Sunday, May 26, 2013

सूने शहर में शहनाई का शोर


यूपीए-2 की चौथी वर्षगाँठ की शाम भाजपा और कांग्रेस के बीच चले शब्दवाणों से राजनीतिक माहौल अचानक कड़वा हो गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया, पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उपलब्धियों के साथ-साथ दो बातें और कहीं। एक तो यह कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनका पूरा समर्थन प्राप्त है और दूसरे इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि मुख्य विपक्षी पार्टी ने संवैधानिक भूमिका को नहीं निभाया, जिसकी वजह से कई अहम बिल पास नहीं हुए। इसके पहले भाजपा की नेता सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने सरकार पर जमकर तीर चलाए। दोनों ने अपने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार पूरी तरह फेल है। दोनों ओर से वाक्वाण देर रात तक चलते रहे।


पिछले नौ साल में यूपीए की गाड़ी झटके खाकर ही चली। न तो वह इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ जैसी तुर्शी दिखा पाई और न उदारीकरण की गाड़ी को दौड़ा पाई। यूपीए के प्रारम्भिक वर्षों में अर्थव्यवस्था काफी तेजी से बढ़ी। इससे सरकार को कुछ लोकलुभावन कार्यक्रमों पर खर्च करने का मौका मिला। इसके कारण ग्रामीण इलाकों में उसकी लोकप्रियता भी बढ़ी। पर सरकार और पार्टी दो विपरीत दिशाओं में चलती रहीं। 

सोनिया गांधी ने सरकार के समानांतर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनाई, जिसके सुझावों पर वे सरकार से सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को लागू करवा रहीं हैं। लम्बे समय तक आर्थिक सुधारों का काम रुका रहा। उसके बाद पिछले साल जुलाई अगस्त के बाद अचानक सरकार जागी, पर काफी देर हो चुकी थी। इस बीच भ्रष्टाचार के मामलों और उसके खिलाफ जनता के आंदोलन ने उसकी फज़ीहत ही की। उसके नौ साल के इतिहास में तमाम असमंजस ही उभरेः-

vसमन्वय इस सरकार की सबसे बड़ी समस्या रही। चाहे वह सहयोगी दलों के साथ हो या पार्टी और सरकार के बीच। अन्ना हजारे आंदोलन के साथ सरकारी पलटियाँ और डीएमके-टीएमसी के साथ समन्वय हर रोज़ ज़ाहिर होता रहा। पिछले साल जुलाई में प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाए जाने के बाद एनसीपी ने कैबिनेट की मीटिंग में दूसरे नम्बर की कुर्सी का सवाल उठा दिया। खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश, एनसीटीसी और रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी के मामले में इस समन्वय की खासी पोल खुली।

vसरकार कहती है कि विपक्ष महत्वपूर्ण कानूनों को पास करने नहीं दे रहा, पर गौर करें कितने कानून सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। लोकपाल विधेयक दिसम्बर 2011 के बाद संसद के पटल पर फिर नहीं आया। सन 1968 से बन रहा कानून लगता है इस संसद में भी पास नहीं होगा। दिसम्बर 2011 में ही समयबद्ध सेवाएं पाने और शिकायतों की सुनवाई के नागरिकों के अधिकार का विधेयक भी पेश किया गया था। कार्यस्थल पर यौन शोषण से स्त्रियों की रक्षा का विधेयक 2010 से अटका पड़ा है। ह्विसिल ब्लोवर कानून के खिलाफ विधेयक अटका पड़ा है। महिला आरक्षण के बारे में बात करना ही बेकार है।

vयूपीए-1 के मुकाबले यूपीए-2 में कांग्रेस की स्थिति बेहतर थी। लगता था कि सरकार उदारीकरण के बचे हुए काम को पूरा करेगी। लगता नहीं कि जीएसटी, इनकम टैक्स, बैंकिंग और इंश्योरेंस कानून, कम्पनी कानून वगैरह-वगैरह पास हो पाएंगे। सरकार के पास लोक-लुभावन कार्यक्रमों के लिए साधन ही नहीं होंगे तो सब निरर्थक हो जाएगा।

16 फरवरी 2011 को टीवी सम्पादकों के साथ बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, मैं इस बात को खारिज नहीं कर रहा हूँ कि हमें गवर्नेंस में सुधार की ज़रूरत है। उसके पहले गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, बेशक कुछ मामलों में गवर्नेंस में चूक है, बल्कि मर्यादाओं का अभाव है। उन्हीं दिनों 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हसन अली के मामले में सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ऐसे उदाहरण हैं जब धारा 144 तक के मामूली उल्लंघन में व्यक्ति को गोली मार दी गई, वहीं कानून के साथ इतने बड़े खिलवाड़ के बावजूद आप आँखें मूँदे बैठे हैं। उसी रोज़ मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने चीफ विजिलेंस कमिश्नर के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को रद्द करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय निष्ठा की संस्था है। इसके साथ घटिया खेल मत खेलिए।

