चुनाव से पहले मोदी सरकार के आखिरी बजट में
गाँवों-किसानों और गरीबों के लिए कुछ खुश-खबरियाँ हैं. निश्चित रूप से यह
चुनाव-बजट है, पर इसका दायरा बहुत व्यापक है. देश के 10 करोड़ गरीब परिवारों को
दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सुरक्षा देने का वायदा भारत सरकार ने किया है. इस
स्वास्थ्य-इंश्योरेंस के साथ देश के गरीबों का स्वास्थ्य ही नहीं, स्वास्थ्य
प्रणाली की गतिशीलता भी जुड़ी है. हैल्थ-सेक्टर के साथ रोजगार भी जुड़े हुए हैं. अब
गरीब परिवारों को सरकारी अस्पतालों को सुविधा नहीं मिलेगी तो वे प्राइवेट
अस्पतालों में जाकर इलाज करा सकेंगे. मोटे तौर पर इसके दायरे में करीब 50 करोड़
लोग आएंगे. हालांकि आलोचकों ने कहा है कि इस बजट में इस मद में केवल 2000 करोड़ रुपए ही रखे गए हैं. इस बात से इस कार्यक्रम की निरर्थकता साबित नहीं होती. इसका कार्यक्रम बनते-बनते छह महीने लगेंगे. एकबार यह कार्यक्रम लागू हो गया तो वह भविष्य के रास्ते खोलेगा. देश के कई राज्यों में ऐसे कार्यक्रम चल रहे हैं. इसके लिए साधन जुटाते समय केन्द्र-राज्य 60+40 का फॉर्मूला भी लागू होगा. इसे आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता.
इसे मोदी सरकार का ड्रीम-इलेक्शन बजट कह सकते
हैं. बावजूद इसके कि इसमें सरकारी खजाना खोला नहीं गया है. चालू वित्त वर्ष की
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.5 फीसदी पर रहा. खासतौर से यह देखते हुए कि जीएसटी के कारण अप्रत्यक्ष करों की वसूली 11 महीने की है. अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 फीसदी रखा गया है. चूंकि आने वाले वक्त में संवृद्धि की दर
बढ़ने की आशा है, इसलिए राजस्व के लक्ष्य भी पूरे होंगे. चालू वित्त वर्ष में
प्रत्यक्ष करों में 18.7 फीसदी की वृद्धि हुई है. कर-दाताओं की संख्या और धनराशि
दोनों में वृद्धि बता रही है कि अर्थ-व्यवस्था का रुझान सकारात्मक है. इस साल
सरकार ने विनिवेश से 80,000 करोड़ हासिल करने का लक्ष्य भी रखा है. बजट की महीन
पंक्तियों के बीच काफी बातें छिपी हैं, जिनके निहितार्थ व्यापक है.