कुछ दिन पहले तक समाजवादी पार्टी पर वंशवाद का आरोप था। अब
उसके भीतर प्रति-वंशवाद जन्म ले रहा है। ‘बारह दूने आठ’ का यह नया पहाड़ा वंशवाद का बाईप्रोडक्ट है। सवाल उत्तराधिकार का है।
समझना यह होगा कि सन 2012 में जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को अपना उत्तराधिकारी
बनाया था तब वजह क्या थी और आज उन्हें अपने किए पर पछतावा क्यों है?
Monday, October 31, 2016
Sunday, October 30, 2016
बिहार के रास्ते पर यूपी की राजनीति?
क्या उत्तर प्रदेश बिहार के रास्ते जाएगा?
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक आकाश पर जैसे शिकारी पक्षी मंडराने लगे हैं. चुनाव नज़दीक होने की वजह से यह लाज़िमी था. लेकिन समाजवादी पार्टी के घटनाक्रम ने इसे तेज़ कर दिया है. हर सुबह लगता है कि आज कुछ होने वाला है.
प्रदेश की राजनीति में इतने संशय हैं कि अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चुनाव बाद क्या होगा. कुछ समय पहले तक यहाँ की ज्यादातर पार्टियाँ चुनाव-पूर्व गठबंधनों की बात करने से बच रही थीं.
भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दावा किया था कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब उत्तर प्रदेश अचानक बिहार की ओर देखने लगा है. पिछले साल बिहार में ही समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन की आत्मा को ठेस' पहुँचाई थी. इसके बावजूद ऐसी चर्चा अब आम हो गई है.
बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश में पार्टी संकट में फँसी है तो महागठबंधन की बातें फिर से होने लगीं हैं.
सवाल है कि क्या यह गठबंधन बनेगा? क्या यह कामयाब होगा?
सपा और बसपा के साथ कांग्रेस के तालमेल की बातें फिर से होने लगी हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है 'सर्जिकल स्ट्राइक' के कारण बीजेपी का आक्रामक रुख.
उधर कांग्रेस की दिलचस्पी अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी को रोकने में है, और सपा की दिलचस्पी अपने को बचाने में है. कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी का भी...
मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण से बीजेपी की प्रति-ध्रुवीकरण रणनीति बनती है. 'बीजेपी को रोकना है' यह नारा मुस्लिम मन को जीतने के लिए गढ़ा गया है. इसमें सारा ज़ोर 'बीजेपी' पर है.
बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर पढ़ें पूरा लेख
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक आकाश पर जैसे शिकारी पक्षी मंडराने लगे हैं. चुनाव नज़दीक होने की वजह से यह लाज़िमी था. लेकिन समाजवादी पार्टी के घटनाक्रम ने इसे तेज़ कर दिया है. हर सुबह लगता है कि आज कुछ होने वाला है.
प्रदेश की राजनीति में इतने संशय हैं कि अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चुनाव बाद क्या होगा. कुछ समय पहले तक यहाँ की ज्यादातर पार्टियाँ चुनाव-पूर्व गठबंधनों की बात करने से बच रही थीं.
भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने दावा किया था कि वे अकेले चुनाव में उतरेंगी. लेकिन अब उत्तर प्रदेश अचानक बिहार की ओर देखने लगा है. पिछले साल बिहार में ही समाजवादी पार्टी ने 'महागठबंधन की आत्मा को ठेस' पहुँचाई थी. इसके बावजूद ऐसी चर्चा अब आम हो गई है.
बहरहाल, अब उत्तर प्रदेश में पार्टी संकट में फँसी है तो महागठबंधन की बातें फिर से होने लगीं हैं.
सवाल है कि क्या यह गठबंधन बनेगा? क्या यह कामयाब होगा?
सपा और बसपा के साथ कांग्रेस के तालमेल की बातें फिर से होने लगी हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है 'सर्जिकल स्ट्राइक' के कारण बीजेपी का आक्रामक रुख.
उधर कांग्रेस की दिलचस्पी अपनी जीत से ज्यादा बीजेपी को रोकने में है, और सपा की दिलचस्पी अपने को बचाने में है. कांग्रेस, सपा, बसपा और बीजेपी सबका ध्यान मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी का भी...
मुस्लिम वोट के ध्रुवीकरण से बीजेपी की प्रति-ध्रुवीकरण रणनीति बनती है. 'बीजेपी को रोकना है' यह नारा मुस्लिम मन को जीतने के लिए गढ़ा गया है. इसमें सारा ज़ोर 'बीजेपी' पर है.
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वक्त के साथ रूप बदलती दीवाली!
प्रेम से बोलो, जय दीवाली!
