अमेरिका में राष्ट्रपति पद की कुर्सी पर डोनाल्ड ट्रंप के बैठने के बाद से दुनियाभर के मीडिया में सवालों की झड़ी लगी है. लगता है कि जियो-पोलिटिकल स्तर पर दुनिया में हाईटेक-दौर की शुरुआत होने जा रही है.
‘अमेरिकी महानता’ की पुनर्स्थापना के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध आप्रवासियों पर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है. अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए उन्होंने दर्जनों आदेशों पर हस्ताक्षर किए हैं. इनमें आप्रवासियों को हिरासत में लेना भी शामिल है. ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव के अनुसार यह ‘इतिहास का सबसे बड़ा निर्वासन अभियान’ है.
भारत के नज़रिये से हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशिया में अमेरिकी नीतियाँ महत्वपूर्ण होंगी. इस साल भारत में क्वॉड का शिखर सम्मेलन भी होगा, जिसमें ट्रंप आएँगे. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता साफ होना भी बड़ी घटना है.
ट्रंप ने रूस से यूक्रेन की लड़ाई रोकने का आग्रह किया है और खनिज तेल उत्पादक ओपेक देशों से कहा है कि वे पेट्रोलियम के दाम कम करें. आंतरिक रूप से वे अमेरिका पर भारी पड़ रहे अवैध आप्रवासियों के बोझ को दूर करना चाहते हैं.
राष्ट्रीय प्राथमिकताएँ
अपने पहले दौर में ट्रंप-प्रशासन ने वैश्विक-कामकाज में अमेरिकी भूमिका से हाथ खींचा था. जलवायु परिवर्तन को लेकर 2015 की पेरिस संधि और विश्व स्वास्थ्य संगठन का साथ छोड़ा था, पर बाइडन-प्रशासन ने रिश्ता जोड़ लिया था. अब ट्रंप ने दोनों से हटने की घोषणा कर दी है.
उधर अमेरिकी प्रशासन और राजनीति में कुछ चल रहा है. प्रशासन के अंदरूनी-सूत्र जिन्हें ‘बेल्टवे इनसाइडर्स’ कहा जाता है, सिलिकॉन वैली के दिग्गजों के साथ मिलकर तय कर रहे हैं कि टेक-इंडस्ट्री की प्राथमिकताएँ क्या हैं.
अभी तक माना जाता था कि अमेरिका लड़ाइयों से फायदा होता है, क्योंकि वह हथियारों का बड़ा निर्यातक है. अब टेक्नो-इंडस्ट्री का बोलबाला है, जिसकी दिलचस्पी टेक्नोलॉजी के विस्तार में है.
कार्यकारी आदेश
एक नज़र ट्रंप के शुरुआती एक्ज़िक्यूटिव आदेशों पर डालें. उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़े जो बाइडेन के 2023 के आदेश को रद्द कर दिया. उस आदेश के अनुसार, राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करने वाले एआई सिस्टम के डेवलपर्स को सरकार के साथ सुरक्षा-परिणाम साझा करने होंगे.
ट्रंप ने सोशल मीडिया की सेंसरशिप तुरंत रोकने के आदेश पर भी हस्ताक्षर किए हैं. टिकटॉक पर प्रतिबंध दो महीने से ज़्यादा के लिए रोक दिया है. राष्ट्रीय ऊर्जा आपातकाल भी घोषित किया है.
लगता है कि बिजली संयंत्रों को खोलने में तेज़ी आएगी या उन्हें जारी रखा जाएगा, जिन्हें एआई केंद्रों की बढ़ती माँग के संदर्भ में बंद करने का कार्यक्रम था. इलेक्ट्रिक-वेहिकल्स उत्पादन पर बाइडेन के 2021 के आदेश को भी उन्होंने रद्द कर दिया.
एक और आदेश से यूएस डिजिटल सेवा को यूएस डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफीशिएंसी (डॉज) सेवा के रूप में पुनर्स्थापित कर दिया गया है, जो एलन मस्क के अधीन है. यह ओबामा-युग के विभाग का पुनर्गठन है.
टेक्नो-इंडस्ट्री
सिलिकॉन वैली के तकनीकी अधिकारियों पर ट्रंप प्रशासन की किरपा बरसने वाली है. मार्क ज़ुकरबर्ग और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई समेत तमाम कारोबारी ट्रंप के रिसॉर्ट मार-ए-लागो में भोजन करने गए।
अमेज़न के मालिक जेफ बेजोस ने अपने अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में कमला हैरिस का समर्थन करने वाला संपादकीय रोक दिया गया. कार्टूनिस्ट एन टेलिनेस ने अपने मालिक की आलोचना करते हुए कार्टून बनाया, उसे छपने नहीं दिया गया. कार्टूनिस्ट ने इस्तीफा दे दिया.
