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Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’

Friday, September 26, 2025

वाइट हाउस में शरीफ


अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने गुरुवार को ओवल ऑफिस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात की। इस मुलाकात में शरीफ के साथ पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर भी मौजूद थे, जिनकी इस गर्मी की शुरुआत में ट्रंप ने वाइट हाउस में लंच पर मेजबानी की थी। इस मुलाकात में विदेश मंत्री मार्को रूबियो भी मौजूद थे। बैठक से पहले अमेरिकी नेता ने आगंतुकों को ‘महान नेता’ कहा, जो अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में आई मधुरता का संकेत है।

ट्रंप ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘हमारे पास एक महान नेता आ रहे हैं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और फील्ड मार्शल। फील्ड मार्शल बहुत महान व्यक्ति हैं, और प्रधानमंत्री भी, दोनों, और वे आ रहे हैं, और वे शायद अभी इसी कमरे में उपस्थित होंगे।’ यह बैठक अमेरिका और पाकिस्तान के बीच व्यापार समझौते के बाद हुई है और मंगलवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में ट्रंप और शरीफ के बीच हुई संक्षिप्त मुलाकात के तुरंत बाद हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने अरब देशों और मिस्र, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब और तुर्की सहित अन्य देशों के नेताओं के साथ बहुपक्षीय बैठक की थी।

Wednesday, September 24, 2025

सऊदी-पाक समझौते ने बदला प.एशिया का परिदृश्य

 

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल में हुए आपसी सुरक्षा के समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इसके निहितार्थ को लेकर कई तरह की अटकलें हैं. खासतौर से हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं भारतीय-सुरक्षा से जुड़े सवाल.

समझौता होने का समय उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि उसकी विषयवस्तु है. इसकी घोषणा इसराइल के क़तर पर हुए हमले के बमुश्किल एक हफ़्ते बाद हुई है. इससे खाड़ी देशों की असुरक्षा व्यक्त हो रही है, वहीं पश्चिम एशिया में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका दिखाई पड़ रही है.

समझौते के साथ एक गीत भी जारी किया गया है. अरबी में लिखे इस गीत में कहा गया है, पाकिस्तान और सऊदी अरब, आस्था में भाई-भाई. दिलों का गठबंधन और मैदान में एक तलवार.’

मोटे तौर पर सऊदी अरब अपनी सुरक्षा मज़बूत करना चाहता है और पैसों की तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान को अपनी सैन्य शक्ति के कारण सुरक्षा-प्रदाता के रूप में पेश करने और अपने आर्थिक-आधार को पुष्ट करने का मौका मिल रहा है.

Wednesday, July 30, 2025

द्विपक्षीय व्यापार-समझौतों का मायाजाल

 


भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता हो गया, पर भारत-अमेरिका समझौता नहीं हो पाया है, जिसकी उम्मीदें लगाई जा रही थीं. हालाँकि कहा जा रहा है कि जल्द ही वह भी होगा.

अमेरिका की एक टीम अगस्त में भारत आने वाली है. इसके बाद भारत और यूरोपियन यूनियन के समझौते की भी आशा है, जिसके लिए बातचीत चल रही है.

इन समझौतों में इतनी बारीकियाँ होती हैं कि उन्हें पूरी तरह समझे बिना कोई भी देश कदम आगे नहीं बढ़ाता है. कुछ बातें तब समझ में आती हैं, जब वे लागू हो जाती हैं.

रिश्तों के पेच

इधर भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार की प्रक्रिया भी चल रही है, जिसमें आर्थिक-रिश्तों की केंद्रीय भूमिका होगी. दूसरी तरफ अमेरिका के चीन, ईयू और ब्रिटेन के साथ आर्थिक-संबंध भी हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे.

रूस, चीन और खासतौर से ब्रिक्स के साथ भारत के रिश्ते, अमेरिका के साथ होने वाले समझौते का हमारे लिए भी महत्व है, क्योंकि घूम-फिरकर ये हमें भी प्रभावित करते हैं.

