देवयानी खोबरागड़े का मामला मीडिया संग्राम का शिकार हो
गया। दोनों देशों की सरकारों ने अब इस मामले पर ठंडा पानी डालने की कोशिश की है।
हमारे मीडिया को समझना चाहिए कि हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी
रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित न करे। दूसरी ओर पश्चिमी देशों को भारतीय
संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए। इधर जब भारत सरकार ने अमेरिकी राजनयिकों को
मिल रही सुविधाओं को खत्म करने की घोषणा की तब अखबारों की सुर्खियाँ इस आशय की थीं
कि भारत के पास भी रीढ़ की हड्डी है। अमेरिकी विदेश मंत्री के खेद प्रकट करने के
बावजूद भारत की ओर से माफी माँगने और इस मुकदमे को वापस लेने की माँग होने लगी।
आम आदमी पार्टी रविवार तक जनता के बीच जाकर उससे पूछेगी कि पार्टी को दिल्ली में सरकार बनानी चाहिए या नहीं. इसके बाद सोमवार को पता लगेगा कि पार्टी सरकार बनाने के लिए तैयार है या नहीं. भारत में यह जनमत संग्रह अभूतपूर्व घटना है. यूनानी नगर राज्यों के प्रत्यक्ष लोकतंत्र की तरह.
‘आप’ की पेचदार निर्णय प्रक्रिया जनता को पसंद आएगी या नहीं, लेकिन पार्टी जोखिम की राह पर बढ़ रही है. पार्टी को दुबारा चुनाव में ही जाना था, तो इस सब की ज़रूरत नहीं थी. इस प्रक्रिया का हर नतीजा जोखिम भरा है. पार्टी का कहना है कि हमने किसी से समर्थन नहीं माँगा था, पर उसने सरकार बनाने के लिए ही तो चुनाव लड़ा था.
‘आप’ अब तलवार की धार पर है. सत्ता की राजनीति के भंवर ने उसे घेर लिया है. इस समय वह जनाकांक्षाओं के ज्वार पर है. यदि पार्टी इसे तार्किक परिणति तक पहुँचाने में कामयाब हुई तो यह बात देश के लोकतांत्रिक इतिहास में युगांतरकारी होगी.
एक सवाल यह है कि इस जनमत संग्रह की पद्धति क्या होगी? पार्टी का कहना है कि 70 विधानसभा क्षेत्रों में जनसभाएं की जाएंगी, 25 लाख पर्चे छापे जाएंगे. फेसबुक, ट्विटर और एसएमएस की मदद भी ली जाएगी.