इस साल गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्तह अल-सीसी का आगमन भारत की ‘लुक-वैस्ट पॉलिसी’ को रेखांकित करता है, साथ ही एक लंबे अरसे बाद सबसे बड़े अरब देश के साथ पुराने-संपर्कों को ताज़ा करने का प्रयास भी लगता है. इस वर्ष भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान मिस्र को 'अतिथि देश' के रूप में आमंत्रित किया गया है.
अल-सीसी गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर
आने वाले मिस्र के पहले नेता होंगे. महामारी के कारण बीते दो साल ये समारोह बगैर
मुख्य अतिथि के मनाए गए. इस बार समारोह के मेहमान बनकर आ रहे अल-सीसी देश के लिए
भी खास है. वे एक ऐसे देश के शासक हैं, जो कट्टरपंथ और आधुनिकता के अंतर्विरोधों
से जूझ रहा है.
कौन हैं अल-सीसी?
पहले नासर फिर अनवर सादात और फिर हुस्नी
मुबारक। तीनों नेता लोकप्रिय रहे, पर मिस्र में लोकतांत्रिक संस्थाओं का
विकास भारतीय लोकतंत्र की तरह नहीं हुआ. 2010-11 में अरब देशों में
लोकतांत्रिक-आंदोलनों की आँधी आई हुई थी. इसे अरब स्प्रिंग या बहार-ए-अरब कहते
हैं. इस दौरान ट्यूनीशिया, मिस्र, यमन
और लीबिया में सत्ता परिवर्तन हुए.
11 फरवरी, 2011 को हुस्नी मुबारक के हटने की
घोषणा होने के बाद अगला सवाल था कि अब क्या होगा? इसके
बाद जनमत-संग्रह और संविधान-संशोधन की एक प्रक्रिया चली. अंततः 2012 में हुए चुनाव
में मुस्लिम-ब्रदरहुड के नेता मुहम्मद मुर्सी राष्ट्रपति चुने गए. मुर्सी के शासन
से भी जनता नाराज़ थी और देशभर में आंदोलन चल रहा था.
फौजी से राजनेता
संकट के उस दौर में अल-सीसी का उदय हुआ. वे चुने हुए लोकतांत्रिक नेता को फौजी बगावत के माध्यम से हटाकर राष्ट्रपति बने थे, पर जनता ने भी बाद में उन्हें राष्ट्रपति के रूप में चुना. 19 नवंबर, 1954 को जन्मे अब्देल फत्तह अल-सीसी सैनिक अफसर थे. जुलाई 2013 को उन्होंने चुने हुए राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली.
सत्ता पर काबिज होने के बाद नई सरकार ने मई
2014 में चुनाव कराए, जिसमें अल-सीसी राष्ट्रपति बने. इसके बाद मार्च 2018 में वे
फिर से राष्ट्रपति चुने गए. ज़ाहिर है कि फौजी तानाशाह ने लोकतांत्रिक राजनेता
बनने में देर नहीं की. वस्तुतः हुस्नी मुबारक की सरकार को हटाए जाने के बाद सेना
ने शासन चलाने के जिस सुप्रीम कौंसिल का गठन किया था, उसमें सबसे कम उम्र के सदस्य
अल-सीसी थे.
अगस्त, 2012 में वे देश के रक्षामंत्री और सेना
के सुप्रीम कमांडर बनाए गए. 2013 में मुर्सी की सरकार के खिलाफ ‘तमर्रुद’ या जन-विद्रोह के बाद
वे नेता बने तो आजतक बने हुए हैं. इस दौरान देश की संवैधानिक-व्यवस्था में भी
परिवर्तन किए गए हैं और अल-सीसी 2030 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं.
नासर के
नक्शे-कदम
अल-सीसी का कहना है, ‘मैं नासर जैसा बनना चाहता हूँ.’ कमाल अब्देल
नासर आज भी मिस्रवासियों के दिल पर राज करते हैं. अल-सीसी को उस स्तर की
लोकप्रियता तो नहीं मिली, अलबत्ता यह माना जाता है कि वे एक अराजक दौर से मिस्र को
बाहर निकाल कर लाए हैं.
2014 के चुनाव में
उन्होंने वामपंथी नेता हमदीन सबाही को हराया था. अल-सीसी को इस बात का श्रेय जाता
है कि उन्होंने गिरती अर्थव्यवस्था को संभाला. अपनी इसी काबिलीयत की वजह से वे
अप्रेल 2018 में हुए चुनाव में 97 फीसदी वोट पाकर जीते.
उन्हें देश को बचाने
का श्रेय दिया जाता है, पर मानवाधिकारवादी मानते हैं कि 2013 में जब उन्होंने सत्ता
संभाली तब हुए आंदोलनों में एक हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए और हजारों की गिरफ्तारियाँ
हुई हैं. दूसरी तरफ यह भी माना जाता है कि उन्होंने कट्टरपंथियों का दमन किया.
विकास की नई
राह
देश की अर्थव्यवस्था
आज भी पूरी तरह पटरी पर नहीं है. 2016 में देश की मुद्रा की अवमूल्यन किया गया.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से सहायता लेने के लिए कई तरह की सब्सिडी खत्म की गईं.