व्यापार के समांतर जियो-पॉलिटिक्स भी चल रही है. अमेरिका सरकार चीन के व्यापार-विस्तार को काबू करने की कोशिशें भी साथ-साथ कर रही है. इसलिए इन देशों के आपसी समझौतों और उनसे पड़ने वाले क्रॉस-प्रभावों को समझना जटिल काम है.

Wednesday, July 23, 2025

भारत-अमेरिका रिश्तों में ‘पाकिस्तानी’ ख़लिश


पिछले कुछ महीनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के बीच में अमेरिका की एक अटपटी सी भूमिका सामने आ रही है. इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खींच रहा है, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का बार-बार दावा करना कि मैंने लड़ाई रुकवा दी.

ट्रंप ने यहाँ तक कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार बंद करने की धमकी दी थी, जिसके बाद दोनों देश संघर्ष-विराम के लिए राज़ी हुए. इतना ही काफी नहीं था, हाल में उन्होंने एक से ज्यादा बार कहा है कि इस लड़ाई में पाँच जेट विमान गिराए गए.

शुरू में साफ-साफ कहा कि भारत के जेट गिराए गए, पर नवीनतम वक्तव्य में यह स्पष्ट नहीं किया है कि ये किसके विमान थे, पर इशारा साफ है. सवाल यह नहीं है कि यह सच है या नहीं, सवाल यह है कि ट्रंप बार-बार ऐसा क्यों बोल रहे हैं.

नीतिगत बदलाव

पर्यवेक्षकों को अब कुछ और बातें नज़र आने लगी हैं. एक तो यह कि एक दशक पहले अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को डिहाइफनेट करने की जो नीति बनाई थी, वह खत्म हो रही है. दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिकी नीति में बदलाव हो रहा है.

इस बदलाव का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका के भारत से रिश्तों में खिंचाव आएगा. शायद वह पाकिस्तान को अपने हाथ से बाहर नहीं जाने देना चाहता, जो हाल के वर्षों में पूरी तरह चीन की गोदी में जाकर बैठ गया है.

Saturday, July 12, 2025

दक्षिण एशिया में प्रवेश की चीनी कोशिशें


हाल में भारतीय सेना के उप प्रमुख ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन और तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया. हम एक सीमा पर दो विरोधियों या असल में तीन से जंग लड़ रहे थे. पाकिस्तान अग्रिम मोर्चे पर था और चीन उसे हर संभव सहायता प्रदान कर रहा था.

यह बात बरसों से कही जा रही है कि भारत को अब दो मोर्चों पर एकसाथ लड़ाई लड़नी होगी. अभी यह परोक्ष सहयोग है, बाद में प्रत्यक्ष लड़ाई भी हो सकती है. इस खबर के पहले एक और खबर आई थी, जो बताती है कि दक्षिण एशिया में चीन की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है.

गत 19 जून को चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में विदेश कार्यालय स्तर पर अपनी पहली त्रिपक्षीय बैठक की. वैकल्पिक संगठन के लिए चीन-पाकिस्तान की योजना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

Wednesday, July 2, 2025

व्यापार-समझौते और बदलता वैश्विक-परिदृश्य


अमेरिका के दंडात्मक
पारस्परिक टैरिफ से बचने की 9 जुलाई की समय-सीमा जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, भारत-अमेरिका व्यापार-समझौते की संभावनाएँ बढ़ रही हैं. इसमें सबसे बड़ी बाधा भारत के किसानों और पशुपालकों के हितों की लक्ष्मण रेखा है.

पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कि नई दिल्ली के साथ होने वाला अंतरिम द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) अमेरिका के लिए भारतीय बाजार को खोल देगा’, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है, हाँ, हम समझौता करना चाहेंगे.

ट्रंप की टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक भारतीय दल 26 जून को ही अमेरिका के साथ अगले दौर की व्यापार वार्ता के लिए वाशिंगटन पहुँचा. अग्रवाल वाणिज्य विभाग में विशेष सचिव हैं.