ओपन एआई के सैमुअल ऑल्टमैन ने ज़ुकरबर्ग, बेजोस और पिचाई की तरह, ट्रंप के उद्घाटन के लिए दस लाख डॉलर का चंदा दिया. इन तकनीकी दिग्गजों के अलावा बोइंग, टोयोटा और फोर्ड सहित तमाम कॉरपोरेट खिलाड़ी लाखों डॉलर का चंदा दे रहे हैं.
मस्क से होड़
सब एलन मस्क से होड़ ले रहे हैं, जिन्हें ऑल्टमैन ने ‘सह-राष्ट्रपति’ की संज्ञा दी है. चार साल पहले, इन्हीं टेक-दिग्गजों ने ट्रंप से किनाराकशी कर ली थी. ज़ुकरबर्ग ने उन्हें फेसबुक से हटाया और बेजोस के अखबार ने उनकी कड़ी नंदा की. खुद बेजोस ने कहा, 2020 के चुनाव-नतीजों को खारिज करके ट्रंप ‘हमारे लोकतंत्र को तबाह कर रहे हैं.’
उसके पहले ट्रंप ने कहा था कि अमेज़न का ई-कॉमर्स जगरनॉट अमेरिका के कस्बों और राजमार्गों को नष्ट कर रहा है. मैं चाहता हूँ कि बेजोस अपने पैकेजों को वितरित करने के लिए अमेरिकी डाक सेवा का उपयोग करने के लिए अधिक भुगतान करें.
सबसे बड़ी पलटी ज़ुकरबर्ग ने मारी है. बहुत दूर नहीं पिछली गर्मियों में ही ट्रंप ने कहा था कि ज़ुकरबर्ग ने 2020 के चुनाव में उनके खिलाफ साजिश रची थी. उन्होंने कहा था कि फेसबुक के संस्थापक को अपना बाकी जीवन जेल में बिताना होगा.
लगता है कि ज़ुकरबर्ग ने ट्रंप का विश्वास जीत लिया है. उन्होंने पाँच मिनट का वीडियो पोस्ट करके बताया कि उनके मेटा ने फैक्ट-चेक खत्म कर दिया है, क्योंकि सरकारों और परंपरागत-मीडिया ने सेंसरशिप को बढ़ावा दिया है. ट्रंप के चुनाव को ‘सांस्कृतिक टिपिंग पॉइंट’ बताते हुए उन्होंने कहा, फ़ेसबुक पर मुक्त-अभिव्यक्ति बहाल होगी.
यूक्रेन की लड़ाई
पश्चिम एशिया के युद्ध-विराम के बाद कहा जा रहा है कि अब यूक्रेन की लड़ाई को भी रुकवाने में ट्रंप सफल होंगे. अपने चुनाव-अभियान के दौरान उन्होंने कई बार कहा था कि मैं इस लड़ाई को रुकवा दूँगा. शपथ लेते ही ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फ़ोन करके सामान्य राजनयिक संबंध बहाल करने और रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने और इस सिलसिले में जल्द ही शिखर सम्मेलन की उम्मीद जताई.
दूसरी तरफ उन्होंने चेतावनी भी दी है कि अगर वे यूक्रेन में युद्ध ख़त्म नहीं करेंगे, तो हम रूस पर टैरिफ़ समेत और कई कड़े प्रतिबंध लगा देंगे. यह बात इतनी आसान भी नहीं है. अंतरराष्ट्रीय-रिश्ते महज यारी-दोस्ती और चेतावनियों से तय नहीं होते. ये बातें अलबत्ता माहौल बनाने और प्रचार के काम आती हैं.
उनके पुतिन के साथ रिश्ते अच्छे हैं, इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि वे समझाने में कामयाब हो सकते हैं. रूस ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है, पर कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने हाल में कहा है कि नए अमेरिकी प्रशासन से बातचीत की गुंजाइश तो है.
रूस पर अहसान
अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर ट्रंप ने लिखा, मैं पुतिन पर युद्ध को ख़त्म करने के लिए दबाव डालकर 'अहसान' कर रहा हूँ. पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की दोनों को समझौते के लिए बीच के जिस रास्ते को स्वीकार करना होगा, उसे तैयार करना भी आसान नहीं है.
पुतिन का कहना है कि यूक्रेन को अपनी ज़मीन का 20 फ़ीसदी वह हिस्सा छोड़ना होगा जो अब रूसी कब्ज़े में है. दूसरे उसे नेटो से बाहर रहने की गारंटी देनी होगी. यूक्रेन को ज़मीन छोड़ने के लिए तैयार होने में दिक्कत होगी, यों वे कह चुके हैं कि उन्हें कुछ ज़मीन फ़िलहाल छोड़नी पड़ सकती है.
रूस बनाम अमेरिका
इस लड़ाई को रूस, पश्चिम के साथ व्यापक टकराव के रूप में देखता है, इसलिए समझौते को यूरोपीय सुरक्षा की चर्चा में शामिल करना होगा. इसका मतलब है कि मुख्य बातचीत वाशिंगटन और मॉस्को के बीच होगी, तभी कोई समझौता होगा.
