कर्नाटक
में विधानसभा के दो और लोकसभा के तीन क्षेत्रों में हुए उपचुनावों का राष्ट्रीय और
क्षेत्रीय राजनीति पर कोई खास प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। बेल्लारी को छोड़ दें,
तो ये परिणाम अप्रत्याशित नहीं हैं। बेल्लारी की हार बीजेपी के लिए खतरे का संकेत
है। इन चुनावों में दो बातों की परीक्षा होनी थी। एक, कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन
कितना मजबूत है और मतदाता के मन में उसकी छवि कैसी है। दूसरे राज्य विधानसभा में
बीएस येदियुरप्पा का प्रभाव कितना बाकी है। विधानसभा में गठबंधन-सदस्यों की संख्या
बढ़कर 120 हो गई है। राज्य में गठबंधन सरकार फिलहाल आरामदेह स्थिति में है, पर
2019 के चुनाव के बाद स्थिति बदल भी सकती है। बहुत कुछ दिल्ली में सरकार बनने पर
निर्भर करेगा।
इस उपचुनाव
में काफी प्रत्याशी नेताओं के रिश्तेदार थे, जो अपने परिवार की विरासत संभालने के
लिए मैदान में उतरे थे। इस हार-जीत में ज्यादातर रिश्तेदारों की भूमिका रही। लोकसभा
की तीनों सीटों पर चुनाव औपचारिकता भर है। ज्यादा से ज्यादा 6-7 महीनों की सदस्यता
के लिए चुनाव कराने का कोई बड़ा मतलब नहीं। अलबत्ता ये चुनाव 2019 के कर्टेन रेज़र
साबित होंगे। कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों की 2019 में महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
जेडीएस-कांग्रेस
गठबंधन का दावा है कि हम सभी 28 सीटें जीतेंगे। 2014 के चुनाव में यहाँ से बीजेपी
ने 17 सीटें जीतीं थीं और कांग्रेस ने 9। बीजेपी को कांग्रेस के गठबंधनों से जिन
राज्यों में चुनौती का सामना करना है, उनमें कर्नाटक भी एक है। कर्नाटक के गठबंधन में
भी तमाम अंतर्विरोध हैं, पर दोनों पार्टियों का अस्तित्व फिलहाल गठबंधन पर टिका
है।
सामान्यतः
उपचुनावों में सत्तारूढ़ दलों को ही सफलता मिलती है और यहाँ भी यही बात देखने को
मिली। मुकाबला 4-1 से जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में गया। लोकसभा की शिमोगा, बेल्लारी (सुरक्षित) और मांड्या सीटों पर और जमखंडी
और रामनगरम विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। लोकसभा की बेल्लारी सीट पर बीजेपी की पराजय
का सांकेतिक महत्व है। पिछले तीन चुनावों में बीजेपी यहाँ से जीतती रही है। यह
रेड्डी बंधुओं का क्षेत्र माना जाता है, जो धन और बल से बीजेपी के मुख्य सहायक रहे
हैं। चुनाव के पहले उन्होंने सिद्धरमैया के पुत्र के निधन को लेकर एक बयान दिया
था। चुनाव प्रचार में इस बयान का जिक्र बार-बार हुआ। इस हार के बाद येदियुरप्पा ने
कहा है कि हम बेल्लारी और जमखंडी की हार के कारणों पर गहराई से विचार करेंगे।
परंपरा
से यह सीट कांग्रेसी हुआ करती थी। सन 1999 में यहाँ से सोनिया गांधी ने सुषमा
स्वराज को हराया था। यहां पर उप-चुनाव इसलिए हुआ, क्योंकि बीजेपी के सदस्य श्रीरामुलु
ने इस साल हुए विधानसभा चुनाव में चित्रदुर्ग जिले की मोल्कामुरू सीट पर हाथ
आजमाया था। वहाँ से जीतने के बाद और राज्य में बीजेपी सरकार बनने की उम्मीद में
उन्होंने लोकसभा सीट छोड़ दी थी। उपचुनाव में पार्टी ने उनकी बहन जे शांता को
प्रत्याशी बनाया। पर वे कांग्रेस के उम्मीदवार वीएस उग्रप्पा के हाथों 2,43,161 वोटों से हार गईं। यह छोटा अंतर नहीं है। कांग्रेस
ने इस क्षेत्र में पूरी ताकत झोंक दी थी। इस जीत में डीके शिवकुमार की महत्वपूर्ण
भूमिका है, पर अंतिम क्षणों में सिद्धरमैया को भी यहाँ भेजा गया। मल्लिकार्जुन
खड़गे ने भी यहाँ प्रचार किया।
शिमोगा
में येदियुरप्पा के बेटे बीवाई राघवेंद्र की जीत से पार्टी की नाक पूरी तरह कटने
से बची। यहाँ तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों की संतानें मुकाबले में थीं। जेडीएस ने
यहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री एस बंगारप्पा के बेटे मधु बंगारप्पा को उतारा था और
जेडीयू ने पूर्व मुख्यमंत्री जेएच पटेल के बेटे महिमा पटेल को। राघवेंद्र ने मधु
बंगारप्पा को 52 हजार से कुछ ज्यादा वोटों से हराया। यानी मुकाबला काँटे का रहा। तीनों
के पिता अतीत में यहाँ से जीत चुके हैं। यह सीट इसलिए खाली हुई, क्योंकि
येदियुरप्पा ने राज्य में सक्रिय होने का फैसला किया था। राघवेंद्र भी 2009 में
यहाँ से जीत चुके हैं। बहरहाल सीट घर में ही रही। मांड्या सीट जेडीएस के पास थी और
उसके एलआर शिवराम गौडा को यहाँ से आसान जीत मिली है। यहाँ से सीएस पुट्टराजू सदस्य
थे, जो पिछले चुनाव में मेलुकोट से जीतकर विधानसभा में चले गए। इस समय वे गठबंधन
सरकार में मंत्री हैं।
विधानसभा
की रामनगरम सीट से मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की पत्नी अनिता कुमारस्वामी जीतीं।
यहाँ बीजेपी ने वस्तुतः उन्हें वॉक-ओवर दिया है, क्योंकि पार्टी के उम्मीदवार एल
चंद्रशेखर चुनाव के दो दिन पहले बीजेपी छोड़कर अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में
वापस चले गए थे। तकनीकी रूप से वे बीजेपी के प्रत्याशी ही रहे, पर मतदान के पहले
ही परिणाम स्पष्ट था। इससे येदियुरप्पा के नेतृत्व की किरकिरी हुई है। यह सीट
कुमारस्वामी के इस्तीफे के कारण खाली हुई थी। पिछले चुनाव में वे दो सीटों से जीते
थे। उन्होंने चन्नपटना सीट हाथ में रखी और यहाँ से पत्नी को लड़ा दिया। दोनों
सीटें घर में रहीं। जमखंडी से कांग्रेस के आनंद न्यामागौड़ा को जीत मिली। यह सीट उनके
पिता सिद्दु भीमप्पा न्यामागौड़ा के निधन के कारण रिक्त हुई थी। यह सीट भी घर में
रही।
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