Sunday, January 29, 2023

अर्थव्यवस्था के निर्णायक दौर का बजट


इसबार का सालाना बजट बड़े निर्णायक दौर का बजट होगा। हर साल बजट से पहले कई तरह की उम्मीदें लगाई जाती हैं। ये उम्मीदें, उद्योगपतियों, कारोबारियों, किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों, गृहणियों, उच्च वर्ग, मध्य वर्ग, निम्न वर्ग यानी कि भिखारियों को छोड़ हरेक वर्ग की होती हैं। सरकार के सामने कीवर्ड है संवृद्धि। उसके लिए जरूरी है आर्थिक सुधार। मुद्रास्फीति और बाजार के मौजूदा हालात को देखते हुए बजट में बड़े लोकलुभावन घोषणाओं उम्मीद नहीं है, अलबत्ता एक वर्ग कुछ बड़े सुधारों की उम्मीद कर रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने हाल में एक रिपोर्ट कहा है कि अगले साल चुनाव होने हैं। ऐसे में बजट में सरकार पूंजीगत व्यय 8.5 से नौ लाख करोड़ रुपये तक बढ़ा सकती है जो मौजूदा वित्त वर्ष में 7.5 लाख करोड़ रुपये है। खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में कमी के जरिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.8 प्रतिशत रख सकती है। रेलवे के बजट में काफी इजाफा होगा। 500 वंदे भारत और 35 हाइड्रोजन ट्रेनों की घोषणा हो सकती है। इनके अलावा 5000 एलएचबी कोच और 58000 वैगन हासिल करने की घोषणा भी की जा सकती है। रेल योजना-2030 का विस्तार भी इस बजट में हो सकता है। 7,000 किलो मीटर ब्रॉड गेज लाइन के विद्युतीकरण की भी घोषणा हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों को छूट की घोषणा भी हो सकती है।

मध्यवर्ग की मनोकामना

मध्यवर्ग की दिलचस्पी जीवन निर्वाह, आवास और आयकर से जुड़ी होती है। सरकार ने अभी तक आयकर छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से अधिक नहीं की है, जो 2014 में तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उस सरकार के पहले बजट में तय की थी। 2019 से मानक कटौती 50,000 रुपये बनी हुई है। वेतनभोगी मध्यम वर्ग को राहत देने के लिए आयकर छूट सीमा और मानक कटौती बढ़ाने की जरूरत है। बजट पूर्व मंत्रणा बैठकों में टैक्स स्लैब में बदलाव और करों में छूट का दायरा बढ़ाने की सरकार से अपील की गई है। इन बैठकों में पीपीएफ के दायरे को डेढ़ लाख से बढ़ाकर तीन लाख करने की माँग की गई। 80सी के तहत मिलने वाली छूट के दायरे को बढ़ाया जा सकता है। स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए भुगतान पर भी विचार किया जा रहा है। वित्तमंत्री के हाल के एक बयान ने मध्यम वर्ग में उम्मीद बढ़ा दी है कि आगामी बजट में उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। वित्त मंत्री ने कहा था,मैं भी मध्यम वर्ग से हूं इसलिए मैं इस वर्ग पर दबाव को समझती हूं।”

