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Tuesday, June 15, 2021

वैक्सीन को पेटेंट-फ्री करने में दिक्कत क्या है?

इस साल जबसे दुनिया में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हुआ है, गरीब और अमीर देशों के बीच का फर्क पैदा होता जा रहा है। अमीर देशों में जहाँ आधी आबादी को टीका लग गया है, वहीं बहुत से गरीब देशों में टीकाकरण शुरू भी नहीं हुआ है। वैक्सीन उपभोक्ता सामग्री है, जिसकी कीमत होती है। गरीबों के पास पैसा कहाँ, जो उसे खरीदें। विश्व व्यापार संगठन के ट्रेड रिलेटेड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (ट्रिप्स) इसमें बाधा बनते हैं। दवा-कम्पनियों का कहना है कि अनुसंधान-कार्यों को आकर्षक बनाए रखने के लिए पेटेंट जरूरी है।

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्तूबर में विश्व व्यापार संगठन में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की पेशकश की थी। इसे करीब 100 देशों का समर्थन हासिल था। हालांकि अमेरिका ने केवल कोरोना-वैक्सीन पर एक सीमित समय के लिए छूट देने की बात मानी है, पर वैक्सीन कम्पनियों को इसपर आपत्ति है। यूरोपियन संघ ने भी आपत्ति व्यक्त की है।

ब्रिक्स भी आगे आया

इस महीने ब्रिक्स देशों के विदेशमंत्रियों के एक सम्मेलन में भारत और दक्षिण अफ्रीका के उस प्रस्ताव का समर्थन किया गया, जिसमें गरीब देशों के वैक्सीन देने, उनकी तकनीक के हस्तांतरण और उत्पादन की क्षमता के विस्तार में सहायता देने की माँग की गई है, ताकि इन देशों में भी बीमारी पर जल्द से जल्द काबू पाया जा सके।

यह पहला मौका है, जब ब्रिक्स देशों ने इस मामले में एक होकर अपनी राय व्यक्त की है। हालांकि अमेरिका ने शुरूआती झिझक के बाद इस सुझाव को मान लिया है, पर यूरोपियन यूनियन ने इसे स्वीकार नहीं किया है। ईयू ने गत 4 जून को डब्लूटीओ को एक प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत टीकों के वैश्विक वितरण में तेजी लाने का सुझाव है, पर उसमें लाइसेंस से जुड़े नियमों में छूट देने की सलाह नहीं है।

Monday, May 31, 2021

जोखिमों के बावजूद टीका ही हराएगा कोरोना को

एक अध्ययन से यह बात निकलकर आई है कि दसेक साल के भीतर कोविड-19 महज सर्दी-जुकाम जैसी बीमारी बनकर रह जाएगा। पुरानी महामारियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। कुछ तो गायब ही हो गईं। अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय के गणित जीव-विज्ञान के प्रोफेसर फ्रेड एडलर के अनुसार अगले दसेक साल में सामूहिक रूप से मनुष्यों के शरीर की इम्यूनिटी के सामने यह बीमारी मामूली बनकर रह जाएगी। जीव-विज्ञान से जुड़ी नवीनतम जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए इस गणितीय मॉडल के अनुसार ऐसा इसलिए नहीं होगा कि कोविड-19 की संरचना में कोई कमजोरी आएगी, बल्कि इसलिए होगा क्योंकि हमारे इम्यून सिस्टम में बदलाव आ जाएगा। यह बदलाव हमारी प्राकृतिक-संरचना करेगी और कुछ वैक्सीन करेंगी।  

जब इस बीमारी का हमला हुआ, वैज्ञानिकों ने पहला काम इसके वायरस की पहचान करने का किया। उसके बाद अलग-अलग तरीकों से इससे लड़ने वाली वैक्सीनों को तैयार करके दिखाया। वैक्सीनों के साथ दूसरे किस्म के जोखिम जुड़े हैं। टीका लगने पर बुखार आ जाता है, सिरदर्द वगैरह जैसी परेशानियाँ भी होती हैं, पर बचाव का सबसे अच्छा रास्ता वैक्सीन ही है।

कितने वेरिएंट

पिछले एक साल में हमारे शरीरों में पलते-पलते इस वायरस का रूप-परिवर्तन भी हुआ है। इस रूप परिवर्तन को देखते हुए वैक्सीनों की उपयोगिता के सवाल भी खड़े होते हैं। हाल में ब्रिटेन से जारी हुए एक प्रि-प्रिंट डेटा (जिसकी पियर-रिव्यू नहीं हुई है) के अनुसार कोरोना वायरस के दो वेरिएंट बी.1.1.7 (जो सबसे पहले ब्रिटेन में पाया गया) और बी.1.617.2 (जो सबसे पहले भारत में पाया गया) पर फायज़र और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कारगर हैं। भारत के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारे यहाँ बी.1.617 सबसे ज्यादा मिला है। बी.1.617.2 इसका ही एक रूप है।  

Sunday, May 30, 2021

दूसरी लहर की वापसी के बाद क्या?

 


अब लग रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर उतार पर है। शुक्रवार की रात के 12 बजे तक दर्ज नए संक्रमणों की संख्या 1.73 लाख और कुल एक्टिव केसों की संख्या 22 लाख के आसपास आ गई है, जो 10 मई को 37 लाख के ऊपर थी। अभी कुछ समय लगेगा, पर उम्मीद है कि भयावहता कम होगी। अब ऑक्सीजन और अस्पतालों में खाली बिस्तरे उपलब्ध हैं। बहरहाल दुनिया के सामने बड़ा सवाल है कि इस महामारी को क्या हम पूरी तरह परास्त कर पाएंगे? या तीसरी लहर भी आएगी?

