Saturday, July 7, 2012

Bio Clothes : Grow Your Attire


Unlike synthetic clothes it is bio-degradable
Suzanne Lee, a senior research fellow in fashion and textiles at Central St. Martins, makes clothes from bacteria. Though still at an experimental stage, Lee has managed to make various items of clothing from organic matter she grows in temperature-controlled vats.

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World's Fastest Cyclist

The record for pedal power is held by Sam Whittingham, a compact Canadian who set the world record, a staggering 81 mph, (130km/h) on a streamlined recumbent. Most of the 100mph+ records are set going down mountains or ski slopes, fast yes but hardly done by pedal power. Some of the other high speed records are set by drafting behind cars or trucks. I'll take Sam's speed no drafting and on flat ground. 
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24 Amazing Innovations from Rural India

A washing-cum-exercise machine, hand operated water lifting device, portable smokeless stove, automatic food making machine, solar mosquito killer, shock proof converter, a floating toilet soap were a few of the products on display at the exhibition of grassroots innovations at the Rashtrapati Bhavan. 

Forest on top of the concrete

We've seen a lot of amazing concepts for urban gardens — green-roofed cities, gardens that stretch high into the clouds — but this pair of vertical forests is more than just a concept design. It's currently being built in Milan.

The brainchild of architect Stefano Boeri, Bosco Verticale (simply "vertical forest") is currently under construction in the form of two residential towers. The goal of Bosco Verticale is not only to beautify the cityscape, but also contribute to the creation of an artificial microclimate and improve air quality:


Bosco Verticale: World’s First Vertical Forest in Milan

A fascinating new pair of residential tower called Bosco Verticale is being constructed at Milan, Italy. Designed by architect Stefano Boeri, Bosco Verticale is being construed as “a project for metropolitan reforestation that contributes to the regeneration of the environment and urban biodiversity without the implication of expanding the city upon the territory”. Towering over the city’s skyline the world's first forest in the sky will be a sight to behold. The 27 storied building will accommodate nearly one hectare of forest trees as tall as oak and amelanchiers in its cleverly designed balconies. The 365 and 260 foot emerald twin towers will house an astonishing 900 trees, 5,000 shrubs and 11,000 ground cover plants.
This is a concept illustration of how Bosco Verticale will look like when completed.
In summer, the trees will provide shade and filter the city’s dust; in winter, sunlight will shrine through the bare branches. Bosco Verticale's greenery will absorb carbon dioxide and produce oxygen, while protecting the building from wind and penetrating sunlight. Boeri claims that the inclusion of trees adds just 5 percent to construction costs, and is a necessary response to the sprawl of the modern city. If the units were individual houses, it would require 50,000 sq m of land, and 10,000 sq m of woodland.Bosco Verticale: World’s First Vertical Forest in Milan

The Age of Flower Towers in Financial Times

Friday, July 6, 2012

सृष्टि की खोज में एक लम्बा कदम

हिग्स बोसोन की खोज निश्चित रूप से इनसान का एक लम्बा कदम है, पर इससे सृष्टि की सारी पहेलियाँ सुलझने वाली नहीं हैं। केवल पार्टिकल फिजिक्स की एक श्रृंखला की अप्राप्त कड़ी मिली है। हमें एक अरसे से मालूम है कि सृष्टि में कुछ है, जिसे हम देख नहीं पा रहे हैं। उसे हमने पा लिया है, भले ही उसे देखना आज भी असम्भव है। क्या इससे एंटी मैटर या ब्लैक मैटर के स्रोत का भी पता लग जाएगा? क्या इससे सृष्टि के जन्म की कहानी समझ में आ जाएगी, कहना मुश्किल है। इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक फिजिक्स ने जबर्दस्त प्रगति की है, पर अभी हम ज्ञान की बाहरी सतह पर हैं। प्रायः वैज्ञानिकों की राय एक होती है, क्योंकि वे अपने निष्कर्ष प्रयोगिक आधार पर निकालते हैं। पर सृष्टि से जुड़े अधिकतर निष्कर्ष अवधारणाएं हैं। बिंग बैंग भी एक अवधारणा है वैज्ञानिक समुदाय इस अवधारणा के पक्ष में एकमत नहीं है। खगोलविज्ञान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर का कहना है कि हिग्स बोसोन को लेकर जो मीडिया ने हाइप बनाया है, उसमें कुछ दोष हैं। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर में प्रति कण जो ऊर्जा तैयार की गई वह उस ऊर्जा के अरबवें अंश के हजारवें अंश के बराबर भी नहीं हैं, जो सृष्टि के स्फीति-काल में रही होगी। इसी तरह हम उपलब्ध तकनीक और उपकरणों के सहारे पदार्थ का केवल चार फीसदी ही देख पाते हैं। शेष 96 फीसदी के बारे में अनुमान हैं और उन्हें प्रयोगशाला में साबित नहीं किया जा सकता।

