ममता बनर्जी और चंद्रबाबू जैसे नेताओं ने एक्ज़िट पोल को सरासर गप्प बताया है, वहीं कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि 23 का इंतजार करें। वे जल्दी हार मानने को तैयार नहीं हैं। उन्हें लगता है कि 23 को उलट-फेर होंगे। हालांकि एक्ज़िट पोल काफी हद तक चुनाव परिणामों की तरफ इशारा करते हैं, फिर भी उनकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान हैं। सन 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में उनकी काफी फज़ीहत हुई थी और अभी हाल में ऑस्ट्रेलिया के चुनावों में वे हँसी के पात्र बने। सन 205 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के एक्ज़िट पोल इस लिहाज से तो सही थे कि उन्होंने आम आदमी पार्टी की जीत का एलान किया था, पर ऐसी जीत से वे भी बेखबर थे।
दूसरी तरफ यह भी सही है कि अब पोल-संचालक ज्यादा सतर्क हैं। उनके पास अब बेहतर तकनीक और अनुभव है। वे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रहे हैं। विश्लेषण करते वक्त वे राजनीति-शास्त्रियों, मानव-विज्ञानियों और दूसरे विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करते हैं। उनसे चूक कहाँ हो सकती है, इसकी समझ भी उन्होंने विकसित की है। विश्लेषकों को लगता है कि इसबार के पोल सच के ज्यादा करीब होंगे। बावजूद इसके इन पोल पर गहरी निगाह डालें, तो कुछ पहेलियाँ अनसुलझी नजर आती हैं।
यों सभी पोल इसपर एकमत हैं कि एनडीए सबसे बड़े समूह के रूप में उभर रहा है। फिर भी सीटों की संख्या के उनके अनुमान 240 और 340 के बीच हैं। इतना बड़ा फासला नई पहेली को जन्म देता है। बिग पिक्चर एक जैसी है, पर विस्मय फैलाने वाला डेविल डिटेल में है। टोटल में एक जैसे हैं, फिर भी अलग-अलग राज्यों के अनुमानों में भारी फर्क है। बीजेपी की सफलता या विफलता के लिए जिम्मेदार तीन राज्यों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, उनकी संख्याओं पर गौर करें, तो संदेह पैदा होते हैं। पार्टी के भीतर के लोग भी मान रहे हैं कि यूपी में महागठबंधन का अंकगणित बीजेपी पर भारी पड़ सकता है। पर वे मानते हैं कि इसकी भरपाई बंगाल, ओडिशा और पूर्वोत्तर के राज्य करेंगे।
ज्यादातर एक्ज़िट पोल यूपी में एनडीए को सफल दिखा रहे हैं। टाइम्स नाउ-वीएमआर के अनुसार यूपी में एनडीए को 58, न्यूज 24 के अनुसार 65 और आजतक एक्सिस के अनुसार 62-68 सीटें मिल रहीं हैं। सारे पोल का असली पोल एनडीटीवी का है, जिन्होंने बहुत मेहनत करके न केवल हिंदी और अंग्रेजी के सभी चैनलों के अनुमानों को शामिल किया है, बल्कि तमिल, तेलुगु, पंजाबी और ओडिया वगैरह के चैनलों की राय भी शामिल की है। इसने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 49 सीटें दी हैं।
दूसरी तरफ रिपब्लिक-सीवोटर ने 38 और एबीपी न्यूज ने 33। एबीपी-नील्सन का कहना है कि यूपी में कम से कम 11 सीटों पर एक फीसदी वोटों से हर-जीत होगी। यानी कि यूपी में पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है। दूसरी बात यह भी नजर आती है कि मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी के बीच है, कांग्रेस को दो सीटें ही ज्यादातर चैनल दे रहे हैं। वास्तविक परिणाम आने पर यह देखना होगा कि कांग्रेस ने किसके वोट काटे। बीजेपी के या गठबंधन के?
