चेन्नई के शेरेटन पार्क होटल के भीतर बीसीसीआई की बैठक चल रही है और बाहर पीपली लाइव लगा है। ऐसी क्या बात है कि मीडिया इस घटना के एक-एक दृश्य को लाइव दिखा देना चाहता है। दो हफ्ते पहले यही मीडिया कोलगेट को लेकर परेशान था। और सीबीआई की स्वतंत्रता को लेकर ज़मीन-आसमान एक किए दे रहा था। उसके पहले मोदी और राहुल के मुकाबले पर जुटा था। लद्दाख में दौलत बेग ओल्दी क्षेत्र में चीनी फौजों की घुसपैठ को लेकर ज़मीन-आसमान एक कर रहा था। और जब चीन के प्रधानमंत्री भारत आए तब उस खबर को भूल चुका था, क्योंकि आईपीएल में सट्टेबाज़ी की खबर से उसने खेलना शुरू कर दिया था। एक ज़माने में राजनीतिक दलों के एक या दो प्रवक्ता होते थे। अब राजनीतिक दलों ने अपने प्रवक्ताओं के अलावा टीवी पर नमूदार होने वाले लोगों के नाम अलग से तय कर दिए हैं। पत्रकारों से तटस्थता की उम्मीद रहा करती थी, पर अब पार्टी का पक्ष रखने वाले पत्रकार हैं। उन्हें पक्षधरता पर शर्म या खेद नहीं है। चैनलों को इस बात पर खेद नहीं है कि खबरें छूट रहीं हैं। उन्हें केवल एक सनसनीखेज़ खबर की तलाश रहती है। और चैनलों के सम्पादकों के कार्टल बन गए हैं जो तय करते हैं कि किस पर आज खेलना है। सारे चैनलों में लगभग एक सी बहस और कोट बदल कर अलग-अलग कुर्सियों पर बैठे विशेषज्ञ। बहस में शामिल होने के लिए व्याकुल 'विश्लेषक-विशेषज्ञों' को जिस रोज़ बुलौवा नहीं आता उस रात उन्हें भूख नहीं लगती। यह नई बीमारी है, जिसका इलाज़ मनोरोग विशेषज्ञ तलाश रहे हैं। देश में बढ़ती कैमरों की तादाद से लगता है कि सूचना-क्रांति हो रही है, पर चैनलों की कवरेज से लगता है कि शोर बढ़ रहा है। सूचना घट रही है।
Sunday, June 2, 2013
पीपली लाइव!!!
चेन्नई के शेरेटन पार्क होटल के भीतर बीसीसीआई की बैठक चल रही है और बाहर पीपली लाइव लगा है। ऐसी क्या बात है कि मीडिया इस घटना के एक-एक दृश्य को लाइव दिखा देना चाहता है। दो हफ्ते पहले यही मीडिया कोलगेट को लेकर परेशान था। और सीबीआई की स्वतंत्रता को लेकर ज़मीन-आसमान एक किए दे रहा था। उसके पहले मोदी और राहुल के मुकाबले पर जुटा था। लद्दाख में दौलत बेग ओल्दी क्षेत्र में चीनी फौजों की घुसपैठ को लेकर ज़मीन-आसमान एक कर रहा था। और जब चीन के प्रधानमंत्री भारत आए तब उस खबर को भूल चुका था, क्योंकि आईपीएल में सट्टेबाज़ी की खबर से उसने खेलना शुरू कर दिया था। एक ज़माने में राजनीतिक दलों के एक या दो प्रवक्ता होते थे। अब राजनीतिक दलों ने अपने प्रवक्ताओं के अलावा टीवी पर नमूदार होने वाले लोगों के नाम अलग से तय कर दिए हैं। पत्रकारों से तटस्थता की उम्मीद रहा करती थी, पर अब पार्टी का पक्ष रखने वाले पत्रकार हैं। उन्हें पक्षधरता पर शर्म या खेद नहीं है। चैनलों को इस बात पर खेद नहीं है कि खबरें छूट रहीं हैं। उन्हें केवल एक सनसनीखेज़ खबर की तलाश रहती है। और चैनलों के सम्पादकों के कार्टल बन गए हैं जो तय करते हैं कि किस पर आज खेलना है। सारे चैनलों में लगभग एक सी बहस और कोट बदल कर अलग-अलग कुर्सियों पर बैठे विशेषज्ञ। बहस में शामिल होने के लिए व्याकुल 'विश्लेषक-विशेषज्ञों' को जिस रोज़ बुलौवा नहीं आता उस रात उन्हें भूख नहीं लगती। यह नई बीमारी है, जिसका इलाज़ मनोरोग विशेषज्ञ तलाश रहे हैं। देश में बढ़ती कैमरों की तादाद से लगता है कि सूचना-क्रांति हो रही है, पर चैनलों की कवरेज से लगता है कि शोर बढ़ रहा है। सूचना घट रही है।
तू-तू, मैं-मैं से नही निकलेगा माओवाद का हल
पिछले हफ्ते देश के मीडिया पर दो खबरें हावी रहीं। पहली आईपीएल
और दूसरी नक्सली हिंसा। दोनों के राजनीतिक निहितार्थ हैं, पर दोनों मामलों में राजनीतिक
दलों की प्रतिक्रिया अलग-अलग रही। शुक्रवार को शायद राहुल गांधी और सोनिया गांधी की
पहल पर कांग्रेसी राजनेताओं ने बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन के खिलाफ बोलना शुरू
किया। उसके पहले सारे राजनेता खामोश थे। भारतीय जनता पार्टी के अरुण जेटली, नरेन्द्र
