संसद के बजट सत्र का कार्यक्रम
घोषित होते ही पहला सवाल ज़ेहन में आता है कि कैसा होगा इस साल का बजट? अगले लोकसभा चुनाव के
पहले सरकार का यह आखिरी बजट होगा. पिछले साल का बजट ऐसे दौर में आया था, जब देश
कैशलैश अर्थ-व्यवस्था की ओर कदम बढ़ा रहा था. नोटबंदी के कारण अर्थ-व्यवस्था की
गति धीमी पड़ रही थी और सरकार जीएसटी के लिए तैयार हो रही थी. अब अर्थ-व्यवस्था ने
सिर उठाना शुरू कर दिया है. क्या यह बजट इस बात का इशारा करेगा?
बजट सत्र राष्ट्रपति के
अभिभाषण से 29
जनवरी को शुरू
होगा और उसी दिन आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा. यह दस्तावेज बताता अर्थ-व्यवस्था
की सेहत कैसी है. केंद्रीय बजट में राज्यों के लिए भी कुछ संकेत होते हैं.
केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 14वें वित्तीय आयोग की संस्तुतियों के
आधार पर बढ़ गई है. सन 2014-15 में राज्यों को जीडीपी के प्रतशत के रूप में 2.7
फीसदी की हिस्सेदारी मिल रही थी, जो पिछले साल के बजट अनुमानों में 6.4 फीसदी हो
गई थी. केंद्रीय राजस्व में वृद्धि राज्यों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी खबर होती है.
जीएसटी के कारण अप्रत्यक्ष करों और नोटबंदी के कारण प्रत्यक्ष करों में किस दर से
वृद्धि हुई है, इसका पता अब लगेगा.