Tuesday, July 3, 2012

मसाज़ तक ठीक, मज़ाक तो न बने मीडिया

अखबार के दफ्तरों में हाल में नए आए पत्रकारों में एक बुनियादी फर्क उनके काम की शैली का है। आज के पत्रकार को जो तकनीक उपलब्ध है वह बीस साल पहले उपलब्ध नहीं थी। बीस साल पहले फोटो टाइप सैटिंग शुरू हो गई थी, पर सम्पादकों ने पेज बनाने शुरू नहीं किए थे। कम से कम हमारे देश में नहीं बनते थे। 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था। उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं। 1987 में माइक्रोसॉफ्ट की विंडोज़ 1.0 आ गई थी। 1987 में ही क्वार्क इनकॉरपोरेटेड ने क्वार्कएक्सप्रेस का मैक और विंडो संस्करण पेश कर दिया। यह पेज बनाने का सॉफ्टवेयर था, पर सूचना और संचार की तकनीक का विस्तार उसके पहले से चल रहा था। टेलीप्रिंटर, लाइनो-मोनो टाइपसैटिंग, फैक्स और जैरॉक्स जैसी तमाम तकनीकों का वैश्विक-संवाद में क्या स्थान है इसे समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। आज से तीस साल पहले वेस्ट इंडीज़ में हो रहे क्रिकेट मैच की खबर तीसरे रोज़ अखबारों में पढ़ने को मिलती थी। कुछ समर्थ अखबार ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो भी छापते थे। पर 1996 के एटलांटा ओलिम्पिक के रंगीन टीवी प्रसारण से फोटो ग्रैब करके एक हिन्दी अखबार ने जब छापे तब लगा कि क्रांति तो हो गई। पर इस लेख का उद्देश्य अखबारों की तकनीकी क्रांति पर रोशनी डालना नहीं है।

Monday, July 2, 2012

सुधारों के लिए चाहिए साहस

इस हफ्ते शेयर बाज़ार, मुद्रा बाज़ार और विदेश-व्यापार के मोर्चे से कुछ अच्छी खबरें मिल सकती हैं। शायद मॉनसून भी इस हफ्ते तेजी पकड़े, पर बड़े स्तर पर बदलाव के लिए सरकार और मोटे तौर पर पूरी राजनीति को हिम्मत दिखानी होगी।

एक अरसे बाद यह सोमवार हमारे लिए अपेक्षाकृत सुखद होगा। पिछले हफ्ते की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं के असर से शेयर बाजार में उछाल की आशा है। इसका असर रुपए की कीमत पर पड़ेगा और उसका असर पेट्रोल की कीमतों पर। सब ठीक रहा तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में अटका पड़ा मॉनसून भी आगे बढ़ेगा। प्रणब मुखर्जी के वित्तमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपेक्षाकृत खुले हाथों से फैसले कर सकेंगे। कंपनी मामलों के मंत्री वीररप्पा मोइली ने बेंगलूर में कहा भी है कि वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभालने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब आर्थिक नीतियों में बड़े सुधार के कदम उठा सकते हैं। देखना यही है कि वे कदम क्या होंगे और क्या वे उठाए जा सकेंगे? देखना यह भी है कि हमारी आर्थिक समस्याओं के समाधान का रास्ता किधर से होकर जाता है। देशी औद्योगिक विकास के मार्फत या विदेशी भावनाओं के सहारे? या दोनों को समान महत्व देकर? और क्या हमारी राजनीति इसकी ज़रूरत समझती है?