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के अंतिम चरण में पहुंचने के साथ ही राष्ट्रपति  ट्रंप ने बुधवार को कहा कि यह समझौता ऐसा होगा, जिसमें अमेरिका की कंपनियां ‘‘आगे बढ़कर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगी’’ क्योंकि यह समझौता ‘‘बहुत कम शुल्क’’ सुनिश्चित करेगा.

एयरफोर्स वन में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा: "मुझे लगता है कि हम भारत के साथ एक समझौता करने जा रहे हैं। और यह एक अलग तरह का समझौता होगा. यह एक ऐसा समझौता होगा जिसमें हम शामिल होकर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे. अभी भारत किसी को भी स्वीकार नहीं करता. मुझे लगता है कि भारत ऐसा करने जा रहा है, और अगर वे ऐसा करते हैं, तो हम बहुत कम टैरिफ पर एक समझौता करने जा रहे हैं..."

राष्ट्रपति की यह टिप्पणी अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट द्वारा मंगलवार को दिए गए बयान के कुछ घंटों बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका और भारत दक्षिण एशियाई देश में अमेरिकी आयात पर शुल्क कम करने तथा भारत को अगले सप्ताह तेजी से बढ़ने वाले ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए जाने वाले शुल्कों से बचने में मदद करने के लिए एक समझौते के करीब पहुंच रहे हैं.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में कहा था, "हम एक बहुत ही जटिल व्यापार वार्ता के बीच में हैं - उम्मीद है कि बीच से भी ज़्यादा बीच में." "ज़ाहिर है, मेरी उम्मीद है कि हम इसे एक सफल निष्कर्ष पर ले जाएँगे। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता, क्योंकि उस चर्चा में एक और पक्ष भी है."

पहला चरण

अमेरिका ने 2 अप्रैल को घोषित उच्च टैरिफ को 9 जुलाई तक निलंबित कर दिया था. इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत के साथ समझौता उसके पहले हो जाएगा. यह दीर्घकालीन व्यापार-समझौते का पहला चरण होगा.

इस समझौते से भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती दिशा का पता लगेगा. नब्बे के दशक के आर्थिक-उदारीकरण, के बाद आंतरिक-राजनीति में फिर से नई लहरें पैदा होंगी. अमेरिका के सस्ते कृषि-उत्पादों के भारत आने का मतलब है, खेतों और गाँवों में हलचल.

भारत चाहता है कि अमेरिकी कृषि-उत्पादों की सब्सिडी पर भी बात हो. अब लगता है कि दोनों देश, व्यापार-समझौते के पहले चरण पर जल्द ही पहुँचेंगे, शायद काफी हद तक अमेरिकी शर्तों पर, लेकिन भविष्य में भारतीय चिंताओं को संबोधित करते हुए संभावित समायोजन के साथ.

भारतीय विदेश-नीति के लिहाज से यह हफ्ता काफी महत्वपूर्ण होगा. अगले कुछ समय में अमेरिका के साथ व्यापार-समझौते के अलावा यूरोप और चीन के साथ रिश्तों को लेकर भी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ होने वाली हैं.

Wednesday, June 4, 2025

भारत-पाक रिश्तों में अमेरिका के बदलते स्वर


ट्रंप-फैक्टरके अचानक शामिल हो जाने से भारत-पाकिस्तान और भारत-अमेरिका रिश्तों में उलझाव नज़र आने लगे हैं. कारोबारी कारणों और खासतौर से डॉनल्ड ट्रंप के तौर-तरीकों की वज़ह से ये गुत्थियाँ उलझ रही हैं.

डॉनल्ड ट्रंप ने हाल में भारत और पाकिस्तान को एकसाथ जोड़कर देखना शुरू कर दिया है, जबकि एक दशक पहले अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को एकसाथ रखने की नीति को त्याग दिया था. क्या अमेरिका की नीतियों में बदलाव आ रहा है?

