बादल छँटने के बाद अर्थव्यवस्था की वास्तविकता से सामना हिंदू में केशव का कार्टून |
सरकार अब काम-काज के मोड में आ रही है। शपथ-ग्रहण समारोह के बाद दक्षेस के सात देशों और मॉरिशस के प्रतिनिधियों के आगमन ने माहौल को सरगर्म बना दिया। खासतौर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की यात्रा से विमर्श का स्तर अच्छा हो गया। भारतीय मीडिया में पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने आकर इस बातचीत को सार्थक बनाया। लगता है भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सरकारें मीडिया की बातों को घुमाने की प्रवृत्ति से घबराती हैं। कल विदेश सचिव सुजाता सिंह जिस तरह शब्दों को चुन-चुनकर बोल रहीं थीं, उससे लगता था कि उन्हें इस बात की घबराहट थी कि कहीं कुछ गलत मुँह से न निकल जाए। नवाज शरीफ ने अपना बयान पढ़कर सुनाया। उनकी ब्रीफिंग में सवाल-जवाब नहीं हुए। पर इतना तय है कि कुछ होता हुआ लग रहा है। क्या यह सरकार काम करेगी? इस बात के जवाब के लिए कुछ समय इंतज़ार करें, पर स्मृति ईरानी की पढ़ाई और जितेन्द्र सिंह के अनुच्छेद 370 वाले बयान ने विवादों की शुरूआत कर दी है। मीडिया से अपेक्षा थी कि वह वह कुछ महत्वपूर्ण नेताओं की शिक्षा के बारे में बताता मसलन के कामराज, जयललिता, राबड़ी देवी या सोनिया गांधी की शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया जाता। उपरोक्त नेताओं ने समय आने पर अपनी योग्यता को साबित किया। इस सरकार से काले धन को लेकर अपेक्षाएं हैं और कैबिनेट ने एक विशेष जाँच दल बनाने का फैसला किया है। रोचक बात है कि पिछली यूपीए सरकार ने सत्ता में आखिरी दिन तक इस जाँच दल को बनाने का विरोध किया था। सरकार ने पहला कदम उठाया है इसकी तार्किक परिणति सामने आने में समय लगेगा। देखना है कि स्विस सरकार के साथ सूचनाएं देने वाले समझौते की स्थिति क्या है। आज के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेसन की खबर अच्छी है कि स्मृति, अरुण और निर्मला के नामों की चर्चा क्यों हो रही है।
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