Tuesday, December 19, 2017

बीजेपी ने गुजरात बचा तो लिया, पर...

गुजरात और हिमाचल के परिणामों से पहली बात यह साबित हुई कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी कायम है और बीजेपी 2019 के चुनावों को अपनी मुट्ठी में रखने को कृतसंकल्प है. तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस पार्टी के लिए गुजरात सबसे बड़ा काँटा साबित हुआ है. राहुल गांधी के पदारोहण के बाद पहली खबर अच्छी नहीं आई है. उन्हें संतोष हो सकता है कि लम्बे अरसे बाद कांग्रेस ने एक ऐसे राज्य में अपनी स्थिति सुधारी है, जो बीजेपी का गढ़ माना जाता है. पर इस सुधार का श्रेय कांग्रेस पार्टी या संगठन को नहीं जाता. श्रेय जाता है हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी को या गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के बीच बढ़ते असंतोष को.

बीजेपी को अब ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था से जुड़े कुछ बड़े कार्यक्रमों के बारे में सोचना होगा. उसे सबसे बड़ा नुकसान सौराष्ट्र में हुआ, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में. यह केवल पाटीदार आंदोलन के कारण नहीं था. ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष राष्ट्रीय स्तर पर है. अब संभावना इस बात की है कि बीजेपी सरकार किसानों और गाँवों के लिए कार्यक्रमों की घोषणा करेगी.
जिस नोटबंदी और जीएसटी को लेकर भारी अंदेशा था, उसका सूरत, राजकोट और वडोदरा जैसे शहरों पर खास असर नहीं पड़ा. कांग्रेस पार्टी ने पाटीदारों और ओबीसी की मदद से बीजेपी की घेराबंदी की, पर जवाब में बीजेपी ने दलितों और जनजातियों का वोट हासिल करके इस घेराबंदी को तोड़ दिया. कांग्रेस ने गुजरात में पिछले 32 साल की चुनावी राजनीति में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है, फिर भी वह बीजेपी की 22 साल की एंटी-इनकम्बैंसी का लाभ नहीं ले पाई. गुजरात के इन चुनावों का असर अब कर्नाटक समेत दूसरे विधानसभा चुनावों पर जरूर पड़ेगा. कुछ समय से अंदेशा पैदा होने लगा था कि गुजरात में बीजेपी की हार भी संभव है. राहुल गांधी के पदारोहण के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण समय था. ऐसा माहौल बनने लगा था या बनाने की कोशिश की जा रही थी कि कांग्रेस की वापसी होने जा रही है.
हिमाचल के मुकाबले देश का ध्यान गुजरात की ओर ज्यादा था. दोनों राज्यों के परिणामों से कांग्रेस के हाथ मायूसी ही हाथ लगी. कहना मुश्किल है कि उसके तीन नए नौजवान मित्र कब तक उसके साथ रहेंगे और उन्हें पार्टी किस तरीके से अपने साथ बनाकर रखेगी. उनका बढ़ता महत्व पार्टी के स्थानीय नेतृत्व की कमजोरी को भी रेखांकित करेगा. अर्जुन मोड़वाडिया और शक्ति सिंह गोहिल जैसे नेताओं की पराजय का संदेश है कि पार्टी के भीतर कहीं गड़बड़ी है. उधर हिमाचल में जीत के बावजूद प्रेम कुमार धूमल की पराजय से बीजेपी को भी धक्का लगा है. धूमल को पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया था. उनका चुनाव क्षेत्र बदलना सही साबित नहीं हुआ.
दूरगामी परिदृश्य में कांग्रेस के हाथ से हिमाचल प्रदेश के रूप में एक राज्य और गया. गुजरात के नजरिए से देखें तो लगता है कि बीजेपी के विजय रथ के सामने कांग्रेस अवरोध पैदा करने में कामयाब हुई है, गोकि यह रुकावट मामूली साबित हुई. सोमवार को मतगणना शुरू होने के बाद एक समय ऐसा भी आया जब रुझान में कांग्रेस ने बढ़त ले ली थी. पर यह बढ़त कुछ मिनटों तक ही कायम रही. उस वक्त लगा कि यह चुनाव बीजेपी के लिए जबर्दस्त झटका साबित हो सकता है. गुजरात में बीजेपी की पराजय होती तो वह राष्ट्रीय राजनीति के लिए निर्णायक साबित होती. पर ऐसा हुआ नहीं. कांग्रेस को इस बात का संतोष हो सकता है कि उसकी सीटें बढ़ीं हैं, पर इन सीटों को हासिल करने में तीन नौजवानों की भूमिका है.