ट्रंप के बारे में माना जाता है कि वे शेखी बघारने में माहिर हैं, ज़रूरी नहीं कि उनकी नीतियों में बड़ा बदलाव हो. अलबत्ता भारतीय नीति-नियंताओं को सावधानी से देखना होगा कि भारत-पाकिस्तान को डिहाइफनेट करने की अमेरिकी-नीति जारी है या उसमें बदलाव आया है.

बदले स्वर

ट्रंप के बदले स्वरों की तबतक अनदेखी की जा सकती है, जबतक हमें लगे कि यह केवल बयानबाज़ी तक सीमित है. इसलिए हमें भारत-अमेरिका व्यापार-वार्ता के नतीज़ों का इंतज़ार करना चाहिए, जो इस महीने के तीसरे-चौथे हफ्ते में दिखाई पड़ेंगे.  

संभव है कि पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी-नीति में बदलाव हो रहा हो. उसके लिए भी हमें तैयार रहना होगा. शायद निजी स्वार्थों के कारण ट्रंप, पाकिस्तान के साथ रिश्ते बना रहे हों, जैसाकि बिटकॉइन कारोबार को लेकर कहा जा रहा है, जिसमें उनका परिवार सीधे जुड़ा है.

अफगानिस्तान-पाकिस्तान में संभावित खनिज भंडार के दोहन का प्रलोभन भी ट्रंप को पाकिस्तान की ओर खींच भी सकता है. इन सभी बातों के निहितार्थ का हमें इंतज़ार करना होगा, पर उसके पहले हमें ट्रंप की टैरिफ-योजना पर नज़र डालनी चाहिए, जो उनके राजनीतिक-भविष्य के लिहाज से महत्वपूर्ण है.

Thursday, May 15, 2025

अमेरिकी कोशिशों का स्वागत है, मध्यस्थता का नहीं


दक्षिण एशिया का दुर्भाग्य है कि जिस समय दुनिया के देश, जिनमें भारत भी शामिल है, डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक आर्थिक-नीतियों के बरक्स अपनी नीतियों के निर्धारण में लगे हैं, हमें लड़ाई में जूझना पड़ रहा है. 

इस लड़ाई की पृष्ठभूमि को हमें दो परिघटनाओं से साथ जोड़कर देखना और समझना चाहिए. एक, शनिवार के युद्धविराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के किसी नेता ने नहीं की, बल्कि डॉनल्ड ट्रंप ने की. दूसरे हाल में भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त-व्यापार समझौता हुआ है, जिसकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.  

इसके अलावा हाल के दिनों की भू-राजनीति में महत्वपूर्ण नए मोड़ आए हैं, जिनका भारत पर भी असर पड़ेगा. खबरों के मुताबिक तुर्की और चीन ने पाकिस्तान का एकतरफा समर्थन किया है. 

पाकिस्तान ने आतंकवाद को एक अघोषित नीति के रूप में इस्तेमाल किया है. दूसरी तरफ यह साबित करते हुए कि आतंकवादी हमले की स्थिति में हम पाकिस्तान में घुसकर कार्रवाई कर सकते हैं, मोदी सरकार ने प्रभावी रूप से एक नए सुरक्षा सिद्धांत की घोषणा की है. पाकिस्तान को निर्दोष लोगों की हत्या करने और आतंकवाद को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जाएगी. 

ट्रंप की घोषणा

ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घोषणा की कि भारत और पाकिस्तान ‘पूर्ण और तत्काल संघर्ष विराम’ पर सहमत हो गए हैं. ट्रंप ने अपनी आदत के अनुरूप या शायद जल्दबाज़ी में ऐसा किया. वे साबित करना चाहते हैं कि लड़ाइयों को रोकना उन्हें आता है. 

