गुजरात विधानसभा के
चुनाव-प्रचार के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साबरमती नदी से मेहसाणा
जिले के धरोई बांध तक सी-प्लेन में सफर करके एक नया राजनीतिक मोर्चा खोल दिया।
भारतीय जनता पार्टी दिखाना चाहती है कि जिस विकास को कांग्रेस पार्टी ‘पागल’ कहकर बदनाम कर रही है,
वह जल,थल और आकाश तीनों जगह जा रहा है। यह है हमारा विकास। मोदी की इस यात्रा को
तमाशा कहें या विकास, उम्मीद स बात की है कि 2019 की चुनाव सभाओं में नेतागण सी-प्लेन से यात्रा करते
नजर आएँगे।
प्रधानमंत्री ने सोमवार
को अहमदाबाद में रोड शो की इजाज़त नहीं मिलने पर एक चुनावी रैली में ऐलान किया था
कि आपने साबरमती नदी देखी होगी। पहले वहां सर्कस होता था, अब वहां रिवरफ्रंट है। यह विकास है, लेकिन कांग्रेस के लिए
विकास केवल वही जिससे वो पैसे बना सकें। उन्होंने कहा, हर जगह एयरपोर्ट्स नहीं बना
सकते, इसलिए अब जलमार्गों पर
फोकस करेंगे।
भारत में नेता की सवारी
बड़े माने रखती है। चुनाव के मौके पर जब दूर-दराज के गाँवों में नेता पहुँचता है
तो भारी भीड़ वहाँ उमड़ती है। कुछ लोग नेता को देखने आते हैं और उससे ज्यादा बड़ी
संख्या में लोग हेलिकॉप्टर को देखने आते हैं। नरेन्द्र मोदी के पास जनता की बेहतर
समझ है। वे मौके-बेमौके इसे दिखाते रहते हैं। इस सी-प्लेन यात्रा ने भी उन्हें
जबर्दस्त प्रचार दिया, जिसमें इनके विरोधियों की चीत्कार भी शामिल है।
सी-प्लेन भी राजनीतिक
तमाशे के रूप में सामने आया। बहस इस बात पर है कि यह भारत का पहला सी-प्लेन था भी
या नहीं। इस बहस को अलग रख दें तो सच यह है कि मंगलवार को साबरमती रिवर फ्रंट पर
जमा काफी बड़ी भीड़ सी-प्लेन को देखने के लिए जमा हुई थी। इसे आप राजनीतिक तमाशा कह
सकते हैं। सच यह है कि महात्मा गांधी की रेलगाड़ियों में तीसरे दर्जे की यात्रा से
लेकर सन 1973 में अटल बिहारी वाजपेयी की संसद भवन पर बैलगाड़ी पर बैठकर की गई
यात्रा के पीछे प्रतीक हैं और राजनीतिक संदेश भी। ऐसा ही संदेश इस सी-प्लेन यात्रा
का भी है।
इमर्जेंसी के बाद मार्च
1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मिली भारी पराजय से इंदिरा
गांधी का नेतृत्व संकट में आ गया था। पर 27 मई 1977 को बिहार के
बेलछी गाँव में हुए दलितों के सामूहिक नरसंहार के बाद उन्हें प्रतिरोध का एक
बिन्दु नजर आया। नरसंहार के करीब ढाई महीने बाद 13 अगस्त 1977 को वे नालंदा के बेलछी
गांव में जा पहुँचीं। कीचड़-पानी भरे इस दुर्गम गांव में मोटर की सवारी संभव नहीं
थी, इसलिए उन्होंने हाथी की सवारी की।
हरनौत से बेलछी तक का 15 किलोमीटर का दुर्गम
रास्ता पार करने के दौरान इंदिरा कभी पैदल चलीं तो कभी हाथी पर सवार हुईं। हाथी पर
बैठकर बेलछी पहुँचने के इस प्रसंग के साथ नाटकीयता जुड़ गई। वह गाँव रातों-रात
देश-विदेश में चर्चा का केंद्र बन गया। इंदिरा गांधी की उस यात्रा ने देश की
राजनीति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उसकी वजह से इंदिरा गांधी की छवि
बदली और बदलती चली गई।
इंदिरा गांधी की तरह
नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता के मन की गहराई का पता है। लाखों के सूट और पाँच लाख
के मशरूम की कहानियाँ उन्हें खबरों में बनाए रखती हैं। यह जानते हुए भी उनके
विरोधी लोभ-संवरण नहीं कर पाते। मोदी की सी-प्लेन यात्रा पर देखते ही देखते विरोधी
दल टूट पड़े। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तंज करते हुए ट्वीट किया, ‘गुजरात की जनता परेशान, पर मेरा जीवन तो आलीशान।’
पाटीदार नेता हार्दिक
पटेल ने ट्वीट किया, ‘सी-प्लेन’ दूसरे देशों में बहुत समय से हैं, आज हमारे गुजरात में आया
हैं काफ़ी ख़ुश हूं। लेकिन चुनाव के एक दिन पहले ही आया। किसान कीट नाशक दवाई भी प्लेन
से डाल सकें ऐसा कुछ कीजिए। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि
सिंगल इंजन प्लेन में विदेशी पायलट के साथ और बिना जेड प्लस सुरक्षा को अपने साथ
लिए पीएम मोदी ने सुरक्षा प्रोटोकॉल तोड़ा है। भारत के सुरक्षा नियमों के अनुसार
वीवीआईपी की यात्रा के लए दो इंजनों वाले विमान का होना जरूरी है।
युवा दलित नेता जिग्नेश
मेवाणी ने लिखा, जब गुजरात में अत्याचार हो रहे थे तब विदेश में उड़ रहे थे और अब
गुजरात में चुनाव है तो सी-प्लेन में उड़ रहे हैं। कांग्रेस के स्वामित्व वाली
वैबसाइट ‘नवजीवन’ ने लिखा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस सी-प्लेन का इस्तेमाल किया उसका
इंतजाम करने करने वाली कंपनी का केंद्र के साथ 2000 करोड़ का समझौता
है। इसके अलावा विमान भेजने वाली कंपनी विमान मालिकों का नाम नहीं बताती। अमेरिका
की जिस कंपनी से ये विमान मंगाया गया था, उसका साफ कहना है कि उसके
पास जो भी एयरक्राफ्ट हैं, उनके असली मालिक अपना नाम
छिपाना चाहते हैं।
कहा यह भी गया कि जिस एक
इंजन वाले सी-प्लेन पर सवार होकर साबरमती की लहरों पर मोदी उतरे थे, वह पाकिस्तान के कराची शहर से आया था, और यह अभी तक साफ नहीं है कि उसकी गहनता से जांट-पड़ताल हुई
थी या नहीं। इन तीनों बिंदुओं से साफ होता है कि ये न सिर्फ हितों के टकराव का
मामला है, बल्कि इसमें बहुत बड़ी
सुरक्षा चूक भी हुई है।
इस सी-प्लेन करतब का
आयोजन ‘आईकॉनिक एकता वेंचर्स
प्राइवेट लिमिटेड’ ने किया था। इस कंपनी ने
केन्द्र सरकार के साथ पर्यटन के विकास
के लिए 2000 करोड़ रुपये का समझौता किया है। हालांकि पर्यावरण और
सुरक्षा कारणों के चलते इस प्रोजेक्ट को अभी आखिरी मंजूरी मिलनी बाकी है, लेकिन माना जा रहा है कि कंपनी ने चुनाव प्रचार के आखिरी
दिन मोदी की सी-प्लेन उपलब्ध कराकर प्रोजेक्ट को मंजूरी दिलाने के लिए माहौल बनाया
है।
इस कंपनी के प्रमोटर और
मैनेजिंग डायरेक्टर हिमांशु पटेल ने बताया कि उनकी कंपनी पिछले चार साल से वॉटर
स्पोर्ट्स, इको एडवेंचर और गुजरात के
पहाड़ी इलाकों में पर्यटन के विकास
के प्रोजेक्ट पर
काम कर रही है। उन्होंने दावा किया, ‘हम अपने आप को भाग्यशाली
समझते हैं कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रोजेक्ट पर अपनी रुचि दिखाई।’ हमने तीन साल पहले यानी 2014 में सी-प्लेन का
