विश्वकप क्रिकेट-1987 |
देस-परदेश
भारत में क्रिकेट राष्ट्रीय-भावनाओं के साथ जुड़ गया है. एक समय तक हम हॉकी को राष्ट्रीय खेल मानते थे. वह सम्मान अब भी अपनी जगह होगा, पर क्रिकेट ने कहानी बदली दी है. भारत में इस साल हॉकी और क्रिकेट दोनों की विश्वकप प्रतियोगिताएं होने वाली हैं. आप दोनों की कवरेज के फर्क से इस बात का अनुमान लगा लीजिएगा.
हॉकी विश्वकप आज से तीन
दिन बाद 13 जनवरी से शुरू हो रहा है. मीडिया ने कितनी जानकारी आपको दी? ऐसा तब है, जब
हाल के वर्षों में भारतीय हॉकी टीम ने अपनी बिगड़ी कहानी को काफी हद तक सुधारा है.
ओलिंपिक-कांस्य तक पहुँच गए हैं. उम्मीद जगाई है, ओडिशा जैसे राज्य ने, जहाँ हॉकी
का इंफ्रास्ट्रक्चर बना है.
हो सकता है कि आने
वाले समय में कॉरपोरेट जगत हॉकी की मदद में भी आगे आएं. फिलहाल हमारी दिलचस्पी हॉकी और क्रिकेट की तुलना करने में नहीं, बल्कि
राष्ट्रीय-जीवन में खेल की भूमिका में है. बैडमिंटन, कुश्ती, बॉक्सिंग और आर्चरी
जैसे खेलों का भी यह उदयकाल है.
विश्वकप फुटबॉल
हाल में क़तर में हुई विश्वकप फुटबॉल
प्रतियोगिता के दौरान मोरक्को की टीम के सेमीफाइनल तक पहुँचने पर मुस्लिम देशों,
खासतौर से अरब देशों में उत्साह की लहर देखी गई. क्रिस्टियानो रोनाल्डो की टीम
पुर्तगाल को हराने के बाद मोरक्को वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुँचने वाला पहला
अफ़्रीकी अरब देश बना था. प्रतियोगिता के आयोजक देश कतर को भले ही सफलता नहीं
मिली, पर उसका आयोजन शानदार था. अलबत्ता सेनेगल, ट्यूनीशिया, ईरान और सऊदी अरब ने भी किसी न किसी रूप में अच्छा
प्रदर्शन किया.
अब तक इन अफ्रीकी-अरब
देशों के खिलाड़ी यूरोपियन टीमों में शामिल होकर उनका गौरव बढ़ाते रहे हैं, पर लगता
है कि अब एक नया चलन शुरू होने जा रहा है. विश्वकप जीतने का सपना टूटने के कुछ
सप्ताह बाद पुर्तगाल के कप्तान क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने यूरोपीय फ़ुटबॉल क्लब मैनचेस्टर
यूनाइटेड छोड़कर, सऊदी अरब के 'अल-नस्र'
से नाता जोड़ लिया है.
सऊदी अरब का सपना
अल नस्र और रोनाल्डो के बीच हुआ क़रार अब तक का
सबसे महंगा सौदा बताया जा रहा है. अल-नस्र 2025 तक हर साल रोनाल्डो को क़रीब 1800
करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. रोनाल्डो का सऊदी अरब पहुँचना बड़े बदलाव का संकेत
है.
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान क़तर
विश्व कप के दौरान फीफा के प्रमुख जीवी इनफ़ैंन्तिनो के साथ कई बार नज़र आए थे. वे
अपने देश को आधुनिक बना रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने विज़न-2030 के नाम से पूरा एक
कार्यक्रम बनाया है. इस कार्यक्रम में खेलों को भी शामिल किया गया है. क्राउन
प्रिंस मानते हैं कि पश्चिम एशिया अब नया यूरोप बनेगा. अब आप आएं भारत की ओर.
क्रिकेट
विश्वकप
ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट हर साल नवंबर के दूसरे सप्ताह में एक विशेष अंक का प्रकाशन करती है, जिसका नाम होता है ‘द वर्ल्ड अहैड.’ इसमें आने वाले वर्ष की संभावित-प्रवृत्तियों और घटनाओं का अनुमान किया जाता है. इस साल के ‘द वर्ल्ड अहैड-2023’ में भारत को लेकर तीन आलेख हैं. एक नरेंद्र मोदी की 2024 में विजय-संभावनाओं पर, दूसरा अर्थव्यवस्था पर. तीसरे का शीर्षक है, ‘द क्रिकेट वर्ल्ड कप इन इंडिया इन 2023 विल बी मोर दैन जस्ट अ गेम.’