Thursday, April 24, 2025

भारत-अमेरिका ‘न्यूक्लियर-डील’ से ‘होल्टैक-डील’ तक


वैश्विक व्यापार-युद्ध के बीच भारत और अमेरिका के रिश्तों को लेकर कई तरह के किंतु-परंतु इन दिनों हवा में हैं. ये रिश्ते केवल आर्थिक सतह पर ही नहीं हैं, बल्कि सामरिक और तकनीकी-सहयोग, तथा राजनय और वैश्विक राजनीति की सतह पर भी हैं. 

इन संपर्कों-संबंधों के समानांतर भारत-रूस, भारत-चीन, भारत-ईयू औऱ भारत तथा पश्चिम एशिया के देशों के रिश्ते भी हैं. बहरहाल 2008 का सिविल न्यूक्लियर-डील याददाश्त से मिटता जा रहा था कि हाल में हाल में स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) को लेकर हुई गतिविधि ने कई बातें एकदम ताज़ा कर दी हैं. 

लग यह भी रहा है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार का प्रारंभिक समझौता अगले कुछ महीनों में हो जाएगा, पर उसके नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में हुई गतिविधि ने लहरें पैदा की हैं.

Wednesday, April 9, 2025

श्रीलंका-यात्रा और बिमस्टेक सम्मेलन के निहितार्थ


भारत और पड़ोसी देशों के रिश्तों के लिहाज से पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका-यात्रा काफी महत्वपूर्ण रही. भारत का उद्देश्य पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करना है. इस यात्रा में देश की ‘एक्ट-ईस्ट’ और दक्षिण-एशिया नीतियों की झलक मिलती है.

उन्होंने थाईलैंड में बिमस्टेक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा वहाँ बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ मुहम्मद यूनुस, म्यांमार की सैन्य सरकार के प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की. 

ढाका में सत्ता परिवर्तन के बाद युनुस के साथ उनकी यह पहली बैठक थी. इसी तरह पिछले वर्ष नेपाल में ओली के फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहली मुलाकात थी. उन्होंने भूटान के राष्ट्रपति शेरिंग तोब्गे से भी मुलाकात की.

हालांकि थाईलैंड भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से जुड़ा देश है, पर उसे भारतीय विदेश-नीति के नक्शे पर वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार है. दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और सिंगापुर के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है थाईलैंड. 

दोनों देशों के बीच फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट 2010 में हो गया था. भारतीय यात्रियों के लिए वीज़ा-मुक्त प्रवेश के कारण थाईलैंड, भारतीय मध्यम वर्ग की सैर का प्रमुख गंतव्य बन चुका है. दोनों देश अब रक्षा, हाईटेक और स्पेस रिसर्च में सहयोग पर सहमत हुए हैं. 

अस्थिरता का दौर

यह यात्रा ऐसे समय में हुई, जब एक तरफ बांग्लादेश और म्यांमार में अराजकता है और इलाके में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. पिछले साल अगस्त से बांग्लादेश के साथ रिश्तों में तनाव है.

हाल में डॉ यूनुस ने अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुनकर इतना प्रकट जरूर कर दिया कि बांग्लादेश अब हमारा वैसा मित्र नहीं है, जैसा शेख हसीना के कार्यकाल में था. . 

Friday, March 7, 2025

भारत-तालिबान रिश्तों का द्वार खुलने के आसार


वैश्विक-राजनीति में यूक्रेन और पश्चिम एशिया में शांति-प्रयासों ने एक कदम आगे बढ़ाया है वहीं दक्षिण एशिया में भारत और अफ़ग़ान तालिबान के बीच रिश्तों का नया अध्याय शुरू होने की संभावनाएँ दिखाई पड़ रही हैं. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार वैश्विक-वास्तविकताओं को देखते हुए बड़ी तेजी से कदम बढ़ा रही है. अनुमान है कि प्रधानमंत्री मोदी की हाल की वाशिंगटन-यात्रा के दौरान भारत ने अमेरिकी-प्रशासन के सामने भी स्पष्ट किया कि हमारी अफ़ग़ान-नीति राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है.