संख्या में गिरावट कई राज्यों में लगाए गए लॉकडाउनों की वजह से है। अब अनलॉक होगा। हालांकि केंद्र ने पाबंदियों को 30 जून तक जारी रखने के दिशा-निर्देश दिए हैं, पर यह राज्यों पर निर्भर है कि वे कितनी छूट देंगे। दिल्ली में 31 मई के बाद कुछ गतिविधियाँ फिर से शुरू होंगी। अन्य राज्यों में इस हफ्ते या अगले हफ्तों में ऐसा ही कुछ होगा। इनमें महाराष्ट्र भी शामिल है, जहाँ कुछ समय पहले तक भयावह स्थिति थी। शायद तमिलनाडु, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में लॉकडाउन जारी रहेगा।

दूसरी लहर क्यों आई?

लॉकडाउन खुलने के बाद क्या हम एहतियात बरतेंगे? पहली लहर के बाद हम बेफिक्र हो गए थे। अब क्या होगा? तीसरी लहर का भी अंदेशा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरी लहर के पीछे केवल अनलॉक ही कारण नहीं है। पहली लहर के बाद अनलॉक पिछले साल जून-जुलाई में शुरू हुआ था। सितम्बर में गिरावट शुरू हुई, तबतक काफी अनलॉक हो चुका था। अनलॉक के बावजूद गिरावट जारी रही।

Wednesday, May 26, 2021

सवाल है वायरस कहाँ से आया?


कोविड-19 वायरस के वैश्विक-प्रसार का डेढ़ साल पूरा होने के बाद यह चर्चा फिर से शुरू हो गई है कि कहीं यह वायरस चीन के वुहान की किसी प्रयोगशाला से तो सायास या अनायास लीक नहीं हुआ था? हाल में अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जरनल की एक रिपोर्ट ने इस चर्चा को तेज कर दिया है और अब वहाँ का मुख्यधारा का मीडिया भी इस सवाल को उठा रहा है. जबकि पिछले साल यही मीडिया इन खबरों में दिलचस्पी नहीं ले रहा था।

अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री ने डब्लूएचओ से कहा है कि इस मामले की जाँच पारदर्शिता के साथ करें। अखबार ने अमेरिकी इंटेलिजेंस के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा है कि सन 2019 के नवंबर में संक्रमण की शुरूआत होने के पहले वुहान प्रयोगशाला के तीन शोधकर्ताओं की अस्पताल में चिकित्सा की गई थी। यह खबर विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक महत्वपूर्ण बैठक के ठीक पहले आई है। इस बैठक में वायरस के स्रोत की जाँच के अगले कदम के बारे में फैसला किया जाएगा।

चीन का कहना है सब झूठ है

दूसरी तरफ चीन ने कोरोना संक्रमण की शुरुआत से पहले अपने वुहान शहर में तीन शोधकर्ताओं के बीमार होकर अस्पताल जाने की ख़बर को चीन ने 'पूरी तरह झूठ' क़रार दिया है। इसके पहले रविवार को 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' ने अमेरिकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट का हवाला देते हुए लिखा था कि वुहान लैब के तीन शोधकर्ता साल 2019 के नवंबर महीने में किसी ऐसी बीमारी से जूझ रहे थे जिसके "लक्षण कोविड-19 और आम सर्दी-जुकाम दोनों से मेल खाते थे।" अब दुनिया के संजीदा विशेषज्ञों ने कहा है कि कोई अनुमान लगाने से बेहतर होगा कि इस मामले की ठीक से जाँच की जाए। अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वास्थ्य सलाहकार एंटनी फाउची का भी यह सुझाव है।

Monday, May 24, 2021

वैक्सीन ने उघाड़ कर रख दी गैर-बराबरी की चादर

कोविड-19 ने मानवता पर हमला किया है, पर उससे बचाव हम राष्ट्रीय और निजी ढालों तथा छतरियों की मदद से कर रहे हैं। विश्व-समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी का जुमला पाखंडी लगता है। वैश्विक-महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन की योजनाएं भी सरकारें या कम्पनियाँ अपने राजनीतिक या कारोबारी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कर रही हैं। पिछले साल जब महामारी ने सिर उठाया, तो सबसे पहले अमीर देशों में ही वैक्सीन की तलाश शुरू हुई। उनके पास ही साधन थे।

वह तलाश वैश्विक मंच पर नहीं थी और न मानव-समुदाय उसका लक्ष्य था।  गरीब तो उसके दायरे में ही नहीं थे। उन्हें उच्छिष्ट ही मिलना था। पिछले साल अप्रेल में विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोलीशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) और ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन यानी गावी ने गरीब और मध्यम आय के देशों के लिए वैक्सीन की व्यवस्था करने के कार्यक्रम कोवैक्स का जिम्मा लिया। इसके लिए अमीर देशों ने दान दिया, पर यह कार्यक्रम किस गति से चल रहा है, इसे देखने की फुर्सत उनके पास नहीं है।

अमेरिका ने ढाई अरब दिए और जर्मनी ने एक अरब डॉलर। यह बड़ी रकम है, पर दूसरी तरफ अमेरिका ने अपनी कम्पनियों को 12 अरब डॉलर का अनुदान दिया। इतने बड़े अनुदान के बाद भी ये कम्पनियाँ पेटेंट अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। कम से कम महामारी से लड़ने के लिए कारोबारी फायदों को छोड़ दो।   