नरेंद्र मोदी के केंद्र में जाने के कारण गुजरात में बीजेपी का प्रभाव भी कम हुआ है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में 59.05 फीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 32.86. कुल मिलाकर 182 में से 165 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी को बढ़त मिली थी. यों पिछले दो दशक से ज्यादा समय से गुजरात में बीजेपी को 48-49 फीसदी वोट मिलते रहे हैं और कांग्रेस को 38-39. इसबार बीजेपी को 49.1 और कांग्रेस को 41.4 फीसदी वोट मिले हैं. 2012 में बीजेपी को 48.3 और कांग्रेस को 40.6 फीसदी वोट मिले थे. यानी इसबार दोनों के वोटों में मामूली बढ़ोत्तरी हुई है. शेष पार्टियों की ताकत कम हुई है.
इसबार आम आदमी पार्टी, शंकरसिंह वाघेला की जन विकल्प पार्टी और एनसीपी ने अपने प्रत्याशी उतारे थे. एनसीपी को एक सीट मिली है. छोटूभाई वासावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ कांग्रेस ने गठबंधन किया था और उन्हें तीन सीटें दी थीं, जिनमें से दो उन्होंने जीतीं. व्यक्तिगत प्रभाव क्षेत्र वाले तीन नेता निर्दलीय के रूप में जीतकर आए हैं.
हिमाचल इसबार बीजेपी को 48.8 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि 2012 में उसे 38.5 फीसदी वोट मिले थे. यानी दस फीसदी का इजाफा. इन 10 फीसदी ज्यादा वोटों में एक फीसदी वोट कांग्रेस से आया है, जिसे पिछली बार के 42.8 फीसदी के मुकाबले 41.7 फीसदी वोट मिले हैं. शेष 9 फीसदी वोट निर्दलीयों और अन्य के खाते से आए हैं. यानी कांग्रेस के वोटों में खास कमी नहीं आई है, पर बीच के दूसरे दल कम हो गए हैं.
गुजरात चुनाव के तीन महीने बाद मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव हैं. उसके बाद कर्नाटक में. जिस तरह से गुजरात में बीजेपी की इज्जत दाँव पर थी, उसी तरह कर्नाटक में कांग्रेस की इज्जत दाँव पर है. कांग्रेस के पास पंजाब के अलावा यही एक महत्वपूर्ण राज्य बचा है. कांग्रेस इसे किसी कीमत पर हाथ से बाहर नहीं जाने देना चाहेगी. मेघालय में भी कांग्रेस सरकार है. अगले साल लोकसभा चुनाव के पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव भी हैं. इसलिए कांग्रेस के पास अपने आप को संगठित करने के मौके हैं.
आने वाले वक्त में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के सामने चुनौतियाँ हैं. बीजेपी की निगाहें पूर्वोत्तर पर हैं. पिछले साल असम में सरकार बनाने के बाद से बीजेपी का ध्यान पूर्वोत्तर पर केंद्रित है. मेघालय में तो पार्टी ने हाल में अपना संगठन बनाया है. असम, मणिपुर और अरुणाचल में बीजेपी की सरकारें हैं. त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस से टूट कर काफी कार्यकर्ता बीजेपी में आए हैं. मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड ईसाई बहुल जनसंख्या वाले राज्य हैं. यहाँ प्रवेश करने की चुनौती बीजेपी के सामने है.

 inext में प्रकाशित

गुजरात और हिमाचल की अंतिम स्थिति



2 comments:

  1. बेबाक विश्लेषण

    ReplyDelete
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’काकोरी कांड के वीर बांकुरों को नमन - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    ReplyDelete