Tuesday, March 8, 2011

पत्रकारीय मर्यादा की स्वर्णिम शपथ

देश के सबसे बड़े बिजनेस अखबार इकोनॉमिक टाइम्स या ईटी ने अपने 7 मार्च के अंक के पहले सफे पर अपने लिए पत्रकारीय मर्यादाओं की आचार संहिता घोषित की है। इसके पहले देश के एक दूसरे बिजनेस डेली मिंट ने भी अपनी आचार संहिता घोषित कर रखी है। कुछ अन्य अखबारों की आचार संहिताएं भी होंगी।
हिन्दी के अखबारों में से किसी ने अपनी आचार संहिता बनाई है इसकी जानकारी मुझे नहीं है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आचार संहिता का पता मुझे नहीं है। अलबत्ता उनके एक संगठन एनबीए ने कुछ मर्यादा रेखाएं तय कर रखीं हैं।

पाकिस्तानी अखबारों में समझौता विस्फोट का विज्ञापन

पाकिस्तान के साथ भविष्य में जो बातचीत होगी उसमें अब शायद समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट का मामला भी शामिल हो जाएगा। 7 मार्च को पाकिस्तानी अखबारों में चौथाई पेज का विज्ञापन छपा है जिसमें समझौता एक्सप्रेस के मामले को खूब रंग लगाकर छापा गया है। इसमें माँग की गई है कि भारत की सेक्युलर व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि वह जवाब दे। लगता है कि इसका इसका उद्देश्य अपने ऊपर लगे  कलंकों की ओर से दुनिया का ध्यान हटाना है। इस विज्ञापन को किसने जारी किया, कहाँ से पैसा आया कुछ पता नहीं. 


Saturday, March 5, 2011

दूसरे दशक की पहली परीक्षा


पिछली 1 मार्च को पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचारजी का 67 वाँ जन्मदिन था। उस रोज दिल्ली में हुए संवाददाता सम्मेलन में देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ने चार राज्यों और एक केन्द्र शासित क्षेत्र पुदुच्चुरी में विधानसभा चुनाव की घोषणा की। बुद्धदेव के लिए यह खुशनुमा तोहफा नहीं था। अब से 13 मई के बीच कोई चमत्कार न हुआ तो लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गई दुनिया की सबसे पुरानी सरकार कम्युनिस्ट सरकार के हारने के पूरे आसार हैं। चौंतीस साल कम नहीं होते। देश का ध्यान इन दिनों बजट पर लगा है। बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में चुनाव की घोषणा मामूली खबर की तरह अखबारों के पन्नों में छिपी रह गई। पर आने वाले विधानसभा चुनाव कई मायनों में निर्णायक साबित होने वाले हैं। वाम मोर्चा की समूची राजनीति दाँव पर है। केरल और बंगाल हार जाने के बाद उनके पास बचता ही क्या है।

वाम मोर्चा के साथ-साथ कांग्रेस और यूपीए दोनों के लिए के लिए ये चुनाव महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। इन चुनावों का पहला असर संसद के चालू बजट सत्र पर पड़ेगा। अनुमान है कि यह सत्र अब 21 के बजाय 8 अप्रेल को खत्म हो जाएगा। चुनाव प्रक्रिया तो मार्च से ही शुरू हो चुकी होगी। 4 अप्रेल को असम में मतदान का पहला दौर भी पूरा हो जाएगा। बंगाल में छह दौर के मतदान के पहले शेष तीनों राज्यों और एक केन्द्र शासित क्षेत्र में मतदान पूरा हो चुका होगा। पिछले साल बिहार में छह दौर के लम्बे मतदान कार्यक्रम के कारण हिंसा और अराजकता पर काफी नियंत्रण रहा। बंगाल की स्थिति बिहार से भी खराब है।

जनता है इस काले जादू का तोड़




घोटालों की बाढ़ में फँसी भारत की जनता असमंजस में है। व्यवस्था पर से उसका विश्वास उठ रहा है। सबको लगता है कि सब चोर हैं। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री के टीवी सम्मेलन के बाद स्थिति बेहतर होने के बजाय और बिगड़ गई। अगले तीन-चार दिनों में रेल बजट, आर्थिक समीक्षा और फिर आम बजट आने वाले हैं। इन सब पर हावी है टू-जी घोटाला और काले धन का जादू। बाबा रामदेव और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बीच चले संवाद की मीडिया कवरेज पर क्या आपने ध्यान दिया? इस खबर को अंग्रेजी मीडिया ने महत्व नहीं दिया और हिन्दी मीडिया पर यह छाई रही। इसकी एक वजह यह है कि बाबा रामदेव की जड़ें जनता के बीच काफी गहरी है। उनकी सम्पत्ति से जुड़े संदेहों का समाधान तो सरकार के ही पास है। उसकी जाँच कराने से रोकता कौन है? उन्हें दान देने वालों ने काले पैसे का इस्तेमाल किया है तो सिर्फ अनुमान लगाने के बजाय यह बात सामने लाई जानी चाहिए।

रामदेव स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में जमा भारतीय काले धन का सवाल क्यों उठा रहे हैं? हमने बजाय उनके सवाल पर ध्यान देने के इस बात पर ध्यान दिया कि उन्हें भाजपा का समर्थन मिल रहा है। बाबा की कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा है या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वाकांक्षा है भी तो इसमें आपत्तिजनक क्या है? कांग्रेस ने यहाँ तीर गलत निशाने पर साधा है। मामले को रामदेव की सम्पत्ति की ओर ले जाने के बजाय काले धन को बाहर लाने तक सीमित रखना बेहतर होता।

Wednesday, March 2, 2011

इंटरैक्टिव हैडलाइन

अखबारों को पाठकों से जोड़ने की मुहिम में बिछे पड़े मार्केटिंग प्रफेशनलों को कन्नड़ अखबार कन्नड़ प्रभा ने रास्ता दिखाया है। इसबार 1 मार्च को कन्नड़ प्रभा की बजट कवरेज को शीर्षक दिया उनके पाठक रवि साजंगडे ने।

कन्नड़ प्रभा के नए सम्पादक विश्वेश्वर भट्ट के दिमाग में आइडिया आया कि क्यों न अपनी खबरों की दिशा पाठकों की सहमति से तय की जाय। इसकी शुरुआत उन्होंने 24 फरबरी को राज्य के बजट से की। उन्होंने अपने ब्लॉग, ट्विटर, एसएमएस वगैरह के मार्फत पाठकों से राय लेने की सोची। 24 की रात डैडलाइन 9.30 तक उनके पास 126 बैनर हैडलाइन के लिए सुझाव आ गए। इसके बाद उन्होंने रेलवे बजट के लिए सुझाव मांगे। इसके लिए 96 शीर्षक आए। आम बजट के दिन 60 शीर्षक आए।