मुंबई में ट्रायल किया था। इस सिलसिले में कंपनी ने 2016 में आयोजित ‘अतुल्य भारत’ कार्यक्रम के दौरान केंद्र सरकार के साथ 2000 हज़ार करोड़ रुपए के एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
सरकारी सूत्रों का कहना
है कि केंद्र सरकार की भारत में कम से कम 100 सी-प्लेन से सेवा शुरू
करने की योजना है। शुरुआती दौर में देश की करीब 111 नदियों का हवाई
पट्टी के तौर पर इस्तेमाल होगा। सरकार की समुद्र से सटी करीब 11 हजार किमी सीमाओं से हवाई सफर शुरू करने की तैयारी है। सरकार
की योजना है कि सी-प्लेन हर शहर, हर गाँव में पहुंचे।
इसीलिए सरकार सी प्लेन की उड़ान के लिए नियमों को तीन माह के अंदर पूरा करने पर
विचार कर रही है। आपको यह भी बता दें कि फिलहाल देश में सी प्लेन के लिए कोई नियम
नहीं हैं।
भारत में प्राइवेट
एयरलाइन कंपनी स्पाइसजेट जल्द ही नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से सी-प्लेन उड़ाने के
लिए मंज़ूरी लेगी। माना जा रहा है कि मंजूरी के बाद एक साल के अंदर देश में सी प्लेन
सेवा शुरू करने का इरादा है। इसे लेकर यात्रियों के बड़े समूह को ध्यान में रखना
जरूरी है। यह भी कि सी-प्लेन के टिकट की कीमत आम लोगों की पहुंच तक हो। प्रधानमंत्री
की इस यात्रा को भारत में पहली सी-प्लेन यात्रा के रूप में प्रचारित किया गया। यह
बात भी सही नहीं है। वस्तुतः अंडमान निकोबार और केरल में सी-प्लेन सेवाएं उपलब्ध
हैं। अलबत्ता अब भारत सरकार परिवहन के एक साधन के रूप में इस सेवा को बढ़ाने का
कार्यक्रम लेकर आई है।
नेता की सवारी
भारत में राजनेता समय-समय
पर अपनी सवारी का प्रतीकात्मक इस्तेमाल करते रहे हैं। इसके पीछे एक संदेश देने की
कोशिश के साथ जनता का ध्यान खींचने की कोशिश भी होती है। दिल्ली के मुख्यमंत्री
शुरुआती दिनों में अपनी वैगन आर कार में चलते थे। सन 2015 में मुख्यमंत्री पद की
शपथ लेने वे मेट्रो पर बैठकर गए थे।
आजादी के बाद से अबतक
तमाम मौकों पर सांसद साइकिल, मोटर साइकिल, घोड़े, हाथी और यहाँ तक कि बैलगाड़ी में
बैठकर भी आए हैं। अक्सर इसके पीछे प्रचार के अलावा विरोध प्रदर्शन की भावना भी होती
है। मसलन दिल्ली में जब सरकार ने ऑड-ईवन योजना शुरू की तो बीजेपी के सांसद राम
प्रसाद शर्मा घोड़े पर बैठकर आए। उनका कहना था कि मैं एक और कार खरीदने की स्थिति
में नहीं हूँ, इसलिए घोड़े पर बैठकर आया हूँ। पुलिस ने उन्हें रेल भवन के पास रोक
लिया, क्योंकि संसद में प्रवेश के अपने नियम हैं।
ऑड-ईवन के कारण बीजेपी के
सांसद मनोज तिवारी साइकल पर बैठकर आए। बीकानेर से बीजेपी के सांसद अर्जुन राम
मेघवाल अपने घर से संसद भवन तक की यात्रा साइकिल से तय करते हैं। उनका कहना है कि
मैं अपने शहर बीकानेर में भी साइकिल चलाता हूँ। कांग्रेस की सांसद रंजीत रंजन भी
अपनी स्टाइल के लिए पहचानी जाती हैं। पिछले दिनों 8 मार्च को महिला दिवस पर वे
अपनी हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल पर सवार होकर संसद भवन तक आईं। उनकी मोटर साइकिल
को संसद भवन में प्रवेश देने के लिए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को विशेष रूप
से अनुमति देनी पड़ी।
