सन 1983 में लखनऊ से नवभारत टाइम्स का औपचारिक रूप से पहला अंक अक्टूबर में निकल गया था, टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ। पर वास्तव में पहला अंक नवम्बर में निकला था। उस वक्त तक नवभारत भारत टाइम्स को लेकर टाइम्स ग्रुप में कोई बड़ा उत्साह नहीं था। हिन्दी की व्यावसायिक ताकत तब तक स्थापित नहीं थी। हालांकि सम्भावनाएं उस समय भी नजर आती थीं। बहरहाल इसी ब्रैंड नाम का अखबार फिर से लखनऊ से निकला है तो जिज्ञासा बढ़ी है। अखबार का अपने समाज से रिश्ता और उसका कारोबार दोनों मेरी दिलचस्पी के विषय हैं। मैं चाहता हूँ कि लखनऊ के मेरे मित्र नवभारत टाइम्स और हिन्दी पत्रकारिता पर मेरी जानकारी बढ़ाएं। आभारी रहूँगा।
पिछले साल अक्टूबर में टाइम्स हाउस ने कोलकाता से एई समय नाम से बांग्ला अखबार शुरू किया था। हिन्दी और बांग्ला के वैचारिक परिवेश को परखने में टाइम्स हाउस की व्यावसायिक समझ एकदम ठीक ही होगी। मेरा अनुमान है कि लखनऊ में टाइम्स हाउस ने पत्रकारिता को लेकर उन जुम्लों का इस्तेमाल नहीं किया होगा, जो कोलकाता में किया गया। हिन्दी इलाके के लोगों के मन में अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य और पत्रकारिता के प्रति चेतना दूसरे प्रकार की है। वे भविष्य-मुखी, करियर-मुखी और चमकदार जीवन-पद्धति के कायल हैं। कोलकाता में एई समय से पहले आनन्द बाजार पत्रिका ने एबेला नाम से एक टेब्लॉयड शुरू किया था। इसकी वजह वही थी जो लखनऊ में है। कोलकाता में भी टेब्लॉयड संस्कृति जन्म ले रही है। टाइम्स ऑफ इंडिया बांग्ला टेब्लॉयड मनोवृत्ति का पूरी तरह दोहन करे उससे पहले आनन्द बाजार ने चटख अखबार निकाल दिया।
लखनऊ के नवभारत टाइम्स में मेरी दिलचस्पी सिर्फ इतने भर में है कि वह अपनी मार्केटिंग समझ और डीप पॉकेट से स्थानीय अखबारों पर कितना असर डालता है। दरअसल वह जिस प्रकार की समझ लेकर आया है उसमें विचार और समाचार से ज्यादा कारोबारी समझ प्रभावशाली है। उसका मुकाबला जिन अखबारों से है वे सबके सब एक अर्से से नवभारत टाइम्स की नकल कर रहे हैं। पिछले साल कोलकाता से एई समय शुरू होने पर मैने जो ब्लॉग पोस्ट लिखी थी उसके कुछ अंश मैं नीचे दे रहा हूँ। उसका महत्वपूर्ण पहलू था टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटोरियल डायरेक्टर जयदीप बोस की ओर से एक विशेष आलेख था। मुझे नहीं लगता कि लखनऊ के टाइम्स में ऐसा कोई आलेख आज नवभारत टाइम्स के बाबत छपा होगा। दिल्ली के टाइम्स में तो दिखाई नहीं पड़ा। लखनऊ के नवभारत टाइम्स में आज सुधीर मिश्र का जो सम्पादकीय आलेख छपा है वह आप यानी पाठक को सम्बोधित है। पर यह पाठक ग्राहक और उपभोक्ता जैसा लगता है, नागरिक जैसा नहीं। और जैसा कि हो रहा है मीडिया इस देश के नागरिकों को उपभोक्ता बनान चाहता है। इन सपनों में दोष नहीं है, पर सपनों को सच बनाने वाली व्यवस्था की आड़ में उसी आप से विश्वासघात करने वाली प्रवृत्तियाँ भी प्रवेश कर रहीं है। उनके बारे में मुख्यधारा के मीडिया ने लिखना-पढ़ना बंद कर दिया है। कोई वजह थी कि नवभारत टाइम्स को संस्करण जारी कराने के लिए मुख्यमंत्री की जरूरत पड़ी। या फिर उन्हें प्रसून जोशी की मदद लेनी पड़ी।
आज दिल्ली के NBT में जो खबर इस सिलसिले में छपी है उसके साथ तीन तस्वीरें हैं। तीनों के केन्द्रीय पात्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं। अलबत्ता मुख्य तस्वीर में टाइम्स ग्रुप के सीईओ रवि धारीवाल और प्रसून जोशी की तस्वीर भी है। अब सम्पादकीय विभाग के मुखौटों को दिखाने का चलन नहीं है। सो इन तस्वीरों से पता नहीं लगता। हाँ नवभारत टाइम्स की वैबसाइट में कुछ तस्वीरे फ्यूचर नाव कार्यक्रम के सिलसिले में छपी हैं। हो सकता है कुछ समय बाद नवभारत टाइम्स की दिशा कुछ बदले क्योंकि लखनऊे कितना ही अपने को प्रगतिशील समझे दिल्ली के मुकाबले तो पिछड़ा ही है। सो हो सकता है वह NBT की भाषा नीति को पचा न पाए। पता नहीं अभी भाषा नीति क्या है, पर मेरी इच्छा जल्द से जल्द NBT Lko देखने की है।
नीचे की पंक्तियाँ एई समय के लांच के बाद की हैं। उनका लखनऊ से सीधे कोई रिश्ता नहीं है, पर आप चाहें तो खोज सकते हैं।
एई समय को शुरू करने की घोषणा टाइम्स ऑफ इंडिया के अंग्रेजी अखबार में उनके एडिटोरियल डायरेक्टर जयदीप बोस की ओर से एक विशेष आलेख लिखा गया, जिसमें कहा गया हैः-
टाइम्स ऑफ इंडिया में एई समय की घोषणा |