गरीबों की बदकिस्मती

इस साल मार्च तक 10 करोड़ डोज़ कोवैक्स कार्यक्रम को मिलनी थीं, पर अप्रेल तक केवल 3.85 करोड़ डोज़ ही मिलीं। उत्पादन धीमा है और कारोबारी मामले तय नहीं हो पा रहे हैं। जनवरी में गावी ने कहा था कि जिन 46 देशों में टीकाकरण शुरू हुआ है, उनमें से 38 उच्च आय वाले देश हैं। अर्थशास्त्री जोसफ स्टिग्लिट्ज़ ने वॉशिंगटन पोस्ट के एक ऑप-एडिट में कहा, कोविड-वैक्सीन को पेटेंट के दायरे में बाँधना अनैतिक और मूर्खता भरा काम होगा।

Sunday, May 23, 2021

लालबत्ती पर खड़ी अर्थव्यवस्था


इस हफ्ते नरेंद्र मोदी सरकार के सात साल पूरे हो जाएंगे। किस्मत ने राजनीतिक रूप से मोदी का साथ दिया है, पर आर्थिक मोड़ पर उनके सामने चुनौतियाँ खड़ी होती गई हैं। पिछले साल टर्नअराउंड की आशा थी, पर कोरोना ने पानी फेर दिया। और इस साल फरवरी-मार्च में लग रहा था कि गाड़ी पटरी पर आ रही है कि दूसरी लहर ने लाल बत्ती दिखा दी। सदियों में कभी-कभार आने वाली महामारी ने बड़ी चुनौती फेंकी है। क्या भारत इससे उबर पाएगा? दुनिया के दूसरे देशों को भी इस मामले में नाकामी मिली है, पर भारत में समूची व्यवस्था कुछ देर के लिए अभूतपूर्व संकट से घिर गई।

बांग्लादेश से भी पीछे

बांग्लादेश के योजना मंत्री एमए मन्नान ने इस हफ्ते अपने देश की कैबिनेट को सूचित किया कि बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 2,064 डॉलर से बढ़कर 2,227 डॉलर हो गई है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,947 डॉलर से 280 डॉलर अधिक। पिछले साल अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ में यह सम्भावना व्यक्त की थी। हालांकि भारत की जीडीपी के आँकड़े पूरी तरह जारी नहीं हुए हैं, पर जाहिर है कि प्रति व्यक्ति आय में हम बांग्लादेश से पीछे  हैं। वजह है पिछले साल की पहली तिमाही में आया 24 फीसदी का संकुचन। शायद हम अगले साल फिर से आगे चले जाएं, पर हम फिर से लॉकडाउन में हैं। ऐसे में सवाल है कि जिस टर्नअराउंड की हम उम्मीद कर रहे थे, क्या वह सम्भव होगा?

Monday, May 17, 2021

महामारी के उस पार क्या खुशहाली खड़ी है?


पिछले साल इतिहासकार युवाल नोवा हरारी ने फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित अपने एक लेख में कहा था कि आपातकाल ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को फास्ट फॉरवर्ड करता है। जिन फ़ैसलों को करने में बरसों लगते हैं, वे रातोंरात हो जाते हैं। उन्हीं दिनों बीबीसी के न्यूज़ऑवर प्रोग्राम में उन्होंने कहा, महामारी ने वैज्ञानिक और राजनीतिक दो तरह के सवालों को जन्म दिया है। वैज्ञानिक चुनौतियों को हल करने की कोशिश तो दुनिया कर रही है लेकिन राजनीतिक समस्याओं की ओर उसका ध्यान कम गया है।

पिछले साल जबसे महामारी ने घेरा है, दुनियाभर के समाजशास्त्री इस बात का विवेचन कर रहे हैं कि इसका जीवन और समाज पर क्या असर होने वाला है। यह असर जीवन के हर क्षेत्र में होगा, मनुष्य की मनोदशा पर भी। हाल में विज्ञान-पत्रिका साइंटिफिक अमेरिकन ने इस दौरान इंसान के भीतर पैदा हुए गुहा लक्षण (केव सिंड्रोम) का उल्लेख किया है।

गुहा-मनोदशा

एक साल से ज्यादा समय से लगातार गुफा में रहने के बाद व्यक्ति के मन में अलग-थलग रहने की जो प्रवृत्ति पैदा हो गई है, क्या वह स्थायी है? क्या इंसान खुद को फिर से उसी प्रकार स्वतंत्र और सुरक्षित महसूस कर पाएगा, जैसा पहले था? क्या सोशल डिस्टेंसिंगदुनिया का स्थायी-भाव होगा? कम से कम इस पीढ़ी पर तो यह बात लागू होती है। वैक्सीन लेने के बाद भी हम खुद को पूरी तरह सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।

Sunday, May 16, 2021

दूसरी लहर से आगे का परिदृश्य


पिछले एक-डेढ़ महीने के हौलनाक-मंज़र के बाद लगता है कि कोरोना की दूसरी लहर जितनी तेजी से उठी थी, उतनी तेजी से इसके खत्म होने की उम्मीदें हैं। इस लहर का सबसे बड़ा सबक क्या है? क्या हम ईमानदारी से अपनी खामियों को पढ़ पाएंगे? ऐसा क्यों हुआ कि भारी संख्या में लोग अस्पतालों के दरवाजों पर सिर पटक-पटक कर मर गए? उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिली, दवाएं नहीं मिलीं, इलाज नहीं मिला। ऐसे तमाम सवाल हैं।

क्या सरकार (जिसमें केंद्र ही नहीं, राज्य भी शामिल हैं) की निष्क्रियता से ऐसा हुआ? क्या सरकारें भविष्य को लेकर चिंतित और कृत-संकल्प है? क्या यह संकल्प ‘राजनीति-मुक्त’ है? भविष्य का कार्यक्रम क्या है? जिस चिकित्सा-तंत्र की हमें जरूरत है, वह कैसे बनेगा और कौन उसे बनाएगा? हमारी सार्वजनिक-स्वास्थ्य नीति क्या है? वैक्सीनेशन-योजना क्या है? लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था क्या सदमे को बर्दाश्त कर पाएगी? सवाल यह भी है कि साल में दूसरी बार संकट से घिरे प्रवासी कामगारों की रक्षा हम कैसे करेंगे?