राजकोषीय घाटा

महामारी के दौरान सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज और दूसरे कई तरीके से मदद पहुँचाने की कोशिश की। अब उसका हिसाब देना है। सब्सिडी में कमी और बजट का आकार बढ़ाने की जरूरत होगी। राजकोषीय घाटे को कम करने की भी। पिछले साल के बजट में सब्सिडी करीब 3.56 लाख करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी। लक्ष्य है कि वित्त वर्ष 2024-25 तक इसे 4.5 फीसदी तक होना चाहिए। 2015 से 2018 के बीच अंतरराष्ट्रीय खनिज तेल की कीमतों में गिरावट आने से राजस्व घाटा 2013-14 के स्तर 4.5 प्रतिशत से नीचे आ गया था। 2016-17 में यह 3.5 प्रतिशत हो गया। इसके बाद सरकार ने इसे 3 पर लाने का लक्ष्य रखा। महामारी ने राजस्व घाटे के सारे गणित को बिगाड़ कर रख दिया है। मार्च 2014 में केंद्र सरकार पर सार्वजनिक कर्ज जीडीपी का 52.2 प्रतिशत था, जो मार्च 2019 में 48.7 प्रतिशत पर आ गया था। पर महामारी के दो वर्षों ने इसे चालू वित्त वर्ष 2022-23 में इसे 59 प्रतिशत पर पहुँचा दिया है। केंद्र और राज्य सरकारों का सकल कर्ज 84 फीसदी है। बढ़ते ब्याज बिल (जीडीपी के 3 प्रतिशत से अधिक) को देखते हुए, मध्यम अवधि में राजकोषीय मजबूती न केवल व्यापक स्तर की स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि इसके बिना निजी निवेश में सुधार भी संभव नहीं है जो अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि की कुंजी है। कर्ज का मतलब है, ज्यादा ब्याज। जो धनराशि विकास और सामाजिक कल्याण पर लगनी चाहिए, वह ब्याज में चली जाती है। सरकार के पास संसाधन बढ़ाने का एक रास्ता विनिवेश का है, जिसका लक्ष्य कभी पूरा नहीं होता।  

कृषि और ग्रामीण विकास

कृषि मंत्रालय को 2022-23 में 1,32,514 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो 2021-22 के संशोधित अनुमानों से 4.5% अधिक था। कृषि मंत्रालय को आवंटन सरकार के कुल बजट का 3.4% है। 2022-23 में मंत्रालय को आवंटन का 55% पीएम-किसान योजना (68,000 करोड़ रुपये) के लिए था। सब्सिडी और फसल बीमा सहित मंत्रालय के अन्य सभी कार्यक्रमों के लिए 2022-23 में 64,514 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। कृषि और ग्रामीण-क्षेत्रों के व्यय को चुनाव से जोड़कर भी देखा जा सकता है। दूसरे इससे ग्रामीण क्षेत्र में उपभोग बढ़ता है, जिससे औद्योगिक उत्पादन को सहारा मिलता है। फरवरी 2019 में, सरकार ने किसान परिवारों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की आय सहायता (2,000 रुपये की तीन किस्तों में) के लिए पीएम-किसान योजना शुरू की। इस योजना का उद्देश्य उचित फसल स्वास्थ्य और पैदावार के लिए इनपुट की खरीद में किसानों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करना है। इसके अलावा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना भी हैं। डेलॉइट इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कृषि क्षेत्र में 2031 तक 270 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश के साथ भारत के लिए 800 बिलियन डॉलर का राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता है।

मुफ्त अनाज

कुल सब्सिडी में खाद्य सब्सिडी की हिस्सेदारी दो लाख करोड़ रुपये से अधिक है। कोविड संकट के दौरान अप्रैल, 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की गई थी। दिसंबर, 2022 तक जारी सभी सात चरणों में इस योजना पर सरकार का कुल व्यय करीब 3.91 लाख करोड़ रुपये रहा है। अब सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत लाभार्थियों को मुफ्त राशन देने का निर्णय किया है, जबकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना 31 दिसंबर से समाप्त कर दी गई है। मुफ्त अनाज योजना ने संकट के समय गरीबों, ज़रूरतमंदों को खाद्य सुरक्षा प्रदान की, लेकिन इसने एनएफएसए के तहत लाभार्थियों को मिलने वाले अनाज की मात्रा को दुगना कर दिया था। गरीबों को राशन की दुकानों के जरिये दो रुपये गेहूं और तीन रुपये किलो चावल मिल रहा था, वह जनवरी, 2023 से मुफ्त मिलने लगा है। इससे कुछ खर्च बढ़ा, पर 3.91 लाख करोड़ की बड़ी रकम बची।