तथ्य यह है कि चालीस से अधिक देश, तालिबान के साथ किसी न किसी रूप में संपर्क में है या वे काबुल में राजनयिक रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं. इस तथ्य ने भारत के संपर्कों के लिए आधार प्रदान किया. भारत इस इलाके के महत्वपूर्ण शक्ति है और उसे इस मामले में पिछड़ना नहीं चाहिए. 

दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, दक्षिण कोरिया, फ्रांस समेत कम से कम 16 देशों ने तालिबान-नामित व्यक्तियों को अस्वीकार कर दिया है, और उनके यहाँ अब भी पुराने राजदूत काम कर रहे हैं. 

विदेश सचिव की भेंट

गत 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक ने एक साथ कई तरह की संभावनाओं ने जन्म दिया था. काबुल में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत सरकार का तालिबान के साथ वह उच्चतम स्तर का आधिकारिक-संपर्क था. 

उसी बातचीत की परिणति है कि अब खबरें हैं कि दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास खुलने वाला है, जिसका परिचालन दिसंबर 2023 से बंद है. मुंबई और हैदराबाद में भी अफ़ग़ान वाणिज्य दूतावास हैं. 

भारत, यदि तालिबान-नामित व्यक्ति को दिल्ली में अफ़ग़ान दूतावास का प्रमुख बनने की अनुमति देगा, तो वह चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान, यूएई, कतर और मध्य एशियाई देशों और कुछ अन्य देशों में सूची में शामिल हो जाएगा. 

साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने दिल्ली में अफगान दूतावास का प्रभार संभालने के लिए दो संभावित उम्मीदवारों की पहचान की है. उसके पहले फरवरी के आखिरी हफ्ते में अफ़ग़ान मीडिया अमू टीवी ने खबर दी थी कि तालिबान विदेश मंत्रालय और भारत सरकार एक समझौते के करीब हैं, जिसके तहत नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास का नियंत्रण तालिबान को सौंप दिया जाएगा. 

Wednesday, February 19, 2025

क्या टैरिफ तय करेगा वैश्विक-संबंधों की दिशा?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वॉशिंगटन-यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ, पर संबंधों का महत्वाकांक्षी एजेंडा ज़रूर तैयार हुआ है. यात्रा के पहले आप्रवासियों के निर्वासन को लेकर जो तल्खी थी, वह इस दौरान व्यक्त नहीं हुई. 

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जिस ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ के विचार को आगे बढ़ा रहे हैं, वह केवल भारत को ही नहीं, सारी दुनिया को प्रभावित करेगा. यह विचार नब्बे के दशक में शुरू हुए वैश्वीकरण के उलट है. इसके कारण विश्व-व्यापार संगठन जैसी संस्थाएँ अपना उद्देश्य खो बैठेंगी, क्योंकि बहुपक्षीय-समझौते मतलब खो बैठेंगे.  

जहाँ तक भारत का सवाल है, अभी तक ज्यादातर बातें अमेरिका की ओर से कही गई हैं. अलबत्ता यात्रा के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य काफी सकारात्मक है.  इसमें व्यापार समझौते की योजना भी है, जो संभवतः इस साल के अंत तक हो सकता है. 

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को उम्मीद जताई कि अब दोनों पक्ष एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धी सामर्थ्य के साथ मिलकर काम कर सकेंगे. इस दिशा में पहली बार 2020 में चर्चा हुई थी, पर पिछले चार साल में इसे अमेरिका ने ही कम तरज़ीह दी. 

Tuesday, February 11, 2025

अमेरिका के साथ सौदेबाज़ी का दौर

प्रधानमंत्री की इस हफ्ते की अमेरिका-यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से कुछ अलग होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ताबड़तोड़ नीतियों के कारण बदलते वैश्विक-समीकरण. उनके अप्रत्याशित फैसले, तमाम दूसरे देशों के साथ भारत को भी प्रभावित कर रहे हैं.

