Tuesday, May 28, 2013

क्रिकेट के सीने पर सवार इस दादागीरी को खत्म होना चाहिए

आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग की खबरें आने के बाद यह माँग शुरू हुई कि इसके अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को हटाया जाए। श्रीनिवासन पर आरोप केवल सट्टेबाज़ी को बढ़ावा देने का नहीं है। वे बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं और उनकी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स आईपीएल में शामिल है। 

इस बात को सब जानते हैं कि आईपीएल की व्यवस्था अलग है, पर वह बीसीसीआई के अधीन काम करती है। बीसीसीआई का भारतीय क्रिकेट पर ही नहीं अब दुनिया के क्रिकेट पर एकछत्र राज है। यह उसकी ताकत थी कि उसने क्रिकेट की विश्व संस्था आईसीसी के निर्देशों को मानने से इनकार कर दिया। 

भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता ने इसका कारोबार चलाने वालों को बेशुमार पैसा और ताकत दी है। और इस ताकत ने बीसीसीआई के एकाधिकार को कायम किया है। यह मामूली संस्था नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार शांतनु गुहा रे ने हाल में बीबीसी हिन्दी वैबसाइट को बताया कि सत्ता के गलियारों में माना जाता है कि केंद्रीय मंत्री अजय माकन को खेल मंत्रालय से इसलिए हाथ धोना पड़ा, क्योंकि वे बीसीसीआई पर फंदा कसने की कोशिश कर रहे थे।

अजय माकन जब खेलमंत्री थे तब उन्होंने माँग की थी कि बीसीसीआई खुद को आईपीएल से अलग करे। अगस्त 2011 में उन्होंने कैबिनेट के सामने एक कानून का मसौदा रखा। राष्ट्रीय खेल विकास अधिनियम 2011 का उद्देश्य खेल संघों के काम काज को पारदर्शी बनाने का था। 

इस कानून के तहत खेल संघों को जानकारी पाने के अधिकार आरटीआई के अंतर्गत लाने का प्रस्ताव था। साथ ही इन संगठनों के पदाधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा 12 साल तक संगठन की सेवा करने या 70 साल का उम्र होने पर अलग हो जाने की व्यवस्था की गई थी। जिस कैबिनेट बैठक में इस कानून पर विचार किया जाना था उसमें शरद पवार भी थे, जिन्होंने इस कानून की बुनियादी बातों पर आपत्ति व्यक्त की। 

आपत्ति व्यक्त करने वालों में प्रफुल्ल पटेल भी थे। इसके अलावा तमाम राजनेताओं ने बाहर से आपत्ति व्यक्त की। परम्परा और नियम के अनुसार उस बैठक में उन लोगों को शामिल नहीं होना चाहिए था, जिनके हित खेल संघों से जुड़े हों। बहरहाल शरद पवार ने धमकी दी कि वे यह मामला सोनिया गांधी तक ले जाएंगे। यह कानून बन नहीं पाया। इसके चौदह-पन्द्रह संशोधित प्रारूप बने, पर कानून नहीं बना।

बीसीसीआई इज़ारेदार संस्था है। उसके वर्चस्व को जो चुनौती देता है, पहले यह उसे खत्म करती है। टी-20 क्रिकेट के भविष्य को देखते हुए सबसे पहले ज़ी ग्रुप के सुभाष गोयल ने इंडियन क्रिकेट लीग नाम से प्रतियोगिता शुरू की। बीसीसीआई ने अपनी आर्थिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इस कोशिश को नाकाम कर दिया। इसके विपरीत ऑस्ट्रेलिया में चार दशक पहले कैरी पैकर ने एकदिनी क्रिकेट की शुरूआत की थी। उसने ऑस्ट्रेलिया की आधिकारिक क्रिकेट संस्था से मोर्चा लिया और उसे जीता। 

पर भारत में ऐसा नहीं हो पाया। बीसीसीआई ने तो देश में प्रीमियर लीग बनने नहीं दी।  उसके बाद ललित मोदी के मार्फत अपनी प्रतियोगिता शुरू कर दी। तीन साल पहले मोदी की छुट्टी भी हो गई। यह खेल नहीं कारोबार है। एकाधिकारवादी कारोबार। बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन की अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स आपीएल में खेलती है। 

यह कैसे सम्भव है? क्या यह हितों का टकराव नहीं है? इस मोटी सी बात को किनारे करने के लिए बीसीसीआई के संविधान में सन 2008 में संशोधन कर दिया गया। उस वक्त श्रीनिवासन बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष थे।

हाल में सट्टेबाज़ी की खबरें आने के बाद ऊपर की ओर इशारा होने लगा। इसलिए एन श्रीनिवासन के इस्तीफे की माँग की जा रही है। पर इस्तीफा समस्या का हल नहीं है। यह इस्तीफा हो भी जाए तो क्या स्थितियाँ सुधर जाएंगी? उनकी जगह कोई और आ जाएगा। और वह इस ताकत का इस्तेमाल अपने तरीके से करेगा। 

रोग व्यक्ति में नहीं, बल्कि संस्था में है। सवाल दादागीरी का है। क्रिकेट पर इसका एकाधिकार है। किसने दिया इसे एकाधिकार? एक, इसकी लोकप्रियता ने और दो, ताकतवर लोगों की जमात ने। बीसीसीआई बेहद ताकतवर लोगों की जमात है। पिछले साल एक स्टिंग ऑपरेशन के बाद पाँच खिलाड़ियों के खिलाफ कार्रवाई की गई। सारी कार्रवाई बीसीसीआई के दायरे में हुई। उसमें पुलिस को शामिल नहीं किया गया। 