पत्रिका के अनुसार
क्रिकेट का खेल भारत की राजनीतिक-अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है. इकोनॉमिस्ट
ने इस तरफ अभी ध्यान दिया है, या पहले इसे रेखांकित किया है, पता नहीं, पर मेरी
दृष्टि में यह विषय काफी पहले से है. मेरी नज़र में यह पोलिटिकल इकोनॉमी के
साथ-साथ भारत की सॉफ्ट पावर का हिस्सा है, वैसे ही जैसे भारतीय ‘योग’ है, जिसे अब भारत के
लोग भी ‘योगा’ कहते हैं.
ग्लोबल कनेक्ट
‘द वर्ल्ड अहैड-2023’ में
इकोनॉमिस्ट के एशिया एडिटर जेम्स एस्टिल ने अपने लेख में कहा है कि विदेशी समझते
हैं कि मनमोहन सिंह के 1991 के आर्थिक-सुधार वाले बजट के साथ भारत ने
वैश्विक-अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ना शुरू किया. पर उसके चार साल पहले भारतीय
उपमहाद्वीप में हुई विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता को याद करें.
इंग्लैंड के बाहर यह
पहला विश्वकप क्रिकेट टूर्नामेंट था. इसे देखने के लिए जबर्दस्त और उत्साही भीड़
टूट पड़ी थी. प्रतियोगिता के स्पॉन्सर रिलायंस इंडस्ट्रीज़ ने दिल खोल दिया था,
जिसकी वजह से इसमें हिस्सा लेने वाली हरेक टीम को शानदार 75,000 पौंड (उस वक्त के
1,27,000 डॉलर) की धनराशि मिली.
एकदिनी क्रिकेट की यह
सबसे बड़ी प्रतियोगिता 1987 के बाद दो बार और भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित हुई.
हर बार साबित हुआ कि भारत का नया आत्मविश्वास और संपदा किस तरह से अपने देश और
अपने पसंदीदा खेल को आगे बढ़ा रही है. अब अक्तूबर 2023 में विश्वकप फिर से भारत
में होने जा रहा है, 12 साल बाद.
पैसों की
बरसात
यह प्रतियोगिता शानदार
होने वाली है, जिसमें पैसों की बरसात होगी. खास बात यह कि देश के आम चुनाव के छह
महीने पहले होगी. इस लिहाज से राजनीति से सराबोर क्रिकेट का यह सबसे शानदार समारोह
होगा. पूँजी-निवेश के कारण अब वैश्विक-क्रिकेट पर भारतीय कंपनियों का नियंत्रण
बढ़ता जा रहा है.
भारत में इस समय करीब 21 करोड़ टीवी-परिवार
हैं, 2011 के मुकाबले करीब नौ करोड़ ज्यादा. यह आबादी मीडिया का जबर्दस्त पुरस्कार
है. भारत की सबसे बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता इंडियन प्रीमियर लीग के केवल ऑनलाइन
स्ट्रीमिंग राइट्स पाने की कीमत 2.6 अरब डॉलर है. विदेशी-खिलाड़ियों की नज़र में
विश्वकप में खेलने का मतलब है, जिंदगी को बदल देने वाली आईपीएल टीमों में शामिल
होने का कॉन्ट्रैक्ट पाने लिए ऑडीशन का एक मौका.
मोदी और क्रिकेट
उधर नरेंद्र मोदी, तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने
की दावेदारी पेश करने वाले हैं. भारत की राजनीति क्रिकेट की लोकप्रियता का फायदा
उठाती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी इसे एक और
ऊँचे स्तर पर ले गई है. देश का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम, जिसमें 1,32,000 दर्शक
बैठ सकते हैं, उनके नाम पर है. वे अपने क्रिकेट खिलाड़ियों की तारीफ करने या उनसे
तारीफ पाने का कोई मौका खोते नहीं हैं.
हाल में सक्रिय क्रिकेट से रिटायर हुए और
भारतीय जनता पार्टी के राजनेता गौतम गंभीर ने उनके जन्मदिन पर बधाई का संदेश ट्वीट
किया, ‘उस व्यक्ति को जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं, जिसने हर भारतीय के लिए भारतीय होने के अर्थ को परिभाषित
किया है. भगवान पीएम मोदी को लंबे समय तक आशीर्वाद और स्वस्थ जीवन दें.’
वैश्विक-विस्तार
भारतीय राजनीति में इस
खेल के प्रवेश की भी एक कीमत है. रिलायंस तथा दूसरी भारतीय कंपनियों ने जो पूँजी
निवेश इस खेल पर किया है, उससे उन्हें दुनिया के उन इलाकों में पैर पसारने का मौका
मिला है, जहाँ-जहाँ इसे खेला जाता है.
