Sunday, July 8, 2018

कैंसर, एक रोग और एक लक्षण


हाल में खबर मिली है कि फिल्म अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे कैंसर की बीमारी से जूझ रही हैं। उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस बारे में जानकारी दी है कि मुझे हाईग्रेड मेटास्टेटिस कैंसर है। उनकी इस पोस्ट के बाद काफी लोग जानना चाहते हैं कि यह कैसा कैंसर है और कितना खतरनाक है। मेटास्टेटिस कैंसर का मतलब यह है कि शरीर में किसी एक जगह कैंसर के सेल मौजूद नहीं हैं। जहां से कैंसर की उत्पत्ति हुई, उससे शरीर के दूसरे अंग में वह फैल चुका है। सोनाली न्यूयॉर्क में अपना इलाज करवा रही हैं। बॉलीवुड एक्टर इरफान खान भी कैंसर से जूझ रहे हैं। वे कुछ महीनों से लंदन में इलाज करा रहे हैं। अमेरिकी कंप्यूटर कंपनी एपल के सह-संस्थापक स्टीव जॉब्स का कैंसर से लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद कुछ साल पहले निधन हो गया।

हॉलीवुड अभिनेत्री जेन फोंडा से लेकर सीएनएन के मशहूर शो के प्रस्तोता लैरी किंग तक इस बीमारी के शिकार हुए हैं। बॉलीवुड के अभिनेता राजेश खन्ना और विनोद खन्ना इसके शिकार थे। हाल में संजय दत्त पर बनी बायोपिक फिल्म संजू में कैंसर से लड़ती नर्गिस दत्त का जिक्र था। संयोग से फिल्म में नर्गिस की भूमिका में फिल्म अभिनेत्री मनीषा कोईराला भी कैंसर से पीड़ित रही हैं। फिल्म निर्देशक अनुराग बसु, अभिनेत्री लीजा रे और मुमताज से लेकर क्रिकेटर युवराज सिंह भी कैंसर से पीड़ित हो चुके हैं। बहुत से मामलों में लोग कैंसर के खिलाफ लड़ाई में जीतकर वापस लौटे हैं, पर यह बीमारी ऐसी है, जिसका नाम सुनते ही दिल काँपता है।

Wednesday, July 4, 2018

सोशल मीडिया की दुधारी तलवार

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने वॉटसएप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को आगाह किया है कि वे अफवाहबाज़ी को रोकने में आगे आएं. उनका यह कदम ठीक है, पर व्यावहारिक सच यह है कि वॉटस्एप सिर्फ औजार है. असली जिम्मेदार वे लोग हैं, जो इसका इस्तेमाल नकारात्मक कार्यों के लिए कर रहे हैं. वे अपराधी हैं और इन अफवाहों से प्रेरित-प्रभावित होकर हिंसा पर उतारू उन्मादी भीड़ भी अपराधी है. इस पागलपन को रोकने के लिए सरकार को कड़ा संदेश देना चाहिए. आने वाले समय में तकनीक सामाजिक व्यवस्था को और भी खोलने जा रही है. वह अब सामान्य व्यक्ति को आसानी से और कम खर्च पर भी उपलब्ध होगी. लोकतांत्रिक-व्यवस्था के संचालन और सामाजिक जीवन को पारदर्शी बनाने के लिए इसकी जरूरत भी है, पर व्यक्ति के निजी जीवन और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा भी होनी चाहिए. इसके लिए राज्य और सामाजिक व्यवस्था को सोचना चाहिए. 
चाकू डॉक्टर के हाथ में हो, तो वह जान बचा सकता है. गलत हाथ में हो, तो जान ले लेता है. सोशल मीडिया पर भी यह बात लागू होती है. ग्रामीण इलाकों में चेतना फैलाने और सामाजिक कुरीतियों से लड़ने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं. हाल में खबरें थीं कि कश्मीर के डॉक्टरों का एक समूह वॉट्सएप के जरिए हृदय रोगों की चिकित्सा के लिए आपसी विमर्श का सहारा लेता है. वहीं कश्मीर के आतंकी गिरोह अपनी गतिविधियों को चलाने और किशोरों को भड़काने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं.
हाल में असम, ओडिशा, गुजरात, त्रिपुरा, बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से खौफनाक आईं हैं. ज्यादातर मामले झूठी खबरों से जुड़े हैं, जिनके फैलने से उत्तेजित भीड़ ने हत्याएं कर दीं. ऐसे मामलों की संख्या भी काफी बड़ी है, जिनमें मौत नहीं हुईं, पर लोगों को पीटा गया. बहुत सी खबरें पुलिस की जानकारी में आईं भी नहीं. जिस तरह सन 2012 में रेप के खिलाफ जनांदोलन खड़ा हुआ था, लिंचिंग के खिलाफ वैसा आंदोलन भी खड़ा नहीं होने वाला. ज्यादातर मरने वाले गरीब लोग हैं.