जहां में यारो
अजब तरह का है ये त्यौहार।
किसी ने नकद लिया
और कोई करे उधार।।
खिलौने, खीलों, बताशों का गर्म है बाज़ार
हरेक दुकान में चिरागों
की हो रही है बहार।।
मिठाइयों की
दुकानें लगा के हलवाई।
पुकारते हैं
कह--लाला दीवाली है आई।।
बतासे ले कोई, बरफी किसी ने तुलवाई।
खिलौने वालों की
उन से ज्यादा है बन आई।।
नज़ीर अकबराबादी
ने ये पंक्तियाँ अठारहवीं सदी में कभी लिखी थीं. ये बताती हैं कि दीवाली आम
त्यौहार नहीं था. यह हमारे सामाजिक दर्शन से जुड़ा पर्व था. भारत का शायद यह सबसे
शानदार त्यौहार है. जो दरिद्रता के खिलाफ है. अंधेरे पर उजाले, दुष्चरित्रता पर
सच्चरित्रता, अज्ञान पर ज्ञान की और निराशा पर आशा की जीत. यह सामाजिक नजरिया है, ‘तमसो
मा ज्योतिर्गमय.’ ‘अंधेरे से उजाले की ओर जाओ’ यह उपनिषद की आज्ञा है. यह एक पर्व
नहीं है. कई पर्वों का समुच्चय है. हम इसे यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते
हैं. नचिकेता की कथा सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है. पर क्या
हमारी दीवाली वही है, जो इसका विचार और दर्शन है? आसपास देखें तो आप पाएंगे कि आज सबसे गहरा अँधेरा और सबसे ज्यादा अंधेर
है। आज आपको अपने समाज की सबसे ज्यादा मानसिक दरिद्रता दिखाई पड़ेगी। अविवेक,
अज्ञान और नादानी का महासागर आज पछाड़ें मार रहा है।
Thursday, October 27, 2016
अंतरिक्ष के इस रहस्यमय सितारे पर नजर
ग्रीनबैंक टेलिस्कोप |
वैज्ञानिक अभी इस बात पर सहमत नहीं हो पाए हैं कि धरती से 1,480 प्रकाश वर्ष दूर किसी बुद्धिमान प्राणी ने नक्षत्र की रोशनी को रोकने वाली कोई विशाल संरचना बना ली है। अलबत्ता अंतरिक्ष में बुद्धिमान प्राणी की खोज में लगी The Breakthrough Listen SETI (Search for Extraterrestrial Intelligence) परियोजना अपने सबसे ताकतवर रेडियो टेलिस्कोप इस काम में लगा रही है।
यह परियोजना रूसी उद्यमी यूरी मिल्नर और ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिकविज्ञानी स्टीफन हॉकिंग और फेसबुक के जन्मदाता मार्क जुकेनबर्ग का मिला-जुला प्रयास है। बुधवार 26 अक्तूबर से अमेरिका के पश्चिमी वर्जीनिया में लगे 100 मीटर के ग्रीन बैंक टेलिस्कोप (साथ का चित्र) के साथ वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसके ऑब्जर्वेंशन का काम शुरू किया है। अगले दो महीने तक तीन-तीन रातें आठ-आठ घंटे टैबीस स्टार की गतिविधियों पर नजर रखने का काम किया जाएगा।
The Breakthrough Listen SETI कार्यक्रम के पास धरती का सबसे बड़ा टेलिस्कोप है। यह उपकरण बेहतर तरीके से इस परिघटना पर नजर रख सकता है। इस अध्ययन की खासियत है कि इस बार केवल एक सितारे पर नजर है।
http://www.seeker.com/alien-megastructure-tabbys-star-seti-intelligent-civilization-dyson-sp-2064947450.html
पूरा विवरण पढ़ें यहाँ
इससे पहले की मेरी यह पोस्ट भी पढ़ें
Wednesday, October 26, 2016
कश्मीर में ट्रैक-टू वार्ता
पिछले दो दिनों से खबरें हैं कि यशवंत सिन्हा के नेतृत्व में पाँच सदस्यों की एक टीम इन दिनों कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत कर रही है। इस शिष्टमंडल ने कट्टरपंथी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी और मीरवाइज उमर फारूक से श्रीनगर में मुलाकात की। सिन्हा के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने हैदरपोरा इलाका स्थित गिलानी के घर पर उनसे मुलाकात की। गिलानी के साथ बैठक से पहले सिन्हा ने संवाददाताओं को बताया कि वे यहां किसी शिष्टमंडल के रूप में नहीं आए। उन्होंने कहा, ‘हम लोग सद्भावना और मानवता के आधार पर यहां आए हैं। इसका लक्ष्य लोगों के दुख दर्द और कष्टों को साझा करना है। अगर हम ऐसा कर सके तो खुद को धन्य महसूस करेंगे।’ मीरवाइज उमर फारूक और मोहम्मद यासिन मलिक जैसे अन्य अलगाववादी नेताओं से मिलने के बारे में पूछे जाने पर सिन्हा ने कहा कि वे हर किसी से मिलने की कोशिश कर रहे हैं। शिष्टमंडल के राज्य में अलगाववादी नेताओं से मिलने पर सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि न तो सरकार और न ही पार्टी (बीजेपी) का इससे कुछ लेना-देना है। यह उनका निजी दौरा है। गृहराज्य मंत्री किरण रिजीजू ने शिष्टमंडल के इस दौरे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कुछ भी अगर स्वेच्छा से किया गया हो तो उसे रोका नहीं जा सकता है। रिजीजू ने कहा कि इसके आगे मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। वहीं, यूपीए शासनकाल में रक्षा मंत्री रहे एके एंटनी ने कहा कि प्रतिष्ठा का ख्याल रखे बिना सरकार को हर किसी से बातचीत करनी चाहिए। बातचीत से समस्या का समाधान तलाशिए। सरकार को कश्मीर के युवाओं के मिजाज को समझना होगा।
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