इस राज़ को एक
मर्दे फिरंगी ने किया फाश/हरचंद कि दाना इसे खोला नहीं करते/जम्हूरियत एक
तर्जे हुकूमत है कि जिसमें/बंदों को गिना करते हैं तोला नहीं
करते
चुनावी
लोकतंत्र को लेकर हमारे समाज में हमेशा अचम्भे और अविश्वास का भाव रहा है। इकबाल
की ये मशहूर पंक्तियाँ लोकतंत्र की गुणवत्ता पर चोट करती हैं। पर सच यह है कि
खराबियाँ समाज की हैं, बदनाम लोकतंत्र होता है। सन 2009 की बात है किसी आपराधिक
मामले में गिरफ्तार हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना
बजरंगी का वक्तव्य अखबारों में प्रकाशित हुआ। उनका कहना था, मैं राजनीति में आना चाहता हूँ। उनकी माँ
को यकीन था कि बेटा राजनीति में आकर
मंत्री बनेगा। जौनपुर या उसके आसपास के इलाके से वे जीत भी सकते हैं।
मुन्ना बजरंगी
ही नहीं तमाम लोग राजनीति में आना चाहते हैं। लोकतांत्रिक दुनिया में एक नया
कीर्तिमान स्थापित करने वाले मधु कोड़ा अपनी पार्टी के अकेले विधायक थे। फिर भी
मुख्यमंत्री बने। उन्होंने लोकतंत्र को क्या दिया?जोनाथन स्विफ्ट ने लिखा है, 'दुनिया जिसे
राजनीति के नाम से जानती है वह केवल भ्रष्टाचार है और कुछ नहीं।' सत्रहवीं-अठारहवीं सदी के इंग्लैंड में स्विफ्ट अपने दौर के श्रेष्ठ
पैम्फलेटीयर थे। उन्होंने उस दौर की दोनों महत्वपूर्ण पार्टियों टोरी और ह्विग के
लिए पर्चे लिखे थे। वे श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक थे। अखबारों में सम्पादकीय लेखन के
सूत्रधार। कहा जा सकता है कि दुनिया के पहले सम्पादकीय लेखक थे। पर राजनीति के
बारे में उनकी इतनी खराब राय क्यों थी?