिए निंदनीय है. हाई कोर्ट द्वारा बनाई गई एक कमेटी इस मामले की जांच भी करेगी.

Tuesday, November 5, 2019

एफएटीएफ क्या रोक पाएगा पाकिस्तानी उन्माद?


फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सूची में पाकिस्तान फिलहाल फरवरी तक ग्रे लिस्ट में बना रहेगा। पेरिस में हुई बैठक में यह फैसला हुआ है। इस फैसले में पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी भी दी गई है। कहा गया है कि यदि फरवरी 2020 तक पाकिस्तान सभी 27 कसौटियों पर खरा नहीं उतरा तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। यह चेतावनी आमराय से दी गई है। पाकिस्तान का नाम काली सूची में रहे या भूरी में, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। ज्यादा महत्वपूर्ण है जेहादी संगठनों के प्रति उसका रवैया। क्या वह बदलेगा?
पिछले महीने संरा महासभा में इमरान खान ने कश्मीर में खून की नदियाँ बहाने और नाभिकीय युद्ध छेड़ने की जो धमकी दी है, उससे उनकी विश्व-दृष्टि स्पष्ट हो जाती है। ज्यादा बड़ा प्रश्न यह है कि अब क्या होगा? पाकिस्तान की इस उन्मादी और जुनूनी मनोवृत्ति पर नकेल कैसे डाली जाएगी? एफएटीएफ ने पाकिस्तान को आतंकी वित्तपोषण और धन शोधन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। क्या वह इनका अनुपालन करेगा?

Monday, November 4, 2019

वॉट्सएप जासूसी के पीछे कौन?


वॉट्सएप मैसेंजर पर स्पाईवेयर पेगासस की मदद से दुनिया के कुछ लोगों की जासूसी की खबरें आने के बाद से इस मामले के अलग-अलग पहलू एकसाथ उजागर हुए हैं। पहला सवाल है कि यह काम किसने किया और क्यों? जासूसी करना-कराना कोई अजब-अनोखी बात नहीं है। सरकारें भी जासूसी कराती हैं और अपराधी भी कराते हैं। दोनों एक-दूसरे की जासूसी करते हैं। राजनीतिक उद्देश्यों को लिए जासूसी होती है और राष्ट्रीय हितों की रक्षा और मानवता की सेवा के लिए भी। यह जासूसी किसके लिए की जा रही थी? और यह भी कि इसकी जानकारी कौन देगा?
इसका जवाब या तो वॉट्सएप के पास है या इसरायली कंपनी एनएसओ के पास है। बहुत सी बातें सिटिजन लैब को पता हैं। कुछ बातें अमेरिका की संघीय अदालत की सुनवाई के दौरान पता लगेंगी। इन सवालों के बीच नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप का सवाल भी है। सबसे बड़ा सवाल है कि तकनीकी जानकारी के सदुपयोग या दुरुपयोग की सीमाएं क्या हैं? फिलहाल इस मामले के भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ अलग-अलग हैं।

Sunday, November 3, 2019

अमेरिका में भारत की किरकिरी


भारतीय विदेश नीति के नियंता मानते हैं कि भारत का नाम दुनिया में इज्जत से लिया जाता है और पाकिस्तान की इज्जत कम है। इसकी बड़ी वजह भारतीय लोकतंत्र है। हमारी सांविधानिक संस्थाएं कारगर हैं और लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता परिवर्तन होता है। अक्सर जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव होता है, तो हम कहते हैं कि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। हम यह भी मानते हैं कि कश्मीर समस्या भारत-पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला है और दुनिया इसे स्वीकार करती है। और यह भी कि पाकिस्तान कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण का प्रयास करता है, पर वह इसमें विफल है।
उपरोक्त बातें काफी हद तक आज भी सच हैं, पर 5 अगस्त के बाद दुनिया की समझ में बदलाव आया है। हमारी खुशफहमियों को धक्का लगाने वाली कुछ बातें भी हुईं हैं, जिनसे देश की छवि को बहुत गहरी न सही किसी न किसी हद तक ठेस लगी है। विदेश-नीति संचालकों को इस प्रश्न पर ठंडे दिमाग से विचार करना चाहिए। बेशक जब हम कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे, तब उसका अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया था, पर अब उससे कुछ ज्यादा हो गया है। पिछले तीन महीने के घटनाक्रम पर नजर डालें, तो कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं:-
·      हम कुछ भी कहें, पाकिस्तान अलग-थलग नहीं पड़ा है। चीन, तुर्की और मलेशिया ने पहले संरा में और उसके बाद एफएटीएफ में उसे खुला समर्थन दिया है। चीन और रूस के सामरिक रिश्ते सुधरते जा रहे हैं और इसका प्रभाव रूस-पाकिस्तान रिश्तों में नजर आने लगा है। यह सब अलग-थलग पड़ने की निशानी नहीं है।
·      हाल में ब्रिटिश शाही परिवार के प्रिंस विलियम और उनकी पत्नी केट मिडल्टन की पाकिस्तान यात्रा से भी क्या संकेत मिलता है?  ब्रिटिश शाही परिवार का पाकिस्तान दौरा 13 साल बाद हुआ है। इससे पहले प्रिंस ऑफ वेल्स और डचेस ऑफ कॉर्नवेल कैमिला ने 2006 में देश का दौरा किया था।
·      इसके पहले ब्रिटेन के मुख्य विरोधी दल लेबर पार्टी ने कश्मीर पर एक आपात प्रस्ताव पारित करते हुए पार्टी के नेता जेरेमी कोर्बिन से कहा था कि वे कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भेजकर वहाँ की स्थिति की समीक्षा करने का माँग करें और वहाँ की जनता के आत्म-निर्णय के अधिकार की मांग करें।
·      अमेरिका में हाउडी मोदी के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप ने इमरान खान की न केवल पर्याप्त आवभगत की, बल्कि बार-बार कहा कि मैं तो कश्मीर मामले में मध्यस्थता करना चाहता हूँ, बशर्ते भारत माने। ह्यूस्टन की रैली में नरेंद्र मोदी ने ट्रंप का समर्थन करके डेमोक्रेट सांसदों की नाराजगी अलग से मोल ले ली है।
·      भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी व्यवस्था को लेकर उन देशों में सवाल उठाए जा रहे हैं, जो भारत के मित्र समझे जाते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण है दक्षिण एशिया में मानवाधिकार विषय पर अमेरिकी संसद में हुई सुनवाई, जिसमें भारत पर ही निशाना लगाया गया।
·      इस सुनवाई में डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ सांसदों की तीखी आलोचना के कारण भारत के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ी। मोदी सरकार के मित्र रिपब्लिकन सांसद या तो इस सुनवाई के दौरान हाजिर नहीं हुए और जो हाजिर हुए उन्होंने भारतीय व्यवस्था की आलोचना की।