Sunday, December 10, 2017

राजनीति के गटर में गंदी भाषा

गुजरात चुनाव का पहला दौर पूरा हो चुका है। जैसाकि अंदेशा था आखिरी दो दिनों में पूरे राज्य का माहौल जहरीला हो गया। मणिशंकर अय्यर अचानक कांग्रेस के लिए विलेन की तरह बनकर उभरे और पार्टी से निलंबित कर दिए गए। उनके बयानों पर गौर करें तो लगता है कि वे अरसे से अपने निलंबन की कोशिशों में लगे थे। इस वक्त उनके निलंबन के पीछे पार्टी की घबराहट ने भी काम किया।  उन्हें इस तेजी से निलंबित करने और ट्विटर के मार्फत माफी माँगने का आदेश देने से यह भी जाहिर होता है कि पार्टी अपने अनुशासन-प्रिय होने का संकेत दे रही है। वह अपनी छवि सुधारना चाहती है। ठीकरा मणिशंकर अय्यर के सिर पर फूटा है। सवाल है कि क्या पार्टी अब नरेन्द्र मोदी को इज्जत बख्शेगी? दूसरी ओर बीजेपी पर दबाव होगा कि क्या वह भी अपनी पार्टी के ऐसे लोगों पर कार्रवाई करेगी, जो जहरीली भाषा का इस्तेमाल करते हैं।