प्रवासी कामगार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को सूखा राशन प्रदान करने का निर्देश दिया। अधिकारियों को प्रवासी मजदूरों के पहचान पत्रों पर जोर नहीं देना है। मजदूरों पर यकीन करते हुए उन्हें राशन दिया जाए। इन मजदूरों के लिए एनसीआर में सामुदायिक रसोइयाँ स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि उन्हें दिन में दो बार भोजन मिले। उन्हें परिवहन मिले, जो अपने घरों में वापस जाना चाहते हैं। ये वही समस्याएं हैं, जो पिछले साल के लॉकडाउन के वक्त इन कामगारों ने झेली थीं।

Friday, May 14, 2021

दूसरी लहर को लेकर काफी सही साबित हो रहा है आईआईटी कानपुर का गणितीय मॉडल


आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर का जो गणितीय मॉडल तैयार किया है, वह काफी हद तक राष्ट्रीय स्तर पर और देश के प्रमुख राज्यों के स्तर पर सटीक चल रहा है। हाल में इस मॉडल को लेकर काफी चर्चा रही थी। मैं तबसे इनके अपडेट पर नजर रखता हूँ। आप यदि इसे तारीखों के हिसाब से देखना चाहते हैं, तो इसकी वैबसाइट पर जाना पड़ेगा, पर यदि केवल नेचुरल कर्व को समझ सकते हैं, तो देखें कि नीले रंग की रेखा वास्तविक आँकड़े को बता रही है और नारंगी रेखा इनके मॉडल की है। 

इस मॉडल पर जो जानकारी आज सुबह तक दर्ज है, उसके अनुसार 12 मई को देश में 3,76,013 संक्रमणों के नए मामले आए, जबकि इस मॉडल ने 3,26,092 का अनुमान लगाया था। अब इसका अनुमान है कि 15 मई को यह संख्या तीन लाख के नीचे और 23 मई को दो लाख के नीचे और 3 जून को एक लाख के नीचे चली जाएगी। इसके बाद 8 जुलाई को यह संख्या 10 हजार से भी नीचे होगी। जुलाई और अगस्त में स्थितियाँ करीब-करीब सामान्य होंगी।

दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अनुमानों पर भी नजर डालनी चाहिए। इसके अनुसार 12 मई को दिल्ली में 14,440 नए मामले आए, जबकि इस मॉडल के अनुसार 15,711 आने चाहिए थे। उत्तर प्रदेश का आँकड़ा 11 मई तक का है, जिसके अनुसार 25,289 मामले आए, जबकि इनके मॉडल के अनुसार 23,290 होने चाहिए। इसकी वैबसाइट पर जाकर आप उन शहरों के आँकड़ों की तुलना भी कर सकते हैं, जिनका मॉडल इन्होंने तैयार किया है। मुझे यह मॉडल काफी हद तक सही लग रहा है।  

इनकी वैबसाइट का लिंक यहाँ है 

https://www.sutra-india.in/about

Monday, May 10, 2021

सबको मुफ्त टीका देने की इच्छा-शक्ति सोई क्यों पड़ी है?


हालांकि कोविड-19 की दूसरी लहर दुनियाभर में चल रही है, पर भारत में हालात हौलनाक हैं। इससे बाहर निकलने के फौरी और दीर्घकालीन उपायों पर विचार करने की जरूरत है। जब कोरोना को रोकने का एकमात्र रास्ता वैक्सीनेशन है, तब विश्व-समुदाय सार्वभौमिक निशुल्क टीकाकरण के बारे में क्यों नहीं सोचता? ऐसा तभी होगा, जब मनुष्य-समाज की इच्छा-शक्ति जागेगी।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले रविवार को केंद्र से कहा कि वह अपनी वैक्सीन नीति पर फिर से सोचे, साथ ही वायरस लॉकडाउन के बारे में भी विचार करे। लॉकडाउन करें, तो कमजोर वर्गों के संरक्षण की व्यवस्था भी करें। सुप्रीम कोर्ट की इस राय के अलावा संक्रामक रोगों के प्रसिद्ध अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ एंटनी फाउची ने भारत को कुछ सुझाव दिए हैं। उनपर भी अमल करने की जरूरत है।

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रेल को सरकार से कहा था कि वह सभी नागरिकों को मुफ्त टीका देने के बारे में विचार करे। अदालत ने कहा कि इंटरनेट पर मदद की गुहार लगा रहे नागरिकों को यह मानकर चुप नहीं कराया जा सकता कि वे गलत शिकायत कर रहे हैं। देश के 13 विपक्षी दलों ने भी रविवार को केंद्र सरकार से मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाने का आग्रह किया।

अदालत ने 30 अप्रेल की टिप्पणी में कहा था कि केंद्र को राष्ट्रीय टीकाकरण मॉडल अपनाना चाहिए क्योंकि गरीब आदमी टीकों की कीमत देने में समर्थ नहीं है। हाशिए पर रह रहे लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें निजी अस्पतालों की दया पर छोड़ देना चाहिए?

