पिछले हफ्ते जब सारे टीवी चैनल श्रीदेवी के निधन
की खबरों से घिरे थे, अचानक सुबह कार्ति चिदम्बरम की गिरफ्तारी की खबर आई। इसके
साथ इस आशय की खबरें भी आईं कि सरकार आर्थिक अपराधों के खिलाफ एक मजबूत कानून संसद
के इसी सत्र में पेश करने जा रही है। पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के कारण अर्दब में
आई सरकार अचानक आक्रामक मुद्रा में दिखाई पड़ने लगी है। नोटबंदी के दौरान चार्टर्ड
अकाउंटेंटों और बैंकों की भूमिका को लेकर काफी लानत-मलामत हुईं थी। अब दोनों तरफ से घेराबंदी चल रही है। देखना होगा कि
सरकर विपक्षी घेरे में आती है या पलटवार करती है।
पी चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम की
गिरफ्तारी के कई मायने हैं। इसे एक आपराधिक विवेचना की तार्किक परिणति, देश में
सिर उठा रहे आर्थिक अपराधियों को एक चेतावनी, राजनीतिक बदले और नीरव मोदी प्रकरण
की पेशबंदी के रूप में अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है। सभी बातों का कोई न कोई
आधार है, पर इसका सबसे बड़ा निहितार्थ राजनीतिक है। पूर्वोत्तर के चुनाव-परिणामों
से प्रफुल्लित भारतीय जनता पार्टी पूरे वेग के साथ अब कर्नाटक, मध्य प्रदेश,
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में उतरेगी, जहाँ निश्चित रूप से यह मामला बार-बार
उठेगा।
बीजेपी यदि कार्ति मामले के मार्फत कांग्रेस पर
दबाव बनाने में सफल हुई तो कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी एकता कायम करने की
कोशिशों को भी धक्का लगेगा। सवाल है कि क्या सरकार के पास चिदम्बरम को घेरने लायक
सबूत हैं? सत्ताधारी
दल ने न केवल बजट सत्र में विपक्षी घेराबंदी से निपटने की तैयारी की है, बल्कि वह लोकसभा
चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी को बैकफुट पर लाना चाहती है। पंजाब नेशनल बैंक
घोटाले के मद्देनजर सरकार इस सत्र में आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई
करने और उनके विदेश पलायन की सम्भावनाओं को खत्म करने के उद्देश्य से कानून लाने
की घोषणा कर चुकी है। इस कानून के तहत देश में आर्थिक अपराध करके विदेश भागने वाले
व्यक्तियों की सम्पत्ति जब्त कर ली जाएगी, भले ही उनके खिलाफ मुकदमे का फैसला नहीं
हुआ हो। ऐसे कानून की घोषणा वित्तमंत्री ने पिछले साल के बजट भाषण में की थी, पर
अब इसमें नख-दंत जोड़ने का प्रस्ताव है। कांग्रेस पार्टी की इस विधेयक के बारे में
क्या भूमिका होगी, यह भी देखना होगा।
कांग्रेस पार्टी ने कार्ति की गिरफ्तारी को
बदले की कार्रवाई और तमाशा बताया है। उसने सीबीआई को सरकारी कठपुतली घोषित किया
है। लगभग ऐसा ही आरोप बीजेपी तब कांग्रेस पर लगाती थी, जब वह विपक्ष में थी। सन
2002 के बाद नरेन्द्र मोदी और उनके सहयोगी अमित शाह के खिलाफ आपराधिक मामलों की जब
झड़ी लगी थी, तब बीजेपी का भी यही कहना था। सवाल है कि सीबीआई यदि सरकारों की
गुलाम संस्था बनी है तो क्यों?
