Thursday, August 20, 2015

भारत-पाक वार्ता में अड़ंगे क्यों लगते हैं?

23 अगस्त को भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और पाकिस्तान के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज़ अजीज की बातचीत के ठीक पहले हुर्रियत के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत रखकर पाकिस्तान ने क्या संदेश दिया है? एक, कश्मीर हमारी विदेश नीति का पहला मसला है, भारत गलतफहमी में न रहे। समझना यह है कि यह बात को बिगाड़ने की कोशिश है या सम्हालने की? भारत सरकार ने बावजूद इसके बातचीत पर कायम रहकर क्या संदेश दिया है?  इस बीच हुर्रियत के नेताओं को नजरबंद किए जाने की खबरें हैं, पर ऐसा लगता है कि हुर्रियत वाले भी चाहते हैं कि उनके चक्कर में बात होने से न रुके। कश्मीर का समाधान तभी सम्भव है जब सरहद के दोनों तरफ की आंतरिक राजनीति भी उसके लिए माहौल तैयार करे।


इसके पहले पाकिस्तान में 30 सितम्बर से हो रहे कॉमनवैल्थ देशों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के अध्यक्ष को निमंत्रण ने मिलने के कारण भारत ने उस सम्मेलन के बहिष्कार का फैसला किया है। यदि सलाहकार स्तर की बातचीत भी टल जाती तो स्थितियाँ बेहतर होने की सम्भावनाएं कम हो जातीं।

कांग्रेसी आलोचना का डर

ये संदेश भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे को ही नहीं, अपनी आंतरिक राजनीति को भी दिए हैं। भारत सरकार के संदेश देश की जनता और कांग्रेस पार्टी दोनों के लिए हैं। पाक उच्चायोग के हुर्रियत को दिए गए न्योते को लेकर सबसे तेज प्रतिक्रिया कांग्रेस की ही होगी। शायद इसीलिए मीरवाइज़ उमर फारूक ने कांग्रेस से अनुरोध किया है कि वह ऐसे बयान न दे जिससे कि भारत-पाक वार्ता होने में अड़ंगे लगें। दोनों देशों में ऐसे व्यक्ति और संस्थाएं हैं, जो इस मसले पर भावनाएं भड़काने में यकीन रखते हैं। चूंकि नरेंद्र मोदी को अगले साल पाकिस्तान में होने वाले दक्षेस सम्मेलन में जाना है, इसलिए उससे पहले स्थितियों को सामान्य बनाने की जरूरत होगी।

भारत और पाकिस्तान के बीच प्रत्यक्ष रूप से बढ़ते तनाव के बावजूद पिछले कुछ महीनों से अनौपचारिक स्तर पर संवाद कायम हो चुका है। इस साल मार्च में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल (सेनि) महमूद दुर्रानी भारत आए थे और उन्होंने अजित डोभाल से मुलाकात की थी। जनरल दुर्रानी ने उस दौरान चेन्नई के दैनिक हिन्दू से कहा था कि नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान के साथ संवाद को आगे बढ़ाना चाहते हैं, पर शायद वे कम्पोज़िट डायलॉग के पुराने फॉर्मेट पर बात नहीं करना चाहते। वे शायद अपने तरीके से बात करेंगे। मार्च में ही हमारे विदेश सचिव एस जयशंकर पाकिस्तान गए। हालांकि वह यात्रा सार्क देशों की औपचारिक यात्रा का हिस्सा थी, पर उनकी पाकिस्तान के सम्बद्ध अधिकारियों से बातचीत हुई थी।

गिलानी देर से आएंगे

कई तरह के रहस्य खुल रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी है कि कट्टरपंथी हुर्रियत नेता अली शाह गिलानी सरताज अजीज से भारत-पाक बातचीत के पहले नहीं, बाद में मिलेंगे। इससे भारत सरकार को अपनी आलोचना का जवाब देने का मौका मिल जाएगा। रोचक बात यह है कि गिलानी ने भारत सरकार का अनुरोध मान लिया। इसका मतलब है कि गिलानी और भारत सरकार के बीच किसी प्रकार का सम्पर्क है। आपको याद होगा कि पिछले साल लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के पहले खबरें थीं कि नरेंद्र मोदी ने सैयद अली शाह गिलानी के पास अपने दूत भेजे थे। भाजपा ने इस बात का खंडन किया, पर बाद में पता लगा कि सम्भवतः लोजपा के प्रतिनिधि गिलानी से मिले थे।

मिले या नहीं मिले से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल था कि गिलानी ने इस बात को ज़ाहिर क्यों किया? कश्मीर के अलगाववादी हालांकि भारतीय संविधान के दायरे में बात नहीं करना चाहते, पर वे भारतीय राजनेताओं के निरंतर सम्पर्क में रहते हैं। उनके साथ खुली बात नहीं होती, पर भीतर-भीतर होती भी है। इसमें ऐसी क्या बात थी कि पिछले साल कांग्रेस ने उसे तूल दी और भाजपा ने कन्नी काटी?

हुर्रियत से संवाद

अगस्त 2002 में हुर्रियत के नरमपंथी धड़ों के साथ अनौपचारिक वार्ता एक बार ऐसे स्तर तक पहुँच गई थी कि उस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में हुर्रियत के हिस्सा लेने की सम्भावनाएं तक पैदा हो गईं. और उस पहल के बाद मीरवाइज़ उमर फारूक और सैयद अली शाह गिलानी के बीच तभी मतभेद उभरे और हुर्रियत दो धड़ों में बँट गई। उस वक्त दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और राम जेठमलानी के नेतृत्व में कश्मीर कमेटी ने इस दिशा में पहल की थी।

कश्मीर कमेटी एक गैर-सरकारी समिति थी, पर माना जाता था कि उसे केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त था। सरकार हुर्रियत की काफी शर्तें मानने को तैयार थी, फिर भी समझौता नहीं हो पाया। पर इतना ज़ाहिर हुआ कि अलगाववादी खेमे के भीतर भी मतभेद हैं।

किसकी पहल पर बात?

