पाकिस्तानी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के नायब अमीर अब्दुल रहमान मक्की का नाम संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकवादियों की सूची में शामिल कर लिया गया है। माना जाता है कि हाफ़िज़ सईद की ग़ैर मौजूदगी में अब्दुल रहमान मक्की ही लश्कर-ए-तैयबा का कामकाज देख रहा है। वह इस आतंकवादी संगठन में उप-प्रमुख है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 आईएसआईएस
(दाएश) अल-क़ायदा प्रतिबंध कमेटी ने जिस सूची में मक्की का नाम शामिल किया है
उसमें किसी व्यक्ति या संस्था के नाम को तब जोड़ा जाता है जब उसकी आतंक से जुड़ी
गतिविधियों के पुख़्ता सबूत उपलब्ध हों। इस सूची में शामिल होने वाले की संपत्ति
फ़्रीज़ कर दी जाती है, उन पर ट्रैवल बैन लगाया जाता है और
किसी भी तरह से उन्हें हथियार मुहैया कराने पर रोक लगा दी जाती है।
16 जनवरी को मक्की का नाम इस सूची में शामिल करते हुए संयुक्त राष्ट्र की कमेटी ने सात आतंकवादी हमलों का हवाला दिया जिसमें साल 2000 में लाल क़िले पर हुआ हमला, 2008 में हुआ रामपुर हमला, 2008 में मुंबई मे हुआ 26/11 हमला और साल 2018 में गुरेज़ में हुए हमले को शामिल किया गया।
पिछले साल जून में अमेरिका और भारत के इस
प्रस्ताव पर चीन ने 'टेक्नीकल' रोक
लगाई थी, लेकिन इस बार चीन को यह रोक हटानी पड़ी। कमेटी
ने इस फ़ैसले के साथ जारी बयान में कहा, "अब्दुल
रहमान मक्की सहित लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के चरमपंथी भारत में, ख़ासकर जम्मू और कश्मीर में फंडिंग करते हैं और युवाओं को बरगला कर
चरमपंथी बनाते हैं और हमलों की योजना में उन्हें शामिल करते हैं।"
मक्की को कुछ साल पहले तक हाफिज
सईद के रिश्तेदार के रूप में जाना जाता था। पर 2019 में हाफिज सईद को 35 साल
की कैद की सजा सुनाए जाने के बाद से लश्कर या जमात-उद-दावा का वास्तविक नेता वही
बन गया था। सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति ने कहा है कि मक्की की भूमिका कई
आतंकवादी हमलों में रही है, इनमें 22 दिसंबर, 2000 को दिल्ली के लालकिले पर हुआ
हमला भी शामिल है।
मक्की भी अपने नाम के साथ हाफिज विशेषण लगाता था। हाफिज का मतलब होता है, वह व्यक्ति जिसे कुरान शरीफ कंठस्थ हो। फरवरी में हर साल होने वाली कश्मीर-एकता रैलियों में वह इस्लामाबाद में शामिल होता रहा है। पाकिस्तान में हर साल 5 फरवरी को कश्मीर-एकता दिवस आधिकारिक रूप से मनाया जाता है। 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में हुए हमले के बाद 2010 की ऐसी ही एक रैली में मक्की ने घोषणा की थी कि भारत ने यदि कश्मीर हमें नहीं सौंपा तो खून की नदियाँ बहा दी जाएंगी।
2020 में पाकिस्तान की एक आतंकवाद-विरोधी कोर्ट
ने अब्दुल रहमान मक्की को ग़ैर-क़ानूनी फंडिंग से जुड़े मामले में एक साल की सज़ा
और 20 हज़ार पाकिस्तानी रुपये का जुर्माना लगाया था। उनके इस भाषण के बाद ही
अमेरिका के ट्रेज़री विभाग ने नवंबर 2010 में मक्की को प्रतिबंधित आतंकवादी घोषित
कर दिया था। अमेरिका का कहना था कि तब तक उसने अपने
संगठन लश्कर-ए-तैयबा के लिए लगभग दो लाख 48 हज़ार डॉलर की फंडिंग ट्रेनिंग कैंप के
ज़रिए जुटाई थी और लश्कर-ए-तैयबा के मदरसों के ज़रिए एक लाख 65 हज़ार डॉलर की फंडिंग
जुटाई।
इस बार चीन ने इसपर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव
पर हामी भर दी। सवाल है कि आख़िर इस बार ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान से चलने वाले
इस आतंकवादी संगठन के लिए चीन ने अपना वीटो पावर इस्तेमाल नहीं किया। हिंदुस्तान
टाइम्स ने न्यूयॉर्क में रहने वाले राजनयिकों के हवाले से एक रिपोर्ट लिखी थी। जब
चीन ने मक्की से जुड़े प्रस्ताव पर रोक लगाई तो भारत ने साफ़ कर दिया था कि वो
लश्कर के इस चरमपंथी और चीन ने जिस तरह पाकिस्तान के चरमपंथी संगठन को बढ़ावा दिया
है, उसे बार-बार दुनिया के सामने उजागर
करता रहेगा।
चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी
सदस्य है और इसलिए उसके पास किसी प्रस्ताव पर रोक लगाने का वीटो पावर है। जिसका
इस्तेमाल वह समय-समय 'पाकिस्तान के पक्ष' में करता रहा है। इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद के मसूद अज़हर के
पाकिस्तानी पंजाब स्थित बहावलपुर से चरमपंथी गतिविधि के पर्याप्त सबूत होने और
भारत में कई हमलों के पीछे उनका हाथ होने के पुख़्ता सबूत के बावजूद चीन ने उन्हें
वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर चार बार रोक लगाई और पांचवीं बार में वह
प्रस्ताव पारित होने दिया।
ठीक यही रवैया चीन ने प्रतिबंधित संगठन
जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा के लीडर हाफ़िज़ मोहम्मद सईद और उनके सहयोगी
ज़की-उर-रहमान लखवी के लिए अपनाया था। चीन इन दोनों को ही वैश्विक आतंकवादी ठहराए
जाने के प्रस्ताव के आड़े आता रहा और पांचवीं बार की कोशिश में संयुक्त राष्ट्र
उन्हें आतंकवादी घोषित कर सका।
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