अमीर देशों में मुफ्त टीका

अदालत ने गरीबों के पक्ष में यह अपील ऐसे मौके पर की है, जब दुनिया के अमीर देश जनता को निशुल्क टीका लगा रहे हैं। अमेरिका में अरबपति लोगों को भी टीका मुफ्त में मिल रहा है। कहा जा सकता है कि अमीर देश इस भार को वहन कर सकते हैं, पर भारत पर यह भारी पड़ेगा। क्या वास्तव में ऐसा है? क्या यह ऐसा भार है, जिसे देश उठा नहीं सकता?

Sunday, May 2, 2021

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में व्यवस्थागत पारदर्शिता भी जरूरी है

देश में हर रोज नए संक्रमितों की संख्या चार लाख पार कर गई है। वैश्विक संख्या से यह आधी से कुछ कम है। देश में 32 लाख से ऊपर लोग बीमार है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार करीब साढ़े तीन हजार लोगों की हर रोज मौत हो रही है और करीब तीन लाख लोग हर रोज संक्रमण-मुक्त हो रहे हैं। करीब 16 साल बाद स्थिति ऐसी आई है, जब हमें दूसरे देशों से सहायता को स्वीकार करना पड़ा है, पर यह हमारी विफलता नहीं है। यह वक्त की बात है। सहायता लेने के पहले हमने सहायता दी भी है। यह पारस्परिक निर्भरता वाली दुनिया है। ऐसी घटनाएं सदियों में एकाध बार ही होती हैं। पिछले साल हमने अमेरिका को सहायता दी थी।

भारतीय आँकड़ों को लेकर पश्चिमी देशों के मीडिया ने जो संदेह व्यक्त किया है, उसपर विचार करने की जरूरत है। आँकड़ों की पारदर्शिता और सरकारी व्यवस्थाओं को लेकर देश में भी सवाल उठाए गए हैं। श्मशानों पर दाह-संस्कार जितने होते हैं, उतनी संख्या सरकारी रिपोर्टों में नहीं होती। सही जानकारी होगी, तो स्थिति पर काबू पाने में मदद मिलेगी। अस्पतालों में बिस्तरों, ऑक्सीजन और दवाओं का इंतजाम उसी हिसाब से होगा।

जवाबदेह-व्यवस्था

लोग परेशान हैं। खबरें हैं कि लोगों ने जब शिकायत की तो उन्हें गिरफ्तार करने की धमकियाँ मिलीं। ऐसे तो समस्या का समाधान नहीं होगा। जिम्मेदार वे लोग हैं, जिन्होंने मंजूरशुदा ऑक्सीजन संयंत्र लगाने में देरी की या जिन्होंने अतिरिक्त टीकों की जरूरत का ध्यान नहीं रखा। विकसित समाज जिस जवाबदेही और व्यवस्थागत निगरानी में काम करते हैं, वह नहीं होगा, तो हम अपने को आधुनिक लोकतांत्रिक देश कैसे कहेंगे? 

Saturday, May 1, 2021

पहले इस लहर से लड़ें, फिर आपस में भिड़ें

 

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने पहले पेज पर दिल्ली में जलती चिताओं की एक विशाल तस्वीर छापी। लंदन के गार्डियन ने लिखा, द सिस्टम हैज़ कोलैप्स्ड। लंदन टाइम्स ने कोविड-19 को लेकर मोदी-सरकार की जबर्दस्त आलोचना करते हुए एक लम्बी रिपोर्ट छापी, जिसे ऑस्ट्रेलिया के अखबार ने भी छापा और उस खबर को ट्विटर पर बेहद कड़वी भाषा के साथ शेयर किया गया। पश्चिमी मीडिया में असहाय भारत की तस्वीर पेश की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने कहा, भारत की दशा को व्यक्त करने के लिए हृदय-विदारक शब्द भी हल्का है।

ज्यादातर रिपोर्टों में समस्या की गम्भीरता और उससे बाहर निकलने के रास्तों पर विमर्श कम, भयावहता की तस्वीर और नरेंद्र मोदी पर निशाना ज्यादा है। प्रधानमंत्री ने भी पिछले रविवार को अपने मन की बात में माना कि 'दूसरी लहर के तूफान ने देश को हिलाकर रख दिया है।' राजनीतिक हालात को देखते हुए उनकी यह स्वीकारोक्ति मायने रखती है।

व्यवस्था का दम घुटा

इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि सरकार इस संकट का सामना करने के लिए तैयार नहीं थी। उत्तराखंड की बाढ़ की तरह यह आपदा अचानक आई पर, सरकार को इसका पूर्वानुमान होना चाहिए था। अमेरिका में भी ऐसी ही स्थिति थी, पर वहाँ की जनसंख्या कम है और स्वास्थ्य सुविधाएं हमसे बेहतर हैं, वे झेल गए। भारत में सरकार केवल केंद्र की ही नहीं होती। राज्य सरकार, नगरपालिकाएं और ग्राम सभाएं भी होती हैं। जिसकी तैयारी बेहतर होती है, वह झेल जाता है। केरल में ऑक्सीजन संकट नहीं है, क्योंकि वहाँ की सरकार का इंतजाम बेहतर है।

