रविवार को जब बंगाल के चुनाव परिणाम आ ही रहे थे, तभी खबर आई कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने आरामबाग स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी। बंगाल की राजनीतिक संस्कृति में यह बात सामान्य लगती है, पर क्या तृणमूल इसे आगे भी चला पाएगी? क्या बंगाल के तृणमूल-मॉडल को जनता का समर्थन मिल गया है? या यह ममता बनर्जी के चुनाव-प्रबंधन की विजय है?
बंगाल के इस परिणाम
का देश के राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर होने वाला है। इसका बीजेपी और उसके संगठन,
कांग्रेस और उसके संगठन तथा विरोधी दलों के गठबंधन पर असर होगा। ममता बनर्जी अब
राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के मुकाबले में उतरेंगी। वे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को
जितनी बड़ी चुनौती पेश करेंगी, उतनी ही बड़ी चुनौती कांग्रेस और उसके ‘नेता-परिवार’ के लिए खड़ी करेंगी।
विरोधी-राजनीति
दूसरी तरफ विरोधी दल यदि ममता बनर्जी के नेतृत्व में गोलबंद होंगे, तो इससे कांग्रेस की राजनीति भी प्रभावित होगी। सम्भव है राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ममता के नेतृत्व को स्वीकार कर ले, पर उसका दूरगामी प्रभाव क्या होगा, यह भी देखना होगा। राहुल का मुकाबला अब ममता से भी है। इसकी शुरूआत इस चुनाव के ठीक पहले शरद पवार ने कर दी थी। वे एक अरसे से इस दिशा में प्रयत्नशील थे।