इस समझौते में युद्ध विराम के अलावा यूक्रेन को गैर-ब्लॉक का दर्जा और पश्चिम के साथ सुरक्षा सहयोग, यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर वास्तविक रूसी नियंत्रण और रूस पर लगे प्रतिबंधों में सीमित राहत शामिल होगी.
तीन साल के क्रूर युद्ध ने रूसी और यूक्रेनी नेताओं को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. सैनिकों की घटती संख्या, हथियारों और गोला-बारूद की कमी, प्रमुख शहरों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर हवाई हमलों से हुए नुकसान ने इसके लिए बाध्य किया है.
लगता यह भी है कि 2014 में क्राइमिया पर रूसी कब्जे के बाद सभी यूक्रेनी क्षेत्रों से रूस को बाहर निकालने के अपने पहले के लक्ष्य को यूक्रेनी नेताओं ने त्याग दिया है. अब संभावित लक्ष्य, रूसी अतिक्रमण को रोकना और भविष्य में कठोर सुरक्षा गारंटी के साथ युद्ध विराम की ओर बढ़ना है.
रूसी मनोबल
दूसरी तरफ रूस ने युद्ध में सफलता के अलावा अमेरिकी-प्रतिबंधों का सामना करते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को संभाल लिया है. रूस की जीडीपी पिछले दो वर्षों में 3 से 4 प्रतिशत के बीच बढ़ी है, पर ज़रूरी नहीं कि उसकी सामर्थ्य बनी रहे.
रूस के केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि इस साल आर्थिक वृद्धि 0.5-1.5 प्रतिशत तक गिर जाएगी. अर्थव्यवस्था के लिए श्रमिकों और सेना के लिए सैनिकों की जरूरत बढ़ी है. दो साल से चल रही आंशिक लामबंदी ने सामाजिक अशांति बढ़ाई है.
यह मनोबल की लड़ाई भी है. पुतिन ने सब कुछ दाँव पर लगा दिया हैं. इस उम्मीद पर कि यूक्रेन पहले टूटेगा. ट्रंप प्रशासन के लिए यूक्रेन को राजी करना अपेक्षाकृत आसान है, पर तभी तब वह रूस भी राजी हो. इसके अलावा यूरोपीय सहयोगियों और यूक्रेन की न्यूनतम ज़रूरतों को भी समझना होगा.
यूरोपीय सुरक्षा
रूस की नज़र से युद्ध केवल यूक्रेन को लेकर नहीं है. यह पश्चिम के खिलाफ व्यापक लड़ाई है. जब रूस कमज़ोर था, तब पश्चिम ने उसे दबा लिया. नाटो के विस्तार ने उसे हाशिए पर डाल दिया. वह उस बफर ज़ोन से भी वंचित होने लगा, जिसे अपनी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानता है.
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों को भी एक राय बनानी होगी. यूरोपीय संघ में यूक्रेन के प्रवेश का रास्ता साफ होगा. हालाँकि उसे नाटो की सदस्यता अभी नहीं मिलेगी, लेकिन जी-7 के देशों के साथ हुए सुरक्षा-समझौतों के सहारे वह मजबूत हुआ है. ऐसे में रूस को आश्वस्त करना आसान भी नहीं होगा.
भारत की उम्मीदें
भारत में तीन तरह की चिंताएँ या उम्मीदें रही हैं. पहली चिंता है कि अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीयों का क्या होगा, दूसरे दोनों देशों के कारोबारी रिश्ते क्या बेहतर होंगे? तीसरा सवाल भारत की वैश्विक-भूमिका को लेकर है. अमेरिका हमारी कितनी मदद करेगा?
इतना साफ है कि अपने देश में अवैध तरीके से रह रहे लोगों को बाहर निकालने के लिए ट्रंप किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं. भारत की चिंता अवैध नहीं, वैधानिक तरीके से अमेरिका में रह रहे भारतीयों को लेकर है.
पहले लगता था कि ट्रंप एच-1बी वीज़ा-नीति को लेकर कठोर फैसले करेंगे, पर अब लगता है कि वे उतने कठोर नहीं होंगे. एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम के तहत कुशल विदेशी कर्मचारी अमेरिका आते हैं.
अमेरिका की आबादी में इस समय 14 प्रतिशत आप्रवासी हैं, जो 1910 के बाद से आप्रवासन का उच्चतम स्तर है. अमेरिका में दूसरा सबसे बड़ा आप्रवासी समूह भारतवंशियों का है.
अब तक एच-1बी वीज़ा पाने वालों में से 72 फीसदी भारतीय नागरिक हैं. भारत के बाद चीन का स्थान है. इस वीज़ा पर अमेरिका जाने वाले ज्यादातर लोग विज्ञान-टेक्नोलॉजी में काम करते हैं.
No comments:
Post a Comment