Thursday, April 29, 2021

त्रासद समय में पश्चिमी मीडिया का रुख


दुनिया के किसी भी देश ने कोविड-19 की भयावहता को उस शिद्दत से महसूस नहीं किया, जिस शिद्दत से भारत के लोग इस वक्त महसूस कर रहे हैं। अमेरिका के थिंकटैंक कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की वैबसाइट पर ग्लोबल हैल्थ जैसे विषयों पर लिखने वाली लेखिका क्लेरी फेल्टर ने लिखा है कि इस दूसरी लहर के महीनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने देश की कमजोर स्वास्थ्य-प्रणाली को मजबूत करने का मौका खो दिया। वर्तमान संकट का उल्लेख करते हुए उन्होंने इस बात का उल्लेख भी किया है कि भारत सरकार अब ऑनलाइन आलोचना को सेंसर कर रही है। इस आपदा पर पश्चिमी देशों, कम से कम उनके मीडिया का दृष्टिकोण कमोबेश ऐसा ही है। भारत सरकार ने इस विदेशी हमले का अनुमान भी नहीं लगाया था। अब विदेशमंत्री एस जयशंकर ने दुनियाभर में फैले अपने राजदूतों तथा अन्य प्रतिनिधियों से कहा है कि वे इस सूचना-प्रहार का जवाब दें। 

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने पहले पेज पर दिल्ली में जलती चिताओं की एक विशाल तस्वीर छापी। लंदन के गार्डियन ने लिखा, द सिस्टम हैज़ कोलैप्स्ड। लंदन टाइम्स ने कोविड-19 को लेकर मोदी-सरकार की जबर्दस्त आलोचना करते हुए एक लम्बी रिपोर्ट छापी, जिसे ऑस्ट्रेलिया के अखबार ने भी छापा और उस खबर को ट्विटर पर बेहद कड़वी भाषा के साथ शेयर किया गया। पश्चिमी मीडिया में असहाय भारत की तस्वीर पेश की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने कहा, भारत की दशा को व्यक्त करने के लिए हृदय-विदारक शब्द भी हल्का है।

पहली लहर से धोखा खा गए


मोदी सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन मानते हैं कि कोविड-19 की पहली लहर के बाद देश में स्वास्थ्य से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की कोशिशों में ढील आ गई। इंडियन एक्सप्रेस के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि बड़े से बड़े कदमों के बावजूद इंफ्रास्ट्रक्चर उस स्तर पर नहीं आ सकता था, जो दूसरी लहर से पैदा हुई असाधारण परिस्थितियों का सामना कर पाता। पहली लहर के समय केंद्र और राज्य सरकारों ने अस्पतालों को सुदृढ़ करने और सुविधाएं बेहतर करने का प्रयास किया था। पर जैसे ही वह लहर हल्की पड़ी, तो तात्कालिकता की वह लहर भी हल्की पड़ गई। 

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इंडियन एक्सप्रेस में पढ़ें समाचार

यहाँ पूरा इंटरव्यू विस्तार से

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दूसरी लहर के वेग से सभी को हैरत हुई है। चूंकि पहली लहर हल्की पड़ गई थी और वैक्सीन बनकर तैयार हो गई थी, इसलिए वर्तमान लहर का अनुमान लगा पाने में गलती हुई। हालांकि हमें दूसरे देशों में चल रही दूसरी लहर की जानकारी थी, पर हमारे पास वैक्सीन थीं और मॉडलिंग एक्सरसाइज़ नहीं बता रही थीं कि दूसरी लहर इतनी घातक होगी। इसलिए वैक्सीनेशन के काम को तेजी से चलाने की जरूरत महसूस की गई। साथ में कोविड से जुड़े आचरण का पालन करने की जरूरत भी थी। पहला काम तो हुआ, पर दूसरे (उपयुक्त आचरण) में हम ढीले पड़ गए।  

जल्द काबू पा लेंगे

उनका कहना है कि दिल्ली में आ रहे दैनिक संक्रमणों की संख्या में हम जल्द ही गिरावट देखेंगे और दूसरी लहर अगले महीने अपने उच्चतम स्तर पर होगी। पर बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि हमारा आचरण कैसा रहता है। उत्तर प्रदेश की स्थिति चिंताजनक है। तमिलनाडु और कर्नाटक की दशा भी खराब है। पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड पर भी नजर रखनी होगी। इन्हीं राज्यों से स्थिति में सुधार होगा। कठोर कदमों हालात को सुधारने में मदद मिलेगी। स्थिति इससे ज्यादा खराब होने वाली नहीं है।

विजय राघवन प्रतिष्ठित बायोलॉजिस्ट हैं और वे बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव भी रह चुके हैं। वे नहीं मानते कि हमने वैक्सीन की माँग का अनुमान गलत लगाया। हमने और वैक्सीन मँगाने का इंतजाम किया है और अगले कुछ महीनों में हमारे पास वे आ जाएंगी। सीरम इंस्टीट्यूट का नोवावैक्स के साथ गठबंधन है। यह वैक्सीन जुलाई तक आ जाएगी। जॉनसन एंड जॉनसन का बायलॉजिकल ई के साथ समझौता है। यह भी जल्द आएगी। ज़ायडस की वैक्सीन भी बहुत जल्द आ जाएगी। स्पूतनिक आ चुकी है। चूंकि इन सबकी व्यवस्था पिछले साल महामारी के दौरान कर ली गई थी, इसलिए वे इतनी जल्दी उपलब्ध होने वाली हैं। चूंकि दूसरी लहर जबर्दस्त है, इसलिए लग रहा है कि स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है।


 

Monday, April 26, 2021

क्या वैक्सीन ताउम्र सुरक्षा की गारंटी है?