Sunday, July 1, 2018

'हवा का बदलता रुख' और कांग्रेस


हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरने के वक्त विरोधी दलों की एकता के दो रूप एकसाथ देखने को मिले। एक तरफ ममता बनर्जी समेत चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने धरने का समर्थन किया, वहीं कांग्रेस पार्टी ने न केवल उसका विरोध किया, बल्कि सार्वजनिक रूप से अपनी राय को व्यक्त भी किया। इसके बाद फिर से यह सवाल हवा में है कि क्या विरोधी दलों की एकता इतने प्रभावशाली रूप में सम्भव होगी कि वह बीजेपी को अगले चुनाव में पराजित कर सके।

सवाल केवल एकता का नहीं नेतृत्व का भी है। इस एकता के दो ध्रुव नजर आने लगे हैं। एक ध्रुव है कांग्रेस और दूसरे ध्रुव पर ममता बनर्जी के साथ जुड़े कुछ क्षेत्रीय क्षत्रप। दोनों में सीधा टकराव नहीं है, पर अंतर्विरोध है, जो दिल्ली वाले प्रसंग में मुखर हुआ। इसके अलावा कर्नाटक सरकार की कार्यशैली को लेकर भी मीडिया में चिमगोइयाँ चल रहीं हैं। स्थानीय कांग्रेस नेताओं और जेडीएस के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बीच मतभेद की बातें हवा में हैं। पर लगता है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में किसी किस्म की छेड़खानी करने के पक्ष में नहीं है। उधर बिहार से संकेत मिल रहे हैं कि नीतीश कुमार और कांग्रेस पार्टी के बीच किसी स्तर पर संवाद चल रहा है।

Thursday, June 21, 2018

विरोधी-एकता के अंतर्विरोध

पिछले शनिवार को चार गैर-भाजपा राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट के सदस्यों के धरने का समर्थन करके कांग्रेस पार्टी के नाम बड़ा संदेश देने की कोशिश की थी। इस कोशिश ने विरोधी-एकता के अंतर्विरोधों को भी खोला है। नीति आयोग की बैठक में शामिल होने आए, इन चार मुख्यमंत्रियों में केवल एचडी कुमारस्वामी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। ममता बनर्जी, पिनाराई विजयन और चंद्रबाबू नायडू अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के प्रतिस्पर्धी हैं। इतना ही नहीं, पिनाराई विजयन की पार्टी बंगाल में ममता बनर्जी की मुख्य प्रतिस्पर्धी है। सवाल है कि क्या इन पार्टियों ने अपने परस्पर टकरावों पर ध्यान क्यों नहीं दिया? क्या उन्हें यकीन है कि वे इन अंतर्विरोधों को सुलझा लेंगे?

हालांकि इस तरफ किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, पर वस्तुतः इन चारों ने दिल्ली में कांग्रेस की प्रतिस्पर्धी पार्टी का समर्थन करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। विरोधी दलों की एकता के दो आयाम हैं। एक, कांग्रेस-केंद्रित एकता और दूसरी क्षेत्रीय क्षत्रप-केंद्रित एकता। दिल्ली में आम आदमी पार्टी खुद को गैर-भाजपा विपक्ष की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित कर रही है, वहीं कांग्रेस उसे बीजेपी की ‘बी’ टीम मानती है। दोनों बातों में टकराव है।

Wednesday, June 20, 2018

कश्मीर में एक अध्याय का खत्म होना


इसे संकट भी कह सकते हैं और सम्भावना भी. राज्य में जो हालात थे, उन्हें देखते हुए इस सरकार को घसीटने का कोई मतलब नहीं था. बेशक राष्ट्रपति शासन के मुकाबले लोकतांत्रिक सरकार की उपादेयता ज्यादा है, पर सरकार डेढ़ टाँग से नहीं चलेगी. जम्मू कश्मीर में तीन साल पुराना पीडीपी-भाजपा गठबंधन टूट गया है. पिछले तीन साल में कई मौके आए, जब गठबंधन टूट सकता था. इतना साफ है कि रमजान के महीने के युद्धविराम की विफलता के कारण वहाँ सरकार को हटना पड़ा. युद्धविराम से उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. सवाल है कि सरकार अब क्या करेगी? क्या कठोर कार्रवाई के रास्ते पर जाएगी या बातचीत की राह पकड़ेगी? उम्मीद करें कि जो भी होगा, बेहतर होगा.

सरकार से इस्तीफा देने के बाद महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमारे गठबंधन का बड़ा मकसद था. हमने सब कुछ किया. हमारी कोशिश से प्रधानमंत्री लाहौर तक गए. हमने राज्य की विशेष स्थिति को बनाए रखा. हमने कोशिश की कि सूबे में हालात बेहतर बनें. पर यहाँ जोर-जबर्दस्ती की नीति नहीं चलेगी. महबूबा के शब्दों में बीजेपी के प्रति किसी प्रकार की कटुता नहीं थी. उन्होंने अपने समर्थकों को समझाने की कोशिश की है कि इससे ज्यादा हम कुछ कर नहीं सकते थे.