Sunday, August 25, 2019

मोदी के मित्र और सुधारों के सूत्रधार जेटली


भारतीय जनता पार्टी के सबसे सौम्य और लोकप्रिय चेहरों में निश्चित रूप से अरुण जेटली को शामिल किया जा सकता है, पर वे केवल चेहरा ही नहीं थे. वैचारिक स्तर पर उनकी जो भूमिका थी, उसे झुठलाया नहीं जा सकता. पार्टी और खासतौर से नेतृत्व के नजरिए से देखें, तो यह मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति दिलाने में सबसे बड़ी भूमिका उनकी रही. हालांकि उनके राजनीतिक जीवन का काफी लम्बा समय नरेंद्र मोदी की राजनीति से पृथक रहा, पर कुछ महत्वपूर्ण अवसरों पर उन्होंने निर्णायक भूमिका अदा की. दुर्भाग्य से उनका देहावसान असमय हो गया, अन्यथा उनके सामने एक बेहतर समय आने वाला था. 
सन 2002 में गुजरात के दंगे जब हुए, तब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने ही बने थे. उनके पास प्रशासनिक अनुभव बहुत कम था. दंगों के कारण उत्पन्न हुई बदमज़गी के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि मोदी को राजधर्म का निर्वाह करना चाहिए. यह एक प्रकार से नकारात्मक टिप्पणी थी. पर्यवेक्षकों का कहना है कि अटल जी चाहते थे कि मोदी मुख्यमंत्री पद छोड़ दें, क्योंकि गुजरात के कारण पार्टी की नकारात्मक छवि बन रही थी. मोदी के समर्थन में लालकृष्ण आडवाणी थे, पर लगता था कि वे अटल जी को समझा नहीं पाएंगे.
नरेंद्र मोदी का व्यावहारिक राजनीतिक जीवन तब शुरू हुआ ही था. हालांकि वे संगठन के स्तर पर काफी काम कर चुके थे, पर प्राशासनिक स्तर पर उनका अनुभव कम था. उनकी स्थिति जटिल हो चुकी थी. यदि वे इस तरह से हटे, तो अंदेशा यही था कि समय की धारा में वे पिछड़ जाएंगे. ऐसे वक्त पर अरुण जेटली ने मोदी का साथ दिया. बताते हैं कि वे वाजपेयी जी को समझाने में न केवल कामयाब रहे, बल्कि मोदी के महत्वपूर्ण सलाहकार बनकर उभरे. वे अंतिम समय तक नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी सलाहकारों में से एक रहे.

आर्थिक सुधारों के सूत्रधार जेटली


इस बात को निःसंकोच कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को केवल आर्थिक मामलों में ही नहीं, हर तरह के विषयों में अरुण जेटली का काफी सहारा था। एनडीए सरकार के पहले दौर में अनेक मौकों पर सरकार का पक्ष सामने रखने के लिए उन्हें खड़ा किया गया। राज्यसभा में अल्पमत होने के कारण सरकार के सामने जीएसटी और दिवालिया कानून को पास कराने की चुनौती थी, जिसपर पार पाने में जेटली को सफलता हासिल हुई। ये दो कानून आने वाले समय में मोदी सरकार की सफलता के सूत्रधार बनेंगे। खासतौर से जीएसटी को लेकर जेटली ने विभिन्न राज्य सरकारों को जितने धैर्य और भरोसे के साथ आश्वस्त किया वह साधारण बात नहीं है।
इस साल मई में जब नई सरकार का गठन हो रहा था, अरुण जेटली ने जब कुछ समय के लिए कोई सरकारी पद लेने में असमर्थता व्यक्त की थी, तभी समझ में आ गया था कि समस्या गंभीर है। जून, 2013 में जब बीजेपी के भीतर प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी को लेकर विवाद चल रहा था, जेटली ने खुलकर मोदी का साथ दिया। बीजेपी और कांग्रेस के बीच जब भी महत्वपूर्ण मसलों पर बहस चली, जेटली ने पार्टी का वैचारिक पक्ष बहुत अच्छे तरीके से रखा। मोदी सरकार बनने के बाद उन्होंने न केवल वित्तमंत्री का पद संभाला, बल्कि जरूरत पड़ने पर रक्षा और सूचना और प्रसारण मंत्रालय की बागडोर भी थामी। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी मंत्री रहे। उन्होंने वाणिज्य और उद्योग, विधि, कम्पनी कार्य तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाले। वे सन 2009 से 2014 तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।