कोविड-19 का टीका लगने के बाद शरीर में कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी? यह सवाल अब बार-बार पूछा जा रहा है। क्या हमें दुबारा टीका या बूस्टर लगाना होगा? क्या डोज़ बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ाई जा सकती है? क्या दो डोज़ के बीच की अवधि बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ सकती है? ऐसे तमाम सवाल हैं।

इन सवालों के जवाब देने के पहले दो बातों को समझना होगा। दुनिया में कोविड-19 के वैक्सीन रिकॉर्ड समय में विकसित हुए हैं और आपातकालीन परिस्थिति में लगाए जा रहे हैं। इनका विकास जारी रहेगा। दूसरे प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इम्यूनिटी का एक स्तर होता है। बहुत कुछ उसपर निर्भर करेगा कि टीके से शरीर में किस प्रकार का बदलाव आएगा।

दुनिया में केवल एक प्रकार की वैक्सीन नहीं है। कोरोना की कम से कम एक दर्जन वैक्सीन दुनिया में सामने आ चुकी हैं और दर्जनों पर काम चल रहा है। सबके असर अलग-अलग होंगे। अभी डेटा आ ही रहा है। फिलहाल कह सकते हैं कि कम से कम छह महीने से लेकर तीन साल तक तो इनका असर रहेगा।

कम से कम छह महीने

हाल में अमेरिकी अखबार वॉलस्ट्रीट जरनल ने इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की, तो विशेषज्ञों ने बताया कि हम भी अभी नहीं जानते कि इसका पक्का जवाब क्या है। अभी डेटा आ रहा है, उसे अच्छी तरह पढ़कर ही जवाब दिया जा सकेगा। दुनिया में फायज़र की वैक्सीन काफी असरदार मानी जा रही है। उसके निर्माताओं ने संकेत दिया है कि उनकी वैक्सीन का असर कम से कम छह महीने तक रहेगा। यानी इतने समय तक शरीर में बनी एंटी-बॉडीज़ का क्षरण नहीं होगा। पर यह असर की न्यूनतम प्रमाणित अवधि है, क्योंकि परीक्षण के दौरान इतनी अवधि तक असर रहा है।

Sunday, April 25, 2021

भारत पर ‘प्राणवायु’ का संकट


भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। दो महीने पहले जिस लड़ाई में भारत को दुनियाभर से बधाई-संदेश मिल रहे थे, उसमें तीन हफ्ते के भीतर भारी बदलाव आने से चिंता के बादल हैं। स्कूल खुलने लगे थे, बाजारों में रंगीनी वापस लौट रही थी, मित्रों की लम्बे अरसे बाद मुलाकातें होने लगी थी, वैवाहिक समारोहों से लेकर बर्थडे पार्टियाँ फिर से सजने लगी थीं। मार्च के महीने में हमारे यहाँ हर रोज होने वाले नए संक्रमणों की संख्या घटकर 13,000 के आसपास पहुँच गई थी। जर्मनी और फ्रांस से भी कम। ज्यादातर मामले महाराष्ट्र और दक्षिण में थे। इन उपलब्धियों पर पिछले तीन हफ्ते से चली दूसरी लहर और पिछले हफ्ते खड़े हुए ऑक्सीजन-संकट ने पानी फेर दिया है।

ऑक्सीजन की किल्लत

सामान्य परिस्थितियों में देश में मेडिकल-ऑक्सीजन का उपलब्धता को लेकर दिक्कत नहीं है। स्वास्थ्य मंत्रालय की 15 अप्रेल की प्रेस-विज्ञप्ति के अनुसार कोविड-19 अधिकार प्राप्त समूह-2 ने ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर घबराहट पैदा न हो, इसके लिए पहले से कार्रवाई शुरू कर दी थी। 15 अप्रेल को समूह-2 की बैठक में हुए तीन महत्वपूर्ण फैसलों में से सभी ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर थे।

देश में प्रतिदिन लगभग 7,127 एमटी ऑक्सीजन की उत्पादन क्षमता है और जरूरत पड़ने पर इस्पात संयंत्रों के पास उपलब्ध अतिरिक्त ऑक्सीजन को भी उपयोग में लाया जा रहा है। 12 अप्रैल को मेडिकल-ऑक्सीजन की खपत 3,842 एमटी थी। कोविड-19 के सबसे ज्यादा सक्रिय मामलों वाले 12 राज्यों को 20, 25 और 30 अप्रैल की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए क्रमशः 4880 एमटी, 5619 एमटी और 6593 एमटी मेडिकल ऑक्सीजन का आबंटन किया गया। पर जरूरत इससे भी काफी आगे निकल गई। एक हफ्ते में अचानक बढ़कर करीब तिगुनी हो गई।

Friday, April 23, 2021

मेडिकल-ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ेगी


कोरोना की दूसरी लहर और स्वास्थ्य-प्रणाली को लेकर उठे सवालों के परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार सक्रिय हुई है। कल प्रधानमंत्री ने इस सिलसिले में बैठकों में भाग लिया और आज भी बैठकें हो रही हैं। संकट की इस स्थिति में गुरुवार को प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप करके अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाया जाए। इस बीच गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप करके राज्यों को निर्देश दिया कि वे ऑक्सीजन की वितरण योजना का ठीक से पालन करें। प्रधानमंत्री आज भी कोविड-19 की स्थिति पर अधिकारियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। 

कोरोना की दूसरी लहर का तेज हमला एक तरफ से हो ही रहा था कि अस्पतालों में बिस्तरे कम होने और वेंटीलेटरों और ऑक्सीजन की कमी की खबरें आने लगीं। ऑक्सीजन की कमी खासतौर से चार राज्यों, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात से सुनाई पड़ी। ये चारों राज्य राजनीति दृष्टि से भी संवेदनशील हैं। महामारी के दौर में प्राणवायु की इस किल्लत ने त्राहि-त्राहि मचा दी है। इसबार के संक्रमण में सबसे ज्यादा परेशानी साँस को लेकर है। शरीर में ऑक्सीजन की कमी तेजी से होने लगती है। ऐसे में ऑक्सीजन देने की जरूरत होती है।