ज्यादातर भारतीयों को
आईपीएल वाला एक्शन-पैक्ड टी-20 क्रिकेट पसंद आता है, जो साढ़े तीन घंटे में निबट
जाता है. इसलिए भारत के फ्रेंचाइज़ी-आधारित खेल के मैदान से टी-20 के मुकाबले
एकदिनी और टेस्ट क्रिकेट कुछ पिछड़ रहे हैं. भारत में होने वाली विश्वकप क्रिकेट प्रतियोगिता शायद एकदिनी क्रिकेट को कुछ राहत दे. 2023 में दो और क्रिकेट लीग लॉन्च होने वाली
हैं. ये हैं यूएई टी-20 और साउथ अफ्रीका टी-20 लीग. इन्हें भारतीय स्वामित्व की
टीमें लॉन्च करेंगी. इन गतिविधियों से क्रिकेट-प्रेमियों के भय पर 2023 के विश्वकप
की जबर्दस्त मार्केटिंग भारी पड़ने वाली है.
एकदिनी क्रिकेट से
जुड़ा आईसीसी विश्वकप का यह 13वाँ संस्करण होगा. पहले यह प्रतियोगिता 9 फरवरी से
26 मार्च 2023 में प्रस्तावित थी, पर जुलाई 2020 में फैसला हुआ कि यह
अक्तूबर-नवंबर में होगी. इसकी वजह थी कोविड-19 के कारण पैदा हुआ अनिश्चय. यह पहला
मौका होगा, जब यह प्रतियोगिता पूरी तरह भारत में होने वाली है. इसके पहले 1987, 1996
और 2011 में यह पड़ोसी देशों के साथ मिलकर आयोजित की गई थी.
सॉफ्ट पावर
क्रिकेट में भारत की कहानी 25 जून, 1983 की
तारीख को विश्वकप की विजय से शुरू होती है. इसके 32 साल बाद 21 जून, 2015 को
संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में पहली बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया. ये
दोनों घटनाएं ही भारत की सॉफ्ट पावर की शुरुआत थीं. यह भारतीय आर्थिक शक्ति का
विस्तार भी है. देश के कॉरपोरेट जगत ने क्रिकेट को जो संरक्षण दिया है, उसका
परिणाम क्रिकेट के वैश्विक बाजार में दिखाई पड़ रहा है.
खेलों की भूमिका
आर्थिक शक्ति बनने के बाद चीन ने जिस प्रकार से
खेलों एथलेटिक्स, तैराकी और जिम्नास्टिक्स जैसे खेलों में महाशक्ति का स्थान लिया
है, उसमें भारत अभी काफी पीछे है, पर क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल
क्रिकेट काउंसिल पर अब भारत का अच्छा दबदबा है.
यह दबदबा आर्थिक कारणों से है. पहले इंग्लैंड
और ऑस्ट्रेलिया का दबदबा था, पर इक्कीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों से भारत का दबदबा बढ़ता गया. इसके तीन बड़े कारण
हैं: 1.देश की अर्थ-व्यवस्था का विस्तार, 2.भारतीय टेलीविजन की पहुँच और,
3.टी-20 का टेलीविजन-फ्रेंडली रूप में निखार. इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं और
शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत वैश्विक बाजार को प्रभावित कर रहा है. संयोग है कि
विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस भारत में स्थापित करने की बात भी आप इस समय सुन
रहे हैं.
आर्थिक-विकास
भारत को बड़े स्तर पर पूँजी निवेश की जरूरत है.
यह निवेश देशी पूँजी के साथ-साथ विदेशी पूँजी का भी होगा. मोदी सरकार चीन की तरह
भारत को भी निर्माण गतिविधियों का हब बनाना चाहती है. इसके लिए ‘मेक इन इंडिया’ अभियान शुरू किया गया है.
पिछले दस वर्षों में भारत की पूँजी भी विदेश गई
है. भारतीय उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल ने दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कम्पनी आर्सेलर
को खरीदकर एक नई शुरूआत की. इसी तरह टाटा ने ब्रिटिश ऑटोमोबाइल कम्पनी जैगुआर
लैंडरोवर को खरीदकर इस परम्परा को आगे बढ़ाया.
भारतीय कम्पनियाँ अब अफ्रीका और एशिया के देशों
में पैर फैला रही हैं. भारत का मध्यवर्ग लगातार बढ़ता जा रहा है और यह दुनिया का
सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनता जा रहा है. भारतीय अर्थ-व्यवस्था तीन हजार करोड़
(ट्रिलियन) डॉलर की रेखा पार कर गई है और जल्द पाँच ट्रिलियन की रेखा को छू लेगी.
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