यूपीए-2 की पटकथा लिखी गई सन 2010 मे कॉमनवैल्थ गेम्स के दौरान। संयोग से तभी टूजी, अंतरिक्ष-देवास और आदर्श सोसायटी जैसे मामले सामने आए। उधर जनता शिद्दत से चाहती थी कि सज्जनों की राह में काँटे और लफंगों के लिए कालीन बिछाने वाली मशीनरी का पहिया उल्टा घूमे। पश्चिम एशिया के जनाक्रोश का असर हमारे समाज पर भी पड़ा। यही वजह थी कि 30 जनवरी 2011 को बगैर किसी बड़ी योजना के देश के 60 शहरों में अचानक भ्रष्टाचार विरोधी रैलियों में भीड़ उमड़ पड़ी। तब तक अन्ना हज़ारे का आंदोलन शुरू नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री ने टीवी सम्पादकों से कहा, मुझे भरोसा है कि हमारी व्यवस्था तमाम दोषों को दुरुस्त करने में समर्थ है। मैं भ्रष्टाचार को दूर करने के मामले में डैड सीरियस हूँ।

उसके पहले सोनिया गांधी की पहल पर बने जीओएम ने राजनैतिक और प्रशासनिक धरातल पर भ्रष्टाचार दूर करने के तीन-चार सुझाव दिए थे। इनमें से एक था कुछ मामलों में मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को प्राप्त विशेषाधिकारों का खात्मा। दिसम्बर 2010 में सोनिया गांधी ने दिल्ली में हुई कांग्रेस महासमिति की बैठक में जब इन प्रस्तावों का जिक्र किया तो सभा में सन्नाटा छा गया। राजनीति सत्तासुख छोड़ना नहीं चाहती। अपने वेतन-भत्तों के प्रस्ताव को आनन-फानन पास कराने वालों को व्यवस्था-सुधार के नाम पर साँप सूँघ गया। सूचना का अधिकार बिल पास करते-करते इस राजनैतिक मशीनरी को दो दशक लगे। पर प्रत्याशियों के हलफनामे दाखिल करने की व्यवस्था का तकरीबन सभी प्रमुख पार्टियों ने विरोध किया।

पिछले हफ्ते एसी नील्सन-एबीपी न्यूज़, सी-वोटर-हैडलाइंस टुडे और सीएनएन-आईबीएन के सर्वेक्षणों से यह बात उभर कर आई कि आज चुनाव हो जाएं तो कांग्रेस हार जाएगी। मतलब नहीं कि भाजपा जीत जाएगी। मतलब सिर्फ इतना है कि जनता आज के हालात से नाराज़ है। यूपीए के अगले एक साल की सम्भावनाओं को समझने के लिए उसके पिछले चार या नौ साल पर भी नज़र डालनी होगी। और भाजपा को भी अपने भविष्य को समझने के लिए अतीत को देखना होगा।

पिछले नौ साल में यूपीए की उपलब्धियाँ क्या हैं? सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा और अब कैश ट्रांसफर। सरकार भोजन के अधिकार कानून को पास कराना चाहती है, जो उसका गेम चेंजर है। भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर सरकार और पार्टी के बीच कई बातों को लेकर अब भी मतभेद हैं। मसलन भूमि अधिग्रहण के लिए कितने फीसदी लोगों की सहमति अनिवार्य हो। बहरहाल राजनीतिक दृष्टि से पार्टी इन कार्यक्रमों के सहारे आगे बढ़ना चाहती है। पर ये सारे कार्यक्रम खर्चीले हैं। मनरेगा में फर्जी लोगों के नाम से पैसा निकाले जाने की शिकायतें आ रहीं हैं। सीएजी ने अपनी रपट में इस योजना के दोषों को गिनाया भी है। शिक्षा का अधिकार सरकार को अधिकृत करता है कि हर बच्चे को शिक्षा दी जाए। पर दिल्ली के कनॉट प्लेस की रेडलाइटों पर भीख माँगते बच्चे इस बात की गवाही देते हैं कि यह अधिकार सजावटी ज्यादा है वास्तविक कम। सन 2004 के चुनाव के पहले एनडीए सरकार ने अपना शाइनिंग इंडिया अभियान छेड़ा था। यूपीए सरकार ने उसी अंदाज़ में भारत निर्माण का राग छेड़ा है। नाराज़ जनता को क्या यह पसंद आएगाहरिभूमि में प्रकाशित

सतीश आचार्य का कार्टून
मंजुल का कार्टून


हिन्दू में केशव का कार्टून

No comments:

Post a Comment