उस दौरान एक-दो खिलाड़ियों ने मुँह खोलने की कोशिश की कि इस खेल में टीमों के करता-धरता भी शामिल हैं, तो उन्हें खामोश कर दिया गया। इस एकाधिकार को खत्म करने पर विचार कीजिए। पहले देखिए कि इस एकाधिकार की शक्ल क्या है।

बीसीसीआई अब क्रिकेटरों से ज्यादा राजनीतिक नेताओं की संस्था है। इसे चलाने वाले और अहम फ़ैसले करने वाली कमेटियों, सब कमेटियों के पदाधिकारियों में कम से कम चार केंद्रीय मंत्री और दो राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हैं। सत्ता पक्ष ही नहीं, विपक्ष के नेता भी इनमें शामिल हैं। 

घोटालों को लेकर आए दिन इस्तीफों की माँग करने वाले नेताओं ने बीसीसीआई के बाबत कोई वक्तव्य नहीं दिया। यह बात आपको अजीब नहीं लगी? राजीव शुक्ला आईपीएल के चीफ कमिश्नर हैं। इसकी गवर्निंग काउंसिल कमेटी के चेयरमैन होने के अलावा वे मार्केटिंग सब कमेटी के सदस्य हैं। सरकार की तरफ से दिल्ली और डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन में नामित हैं। 

राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली बीसीसीआई के उपाध्यक्ष(नॉर्थ) होने के अलावा दिल्ली और डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन और टुअर प्रोग्राम एंड फिक्सचर कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। वे बीसीसीआई की आईपीएल गवर्निंग काउंसिल कमेटी के अलावा लीगल कमेटी, कॉन्स्टीट्यूशन रिव्यू कमेटी, एफिलिएशन कमेटी, डिसिप्लिनेरी कमेटी के सदस्य भी हैं।गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष होने के नाते नरेन्द्र मोदी बीसीसीआई के सदस्य हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया बीसीसीआई की फाइनेंस कमेटी में चेयरमैन हैं। वे आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी के खिलाफ़ जांच कर रही अनुशासन समिति के सदस्य भी हैं। वे मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। सीपी जोशी बीसीसीआई की मीडिया कमेटी के चेयरमैन हैं और राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के चेयरमैन। फ़ारुख़ अब्दुल्ला बीसीसीआई की मार्केटिंग सब कमेटी के चेयरमैन हैं। 

हिमाचल प्रदेश के पिछले मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के संयुक्त सचिव होने के अलावा जूनियर क्रिकेट कमेटी और अंपायर्स सब कमेटी के कन्वीनर भी हैं। वे विज़ी ट्रॉफी कमेटी के संयुक्त संयोजक और ऑल इंडिया जूनियर सेलेक्शन कमेटी के कन्वीनर हैं। सांसद नवीन जिंदल भी बीसीआईआई में सरकार के नामित सदस्य हैं। उन्हें सरकार की तरफ से बीसीसीआई में दिल्ली एंड डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन में नामित किया गया है।

 आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरन कुमार रेड्डी हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। एक ज़माने तक मुम्बई देश में क्रिकेट का गढ़ माना जाता था। मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन के कई अध्यक्ष राजनीति से जुड़े रहे। महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर जोशी, विलासराव देशमुख और एनसीपी नेता शरद पवार इनमें शामिल हैं। 

शरद पवार सन 2005 से 2008 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे। सन 2010 में वे आईसीसी के अध्यक्ष बने। यह सूची पूरी नहीं है। तमाम राज्यों में छोटे-बड़े नेता क्रिकेट एसोसिएशनों के पदाधिकारी हैं। क्रिकेट के बाद बची दूसरी संस्थाओं में भी यही हाल है, पर क्रिकेट सिरमौर खेल है।

हमारा देश विसंगतियों का शिकार है। एक ओर भयावह गरीबी है तो दूसरी ओर वीभत्स अमीरी। इस सांस्कृतिक-सामाजिक विद्रूप ने समाज के दिलो-दिमाग को सुन्न कर दिया है। लगता है यह पलायनवादी समाज केवल मनोरंजन के सहारे अपने ग़म गलत करता है। क्रिकेट जब तक खेल था, इसमें मर्यादाएं भी थीं। जैसे-जैसे इसमें पैसा आता गया. तमाम दोष घर करते गए। 

आईपीएल सांस्कृतिक रूप से भी ज़हर घोलने का काम कर रहा है। इन खेलों से रात की पार्टियाँ अनिवार्य रूप से जुड़ी हैं। और उनसे जुड़े हैं सांस्कृतिक विवाद। पिछले साल मुम्बई के वानखेडे स्टेडियम में शाहरुख खान को लेकर विवाद खड़ा हुआ। फिर एक विदेशी लड़की को लेकर झगड़े को लेकर पुलिस केस बना। यह सब बढ़ता जाएगा। इस विषद चक्र को तोड़ा नहीं जाएगा तो नई-नई विकृतियाँ पैदा होंगी। उससे पहले बीसीसीआई के एकाधिकार को खत्म कीजिए। तमाम विकृतियों के पीछे है जो मन में आया, वैसा करने की ताकत।  

हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

सतीश आचार्य का कार्टून



1 comment:

  1. सही कहा आपने, "तमाम विकृतियों के पीछे है जो मन में आया, वैसा करने की ताकत।"...आज क्रिकेट खेल से ज्यादा पैसा बन गया है.
    http://jagranmudda.jagranjunction.com/2013/05/31/%E0%A4%AF%E0%A4%B9-%E0%A4%AA%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%B8%E0%A4%AC-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88/

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