दूसरी तरफ यह भी लगता है कि शायद दोनों के रिश्तों का एक नया दौर शुरू होने वाला है, पर सामान्य भारतीय मन अमेरिका से निर्वासित लोगों के अपमान को लेकर क्षुब्ध है. हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कैसा दोस्ताना व्यवहार है? 

ट्रंप मूलतः कारोबारी सौदेबाज़ हैं और धमकियाँ देकर सामने वाले को अर्दब में लेने की कला उन्हें आती है. शायद वे कुछ बड़े समझौतों की पृष्ठभूमि तैयार कर रहे है.

वर्चस्व का स्वप्न

ट्रंप का कहना है कि दुनिया ने अमेरिका की सदाशयता का बहुत फायदा उठाया, अब हम अपनी सदाशयता वापस ले रहे हैं. असल भावना यह है कि हम बॉस हैं और बॉस रहेंगे. इस बात से उनके गोरे समर्थक खुश हैं, जिन्हें लगता है कि देश के पुराने रसूख को ट्रंप वापस ला रहे हैं.   

Wednesday, January 29, 2025

ट्रंप क्या यूक्रेन की लड़ाई भी रुकवा सकेंगे?


अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है. 

‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है. 

भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है. 

ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.  

Wednesday, December 25, 2024

चीन से रिश्ते बनाने में धैर्य और समझदारी की परीक्षा


भारत की सुदूर-पूर्व विदेश-नीति के मद्देनज़र दो घटनाओं ने हाल में खासतौर से ध्यान खींचा है. दोनों चीन और उत्तरी कोरिया से जुड़ी हैं. ये दोनों प्रसंग ध्रुवीकरण से जुड़ी वैश्विक-राजनीति के दौर में भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति की ओर भी इशारा कर रहे हैं. 

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गत 18 दिसंबर को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. इस बैठक के परिणामों से लगता है कि दोनों देश भारत पिछले चार साल से चले आ रहे गतिरोध को दूर करके सहयोग के नए रास्ते तलाश करने पर राजी हो गए हैं. 

चीन-भारत सीमा प्रश्न के लिए विशेष प्रतिनिधियों की यह 23वीं बैठक थी. संवाद की इस प्रक्रिया की शुरुआत 2003 में दशकों से चले आ रहे भारत-चीन सीमा विवाद का संतोषजनक समाधान खोजने के लिए की गई थी. 

अभी कहना मुश्किल है कि इस रास्ते पर सफलता कितनी मिलेगी, पर इतना स्पष्ट है कि स्थितियों में बुनियादी बदलाव दिखाई पड़ रहा है. इस समझौते से सीमा-विवाद सुलझ नहीं जाएँगे, पर रास्ता खुल सकता है, बशर्ते सब ठीक रहे. पाँच साल बाद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच यह पहली औपचारिक बैठक द्विपक्षीय संबंधों में बर्फ पिघलने जैसी है. 

भारत-बांग्ला रिश्ते कब और कैसे पटरी पर वापस आएँगे?


भारतीय सेना की गौरव-गाथा से जुड़ा एक ऐसा दिन है, जिसे दोनों देश ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं. यह 16 दिसम्बर को 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ. 

अब शेख हसीना के पराभव के बाद अंदेशा था कि इस साल दोनों देशों का संयुक्त समारोह होगा या नहीं. यह अंदेशा गलत साबित हुआ. 16 दिसंबर को यह समारोह कोलकाता में पूर्वी कमान मुख्यालय में मनाया गया, जिसमें बांग्लादेश की सेना के अधिकारी भी शामिल हुए.  

इस समारोह को मनाने के बारे में निर्णय गत 9 दिसंबर को ढाका में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस तथा  बांग्लादेशी विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन और विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन के बीच उच्च स्तरीय वार्ता के बाद हुआ था. 

तूफान के बाद 

एक तरफ बांग्लादेश की राजनीति में उफान आने के बाद स्थितियाँ सामान्य होने की दिशा में बढ़ रही हैं, वहीं भारत के साथ रिश्ते नई परिस्थितियों में परिभाषित हो रहे हैं. शेख हसीना के पराभव के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में जो तल्ख़ी आई है, उसे अब दूर करने के प्रयास हो रहे हैं. 

