अच्छी बात यह है कि
गुरुवार को प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की बातचीत में बदमज़गी नहीं थी। इस
बैठक में राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री ऐसे थे, जो 221 दिन से 436 दिन तक कैद
में रहे। उनके मन में कड़वाहट जरूर होगी। वह कड़वाहट इस बैठक में दिखाई नहीं पड़ी।
बेशक इससे बर्फ पिघली जरूर है, पर आगे का रास्ता आसान नहीं है।
इस बातचीत पहले देश
के प्रधानमंत्री के साथ कश्मीरी नेताओं की वार्ता का एक उदाहरण और है। 23 जनवरी
2004 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कश्मीर के (हुर्रियत के)
अलगाववादी नेताओं की बात हुई थी। तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने
उन्हें बुलाया था। उस बातचीत के नौ महीने पहले अटल जी ने श्रीनगर की एक सभा में ‘इंसानियत,
जम्हूरियत और कश्मीरियत’ का संदेश दिया
था।
पाकिस्तान की कश्मीर-योजना
तब में और अब में परिस्थितियों में गुणात्मक परिवर्तन आया है। कश्मीरी
मुख्यधारा की राजनीति के सामने भी अस्तित्व का संकट है और दिल्ली में जो सरकार है,
वह कड़े फैसले करने को तैयार हैं। दोनों पक्षों के पास टकराव का एक अनुभव है।
समझदारी इस बात में है कि दोनों अब आगे का रास्ता समझदारी के साथ तय करें। हालात
को सुधारने में पाकिस्तान की भूमिका भी है। भारत-द्वेष की कीमत भी उन्हें चुकानी
होगी। सन 1965 के बाद से पाकिस्तान ने कश्मीर को जबरन हथियाने का जो कार्यक्रम
शुरू किया है, उसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच गई है।
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार
यदि एक प्लेटफॉर्म पर आकर आर्थिक सहयोग करें तो यह क्षेत्र चीन की तुलना में कहीं
ज्यादा तेजी से विकास कर सकता है। यह सपना है, जो आसानी से साकार हो सकता है। इसके
लिए सभी पक्षों को समझदारी से काम करना होगा।
एकीकरण की जरूरत
गत 18 फरवरी को नरेंद्र मोदी ने चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान दक्षिण
एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच डॉक्टरों, नर्सों और एयर एंबुलेंस की निर्बाध आवाजाही के लिए क्षेत्रीय
सहयोग योजना के संदर्भ में कहा था कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए
अधिक एकीकरण महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ ‘कोविड-19
प्रबंधन, अनुभव और आगे
बढ़ने का रास्ता’ विषय पर एक कार्यशाला में उन्होंने यह बात कही। इस बैठक में
मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत के रुख का समर्थन किया। बैठक में यह भी कहा
गया कि ‘अति-राष्ट्रवादी मानसिकता मदद नहीं करेगी।’ पाकिस्तान ने कहा कि वह इस
मुद्दे पर किसी भी क्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा होगा।
मोदी ने कहा, महामारी के
दौरान देखी गई क्षेत्रीय एकजुटता की भावना ने साबित कर दिया है कि इस तरह का
एकीकरण संभव है। कई विशेषज्ञों ने घनी आबादी वाले एशियाई क्षेत्र और इसकी आबादी पर
महामारी के प्रभाव के बारे में विशेष चिंता व्यक्त की थी, लेकिन हम एक समन्वित प्रतिक्रिया के साथ इस चुनौती सामना
कर रहे हैं। इस बैठक और इस बयान के साथ पाकिस्तानी प्रतिक्रिया पर गौर करना बहुत
जरूरी है। कोविड-19 का सामना करने के लिए भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी इन दिनों
खासतौर से चर्चा का विषय है। इस वक्तव्य के एक हफ्ते बाद 25 फरवरी को भारत और
पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम
की घोषणा की।