उर्वरक सब्सिडी

उर्वरक सब्सिडी में भी सुधार की संभावना है। अभी फॉस्फोरस और पोटाश की तुलना में नाइट्रोजन को भारी सब्सिडी दी जाती है, जिसके कारण यूरिया का अत्यधिक उपयोग होता है और फॉस्फोरस और पोटाश का बहुत कम उपयोग होता है। तीनों के उपयोग का सही अनुपात 4:2:1 है, जबकि इन दिनों पंजाब में यह अनुपात 31.4:8:1 है। उर्वरकों का सही अनुपात नहीं होने के कारण मिट्टी पर प्रतिकूल असर पड़ता है और उत्पादकता भी प्रभावित होती है। खाद्य और उर्वरक के अलावा पेट्रोलियम सब्सिडी और अन्य सब्सिडी (विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए ब्याज सब्सिडी,कृषि उपज के लिये कीमत समर्थन योजना को लेकर सब्सिडी आदि) शामिल हैं, जिन्हें युक्तिसंगत बनाया जाना है।

उद्योगों की माँग

फिक्की ने बजट में घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर अप्रत्याशित लाभ कर यानी विंडफॉल टैक्स को समाप्त करने की मांग की है। सरकार ने 1 जुलाई को अप्रत्याशित लाभ कर लगाया था। उस समय घरेलू कच्चे तेल पर 23,250 रुपये प्रति टन (40 डॉलर प्रति बैरल) का अप्रत्याशित लाभ कर लगाया गया था। सरकार आगामी बजट में खिलौनों, साइकिल, चमड़ा और जूता-चप्पल के विनिर्माण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की घोषणा कर सकती है। ज्यादा रोजगार वाले क्षेत्रों को उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का लाभ देने के लिए इसका विस्तार किया जा सकता है। सरकार पहले ही लगभग दो लाख करोड़ रुपये की पीएलआई योजना वाहन और वाहन कलपुर्जे, बड़े इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, औषधि, कपड़ा, खाद्य उत्पाद, उच्च क्षमता वाले सौर पीवी मॉड्यूल्स, उन्नत रसायन सेल और विशिष्ट इस्पात समेत कुल 14 क्षेत्रों में लागू कर चुकी है। इन योजनाओं का लक्ष्य घरेलू विनिर्माताओं को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी और ‘चैंपियन’ बनाना है। पीएलआई योजना को खिलौनों और चमड़ा जैसे विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचाने का प्रस्ताव स्वीकृत होने के अंतिम चरण में है और इसकी संभावना है कि बजट में इसे लाया जा सकता है।

छोटे उद्योग

बड़े उद्योगों की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भूमिका है, पर निचले स्तर पर संवृद्धि, सामाजिक-कल्याण और रोज़गार तीनों नज़रियों से एमएसएमई क्षेत्र या छोटे उद्यमियों पर सरकार का ध्यान ज्यादा होगा। 31मार्च 2022 तक भारत में इन उद्योगों की तादाद 6.3 करोड़ से अधिक थी। इनमें से करीब 94 प्रतिशत सूक्ष्म उद्यम हैं। ज्यादातर अकेले व्यक्ति के दम पर चलने वाले बहुत छोटे व्यवसाय हैं। उनकी परेशानियों को समझने और हटाने की जरूरत है। कोविड-19 के दौरान शुरू की गई इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम (ईसीएलजीएस) को 50,000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया है, शायद इसे जारी रखा जाए। इसके अलावा इस योजना के तहत बैंकों द्वारा संवितरण और क्रेडिट गारंटी फंड्स फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज (सीजीटीएमएसई) जैसी ऐसी ही योजनाओं में वृद्धि करने की जरूरत है। बजट प्रस्तावों में इस सेक्टर के लिए की गई व्यवस्थाओं पर खासतौर से गौर करने की ज़रूरत होगी।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

1 comment:

  1. आपके इस विश्लेषण ने बहुत सारी आशाओं को जगा दिया है। शायद अबकी बार रक्षा पर भार कुछ कम हो। बेरोजगारी को दूर करने की दिशा में कुछ चुनाव पूर्व तैयारी का भी असर बजट में देखने को मिले। आधारभूत संरचनाओं के विस्तार के साथ साथ गैर पारंपरिक ऊर्जा के स्त्रोतों के दोहन की दिशा में भी कुछ हो।

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