यह राहुल गांधी की परीक्षा का पहला सबक है। कांग्रेस के किसी नेता ने पहली बार ऐसी टिप्पणी नहीं की थी। पिछले कुछ साल के बयानों को उठाएं तो दोनों तरफ से ऐसी भाषा के तमाम उदाहरण मिलेंगे। जिस वक्त मणिशंकर अय्यर की मुअत्तली की खबरें आ रहीं थीं उसी वक्त अमित शाह का ट्वीट भी सायबरस्पेस में था। उन्होंने एक सूची देकर बताया था कि कांग्रेस मोदी को किस किस्म की इज्जत बख्शती रही है। इनमें से कुछ विशेषण हैं, यमराज, मौत का सौदागर, रावण, गंदी नाली का कीड़ा, मंकी, वायरस, भस्मासुर, गंगू तेली, गून वगैरह।
राहुल गांधी खुद मोदी को कुछ समय पहले खून का सौदागर बता चुके हैं। हाल में युवा कांग्रेस की पत्रिका युवा देश के एक ट्वीट में मोदी से कहा गया था तू चाय बेच। बाद में वह ट्वीट हटा लिया गया। जो भी है, कांग्रेस ने अपनी दिशा बदली है और राहुल गांधी साफ-सुथरी भाषा का समर्थन कर रहे हैं। यह बात जनता को पसंद आएगी। राजनीति भले ही गलाकाट प्रतियोगिता का नाम है, पर अमर्यादित भाषा किसी को पसंद नहीं। हो सकता है कि इस वक्त फैसी कड़वाहट दोनों पक्षों को भाषा की मर्यादा के बारे में सोचने पर मजबूर करे।
गुरुवार की शाम जैसे ही राहुल गांधी का ट्वीट आया कांग्रेसी नेताओं के स्वर बदल गए। जो लोग तबतक मणिशंकर अय्यर का समर्थन कर रहे थे, उन्होंने रुख बदल लिया। राहुल ने पहले अंग्रेजी में और फिर हिन्दी में ट्वीट किया, भाजपा और PM ने कांग्रेस पर हमला करते हुए अक्सर अभद्र भाषा का प्रयोग किया है। कांग्रेस की संस्कृति और विरासत अलग है। श्री मणिशंकर अय्यर ने भारत के प्रधानमंत्री के लिए जिस लहजे और भाषा का प्रयोग किया है वह गलत है। कांग्रेस और मैं चाहते हैं कि वो अपने बयान के लिए माफ़ी मांगें।
मणिशंकर अय्यर के पहले इसी हफ्ते कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान अयोध्या मामले की सुनवाई 2019 के बाद करने की माँग करके भी पार्टी को साँसत में डाल दिया था। इन दोनों बातों का असर गुजरात के चुनाव पर पड़ेगा। मणिशंकर अय्यर के नीच शब्द के इस्तेमाल पर नरेन्द्र मोदी ने फौरन अहमदाबाद की एक सभा में कहा, यह गुजरात का अपमान है। यह उनकी राजनीतिक स्मार्टनेस थी।
राहुल गांधी का व्यक्तिगत रूप से और पार्टी का सामूहिक रूप से मेक-ओवर चल रहा है। जैसे मोदी ने पलटवार किया उसी तरह राहुल ने पैंतरा बदला। राहुल की परीक्षा इसी बात में है कि क्या वे मोदी के मुकाबले की पैंतरेबाजी कर पाएंगे? ज़ाहिर है कि उन्हें अपनी ताकत के इलाके खोजने होंगे। संजीदगी की भाषा से जवाब दिए जा सकते हैं, पर उसके लिए तर्क-शक्ति और वैचारिक स्पष्टता की जरूरत होगी।
मणिशंकर अय्यर विवादस्पद बातों के लिए ही याद किए जाते हैं। हाल में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में सिर्फ माँ या बेटा ही पार्टी अध्यक्ष बन सकते हैं। कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने की प्रक्रिया को मुगल बादशाहों की विरासत से जोड़कर उन्होंने भाजपा को बड़ा मुद्दा दे दिया था। हालांकि उन्होंने अपने उस बयान में कहा था कि यह तो चुनाव से तय होगा, पर मुगल बादशाहों का रूपक भारी पड़ गया। उनकी बात में तंज था, जिसे नरेन्द्र मोदी ने पकड़ लिया।
उनके बयान को मोदी ने जो मोड़ दिया, उससे वे तिलमिला गए और मोदी को नीच आदमी कह डाला। कोई और मौका होता तो शायद कांग्रेस खुश होती, पर यह बयान उल्टा पड़ने वाला था। नीच शब्द को भी मोदी ने हाथों-हाथ लिया और कहा, मैं नीच जाति से हो सकता हूँ, लेकिन मैंने काम ऊँचे किए हैं। मणिशंकर का बयान गुजरात के संस्कारों का अपमान है। देश के पीएम के लिए ऐसे शब्द सिर्फ ऐसा ही व्यक्ति कर सकता है जिसके संस्कारों में खोट हो।
मणिशंकर इस विवाद के लपेटे में जानबूझकर आए या अनजाने में फँस गए, कहना मुश्किल है। उनका इरादा भले ही कुछ और रहा हो, पर उनके बयानों ने कांग्रेस को ही नुकसान पहुँचाया। सन 2014 के चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस महासमिति की बैठक में उन्होंने मोदी को चाय बेचने का सुझाव दिया था, जो पार्टी पर भारी पड़ा था। बीजेपी ने चाय पर चर्चा को राजनीतिक रूप दे दिया। चाय वाले का वह रूपक मौके-बेमौके कांग्रेस को तकलीफ पहुँचाता है।
अय्यर ने केवल मोदी को ही निशाना नहीं बनाया। अपनी पार्टी के अजय माकन के अंग्रेजी ज्ञान का मजाक भी वे उड़ा चुके हैं और उन्हें हंसराज कॉलेज से बीए पास का दर्जा दे चुके हैं। वे तमाम तरह के विवादास्पद बयानों के आदी हो चुके हैं। ऐसी बातों से उनकी छवि बिगड़ती गई है। लगता है कि पार्टी ने उन्हें कूड़ेदान में फेंकने का इरादा कर लिया है।   
जनता के साथ मुहावरों में बात करने का अपना आनन्द है, पर तभी जब आपको मुहावरों का ज्ञान हो। दूसरे राजनीति में विरोधी की आलोचना के सकारात्मक पहलू भी हैं। एक अच्छे वक्ता की जरूरत राजनीति को हमेशा रहती है। राहुल को देसी मुहावरों का अच्छा ज्ञान नहीं है। अलबत्ता उनकी संजीदगी से इंकार नहीं किया जा सकता। पिछले कुछ समय से वे लगातार अपनी छवि बदलने की कोशिश में लगे हैं। सितम्बर में बर्कले के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में उन्होंने बीजेपी और नरेन्द्र मोदी पर जो हमला किया वह संतुलित और संयमित था।
बर्कले में राहुल ने कहा, मैं विपक्ष का नेता हूं लेकिन मिस्टर मोदी मेरे भी प्रधानमंत्री हैं। उनके पास कुछ खास काबिलियत है। वे अच्छे कम्यूनिकेटर हैं, और मुझसे बेहतर वक्ता हैं। वे जानते हैं कि लोगों के अलग-अलग समूहों को किस तरह से मैसेज देना है। राहुल ने कई जगह कहा कि हम अपनी छवि अनुशासित और मुद्दों और मसलों पर केंद्रित रखना चाहते हैं। मणिशंकर अय्यर को निलंबित करके उन्होंने एक संदेश तो दिया है, पर क्या वे इसे कायम रख पाएंगे? यदि वे इस बात में सफल रहे तो उनकी एकतरफा कोशिश से बीजेपी पर भी दबाव बनेगा। भाषा की मर्यादा राजनीति में कई तरफ से टूटती है। पर यदि यह एकतरफा होगी तो जनता उसे भी नापसंद करेगी। देखना होगा कि क्या राहुल अपने कौल पर कायम रहेंगे। पर राजनीति गटर है तो उसमें गंगाजल जैसी भाषा कैसे बहेगी?