Saturday, August 24, 2019

‘नकद को ना’ यानी डिजिटल भुगतान की दिशा में बढ़ते कदम


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले के प्राचीर से अपने राष्ट्रीय संबोधन में कहा कि देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है। उन्होंने कहा कि दुकानों पर डिजिटल पेमेंट को 'हाँ', और नकद को 'ना' के बोर्ड लगाने चाहिए। सामान्य व्यक्ति को भले ही यह समझ में नहीं आता हो कि भुगतान की इस प्रणाली से अर्थव्यवस्था को मजबूती किस प्रकार मिलती है, फिर भी व्यक्तिगत रूप से उसे पहली नजर में यह प्रणाली सुविधाजनक लगती है। इसमें एक तो बटुए में पैसा भरकर नहीं रखना पड़ता। साथ ही बटुआ खोने या जेबकतरों का शिकार होने का डर नहीं। नोटों के भीगने, कटने-फटने और दूसरे तरीकों से नष्ट होने का डर भी नहीं। रेज़गारी नहीं होने पर सही भुगतान करने और पैसा वापस लेने में भी दिक्कतें होती हैं। और पर्याप्त पैसा जेब में नहीं होने के कारण कई बार व्यक्ति भुगतान से वंचित रह जाता है।

Friday, August 23, 2019

राफेल के आने से रक्षा-परिदृश्य बदलेगा


इस महीने के पहले हफ्ते से चल रहा घटनाक्रम देश की विदेश और रक्षा नीति के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के बाद सरकार ने राज्य के पुनर्गठन की घोषणा की है, जो अक्तूबर से लागू होगा. पर उसके पहले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को अपनी नीतियों को प्रभावशाली तरीके से रखना होगा. इस लिहाज से एक परीक्षा सुरक्षा परिषद की बैठक के रूप में हो चुकी है. 
अब प्रधानमंत्री फ्रांस, यूएई और बहरीन की यात्रा पर गए हैं. इस दौरान वे दो बार फ्रांस जाएंगे. वे 22-23 को द्विपक्षीय संबंधों पर बात करेंगे और फिर 25-26 को जी-7 की बैठक में भाग लेंगे. यह पहला मौका है, जब जी-7 की बैठक में भारत को बुलाया गया है. इसकी बड़ी वजह आर्थिक है, पर इस मौके पर भारत को अपनी कश्मीर नीति के पक्ष में दुनिया का ध्यान खींचना होगा.

Monday, August 19, 2019

हांगकांग ने किया चीन की नाक में दम

हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले तीन महीने से यहाँ के निवासी सरकार-विरोधी आंदोलन चला रहे हैं। पिछले हफ्ते पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच कई झड़पे हैं हुई हैं। पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे। इस ‘नगर-राज्य’ की सीईओ कैरी लाम ने चेतावनी दी है कि अब कड़ी कार्रवाई की जाएगी। प्रेक्षक पूछ रहे हैं कि कड़ी कार्रवाई माने क्या?

चीन ने धमकी दी है कि यदि हांगकांग प्रशासन आंदोलन को रोक पाने में विफल रहा, तो वह इस मामले में सीधे हस्तक्षेप भी कर सकता है। यह आंदोलन ऐसे वक्त जोर पकड़ रहा है, जब चीन और अमेरिका के बीच कारोबारी मसलों को लेकर जबर्दस्त टकराव चल रहा है। शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हुए प्रदर्शन के दौरान कुछ आंदोलनकारी अमेरिकी झंडे लहरा रहे थे।

चीन के सरकारी मीडिया का आरोप है कि इस आंदोलन के पीछे अमेरिका का हाथ है। चीनी मीडिया ने एक हांगकांग स्थित अमेरिकी कौंसुलेट जनरल की राजनीतिक शाखा प्रमुख जूली ईडे की एक तस्वीर प्रसारित की है, जिसमें वे एक होटल की लॉबी में आंदोलनकारी नेताओं से बात करती नजर आ रही हैं। इनमें 22 वर्षीय जोशुआ वांग भी है, जो सरकार विरोधी आंदोलन का मुखर नेता है। चायना डेली और दूसरे अखबारों ने इस तस्वीर को छापने के साथ यह आरोप लगाया है कि आंदोलन के पीछे अमेरिका का ‘काला हाथ’ है।

क्या चीन करेगा हस्तक्षेप?

हांगकांग से निकलने वाले चीन-समर्थक अखबार ‘ताई कुंग पाओ’ ने लिखा है कि जूली ईडे इराक में ऐसी गतिविधियों में शामिल रही हैं। चीन के सरकारी सीसीटीवी का कहना है कि सीआईए ऐसे आंदोलनों को भड़काता रहता है। चीन सरकार आगामी 1 अक्तूबर को कम्युनिस्ट क्रांति की 70वीं वर्षगाँठ मनाने जा रही है। हांगकांग का आंदोलन समारोह के माहौल को बिगाड़ेगा, इसलिए सरकार आंदोलन को खत्म कराना चाहती है। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हांगकांग प्रशासन अनुरोध करेगा, तो चीन सरकार सीधे हस्तक्षेप कर सकती है। चीन को अंदेशा है कि हांगकांग में चल रही लोकतांत्रिक हवा कहीं चीन में न पहुँच जे। चीन सरकार पश्चिमी मीडिया की विरोधी है। चीन में गूगल, यूट्यूब और ट्विटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर पूरी तरह पाबंदी है।