Monday, December 23, 2013

मीडिया-उन्माद का विषय मत बनाइए देवयानी मामले को

देवयानी खोबरागड़े का मामला मीडिया संग्राम का शिकार हो गया। दोनों देशों की सरकारों ने अब इस मामले पर ठंडा पानी डालने की कोशिश की है। हमारे मीडिया को समझना चाहिए कि हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित न करे। दूसरी ओर पश्चिमी देशों को भारतीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए। इधर जब भारत सरकार ने अमेरिकी राजनयिकों को मिल रही सुविधाओं को खत्म करने की घोषणा की तब अखबारों की सुर्खियाँ इस आशय की थीं कि भारत के पास भी रीढ़ की हड्डी है। अमेरिकी विदेश मंत्री के खेद प्रकट करने के बावजूद भारत की ओर से माफी माँगने और इस मुकदमे को वापस लेने की माँग होने लगी।

Sunday, December 22, 2013

'लोक' जाग जाता है तो लोकपाल आता है

लोकपाल विधेयक पास होने के बाद अब अनेक सवाल उठेंगे। क्या अब देश से भ्रष्टाचार का सफाया हो जाएगा? क्या हमें इतना ही चाहिए था? सवाल यह भी है कि यह काम दो साल पहले क्यों नहीं पाया था? जो राजनीतिक दल कल तक इस कानून का मज़ाक उड़ा रहे थे वे इसे पास करने में एकजुट कैसे हो गए? और अरविंद केजरीवाल और उनके साथी जो कल तक अन्ना हजारे के ध्वज वाहक थे आज इसे जोकपाल कानून क्यों कह रहे हैं? राहुल गांधी ने इस कानून को लेकर पहले गहरी दिलचस्पी नहीं दिखाई। वे अब इसे अपना कानून क्यों बता रहे हैं? इसे पास कराने में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच इतनी जबरदस्त सहमति कैसे बन गई?
दो साल पहले केजरीवाल कहते थे कि हम चुनाव लड़ने नहीं आए हैं। उन्होंने चुनाव लड़ा। ऐसी तमाम अंतर्विरोधी बातों से ही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था विकसित होती है। इन दिनों अचानक एक नए किस्म की राजनीति ने जन्म लिया है। यह शुभ लक्षण है। जरूरी नहीं कि यह उत्साह बना रहे। संभव है कि निराशा का कोई और कारण हमारे भीतर पैदा हो। फिलहाल हमें धैर्य और समझदारी का परिचय देना चाहिए।

Saturday, December 21, 2013

कांग्रेस अब गठबंधन की तलाश में

चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारी पराजय के बाद कांग्रेस ने 17 जनवरी को दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक बुलाई है, जिसमें लोकसभा चुनावों की रणनीति तैयार की जाएगी। संभावना इस बात की है कि उस बैठक में राहुल गांधी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया जाए। पर पार्टी के विचारकों के सामने सबसे बड़ा संकट अलग-अलग राज्यों का गणित है। लोकपाल विधेयक को पास कराने की जल्दबाज़ी और इस मामले में भी राहुल गांधी की पैराट्रुपर राजनीति का मतलब यही है कि पार्टी को संजीवनी चाहिए। एआईसीसी की पिछली बैठक इस साल जनवरी में जयपुर चिंतन शिविर के साथ हुई थी। इस बैठक की घोषणा जिस दिन की गई उसके एक दिन पहले डीएमके के नेता करुणानिधि ने अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया है।

Friday, December 20, 2013

सूचना की आँधी, बहस का शोर

तमाम विफलताओं के बावजूद विस्तार की राह पर है मीडिया

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की गतिविधियाँ तब शुरू ही हुईं थीं। एक दिन अचानक मोबाइल फोन की घंटी बजी। ‘हेलो मैं अरविंद केजरीवाल बोल रहा हूँ। फोन काटिए मत यह रिकॉर्डेड मैसेज है.....।’ अपनी बात कहने का यह एक नया तरीका था। यह एक शुरुआत थी। इसके बाद इस किस्म के तमाम फोन और एसएमएस आए। ऐसे फोन भी आए, जिनमें अरविंद केजरीवाल या उनकी पार्टी के खिलाफ संदेश था। इसमें दो राय नहीं कि इन चुनावों में ‘न्यू मीडिया’ का जबरदस्त हस्तक्षेप था। ईआरआईएस ज्ञान फाउंडेशन और भारतीय इंटरनेट एवं मोबाइल संघ द्वारा कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2014 में होने वाले अगले आम चुनाव में सोशल मीडिया लोकसभा की 160 सीटों को प्रभावित करेगा। यह बात इन विधानसभा चुनावों में दिखाई भी दी। अध्ययन में कहा गया है कि अगले आम चुनाव में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 160 अहम सीटों पर सोशल मीडिया का प्रभाव रहने की संभावना है, जिनमें महाराष्ट्र में सबसे हाई इम्पैक्ट वाली 21 सीटें और गुजरात में 17 सीटें शामिल है। आशय उन सीटों से है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में विजयी उम्मीदवार के जीत का अंतर फेसबुक का प्रयोग करने वालों से कम है अथवा जिन सीटों पर फेसबुक का प्रयोग करने वालों की संख्या कुल मतदाताओं की संख्या का 10 प्रतिशत है।

Thursday, December 19, 2013

'आप' के सामने जोखिम अनेक हैं, पर सफल हुई तो भारत बदल जाएगा

 गुरुवार, 19 दिसंबर, 2013 को 11:27 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी रविवार तक जनता के बीच जाकर उससे पूछेगी कि पार्टी को दिल्ली में सरकार बनानी चाहिए या नहीं. इसके बाद सोमवार को पता लगेगा कि पार्टी सरकार बनाने के लिए तैयार है या नहीं. भारत में यह जनमत संग्रह अभूतपूर्व घटना है. यूनानी नगर राज्यों के प्रत्यक्ष लोकतंत्र की तरह.
‘आप’ की पेचदार निर्णय प्रक्रिया जनता को पसंद आएगी या नहीं, लेकिन पार्टी जोखिम की राह पर बढ़ रही है. पार्टी को दुबारा चुनाव में ही जाना था, तो इस सब की ज़रूरत नहीं थी. इस प्रक्रिया का हर नतीजा जोखिम भरा है. पार्टी का कहना है कि हमने किसी से समर्थन नहीं माँगा था, पर उसने सरकार बनाने के लिए ही तो चुनाव लड़ा था.
‘आप’ अब तलवार की धार पर है. सत्ता की राजनीति के भंवर ने उसे घेर लिया है. इस समय वह जनाकांक्षाओं के ज्वार पर है. यदि पार्टी इसे तार्किक परिणति तक पहुँचाने में कामयाब हुई तो यह बात देश के लोकतांत्रिक इतिहास में युगांतरकारी होगी.
एक सवाल यह है कि इस जनमत संग्रह की पद्धति क्या होगी? पार्टी का कहना है कि 70 विधानसभा क्षेत्रों में जनसभाएं की जाएंगी, 25 लाख पर्चे छापे जाएंगे. फेसबुक, ट्विटर और एसएमएस की मदद भी ली जाएगी.