मणिशंकर की बातें
·        जनवरी 2014 में कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन के दौरान उन्‍होंने कहा, मोदी कभी पीएम नहीं बन सकते हैं। लेकिन अगर वह चाहें तो यहां पर आकर अपनी चाय बेच सकते हैं।
·        7 जनवरी 2015 में पेरिस की कार्टून पत्रिका शार्ली एब्दो पर हुए आतंकवादी हमले पर उन्होंने कहा, आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका जिस तरह लड़ाई लड़ रहा है उसकी यह प्रतिक्रिया होनी ही था।
·        पाकिस्तान के 'दुनिया टीवी' को दिए एक इंटरव्यू में कहा,  भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी के लिए सबसे पहले जिन तीनों चीजों को करना जरूरी है, उनमें सबसे पहला काम है कि मोदी को हटाओ। वर्ना बातचीत आगे नहीं बढ़ेगी। 6 नवम्बर 2015 को टेलीकास्ट हुए इस इंटरव्यू में अय्यर के ऐसा कहने पर एंकर मोईद पीरजादा ने उनसे पूछा,  आप यह बात किससे कह रहे हैं, क्या आप आईएसआईएस से मोदी को हटाने के लिए कह रहे हैं? इसपर उन्होंने जवाब दिया, नहीं, नहीं। हमें इसके लिए चार साल इंतजार करना पड़ेगा।
·        13 नवम्बर 2015 में पेरिस आतंकी हमले पर कहा था कि फ्रांस को आज अगर यह दिन देखना पड़ा है तो उसकी वजह है हिजाब पर बैन। उनके इस बयान से कांग्रेस ने खुद को अलग कर लिया था। कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने सफाई देते हुए कहा कि मणिशंकर अय्यर ने जो कहा है वह उनका निजी विचार है, ना कि पार्टी का।·        अक्तूबर 2017 में हिमाचल प्रदेश के कसौली में उहोंने कहा, कांग्रेस अध्यक्ष या तो माँ बनेगी या फिर बेटा। जब कोई प्रत्याशी है ही नहीं तो अध्यक्ष बनने के लिए चुनाव कैसे होंगे?

