Monday, February 26, 2018

पूर्वोत्तर में जागीं बीजेपी की हसरतें

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी के सामने जिन महत्वपूर्ण परीक्षाओं को पास करने की चुनौती है, उनमें से एक के परिणाम इस हफ्ते देखने को मिलेंगे। यह परीक्षा है पूर्वोत्तर में प्रवेश की। सन 2016 में असम के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता ने बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर का दरवाजा खोला था, जिसे अब वह तार्किक परिणति तक पहुँचाना चाहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता पाने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का विस्तार पूरे देश में नहीं है। दक्षिण भारत में उसकी आंशिक पहुँच है और पूर्वोत्तर में असम को छोड़ शेष राज्यों में उसकी मौजूदगी लगभग शून्य थी। असम, मणिपुर और अरुणाचल में सफलता हासिल करने के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं। इस साल पूर्वोत्तर के चार राज्य चुनाव की कतार में हैं। त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में इस महीने चुनाव हो रहे हैं। मिजोरम में साल के अंत में होगें।
त्रिपुरा में 18 फरवरी को वोट पड़ चुके हैं। अब 27 को शेष दो राज्यों में वोट पड़ेंगे। ईसाई बहुल इन दोनों राज्यों में भाजपा की असल परीक्षा है। तीनों के परिणाम 3 मार्च को घोषित होंगे। पहली बार पूर्वोत्तर की राजनीति पर देश की गहरी निगाहें हैं। वजह है वाममोर्चा और कांग्रेस के सामने खड़ा खतरा और बीजेपी का प्रवेश। इन तीनों या चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव की बुनियाद तैयार करेंगे। तीनों राज्यों में बीजेपी का हिन्दुत्व-एजेंडा ढका-छिपा है। नगालैंड में उसने जिस पार्टी के साथ गठबंधन किया है, वह ईसाई पहचान पर लड़ रही है।

बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई
इन चुनावों में सफलता के लिए बीजेपी ने पूरा जोर लगा दिया है। सामान्यतः इतने छोटे राज्यों के चुनाव में प्रधानमंत्री को प्रचार में भाग लेने की जरूरत नहीं होती। पर नरेन्द्र मोदी ने तीनों राज्यों में रैलियों को संबोधित किया है। संघ परिवार की संगठनात्मक शक्ति पूरे वेग के साथ इस चुनाव में लगी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यहाँ रैलियाँ की हैं।
सवाल है कि बीजेपी क्या पूर्वोत्तर के ईसाई बहुल समाज में प्रवेश कर पाएगी? मेघालय और नगालैंड में ईसाई समाज बहुसंख्यक है। उत्तर भारत में गोवध का विरोध करने वाली पार्टी बीफ-सेवी वोटरों के बीच है। पश्चिमी देशों का मीडिया मोदी सरकार पर आरोप लगाता रहा है कि भारत में ईसाइयों पर हमले हो रहे हैं और अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पहचान को बनाए रखने की जद्दोजेहद कर रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव मानते हैं कि पूर्वोत्तर में बीजेपी ने शून्य से शुरुआत की है। यहां के किसी भी राज्य में भाजपा की जड़ें नहीं थीं। त्रिपुरा को छोड़ असम सहित ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का ही दबदबा था।
बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर की तरह इस इलाके का प्रभार भी राम माधव को सौंपा। उन्होंने इस इलाके की राजनीतिक ताकतों, ख़ासतौर से नगालैंड में अलगाववादी समूहों के साथ बातचीत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। त्रिपुरा में पार्टी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संगठन शक्ति का सहारा लिया है और आदिवासियों के बीच जगह बनाई है। चूंकि त्रिपुरा में कांग्रेसी कार्यकर्ता ही वामपंथियों से टकरा रहे थे, इसलिए पार्टी ने उन्हें भी अपने साथ जोड़ा। इससे कांग्रेस कमजोर हुई और लगभग शून्य उपस्थिति से निकलकर बीजेपी ने वामदलों के मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में जगह बना ली।
त्रिपुरा में वाममोर्चा सरकार लम्बे अरसे से सत्ता में है। उसके खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी फैक्टर काम करेगा। यह फैक्टर कितना कारगर होगा यह अब देखना होगा। असम में मिली सफलता के बाद भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी जड़ें जमा लीं। उसकी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है दूसरे दलों के नाराज नेताओं को अपने साथ जोड़ना। असम में हेमंत बिस्वा सरमा को कांग्रेस से तोड़कर उसने भारी सफलता हासिल की है। सरमा को इन राज्यों में कांग्रेस पार्टी की कमजोरी और ताकत दोनों के बारे में अच्छी जानकारी है। कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों और तृणमूल कांग्रेस के नाराज नेताओं को भी बीजेपी तोड़कर लाई।  
ये चुनाव लोकसभा के आगामी चुनाव की पृष्ठभूमि तैयार करेंगे। पूर्वोत्तर के सात राज्यों से लोकसभा की कुल 23 सीटें हैं। इनमें 14 सीटें असम में और 9 सीटें शेष 6 राज्यों में हैं। राष्ट्रीय राजनीति में भले ही पूर्वोत्तर की प्रभावी भूमिका नहीं है, फिर भी बीजेपी देश के इस कोने को जोड़े रखना चाहती है। असम में बीजेपी के लिए मैदान आसान था, क्योंकि वहाँ बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ के कारण काफी पहले से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो चुका है। अरुणाचल और मणिपुर में पार्टी ने स्थानीय राजनीतिक समूहों के साथ जोड़-गाँठ करके कांग्रेस को अपदस्थ कर लिया है।
बीजेपी ने अपनी दीर्घकालीन रणनीति के तहत नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का गठन किया है, जिसमें पूर्वोत्तर के दस दल शामिल हैं। हालांकि पार्टी इसे राजनीतिक गठजोड़ नहीं कहती है, बल्कि इस इलाके के विकास से जुड़ा गठबंधन मानती है, पर इसमें कांग्रेस शामिल नहीं है। उसकी दिलचस्पी पहले कांग्रेस की जड़ें काटने में है।
त्रिपुरा पर निगाहें
इन तीनों राज्यों में से त्रिपुरा पर देश की निगाहें हैं। यहाँ लगातार 25 साल से वामदलों की सरकार है। अगर 1988 से 1993 तक कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को छोड़ दें तो राज्य में 1978 से लेकर अब तक वाम मोर्चा की सरकार है। वर्तमान मुख्यमंत्री माणिक सरकार 1998 से सत्ता में हैं। उनकी छवि अच्छी है, पर सरकार एंटी इनकम्बैंसी के घेरे में हैं। बंगाल की हार के बाद वाममोर्चा के पास अब त्रिपुरा और केरल ही बचे हैं। 18 फरवरी को हुए मतदान में राज्य की 60 सीटों में से 59 पर वोट डाले गए। चारिलाम विधानसभा सीट पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रमेंद्र नारायण देबबर्मा के निधन के कारण चुनाव स्थगित हो गया। वहाँ अब 12 मार्च को मतदान होगा।
वाममोर्चा सरकार के मुखिया माणिक सरकार को उम्मीद है कि जनता उन्हें पांचवीं बार राज्य की बागडोर सौंपेगी। उधर भाजपा प्रमुख अमित शाह दो-तिहाई बहुमत से जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं। पहली बार भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। पार्टी ने यहाँ आईपीएफ़टी से चुनावी गठबंधन किया है। सन 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था जिनमें से 49 की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी।
नगालैंड और मेघालय
त्रिपुरा में मतदान हो जाने के बाद अब 27 फरवरी को नगालैंड और मेघालय में मतदान होगा। पहले अंदेशा था कि नगालैंड में चुनाव हो भी पाएगा या नहीं। बहरहाल 27 फरवरी को होने वाले चुनाव में 60 सीटों के लिए 195 उम्मीदवार मैदान में हैं। नगा समस्या के समाधान के लिए अभियान की अगुआई कर रही कोर कमिटी ऑफ नगालैंड होहोस ऐंड सिविल ऑर्गनाइजेशंस ने राजनीतिक दलों से चुनाव से अलग रहने को कहा है। चुनाव-पूर्व गठबंधनों के बावजूद चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधनों का टूटना और बनना भी सम्भव है।
नगालैंड में बहुकोणीय चुनाव होगा। बीजेपी अभी मुख्य दल बनने की स्थिति में नहीं है। अलबत्ता उसने अपने सहयोगी को बदला है। उसने नगा पीपुल्स फ्रंट की अगुआई वाले डेमोक्रेटिक अलायंस ऑफ नगालैंड के साथ अपना 15 वर्ष पुराना संबंध तोड़कर कुछ समय पहले बनी नगालैंड डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल पार्टी के साथ गठबंधन किया है। बीजेपी 20 और उसकी सहयोगी पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एनडीपीपी के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री नेफिऊ रियो निर्विरोध चुन लिए गए हैं। पीए संगमा की एनपीपी  मणिपुर में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में सहयोगी है, लेकिन मेघालय विधानसभा चुनाव में अकेले खड़ी है। नगा पीपुल्स फ्रंट ने 58 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। नेशनल पीपुल्स पार्टी ने एनपीएफ के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है।
इस राज्य में धर्म महत्वपूर्ण मुद्दा है। एनपीएफ के अध्यक्ष लिजिएत्सु ने किसी भी कीमत पर ईसाई पहचान की सुरक्षा करने को कहा है। उनका कहना है कि बीजेपी सरकार के कार्यकाल में ईसाइयों के कष्ट बढ़े हैं। उधर भाजपा के सहयोगी दल नगालैंड डेमोक्रेटिक प्रोगेसिव पार्टी का कहना है कि अगर ईसाइयों की पहचान को ख़तरा हुआ तो वह गठबंधन से अलग हो जाएगी। चुनाव में नगालैंड बैप्टिस्ट चर्च कौंसिल ने भाजपा को वोट न करने की अपील की है। कौंसिल का कहना है कि भाजपा का हिंदुत्व एजेंडा 90 फ़ीसदी से अधिक ईसाई जनसंख्या वाले नगालैंड की पहचान के लिए ख़तरा है। जबकि निफ्यू रियो ने दावा किया कि इस गठबंधन में ईसाइयों के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं होगा।
ईसाई प्रदेश में हिन्दुत्व
मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 6 मार्च तक है। यहाँ मुकुल संगमा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है, पर अब वह लड़खड़ाती नजर आ रही है। एंटी इनकम्बैंसी और कई नेताओं के पार्टी छोड़ने के कारण वह संकट में है। सन 2013 के चुनाव में कांग्रेस को यहाँ से 29 सीटें मिली थीं, 13 निर्दलीय सदस्य भी जीते थे। उस चुनाव में बीजेपी का अता-पता नहीं था। पर इस बार बीजेपी पूरी तैयारी के साथ चुनाव मैदान में है।
पीए संगमा की पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और बीजेपी से कांग्रेस को कड़ी चुनौती मिल रही है। ईसाई बहुल राज्य में बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा हल्का है। बीजेपी ने यहां पर बीफ के मुद्दे से भी परहेज किया है। विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के आठ विधायक उससे अलग हो गए। इनमें से पांच ने एनपीपी, एक बीजेपी और एक ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट का दामन थामा। एक विधायक ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-02-2018) को ) "होली के ये रंग" (चर्चा अंक-2895) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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