Sunday, September 5, 2021

टीचर को फटीचर किसने बनाया?

देश में हालांकि कोरोना का असर खत्म नहीं हुआ है, पर काफी राज्यों में स्कूलों को फिर से खोलने की तैयारी हो गई है। कई जगह कक्षाएं लगने भी लगी हैं। आज शिक्षक-दिवस पर शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति पर हमें विचार करने का मौका मिला है। सवाल है कि कोरोना के शहीदों में डॉक्टरों, नर्सों और फ्रंटलाइन स्वास्थ्य-कर्मियों के साथ शिक्षकों का नाम भी क्यों नहीं लिखा जाना चाहिए? आज जब समारोहों में हम शिक्षकों का गुणगान करेंगे, तब इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि पिछले 75 साल में और विशेषकर पिछले एक साल में शिक्षकों के साथ देश ने क्या सुलूक किया? खासतौर से छोटे निजी स्कूलों के शिक्षक, जिनके पास न तो अपनी आवाज उठाने का दम है और न कोई उनकी तरफ से आवाज उठाने वाला है। इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की है।

शिक्षक कुंठित क्यों?

सरकारी स्कूलों में अध्यापकों को वेतन जरूर मिलता है, पर उनकी हालत भी अच्छी नहीं है। सरकारी स्कूलों में जितने शिक्षकों की जरूरत है, उसके 50 फीसदी की ही नियुक्ति है। शेष पद खाली पड़े हैं। 2016 में तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के बारे में संसद में रिपोर्ट पेश की थी जिसके अनुसार एक लाख स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक है। इनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड का हाल सबसे खराब था।  

Friday, September 3, 2021

जिस दौर में ‘झूठ का बोलबाला’ हो उस दौर में सच की लड़ाई कौन और कैसे लड़ेगा?


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि मीडिया का एक वर्ग देश को बदनाम करने वाली खबरों को साम्प्रदायिक रंग देता है। देश में हर चीज इस वर्ग को साम्प्रदायिकता के पहलू से नजर आती है। इससे देश की छवि खराब हो रही है। अदालत ने यह भी पूछा है कि क्या केंद्र ने निजी चैनलों के नियमन की कभी कोशिश भी की है? इसके पहले गत 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सत्य को ताकतवर बनाए बगैर लोकतंत्र की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

विचार-अभिव्यक्ति और सूचना तथा समाचार से जुड़ी इन बातों का जवाब नागरिकों को नहीं व्यवस्था को देना है। सुप्रीम कोर्ट भी उसी व्यवस्था का अंग है। सरकार के तीनों अंगों में उसकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सवाल है कि जिस देश में चार करोड़ से ज्यादा मुकदमे लम्बित हों, वहाँ ऊँची सैद्धांतिक बातों का मतलब क्या है। जब झूठ बोलने से व्यक्ति को लाभ मिलता हो, तो वह सच की लड़ाई कैसे लड़ेगा?  अदालतों को सवाल उठाने के साथ-साथ रास्ते भी बताने चाहिए। बहरहाल यह बहस लम्बी है और इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।

साम्प्रदायिकता का पानी

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और एएस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर गत 2 सितम्बर को सुनवाई कर रही थी। जमीयत ने अपनी याचिका में निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में पिछले साल धार्मिक सभा से संबंधित फर्जी खबरें फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है।

अदालत ने वैैब पोर्टलों और यूट्यूब सहित इंटरनेट मीडिया पर परोसी जाने वाली फर्जी खबरों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वे केवल शक्तिशाली आवाजों को सुनते हैं। किसी मामले में ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब से जवाब मांगा जाए, तो वह जवाबदेही से पल्ला झाड़ लेते हैं। न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ बिना किसी जवाबदेही के कई चीजें लिखी जाती हैं।

उच्चतम न्यायालय इंटरनेट मीडिया तथा वेब पोर्टल समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में लागू सूचना प्रौद्योगिकी नियमों की वैधता के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में लम्बित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गया है।

मीडिया की जवाबदेही

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, मुझे यह नहीं मालूम कि ये इंटरनेट मीडिया, ट्विटर और फेसबुक आम लोगों को कहां जवाब देतेे हैं। वे कभी जवाब नहीं देते। कोई जवाबदेही नहीं है। वे खराब लिखते हैं और जवाब नहीं देते और कहते हैं कि यह उनका अधिकार है। वैब पोर्टल और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशी पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है। याचिका दायर करने वाले एक पक्ष का ओर से पेश हुए वकील संजय हेगड़े ने कहा कि ट्विटर ने उनके अकाउंट को निलम्बित कर दिया था। मैंने इस सिलसिले में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।

Thursday, September 2, 2021

बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना

कुछ महीने पहले का अफगानिस्तान 

अमेरिका ने अफगानिस्तान में पिछले दो साल में दो ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा रकम खर्च की। हासिल क्या किया
? उसके पहले रूस ने भी करीब एक दशक तक यहाँ अपनी सेना रखी। पाकिस्तान करीब चार दशक से अफगानिस्तान में किसी न किसी शक्ल में उपस्थित है। भारत ने पिछले बीस साल में वहाँ करीब तीन अरब डॉलर का निवेश किया है। इन सबके साधनों को जोड़ा जाए, तो लगता है कि इतनी रकम से अफगानिस्तान का समाज न केवल स्वस्थ, सुशिक्षित और कल्याणकारी बनता, बल्कि दक्षिण और मध्य एशिया में प्रगति की राहें खोलता। एक तरफ धार्मिक संकीर्णता और दूसरी तरफ दबदबा बनाए रखने की साम्राज्यवादी मनोकामना और अपने-अपने देशों के हित साधने की कोशिशें किसी समाज को कहाँ से कहाँ ले जाती हैं, इसका बहुत अच्छा नमूना अफगानिस्तान है। अफसोस यह इक्कीसवीं सदी में हुआ है।