It's been half a century since we launched an Indian language newspaper; so much has flowed between our banks in that time. The Group's flagship, The Times of India, today enjoys the stature that comes with being the world's largest-circulated English language daily; The Economic Times dominates the business space; and the young-and-restless Mumbai Mirror has in quick time established itself as the country's highest-selling tabloid. Our language papers, too, are No.1 in their principal markets: Marathi in Mumbai, Hindi in Delhi and Kannada in Bangalore.
And yet, there's something very special about the launch of Ei Samay. This is a moment we have long dreamed of: an opportunity to start a conversation with one of the world's most culturally evolved people in their own mellifluous tongue. Adda, after all, is untranslatable, and now with Ei Samay, we won't need to translate it.
Ei Samay will open the windows to brave new thoughts and trends from around the globe even as it celebrates the best of Bengal. It will be intelligent, enlightened and insightful without being dense or inaccessible. It will probe beyond the pedestrian 'when', 'where' and 'what' to ask 'why' and 'how'. It will bring alive the drama and excitement of social, economic and political life by providing context and perspective, nuance and texture. It will track a society in transition and anticipate critical inflection points so that its readers are better prepared for tomorrow's world today.
It will not sugarcoat the truth, however bitter - almost every big story that has grabbed national headlines in the last three years has been broken by The Times of India. But it will also shine the light on tales of hope and heroism, because there is an army of remarkable people out there doing wonderful deeds to change the lives of the less-privileged, often without any expectation of gain or recognition.
When we launched The Times of India in Chennai a few years ago, we were often asked, "What took you so long?" Our answer was, "Chennai's had an established local newspaper for so many years that we weren't sure we would be accepted." Our apprehensions turned out to be unfounded - we were overwhelmed by the welcome we received.
नवभारत टाइम्स और एई समय में कुछ सांस्कृतिक भेद भी है। बांग्लाभाषियों के लिए जयदीप बोस की धारणा है कि वे one of the world's most culturally evolved people in their own mellifluous tongue होते हैं। दिल्ली के नवभारत टाइम्स की भाषा नीति बताती है कि हिन्दी लोगों का अपना भाषा से स्नेह नहीं है। कम से कम बाज़ार यही बताता है। एई समय यंगिस्तान की बांग्ला भाषा का इस्तेमाल करेगा या नहीं यह देखने की बात होगी।
अखबार अपने आगमन की घोषणाएं अक्सर सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक बदलावों के ध्वजवाहक के रूप में करते हैं, पर अंततः एक व्यावसायिक कर्म तक सीमित रह जाते हैं। समीर और विनीत जैन मार्केटिंग और बिजनेस में सफल साबित हुए हैं, पर टाइम्स हाउस के हिस्से अनेक ऐसी बातें भी हैं, जो पत्रकारिता के लिहाज से मूल्यवान नहीं हैं। पत्रकारिता मूलतः प्रभाव और रसूख को बेचना है। विनीत जैन को न्यूयॉर्कर के 8 अक्टूबर के अंक में मीडिया क्रिटिक केन ऑलेटा ने उद्धृत करते वक्त तत्व की बात को ध्यान में रखा। ऑलेटा ने लिखा है, " Vineet Jain told me on a recent afternoon. "We don't go by the traditional way of doing business. We're not in the newspaper business, we are in the advertising business.... If I say I am in the news business, then you'll not do shampoo. If I say I'm in the news business, then you won't do entertainment supplements. If you are editorial minded, you will make all the wrong decisions."
लखनऊ NBT आप यहां देख सकते हैं - http://epaper.navbharattimes.com
ReplyDeleteहिन्दी की हर बिन्दी सुन्दर दिखती है।
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