12 नवम्बर 1973 को इंदिरा
गांधी बग्घी पर बैठकर संसद आईं थीं। इसके पीछे वे संदेश देना चाहती थीं कि पेट्रोल
का इस्तेमाल कम करें। उन दिनों पेट्रोलियम की कीमतें वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ी
थीं। इंदिरा गांधी ने देशवासियों से निवेदन किया था कि वे पेट्रोलियम के इस्तेमाल
को कम करने में मदद करें। इंदिरा गांधी के लिए सवारी के लिए राष्ट्रपति भवन की खास
बग्घी की व्यवस्था की गई थी। उसके ठीक अगले दिन अटल बिहारी वाजपेयी एक बैलगाड़ी पर
बैठकर आए थे। उन्होंनें अपने सिर पर गमछा बाँध रखा था और वेशभूषा एकदम देहाती की
थी। इसके अगले ही दिन स्वतंत्र पार्टी के पीलू मोदी
हाथी पर बैठकर आए।
अपने मुद्दों को सामने
लाने के लिए भी नेता कई किस्म के वाहनों का इस्तेमाल करते रहे हैं। नवम्बर 2000
में रेणुका चौधरी ट्रैक्टर पर बैठकर संसद भवन पहुँचीं। वे आंध्र प्रदेश के किसानों
की आत्महत्या के मामले को उठाना चाहती थीं। बहरहाल उनका ट्रैक्टर रोक दिया गया,
क्योंकि संसद के नियमों में ऐसे वाहन का उल्लेख नहीं था।
लालू यादव भी अपने वाहनों
के साथ प्रयोग करते रहते हैं। वह एक बार समर्थकों की भीड़ के साथ रिक्शे पर बैठकर
अदालत पहुंचे। चारा घोटाले के मामले में एकबार जेल से बाहर आते वक्त उन्होंने हाथी
की सवारी भी की।
आजादी की लड़ाई में भी कई
तरह के वाहनों का इस्तेमाल हुआ। इस मामले में एक तरफ यात्रा की जरूरतों को पूरा
करने की भावना होती थी, वहीं इनके साथ प्रतीकात्मकता को भी जोड़ा गया। मसलन
महात्मा गांधी का रेलगाड़ी के तीसरे दर्जे में यात्रा करना। गांधी जी छोटी-मोटी
दूरी पैदल चलकर पार करते थे। ज्यादातर नेता पैदल और हाथी-घोड़ों की पीठ पर मीलों
सफर करते थे। इसका असर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के शुरुआती वर्षों तक बना रहा।
सन 1952 में बनी पहली संसद के तमाम
सदस्य साइकिलों पर चलते थे। केवल सांसद ही नहीं हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज
भी साइकिल से चलते थे। साठ के दशक तक राज्य सरकारों के मंत्री तक रिक्शों पर बैठे
नजर आ जाते थे। धीरे-धीरे साइकिल ने प्रतीक रूप धारण कर लिया। नब्बे के दशक में जब
मुलायम सिंह ने साइकिल का चुनाव चिह्न तय किया, तो उसके पीछे प्रतीकात्मकता थी। सन
2012 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने अपनी साइकिल रैलियों के मार्फत ही जनता
से संवाद किया था। बताते हैं कि उनकी मर्सिडीज साइकिल की कीमत लाखों रुपये की थी।
प्रतीक के रूप में उनका जनता की सवारी में आना बहुत प्रभावशाली साबित हुआ।
सुन्दर लेख। मोदी सी प्लेन के पहले यात्री नही थे, परन्तु यह प्रचार उनके दल ने किया। चुनाव लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल कर भी लड़ा जाता है। सबसे खास बात यह है कि प्रधानमंत्री बनने से कुछ समय पहले से आज तक चर्चा का एजेन्डा क्या होगा, मोदी जी ही तय करते आ रहे हैं। और जब तक उनमें यह शक्ति है, तब तक मोदी मोदी के नारे तो लगते ही रहेंगे।
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