एक तरफ भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में कड़वाहट आ रही है, वहीं अफगानिस्तान के साथ रिश्तों में अप्रत्याशित सुधार दिखाई पड़ रहा है. पिछली 8 जनवरी को भारत के विदेश-सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान सरकार के विदेशमंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच हुई बैठक से एक साथ कई तरह के संदेश गए हैं.
अब तक संयुक्त सचिव स्तर के एक भारतीय अधिकारी मुत्तकी और रक्षामंत्री मोहम्मद याकूब सहित तालिबान के मंत्रियों से मिलते रहे हैं. लेकिन विदेश सचिव की इस मुलाकात से रिश्तों को एक नया आयाम मिला है. भारत के इस कदम को राष्ट्रीय-सुरक्षा की दृष्टि से उठाया गया कदम माना जा रहा है.
इस मुलाकात के पहले भारत ने पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में किए गए हमलों की निंदा करके प्रतीक रूप में संकेत दे दिया था कि वह किसी बड़ी राजनयिक-पहल के लिए तैयार है.
हाल में पाकिस्तानी वायुसेना के हमले में महिलाओं और बच्चों सहित 46 अफगान नागरिकों की जान गई थी. इससे बिगड़ते पाक-अफगान रिश्तों पर रोशनी पड़ी, वहीं भारत के बयान से इसका दूसरा पहलू भी उजागर हुआ.
स्थिति में सुधार
भारत की दिलचस्पी इस बात में रही है कि अफगानिस्तान में आतंकवाद का पनपना बंद हो जाए. सभी अनुमानों के अनुसार, स्थिति में सुधार हुआ है. यह भी सच है कि वहाँ महिलाओं के अधिकारों को कुचला गया है, जो भारत के लिए परेशानी की बात है.
पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत के इस समय बातचीत करने के पीछे कुछ बड़े कारण इस प्रकार हैं: एक, तालिबान का हितैषी और सहयोगी पाकिस्तान उसका विरोधी बन गया है, ईरान काफ़ी कमज़ोर हो गया है, रूस अपनी लड़ाई में फँसा है और अमेरिका ट्रंप की वापसी देख रहा है.