पाकिस्तान के फ्राइडे टाइम्स से साभार
इमरान खान क्या चाहते थे और उन्हें
क्यों हटना पड़ा, इन बातों पर काफी लम्बे समय तक रोशनी पड़ती रहेगी. पर अब समय आ
गया है, जब इस बात पर रोशनी पड़ेगी कि नवाज शरीफ को सजा क्यों मिली थी. जुलाई,
2019 में ऐसा एक ऑडियो टेप सामने आया था, जिससे लगता था कि नवाज शरीफ को सजा देने
वाले जज को मजबूर किया गया था कि जैसा कहा जा रहा है वैसा करो. हालांकि जज ने इस
बात से इनकार किया था, पर वह बात खत्म नहीं हुई है. अब कहानी जिस तरफ जा रही है,
उससे लगता है कि नवाज शरीफ की देश-वापसी तो होगी ही, उनके मुकदमों को भी खोला
जाएगा.
अब यह विचार करने का समय भी आ रहा है
कि पाकिस्तान में कोई प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं कर पाता? क्या वजह है कि वहाँ आजतक एक प्रधानमंत्री नहीं हुआ,
जिसने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया हो. कार्यकाल पूरा करना तो अलग रहा,
ज्यादातर प्रधानमंत्री या तो हटाए गए या किसी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. राजनेताओं
के भाषणों पर यकीन करें, तो पहली नजर में लगेगा है कि वहाँ की व्यवस्था भ्रष्टाचार
के खिलाफ बड़े फैसले करती है, पर व्यावहारिक स्थिति यह है कि वहाँ जिसकी लाठी,
उसकी भैंस का सिद्धांत चलता है.
इम्पोर्टेड-सरकार
पाकिस्तानी समाज ने शुरू से ही
लोकतंत्र को गलत छोर से पकड़ा. यों भी माना जाता है कि यह अंग्रेजी-राज की
व्यवस्था है, हम इसे लोकतंत्र मानते ही नहीं. लोकतंत्र वहाँ की पसंदीदा व्यवस्था
नहीं है और अराजकता वहाँ का स्वभाव है. इस समय भी देखें, तो वहाँ बड़ी संख्या में
लोग संसद के बहुमत और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महत्वपूर्ण मान ही नहीं रहे हैं.
उन्हें लगता है कि सब बिक चुके हैं और इमरान खान को हटाने के पीछे अमेरिका का हाथ
है. नई सरकार को ‘इम्पोर्टेड-सरकार’ का दर्जा दिया गया है.
इमरान खान को शामिल करते हुए पाकिस्तान
में 28 प्रधानमंत्री हुए हैं. इनमें से कुछ को एक से ज्यादा बार मौके भी मिले हैं.
इमरान सवा साल और अपना कार्यकाल पूरा कर लेते तो ऐसा कर पाने वाले देश के पहले
प्रधानमंत्री होते. पिछले 75 साल से पाकिस्तान को एक ऐसी लोकतांत्रिक सरकार का
इंतजार है, जो पाँच साल चले. 75 साल में बमुश्किल 23 साल चले जम्हूरी निज़ाम में वहाँ
28 वज़ीरे आज़म हुए हैं. अब जो नए बनेंगे, वे 29वें होंगे.
हत्या से शुरुआत
पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री
लियाकत अली खां की हत्या हुई. उनके बाद आए सर ख्वाजा नजीमुद्दीन बर्खास्त हुए. फिर
आए मोहम्मद अली बोगड़ा. वे भी बर्खास्त हुए. 1957-58 तक आने-जाने की लाइन लगी रही.
वास्तव में पाकिस्तान में पहले लोकतांत्रिक चुनाव सन 1970 में हुए. पर उन चुनावों
से देश में लोकतांत्रिक सरकार बनने के बजाय देश का विभाजन हो गया और बांग्लादेश
नाम से एक नया देश बन गया.
सन 1973 में ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि शायद अब देश का लोकतंत्र ढर्रे पर आएगा. ऐसा नहीं हुआ. सन 1977 में जनरल जिया-उल-हक ने न केवल सत्ता पर कब्जा किया, बल्कि ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फाँसी पर भी चढ़वाया. आज पाकिस्तान में जो कट्टरपंथी हवाएं चल रहीं हैं, उनका श्रेय जिया-उल-हक को जाता है. देश को धीरे-धीरे धार्मिक कट्टरपंथ की ओर ले जाने में उस दौर का सबसे बड़ा योगदान है.