Thursday, April 22, 2021

दूसरी लहर और सरकारी भूमिका पर सवाल

 


देश में कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर इस साल 28 मार्च को होली के चार-पाँच दिन बाद तक कम से कम उत्तर भारत के लोगों को नजर नहीं आ रही थी। पिछले 15 दिनों में इसकी शिद्दत का पता लगा और पिछले एक हफ्ते में इसकी भयावहता सामने आई है। बीमारों की असहायता को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जनता की नाराजगी जायज है। पहली नजर में इसके लिए सरकारें ही जिम्मेदार हैं। पर इसे राजनीतिक रंग देना भी ठीक नहीं। कई तरह की गलत सूचनाएं पिछले कुछ दिनों में राजनेताओं के ट्विटर हैंडलों से जारी हुई हैं। शायद उन्हें लगता है कि इसका राजनीतिक लाभ उन्हें मिलेगा।  

आज के टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने सम्पादकीय में खासतौर से ऑक्सीजन की कमी का उल्लेख किया है। अखबार ने लिखा है कि कोविड-19 के इलाज रेमडेसिविर जैसी दवा की उतना भूमिका नहीं है, जितनी बड़ी भूमिका ऑक्सीजन की है। पर पिछले एक साल में ज्यादा अस्पतालों ने हवा से ऑक्सीजन एकत्र करने वाले संयंत्रों को नहीं लगाया। अब जब इस मामले की समीक्षा करने का समय आएगा, तब केंद्र और राज्य सरकारों को सार्वजनिक-स्वास्थ्य पर कम बजट का जवाब देना होगा। उधर ऑक्सीजन की सप्लाई को लेकर राज्यों के बीच विवाद खड़े हो गए हैं। केंद्र को इसमें समन्वय करना होगा। साथ ही राजनीति को पीछे रखना होगा।

Sunday, April 18, 2021

कैसे रोकें ‘दूसरी लहर’ का प्रवाह?


कोरोना की दूसरी लहर को लेकर कई प्रकार की आशंकाएं हैं। हम क्या करें? वास्तव में संकट गहरा है, पर उसका सामना करना है। क्या बड़े स्तर पर लॉकडाउन की वापसी होगी? पिछले साल कुछ ही जिलों में संक्रमण के बावजूद पूरा देश बंद कर दिया गया था। दुष्परिणाम हमने देख लिया। तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद बहुत सी सकारात्मक बातें हमारे पक्ष में हैं। पिछले साल हमारे पास बचाव का कोई उपकरण नहीं था। इस समय कम से कम वैक्सीन हमारे पास है। जरूरत निराशा से बचने की है। निराशा से उन लोगों का धैर्य टूटता है, जो घबराहट और डिप्रैशन में हैं।

लॉकडाउन समाधान नहीं

लॉकडाउन से कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है, पर वह समाधान नहीं है। अब सरकारें आवागमन और अनेक गतिविधियों को जारी रखते हुए, ज्यादा प्रभावित-इलाकों को कंटेनमेंट-ज़ोन के रूप में चिह्नित कर रही हैं। अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने हाल में लिखा है कि पिछले साल के लॉकडाउन ने सप्लाई चेन को अस्त-व्यस्त कर दिया, उत्पादन कम कर दिया, बेरोजगारी बढ़ाई और करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छीन ली। सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर पड़ा था। पिछले साल के विपरीत प्रभाव से मजदूर अभी उबरे नहीं हैं।

Saturday, April 17, 2021

दूसरी लहर में बहुत ज्यादा है संक्रमण का पॉज़िटिविटी रेट

 


भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर में संक्रमण बहुत तेजी से बढ़ा है और जिन लोगों को संक्रमण हुआ है, उनका प्रतिशत बहुत ज्यादा यानी पॉज़िटिविटी रेट बहुत ज्यादा है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक हफ्ते में हुए टेस्ट में 13.5 फीसदी से ज्यादा लोग पॉज़िटिव पाए गए हैं। इतना ऊँचा पॉज़िटिविटी रेट इसके पहले नहीं रहा है। यह बात इस बात की सूचक है कि प्रसार बहुत ज्यादा है।

सबसे बड़ी बात है कि यह प्रसार पिछले एक-डेढ़ महीने में हुआ है, जबकि पिछले साल संक्रमण इतनी तेजी से नहीं हुआ था। पिछले वर्ष जुलाई के महीने में पॉज़िटिविटी रेट सबसे ज्यादा था। हालांकि संक्रमणों की संख्या सितम्बर तक बढ़ी थी, पर पॉज़िटिविटी रेट कम होता गया था। जुलाई तक देश में करीब पाँच लाख टेस्ट हर रोज हो रहे थे। उस महीने के अंत में टेस्ट की संख्या बढ़ी और अगस्त के तीसरे सप्ताह तक दस लाख के आसपास प्रतिदिन हो गई थी।

इस वक्त देश में सितम्बर की तुलना में करीब ढाई गुना संक्रमण के मामले हर रोज सामने आ रहे हैं। जबकि टेस्ट लगभग उतने ही हो रहे हैं, जितने सितम्बर-अक्तूबर में हो रहे थे। महाराष्ट्र में पहले भी पॉज़िटिविटी रेट 15 फीसदी के आसपास रहा है, पर उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में यह राष्ट्रीय औसत से कम था। इस समय छत्तीसगढ़ का पॉज़िटिविटी रेट महाराष्ट्र से भी ज्यादा है। इसकी वजह शायद यह है कि लोगों का आपसी सम्पर्क बढ़ा है और यह भी कि वायरस का नया स्ट्रेन ज्यादा तेजी से संक्रमित हो रहा है।