क्या बीजेपी को बंगाल और ओडिशा में वैसी ही सफलता मिलेगी, जिसकी उम्मीद ये पोल बता रहे हैं? इनके अनुमानों में भी काफी अंतर है। बीजेपी को बंगाल में एबीपी ने 16, टाइम्स नाउ ने 11, न्यूज 24 ने 18, रिपब्लिक-सीवोटर ने 11 और आजतक ने 19-23 सीटें दी हैं। यानी इनके अनुमानों का फर्क काफी बड़ा है। और यह संदेह भी है कि क्या ममता बनर्जी का इतना पराभव सम्भव है? ओडिशा में रिपब्लिक-सीवोटर जहाँ बीजेपी को 10 सीटें दे रहा है वहीं आजतक 15-19। यह अंतर आपको दूसरे राज्यों में भी दिखाई देगा।
इन दो राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में बीजेपी को सफलता मिलती दिखाई पड़ रही है, उसे लेकर सवाल हैं। पिछले दिनों तीन राज्यों की विधानसभाओं के परिणामों को देखते हुए क्या इतना बड़ा बदलाव सम्भव है? अंतिम परिणाम इससे मिलते-जुलते रहे, तो दो निष्कर्ष और निकलेंगे। एक, कांग्रेस के भविष्य पर सवालिया निशान लगेगा। दूसरा वाममोर्चा पूरी तरह खत्म हो जाएगा। शायद सीपीएम और सीपीआई राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता खो देंगे। पर इन विषयों पर बात परिणाम आने के बाद ही होनी चाहिए।
नवोदय टाइम्स में प्रकाशित
दूसरी तरफ यह भी सही है कि अब पोल-संचालक ज्यादा सतर्क हैं। उनके पास अब बेहतर तकनीक और अनुभव है। वे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का सहारा ले रहे हैं। विश्लेषण करते वक्त वे राजनीति-शास्त्रियों, मानव-विज्ञानियों और दूसरे विशेषज्ञों की राय को भी शामिल करते हैं। उनसे चूक कहाँ हो सकती है, इसकी समझ भी उन्होंने विकसित की है। विश्लेषकों को लगता है कि इसबार के पोल सच के ज्यादा करीब होंगे। बावजूद इसके इन पोल पर गहरी निगाह डालें, तो कुछ पहेलियाँ अनसुलझी नजर आती हैं।
यों सभी पोल इसपर एकमत हैं कि एनडीए सबसे बड़े समूह के रूप में उभर रहा है। फिर भी सीटों की संख्या के उनके अनुमान 240 और 340 के बीच हैं। इतना बड़ा फासला नई पहेली को जन्म देता है। बिग पिक्चर एक जैसी है, पर विस्मय फैलाने वाला डेविल डिटेल में है। टोटल में एक जैसे हैं, फिर भी अलग-अलग राज्यों के अनुमानों में भारी फर्क है। बीजेपी की सफलता या विफलता के लिए जिम्मेदार तीन राज्यों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, उनकी संख्याओं पर गौर करें, तो संदेह पैदा होते हैं। पार्टी के भीतर के लोग भी मान रहे हैं कि यूपी में महागठबंधन का अंकगणित बीजेपी पर भारी पड़ सकता है। पर वे मानते हैं कि इसकी भरपाई बंगाल, ओडिशा और पूर्वोत्तर के राज्य करेंगे।
ज्यादातर एक्ज़िट पोल यूपी में एनडीए को सफल दिखा रहे हैं। टाइम्स नाउ-वीएमआर के अनुसार यूपी में एनडीए को 58, न्यूज 24 के अनुसार 65 और आजतक एक्सिस के अनुसार 62-68 सीटें मिल रहीं हैं। सारे पोल का असली पोल एनडीटीवी का है, जिन्होंने बहुत मेहनत करके न केवल हिंदी और अंग्रेजी के सभी चैनलों के अनुमानों को शामिल किया है, बल्कि तमिल, तेलुगु, पंजाबी और ओडिया वगैरह के चैनलों की राय भी शामिल की है। इसने उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 49 सीटें दी हैं।
दूसरी तरफ रिपब्लिक-सीवोटर ने 38 और एबीपी न्यूज ने 33। एबीपी-नील्सन का कहना है कि यूपी में कम से कम 11 सीटों पर एक फीसदी वोटों से हर-जीत होगी। यानी कि यूपी में पलड़ा किसी भी तरफ झुक सकता है। दूसरी बात यह भी नजर आती है कि मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी के बीच है, कांग्रेस को दो सीटें ही ज्यादातर चैनल दे रहे हैं। वास्तविक परिणाम आने पर यह देखना होगा कि कांग्रेस ने किसके वोट काटे। बीजेपी के या गठबंधन के?
क्या बीजेपी को बंगाल और ओडिशा में वैसी ही सफलता मिलेगी, जिसकी उम्मीद ये पोल बता रहे हैं? इनके अनुमानों में भी काफी अंतर है। बीजेपी को बंगाल में एबीपी ने 16, टाइम्स नाउ ने 11, न्यूज 24 ने 18, रिपब्लिक-सीवोटर ने 11 और आजतक ने 19-23 सीटें दी हैं। यानी इनके अनुमानों का फर्क काफी बड़ा है। और यह संदेह भी है कि क्या ममता बनर्जी का इतना पराभव सम्भव है? ओडिशा में रिपब्लिक-सीवोटर जहाँ बीजेपी को 10 सीटें दे रहा है वहीं आजतक 15-19। यह अंतर आपको दूसरे राज्यों में भी दिखाई देगा।
इन दो राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में बीजेपी को सफलता मिलती दिखाई पड़ रही है, उसे लेकर सवाल हैं। पिछले दिनों तीन राज्यों की विधानसभाओं के परिणामों को देखते हुए क्या इतना बड़ा बदलाव सम्भव है? अंतिम परिणाम इससे मिलते-जुलते रहे, तो दो निष्कर्ष और निकलेंगे। एक, कांग्रेस के भविष्य पर सवालिया निशान लगेगा। दूसरा वाममोर्चा पूरी तरह खत्म हो जाएगा। शायद सीपीएम और सीपीआई राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता खो देंगे। पर इन विषयों पर बात परिणाम आने के बाद ही होनी चाहिए।
नवोदय टाइम्स में प्रकाशित
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