 इन देशों के मीडिया की अफगानिस्तान-कवरेज पर भी ध्यान दें। लोगों की प्रतिक्रिया सुनें। ऐसे में मजाज़ की दो लाइनें याद आती हैं, बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना/ तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है। आपको समझ में आएगा कि दुनिया को समझना कितना मुश्किल काम है। पाकिस्तान के डॉन न्यूज के एक कार्यक्रम में बताया जा रहा था कि अफगानिस्तान में किस तरह से जीवन तकरीबन ठप हो गया है और जनता बुरी तरह परेशान है। बिजली नहीं, पानी नहीं, दुकानों पर सामान नहीं, घरों में पानी नहीं, एटीएम बंद, जेब में पैसा नहीं वगैरह-वगैरह। चैनल के रिपोर्टर ने लोगों से बात की तो उन्होंने परेशानियाँ बताईं।

जब बातें हो रही थीं, तब बंदूकधारी तालिबान पास में खड़े थे। लोगों ने तालिबान के आने पर ख़ुशी जाहिर की। कहा, अब चोरियाँ नहीं हो रही हैं। क्या चोरियाँ अफगानिस्तान की समस्या थी? पाकिस्तान में तो हो ही रही है, भारत में भी तालिबानी-क्रांति की तारीफ हो रही है। सजा देने के उनके तरीके का जिक्र हो रहा है, उनकी ईमानदारी के किस्से हैं। लड़कियों के पहनावे और उनकी पढ़ाई और नौकरी को लेकर बातें हो रही हैं। जो तालिबान विरोधी हैं, वे उसमें दोष खोज रहे हैं और जो समर्थक हैं, उन्हें उनमें अच्छाइयाँ नजर आ रही हैं।

Wednesday, September 1, 2021

तालिबान से भारत का सम्पर्क

शेर मोहम्मद स्तानिकज़ाई

अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी पूरी तरह से होने के साथ 31 अगस्त को दो खबरें और भारतीय मीडिया में थीं। पहली यह कि दोहा में भारतीय राजदूत और तालिबान के एक प्रतिनिधि की बातचीत हुई है और दूसरी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 2593 में तालिबान से कहा गया कि भविष्य में अफगान जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होना चाहिए। इन तीनों खबरों को एकसाथ पढ़ने और उन्हें समझने की जरूरत है, क्योंकि निकट भविष्य में तीनों के निहितार्थ देखने को मिलेंगे।

अफगानिस्तान में सरकार बनने में हो रही देरी को लेकर भी कुछ पर्यवेक्षकों ने अटकलें लगाई हैं, पर इस बात को मान लेना चाहिए कि देर-सबेर सरकार बन जाएगी। ज्यादा बड़ा सवाल उस सरकार की नीतियों को लेकर है। वह अपने पुराने नजरिए पर कायम रहेगी या कुछ नया करेगी? 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान प्रतिनिधि ने जो वायदे दुनिया से किए हैं, क्या वे पूरे होंगे? और क्या वे वायदे तालिबान के काडर को पसंद हैं?  

तीन बातें

इसके बाद अब यह देखें कि नई सरकार के बारे में वैश्विक-राय क्या है, दूसरे भारत और अफगानिस्तान रिश्तों का भविष्य क्या है और तीसरे पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या होगी। इनके इर्द-गिर्द ही तमाम बातें हैं। फिलहाल हमारी दिलचस्पी इन तीन बातों में है। मंगलवार को संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता का अंतिम दिन था।

Tuesday, August 31, 2021

पहली तिमाही में संवृद्धि 20.1 फीसदी

अच्छी खबर यह है कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी रही है। चालू वित्त-वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून देश की जीडीपी संवृद्धि दर 20.1 फीसदी हो गई, जबकि, अर्थशास्त्रियों ने 18.5 फीसदी का अनुमान लगाया था। उधर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में रिकवरी के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन दुनिया पर कोविड का संकट बना हुआ है। अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए हर जरूरी कदम उठा रहे है।

 राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-जून तिमाही में देश की जीडीपी संवृद्धि 20.1 रही, जबकि पिछले वित्त-वर्ष में पहली तिमाही में जीडीपी में 24 फीसदी से ज्यादा का संकुचन हुआ था। एनएसओ के अनुसार जनवरी-मार्च तिमाही के मुकाबले अप्रैल-जून तिमाही में खनन के क्षेत्र में संवृद्धि -5.7 फीसदी से बढ़कर 18.6 फीसदी हो गई है। बिजली और गैस में 9.1 फीसदी से बढ़कर 14.3 फीसदी, निर्माण (कंस्ट्रक्शन) में 14.5 फीसदी से बढ़कर 68.3 फीसदी, फाइनेंशियल-रियल एस्टेट में 5.4 फीसदी से गिरकर 3.7 फीसदी रह गई है।