मोदी और अनुराग ठाकुर अब भी कुछ नहीं बोल रहे हैं।
Tuesday, May 28, 2013
क्रिकेट के सीने पर सवार इस दादागीरी को खत्म होना चाहिए
आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग की खबरें आने के बाद यह माँग शुरू
हुई कि इसके अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को हटाया जाए। श्रीनिवासन पर आरोप केवल सट्टेबाज़ी
को बढ़ावा देने का नहीं है। वे बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं और उनकी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स
आईपीएल में शामिल है।
इस बात को सब जानते हैं कि आईपीएल की व्यवस्था अलग है, पर वह
बीसीसीआई के अधीन काम करती है। बीसीसीआई का भारतीय क्रिकेट पर ही नहीं अब दुनिया के
क्रिकेट पर एकछत्र राज है। यह उसकी ताकत थी कि उसने क्रिकेट की विश्व संस्था आईसीसी
के निर्देशों को मानने से इनकार कर दिया।
भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता ने इसका कारोबार
चलाने वालों को बेशुमार पैसा और ताकत दी है। और इस ताकत ने बीसीसीआई के एकाधिकार को
कायम किया है। यह मामूली संस्था नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार शांतनु गुहा रे ने हाल में
बीबीसी हिन्दी वैबसाइट को बताया कि सत्ता के गलियारों में माना जाता है कि केंद्रीय
मंत्री अजय माकन को खेल मंत्रालय से इसलिए हाथ धोना पड़ा, क्योंकि वे बीसीसीआई पर फंदा कसने की कोशिश कर रहे थे।
Sunday, May 26, 2013
सूने शहर में शहनाई का शोर
यूपीए-2 की चौथी वर्षगाँठ की
शाम भाजपा और कांग्रेस के बीच चले शब्दवाणों से राजनीतिक माहौल अचानक कड़वा हो गया।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया, पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उपलब्धियों
के साथ-साथ दो बातें और कहीं। एक तो यह कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनका पूरा समर्थन
प्राप्त है और दूसरे इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि मुख्य विपक्षी पार्टी ने संवैधानिक
भूमिका को नहीं निभाया, जिसकी वजह से कई अहम बिल पास नहीं हुए। इसके पहले भाजपा की नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली
ने सरकार पर जमकर तीर चलाए। दोनों ने अपने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार पूरी तरह फेल है। दोनों ओर से वाक्वाण
देर रात तक चलते रहे।
पिछले नौ साल
में यूपीए की गाड़ी झटके खाकर ही चली। न तो वह इंदिरा गांधी के ‘गरीबी हटाओ’ जैसी तुर्शी
दिखा पाई और न उदारीकरण की गाड़ी को दौड़ा पाई। यूपीए के प्रारम्भिक वर्षों में अर्थव्यवस्था
काफी तेजी से बढ़ी। इससे सरकार को कुछ लोकलुभावन कार्यक्रमों पर खर्च करने का मौका
मिला। इसके कारण ग्रामीण इलाकों में उसकी लोकप्रियता भी बढ़ी। पर सरकार और पार्टी दो
विपरीत दिशाओं में चलती रहीं।
Wednesday, May 22, 2013
क्या यूपी में चल पाएगा मोदी का करिश्मा?
कर्नाटक चुनाव में धक्का खाने के बाद भाजपा तेजी से चुनाव के मोड में आ गई है. अगले महीने 8-9 जून को गोवा में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है, जिसमें लगता है गिले-शिकवे होंगे और कुछ दृढ़ निश्चय.
मंगलवार को नरेन्द्र मोदी का संसदीय बोर्ड की बैठक में शामिल होना और उसके पहले लालकृष्ण आडवाणी के साथ मुलाकात करना काफी महत्वपूर्ण है. मोदी ने अपने ट्वीट में इस मुलाकात को ‘अद्भुत’ बताया है.
भारतीय जनता पार्टी किसी नेता को आगे करके चुनाव लड़ेगी भी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है. क्लिक करेंकर्नाटक के अनुभव ने इतना ज़रूर साफ किया है कि ऊपर के स्तर पर भ्रम की स्थिति पार्टी के लिए घातक होगी.
मोदी का संसदीय बोर्ड की बैठक में आना और खासतौर से अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया जाना इस बात की ओर इशारा कर ही रहा है कि मोदी का कद पार्टी के भीतर बढ़ा है.
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