इस बीच कुछ सवाल उभर कर आए हैं। क्या उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात भारत के आग्रह पर हुई थी? क्या वह संयुक्त घोषणापत्र भारत ने तैयार किया था, जैसाकि पाकिस्तानी मीडिया साबित कर रहा है? क्या अब वहाँ की सेना इस बातचीत को टालना चाहती है? या यह भारतीय कयास है कि वहाँ की सेना नागरिक सरकार पर हावी है? यह बात भी कही जा रही है कि नवाज शरीफ का आग्रह है कि भारत के साथ वार्ता में उनकी सेना भी शामिल हो।

अभी यह बात समझ में नहीं आ रही है कि पाकिस्तान में सत्ता किसके पास है। क्या नवाज़ शरीफ अपनी विदेश नीति तय कर रहे हैं या यह सेना के हाथ में है? बेशक पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान में कोई ताकत ऐसी है जो भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने में दिलचस्पी नहीं रखती। जब भी बात शुरू होती है कहीं न कहीं से अड़ंगा लगता है।

बातचीत में अड़ंगा

पिछले एक दशक से ज्यादा का अनुभव रहा है कि बात करने का जब भी मौका आता है कहीं न कहीं कुछ होता है। 25 अगस्त 2003 को मुम्बई में धमाके हुए, सन 2007 में लखनऊ और वाराणसी में हुए धमाके हुए, जुलाई 2008 में काबुल के भारतीय दूतावास पर हमला हुआ। इसी तरह सन 2008 में जयपुर और अहमदाबाद के धमाकों के बाद 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई में हमला हुआ। इस दौरान पाकिस्तान में भी धमाके हुए। मुम्बई पर हमले के बाद रुकी बातचीत को आगे बढ़ाने की कोशिशें शुरू होते ही 2011 में मुम्बई में फिर धमाके हुए।

पिछले साल भारत और पाकिस्तान की सचिव स्तर की बातचीत इस बात पर टूटी कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त ने हुर्रियत के प्रतिनिधियों से बात की थी। पाकिस्तान इस बार भी उनसे बात करने की घोषणा कर चुका है। ऐसा भी नहीं कि यह जानकारी बातचीत के ठीक पहले सामने आई है। पिछले महीने पाक उच्चायोग में आयोजित ईद मिलन के मौक़े पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित से मुलाक़ात के बाद मीरवाइज़ उमर फारूक ने यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जब बातचीत के लिए भारत आएंगे तो हुर्रियत नेताओं से भी मिलेंगे। मीरवाइज़ ने कहा था कि उन्हें पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने भरोसा दिया है कि भारत से कोई भी बातचीत कश्मीर के बिना नहीं हो सकती।

और संवाद की कामना

उफा में बनी सहमति के मुताबिक, भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक दिल्ली में होनी है। मीरवाइज़ को इससे कोई एतराज़ नहीं कि पाकिस्तान के एनएसए सरताज अजीज़ भारतीय एनएसए अजीत डोभाल से मुलाक़ात से पहले हुर्रियत लीडर्स से मिलते हैं या बाद में। वे मानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच बेहतर संबंध होने के बाद ही कश्मीर समस्या का समाधान हो सकता है। बुधवार को भी उन्होंने एक बयान में कहा कि इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कांग्रेस से भी अपील की कि वह इसे राजनीतिक विवाद का विषय न बनाए।

मीरवाइज़ जानते हैं कि सबसे पहले भारत और पाकिस्तान बातचीत की मेज पर वापस आएं। ईद मिलन के समारोह में सैयद अली शाह गिलानी को भी निमंत्रण भेजा गया था, लेकिन वे इसमें शामिल नहीं हुए। मीरवाइज़ ने इसके पीछे वजह बताते हुए कहा कि उफा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाक़ात के बाद जारी साझा बयान में कश्मीर समस्या का ज़िक्र नहीं किया गया, जिससे हुर्रियत के कई नेता नाराज़ हैं, इसलिए वे इसमें शामिल नहीं हुए। बहरहाल पिछले हफ्ते तक लग रहा था कि यह वार्ता होगी भी या नहीं। बातचीत के 10 दिन पहले यानी 13 अगस्त को सरताज अजीज ने इस बात की पुष्टि। उन्होंने इस्लामाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि मैं 23 अगस्त को भारत जा रहा हूं।"



1 comment:

  1. पाकिस्तान की सरकार केवल नाम की जनतांत्रिक है ,असल में वह सरकार सेना व आई एस आई से नियंत्रित है , इसलिए उसके किसी भी नीतिगत फैसले पर इन दोनों का प्रभाव रहता है , वे दोनों ही बातचीत व शांति के पक्ष में नहीं है , साथ ही कट्टर पंथियों की भी दखलंदाजी इसे सफल नहीं होने देती सेना गोल बारी कर पहले ही तनाव पैदा कर माहौल बिगाड़ देती है , व विफलता का ठीकरा भारत के सर फोड़ दिया जाता है , कश्मीर राग तो बाधा है ही , जो हमारे ही प्रिय नेताओं की सौगात है , इसलिए ये सम्बन्ध कभी भी सुधरने वाले नहीं है

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