दूसरी तरफ कुछ मेगा-प्रोजेक्ट पर पैसा लगाया भी गया. स्वेज नहर का विस्तार किया
गया, जिसपर 8.2 अरब डॉलर का खर्च आया.
अब 45 अरब डॉलर खर्च
करके काहिरा के पास ही एक नई राजधानी बनाई जा रही है. इसे लेकर देश में बहस है
कि ऐसा क्यों किया जा रहा है. आर्थिक विकास के अलावा मिस्र के सामने इस समय सबसे
बड़ी चुनौती कट्टरपंथी समूहों को लेकर है. दूसरी तरफ फलस्तीन-मसले के छींटे मिस्र
पर भी पड़ते हैं.
भारत से रिश्ते
मिस्र और भारत के रिश्ते हमेशा बहुत अच्छे रहे,
पर 1981 से 2011 के बीच हुस्नी मुबारक के कार्यकाल में कुछ ठंडापन रहा. बताया जाता
है कि 1983 में दिल्ली में हुए नैम शिखर सम्मेलन के दौरान कुर्सी लगाए जाने को
लेकर बात बिगड़ी थी, जो सुधरी नहीं. हुस्नी मुबारक की नाराज़गी देर से दूर हुई और
नवंबर 2008 में वे भारत-यात्रा पर आए, पर उसके बाद वे अरब-स्प्रिंग में खुद फँस
गए.
गुट-निरपेक्ष आंदोलन के दौरान मिस्र के
राष्ट्रपति कमाल अब्देल नासर का नाम भारत के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर रहता था.
दोनों देशों ने पिछले साल राजनयिक संबंधों की स्थापना की 75वीं
वर्षगांठ मनाई थी. पश्चिम एशिया के देशों में मिस्र हमारा सबसे पुराना मित्र है.
उस दोस्ती को फिर से मजबूत बनाने की प्रक्रिया का यह एक हिस्सा है.
दोनों देशों के बीच पिछले साल संपर्कों का लंबा
सिलसिला चला था. अक्तूबर में विदेशमंत्री एस जयशंकर मिस्र की यात्रा पर गए थे. उस
यात्रा ने रिश्तों के फिर से जगाने का काम किया. संभवतः गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम
पर उसी वक्त सहमति बनी थी. उसके एक महीने पहले सितंबर में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह
काहिरा-यात्रा पर गए थे.
रक्षा-सहयोग
उस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा कार्यक्रमों
के विस्तार के लिए समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी हुए. तभी मिस्र सरकार ने सुझाव
दिया था कि भारत और मिस्र को मिलकर सैनिक उपकरणों का उत्पादन करना चाहिए. बहुत कम
लोगों को याद होगा कि साठ के दशक में भारत ने जब अपना पहला लड़ाकू विमान एचएफ-24 बनाया था, तब मिस्र के साथ हैलवान-300 फाइटर जेट के संयुक्त निर्माण की योजना भी बनी थी.
वह परियोजना सफल नहीं हुई, पर भारत के तेजस विमान के संभावित खरीदारों में मिस्र का नाम भी
शामिल है. पिछले साल जुलाई और अगस्त के महीनों में दोनों देशों की वायुसेनाओं ने
मिस्र में संयुक्त अभ्यास भी किए थे.
इसरायल और यूएई के साथ भारत के रिश्ते अच्छे
हैं. भारत आई2यू2 जैसे चतुष्कोणीय और फ्रांस-यूएई-भारत जैसे त्रिकोणीय फॉर्मेट के
ज़रिए भी पश्चिम एशिया से जुड़ा है. सऊदी अरब के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध मजबूत
हैं. ईरान के साथ भी हमारे विशेष संबंध हैं.
भू-राजनीति
पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में मिस्र की
भूमिका है. भू-राजनीति की दृष्टि से भूमध्य सागर, लाल
सागर, अफ्रीका और पश्चिम एशिया इन चार क्षेत्रों में
मिस्र की भूमिका है. इस प्रकार भूमध्य सागर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक की
वैश्विक-चुनौतियों में भारत और मिस्र की साझेदारी महत्वपूर्ण साबित होगा.
भारत ग्लोबल साउथ के साथ खासतौर पर रिश्ते बना
रहा है. भारत विश्व-मंच पर तीसरा ध्रुव बनाने की मंशा भी ज़ाहिर कर रहा है. महाशक्तियों
की स्पर्धा के इस दौर में भारत किसी का पल्लू पकड़ने के पक्ष में नहीं है. यह
तीसरा ध्रुव गुट-निरपेक्ष आंदोलन जैसा नहीं होगा, बल्कि क्षेत्रीय मझोली और
उभरती-ताकतों का गठबंधन हो सकता है.
पचास के दशक में दिल्ली और काहिरा ने
युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसेप टीटो के साथ एक आंदोलन की अगुवाई की थी. आज काहिरा
और दिल्ली करीब उन्हीं स्थितियों में करीब आ रहे हैं. अल-सीसी की यह केवल यात्रा
नहीं है. इस दौरान कुछ समझौते और कुछ संभावनाएं भी बनेंगी. भारत अब तकनीकी,
वैज्ञानिक, सामरिक और आर्थिक-दृष्टि से बदला हुआ देश है. इस लिहाज से इस यात्रा के
निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
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