Thursday, November 28, 2024

हालात की माँग है कि भारत और चीन के संबंध सुधरें


भारत और चीन के संबंधों को लेकर पिछले कुछ महीनों में हुई गतिविधियों से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि दोनों देशों के बीच बिगड़े संबंध अब सुधार की दिशा में बढ़ रहे हैं, पर यह साफ नहीं है कि सुधार की पहल भारत की ओर से हुई या चीन की ओर से. या फिर दोनों देश अपने अनुभवों को देखते हुए समझौते की मेज पर आए हैं.

एक महीने पहले 21 अक्तूबर को दोनों देशों ने एलएसी पर टकराव के दो बिंदुओं, देपसांग मैदानों और डेमचोक में गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया है. उसे देखते हुए लगता है कि वहाँ अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति या तो बहाल हो गई है, या जल्द हो जाएगी. 

उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कज़ान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के हाशिए पर मुलाकात हुई. इन दोनों बातों के अलावा विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बताया कि दोनों देशों ने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कुछ नए कदम उठाने का फैसला किया है. 

चीनी नज़रिया

हाल में भारतीय पत्रकारों की एक टीम को बुलाकर चीन ने उन्हें अपना दृष्टिकोण समझाने की कोशिश की. अंग्रेजी के एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ‘चीनी अधिकारियों, व्यापारिक समुदाय के सदस्यों, तथा सरकारी थिंक टैंकों और मीडिया संगठनों के साथ हुई बैठकों का यह संदेश स्पष्ट था कि चीन रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है.’

‘अधिकारियों ने अपनी ‘इच्छा-सूची’ बताई: देशों के बीच ‘सीधी उड़ानें’ फिर से शुरू करना, राजनयिकों और विद्वानों सहित चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंधों में ढील, चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध हटें, चीनी पत्रकारों को भारत से रिपोर्टिंग करने दी जाए और चीनी सिनेमाघरों में अधिक भारतीय फिल्में दिखाने की अनुमति मिले आदि.’

Wednesday, November 13, 2024

दक्षिण एशिया की प्रगति के लिए ज़रूरी है ‘आपसी संपर्क’

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर हाल में दो खबरों ने ध्यान खींचा है. पहली है लाहौर के पर्यावरण के संबंध में पाकिस्तान के पंजाब राज्य की कोशिशें और दूसरी दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को फिर से कायम करने के सुझाव से जुड़ी है. एक और खबर भारत-अफगानिस्तान रिश्तों को लेकर भी है.

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनावपूर्ण संबंध हैं, लेकिन जैसे-जैसे ज़हरीली हवा का मुद्दा सामने आ रहा है, दोनों पड़ोसियों को अपनी साझा जिम्मेदारी पर भी विचार करना पड़ रहा है.

Wednesday, November 6, 2024

अमेरिकी-चुनाव की भारतीय संगति और विसंगतियाँ


सब कुछ सामान्य रहा, तो अगले 24 से 48 घंटों में पता लग जाएगा कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति की कुर्सी किसे मिलेगी. इस चुनाव पर सारी दुनिया की निगाहें हैं. अमेरिका की विदेश-नीति में भले ही कोई बुनियादी बदलाव नहीं आए, पर इस चुनाव के परिणाम का कुछ न कुछ असर वैश्विक राजनीति पर होगा.  

अमेरिकी चुनाव भी दूसरे देशों की तरह जनता की ज़िंदगी और सरोकारों से जुड़ा होता है. इसमें भोजन और आवास, रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमत, और गर्भपात कानून वगैरह शामिल हैं. खासतौर से मुद्रास्फीति और ब्याज की दरें. विदेश-नीति इसमें इसलिए आती है, क्योंकि उसका असर अंदरूनी-नीतियों पर पड़ता है.