कार्ति मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने नौ महीने पहले एफआईआर दर्ज कराई थी।
पहला सवाल है कि इतने समय बाद इस वक्त उन्हें हिरासत में लेने और पूछताछ करने की
जरूरत क्यों पैदा हुई? 15 मई 2017 को जब एफआईआर दर्ज कराई गई थी, तब कार्ति चिदम्बरम पर मीडिया
कम्पनी के आईएनएक्स मीडिया (प्रा) लिमिटेड और आईएनएक्स न्यूज़ (प्रा) लिमिटेड को
विदेशी पूँजी निवेश दिलाने में मदद करने का आरोप लगाया था। यह आरोप प्रकारांतर से
तत्कालीन वित्तमंत्री पर लगता है, क्योंकि इसमें फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड
के अफसरों की सहायता ली गई।
एफआईपीबी ने जितनी राशि की स्वीकृति दी थी,
उससे कहीं बड़ी धनराशि मूल कम्पनी ने दूसरी कम्पनी में निवेश कर दी। इसमें कार्ति
चिदम्बरम की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि वे तत्कालीन वित्तमंत्री पी
चिदम्बरम के पुत्र थे। इस मामले की जब परतें खुलेंगी, तो पी चिदम्बरम की भूमिका भी
उजागर होगी, इसलिए इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ हैं। इसमें दो राय नहीं कि आरोप
गम्भीर हैं। कार्ति चिदम्बरम ने इस मामले में कंसल्टेंसी के रूप में 10 लाख रुपये
की धनराशि ली थी। सवाल इतनी मामूली रकम का नहीं है, बल्कि पूरे मामले का है, जो
बड़ी साजिश की दिशा में जा सकता है। पर इसे खोलना सरल काम नहीं है।
सीबीआई ने पहले कार्ति के एक चार्टर्ड
अकाउंटेंट को गिरफ्तार किया और फिर इंद्राणी मुखर्जी से पूछताछ की, जो आईएनएक्स
मीडिया की संयुक्त स्वामी थीं। वे एक हत्याकांड में गिरफ्तार होकर जेल में हैं। उनकी
गवाही मात्र से सारा फैसला नहीं होगा। दस्तावेजों से सारी बातों की पुष्टि होगी। तब
कार्ति को गिरफ्तार करने की जरूरत क्यों महसूस हुई? सीबीआई का कहना है कि वे जाँच में सहयोग नहीं
कर रहे हैं। सीबीआई ने अदालत के सामने कुछ सबूत भी पेश किए हैं। सबूतों की मजबूती
से ही कार्ति की गिरफ्तारी के मामले पर अदालत कोई फैसला करेगी।
सीबीआई यदि दस्तावेजों के मार्फत साजिश साबित
करने में कामयाब हुई तो इसे बीजेपी के हाथ लगी बड़ी कामयाबी माना जाएगा। पर यदि
साबित नहीं हुई तो इसका विपरीत प्रभाव भी होगा। फिलहाल नीरव मोदी कांड के कारण
सरकार के सामने संसद के बजट सत्र में सम्भावित विपक्षी-हमलों की चुनौती है। उनका
रुख मोड़ने की यह कोशिश है। केंद्रीय जांच एजेंसी एयरसेल-मैक्सिस डील में पी चिदम्बरम
की भूमिका की जांच कर रही है। क्या सरकार उन्हें घेर पाएंगी? चिदम्बरम ने हमेशा अपने और अपने बेटे
के ख़िलाफ़ सभी इल्जामों को ख़ारिज किया है। वे कहते हैं कि ये आरोप राजनीतिक
प्रतिशोध है। कांग्रेस पार्टी भी चिदम्बरम के साथ खड़ी है। आरोपों का दायरा बढ़ा तब उसकी रणनीति क्या
होगी, इसका इंतजार करना चाहिए। लगता यही है कि अगले कुछ महीनों में इस मामले का
घेरा पी चिदम्बरम की ओर बढ़ेगा। यह वह दौर होगा, जब देश में लोकसभा चुनाव की
पृष्ठभूमि तैयार होगी।
कार्ति को तब गिरफ्तार किया गया है, जब वे
विदेश से वापस लौटे हैं। कहा जा रहा है कि सरकार नीरव मोदी, ललित मोदी और विजय
माल्या को देश में ला नहीं पा रही है, जबकि ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर रही है, जो
देश से भागने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है। सवाल भागने या न भागने का है ही नहीं।
कोई व्यक्ति यदि देश में ही रह रहा है तो उसे कानूनी-प्रक्रिया से छूट नहीं दी जा
सकती। बहरहाल सरकार को अब साबित करना होगा कि कार्ति चिदम्बरम की गिरफ्तारी जरूरी
क्यों थी और यह आर्थिक-अपराधों के खिलाफ मुहिम का हिस्सा क्यों है।
हरिभूमि में प्रकाशित
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