रविवार को ब्रिटेन में सम्पन्न हुई जी-7 देशों की बैठक के एजेंडा में आधिकारिक रूप से तीन प्रमुख विषय थे-कोरोना, वैश्विक जलवायु और चीन। पर राजनीतिक दृष्टि से इस सम्मेलन का महत्व चीन के बरक्स दुनिया के लोकतांत्रिक देशों की रणनीति से जुड़ा था। इस सम्मेलन को लेकर चीन की जैसी प्रतिक्रिया आई है, उससे भी यह बात स्पष्ट है। इंग्लैंड के कॉर्नवाल में हुए सम्मेलन दौरान चीन में जारी मानवाधिकारों का मुद्दा भी उठा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस मंच पर इस बात को दोहराया कि यह आशंका अभी खत्म नहीं हुई है कि दुनिया में कोरोना-संक्रमण चीनी-प्रयोगशाला से फैला हो। इस बैठक में वायरस की उत्पत्ति की निष्पक्ष जांच को लेकर मांग उठी।
कोरोना
वायरस
जो बाइडेन ने कहा कि
चीन ने वैज्ञानिकों को अपनी प्रयोगशालाओं तक जाने की इजाजत नहीं दी, जो कोरोना के
स्रोत के बारे में अध्ययन के लिए जरूरी था। हालांकि मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं
पहुंचा हूँ, पर हमारी खुफिया
एजेंसियां इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि वायरस चमगादड़ से फैला या
प्रयोगशाला में बनाया गया। इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना जरूरी है। बाइडेन ने यह भी कहा
कि कोरोना महामारी के बाद की दुनिया में लोकतांत्रिक देशों और तानाशाही व्यवस्था
वाले देशों के बीच टकराव साफ हुआ है।
हालांकि अमेरिका का
इशारा चीन और रूस दोनों की ओर है, पर संकेत मिल रहे हैं कि बाइडेन रूस के साथ
सम्पर्क बढ़ा रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि चीन अलग-थलग हो जाए। इस सम्मेलन के
बाद बुधवार को जिनीवा में उनकी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत होने वाली है। यह
वार्ता काफी महत्वपूर्ण होगी।
जी-7 समूह में अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और इटली शामिल हैं। ये सभी सदस्य देश बारी-बारी से सालाना शिखर सम्मेलन का आयोजन करते हैं। सम्मेलनों में यूरोपियन कौंसिल और यूरोपियन कमीशन के अध्यक्ष विशेष अतिथि के रूप में शामिल होते हैं।