इन चुनाव-परिणामों में दो बातें साफ नजर आती हैं. भारतीय जनता पार्टी
अपने नजरिए को जनता के सामने न केवल रखने में, बल्कि उसका अनुमोदन पाने में सफल
हुई है. दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी इसका काउंटर-नैरेटिव तैयार करने में बुरी तरह
विफल हुई है. कांग्रेस जिसे हिन्दू-राष्ट्रवाद और भावनाओं की खेती बता रही थी, उसे
जनता ने महत्वपूर्ण माना. वह कांग्रेस की बातें सुनने के लिए वह तैयार ही नहीं है.
यह कांग्रेसी साख की पराजय है. कांग्रेस ने गरीबों और किसानों की बातें कीं, पर
गरीबों और किसानों ने भी उसकी नहीं सुनी. यह बात सीटों से ही नहीं वोट प्रतिशत से
भी जाहिर है.
हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अंतिम वोट प्रतिशत की जानकारी
नहीं हो पाई थी, क्योंकि पूरे देश के परिणाम नहीं आए हैं, पर इतना तय है कि बीजेपी
को पिछली बार के 31 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं. यह प्रतिशत 40 फीसदी के आसपास तक
पहुँच सकता है. बीजेपी की सीटें तो बढ़ी ही हैं, सामाजिक आधार भी बढ़ा है. इसमें
बड़ी भूमिका बंगाल और ओडिशा के वोटर की भी है. बंगाल में बीजेपी ने पिछली बार के
17 फीसदी के वोटों को बढ़ाकर करीब 35 फीसदी कर लिया है. वहीं मार्क्सवादी
कम्युनिस्ट पार्टी के वोटों में 20 फीसदी की गिरावट आई है. तृणमूल कांग्रेस के भी
वोट बढ़े हैं, पर सीटें घटी हैं. इसकी वजह है वाममोर्चे और कांग्रेस का पराभव. उत्तर
प्रदेश में बीजेपी ने सपा-बसपा की सोशल इंजीनियरी को धो दिया है. विरोधी दलों की
उम्मीदें उत्तर प्रदेश पर टिकी थीं, पर इस प्रदेश में करीब 50 फीसदी के आसपास वोट
बीजेपी को मिले हैं. क्या यह हैरत की बात नहीं है?