जहरीली भाषा की समस्या
राजनीति में जहरीली भाषा केवल भारत की समस्या नहीं है, पर भारत में खासतौर पर ज्यादा है। चुनाव के दौरान इसका सबसे खराब रूप देखने को मिलता है। पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जहर-बुझे बयानों की झड़ी लगी हुई थी। यह केवल राजनीतिक बयानों तक सीमित भी नहीं है। मीडिया राजनीति पर ज्यादा ध्यान देता है, इसलिए राजनीति की बातें जल्दी और ज्यादा सामने आती हैं। गौर से देखें तो हमें अपने सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में अभद्र और नफरत भरे विचार प्रचुर मात्रा में मिलेंगे।
सन 1992 में बाबरी विध्वंस के पहले गलियों-चौराहों और पान की दुकानों में जहर भरी भाषा के टेप बजाए जाते थे। हेट स्पीच रोकने के लिए देश में तब भी कानून थे और आज भी हैं, पर हमने किसी को सजा मिलते आज तक नहीं देखा। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के राज ठाकरे और ऑल इंडिया मजलिसे इत्तहादुल मुस्लिमीन के नेता अकबरुद्दीन ओवेसी के खिलाफ अक्सर मामले दर्ज होते हैं। राजनेता जिस भाषा में बात करने के आदी हैं, उसे देखते हुए कई बार यह मामूली बात लगती है, जिसे जुबान फिसलना कहा जाता है। जैसे कभी मुलायम सिंह ने कहा कि लड़कों से गलती हो जाती है। मुहावरों में जाति-सम्प्रदाय का इस्तेमाल भद्दे तरीके से होता है और यह हमें विचलित नहीं करता।
अधिकार क्षेत्र सीमित होने के बावजूद चुनाव आयोग अपनी तरफ से कार्रवाई करता है, पर उसके पास कड़ी सजा देने की ताकत नहीं है। वह ज्यादा से ज्यादा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराता है या राजनेता पर सभाओं को संबोधित न करने की पाबंदी लगा देता है। इतना काफी नहीं है। राजनेता इन पाबंदियों का उल्लंघन करते हैं। पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद होता क्या हैचुनाव के बाद राज्य सरकारें इन मुकदमों को आगे नहीं चलातीं। मुकदमे चलते हैं तो लगातार खिंचते रहते हैं। हमारी जानकारी में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को छह साल के लिए मताधिकार से वंचित करने के अलावा देश में कोई बड़ा मामला नहीं है।
सन 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान बिहार से जेडीयू के प्रत्याशी अबु कैसर ने भागलपुर में एक चुनावी सभा में नरेंद्र मोदी को आदमखोर कहा। इससे पहले शकुनी चौधरी ने मोदी को जमीन में गाड़ देने की धमकी दी। हाल में लालू यादव के बड़े बेटे और राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप यादव ने बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को घर में घुसकर मारने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खाल खींचने की धमकी दी।
चुनाव के दौरान गटर राजनीतिअपने निम्नतम स्तर पर होती है. सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसी भाषा का मामला आता रहा है। अदालत ने 12 मार्च 2014  को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए विधि आयोग को निर्देश दिया था कि वह नफरत भरे बयानों, खासतौर से चुनाव के दौरान ऐसी हरकतों को रोकने के लिए दिशा निर्देश तैयार करे। न्यायमूर्ति बीएस चौहान के नेतृत्व वाली तीन सदस्यों वाले पीठ ने कहा कि देश में ऐसे बयान देने वालों को सजा न मिल पाने का कारण यह नहीं है कि हमारे कानूनों में खामी है। कारण यह है कि कानूनों को लागू करने वाली एजेंसियाँ शिथिल हैं।

अदालत ने सरकार से कहा कि वह यह भी देखे कि क्या ऐसे बयान देने वाले नेताओं की पार्टी पर भी कारवाई की जा सकती है? मूल बात यह है कि राजनीति की भाषा को व्याकरण की जरूरत है। सवाल है कि यह व्याकरण देगा कौन? जिन्हें व्याकरण देना है वे खुद गौली-गलौज में लगे हैं। 
नवोदय टाइम्स में प्रकाशित

1 comment:

  1. हर जगह गटर है किस किस गटर की बात की जाये?

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