Wednesday, September 21, 2011

श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार

ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सबसे सम्मानित पुरस्कार है। 1965 में जब यह पुरस्कार शुरू हुआ था तब उसे अंग्रेजी मीडिया में भी तवज्जोह मिल जाती थी। धीरे-धीरे अंग्रेजी मीडिया ने उस तरफ ध्यान देना बंद कर दिया। अब शेष भारतीय भाषाओं का मीडिया भी उस तरफ कम ध्यान देता है। बहरहाल आज लखनऊ के जन संदेश टाइम्स ने इस खबर को लीड की तरह छापा तो मुझे विस्मय हुआ। यह खबर एक रोज पहले जारी हो गई थी, इसलिए इसे इतनी प्रमुखता मिलने की सम्भावना कम थी। पर लखनऊ और इलाहाबाद के लिए यह बड़ी खबर थी ही। इन शहरों के लेखक हैं। क्या इन शहरों के युवा जानते हैं कि ये हमारे लेखक हैं? बहरहाल मीडिया को तय करना होता है कि वह इसे कितना महत्व दे। लेखकों, साहित्यकारों और दूसरे वैचारिक कर्मों से जुड़े विषयों की कवरेज अब अखबारों में कम हो गई है।

1965 से अब तक हिन्दी के सात लेखकों को यह पुरस्कार मिल चुका है। इनके नाम हैं- 1.सुमित्रानंदन पंत(1968), 2.रामधारी सिंह "दिनकर"(1972), 3.सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(1978), 4.महादेवी वर्मा(1982), 5.नरेश मेहता(1992), 6.निर्मल वर्मा(1999), 7.कुंवर नारायण।

कोई लेखक, विचारक, कलाकार, रंगकर्मी क्यों महत्वपूर्ण होता है, कितना महत्वपूर्ण होता है, लगता है  इसपर विचार करने की ज़रूरत भी है। फिल्मी कलाकारों, क्रिकेट खिलाड़ियों या किसी दूसरी वजह से सेलेब्रिटी बने लोगों के सामने ये लोग फीके क्यों पड़ते हैं, यह हम सबको सोचना चाहिए। अखबारों में पुरस्कार राशि भी छपी है। यह राशि ऐश्वर्या या करीना कपूर की एक फिल्म या शाहरुख के एक स्टेज शो की राशि के सामने कुछ भी नहीं है। बहरहाल आज के जन संदेश टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़कर भी अच्छा लगा। खुशी इस बात की है कि किसी ने इन बातों पर ध्यान दिया।

वीरेन्द्र यादव का लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें

Tuesday, September 20, 2011

राष्ट्रीय पार्टियों के लिए चुनौती होंगे 2012 के चुनाव


उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को नरेन्द्र मोदी की विजय के रूप में भाजपा प्रचारित कर रही है। और लालकृष्ण आडवाणी की और रथयात्रा पर निकलने वाले हैं। अमेरिकी संसद के एक पेपर के निहितार्थ को लेकर विशेषज्ञ प्राइम टाइम को धन्य कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और बसपा की गतिविधियाँ तेज़ हो गईं हैं। इस इतवार को शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक समिति के चुनाव में कांग्रेस और अकाली दल की ताकत का पंजाब में पहला इम्तहान होगा। 2012 के विधान सभा चुनाव पर इसका असर नज़र आएगा। कांग्रेस इस चुनाव में औपचारिक रूप से नहीं उतरी है, पर उसके प्रत्याशी और नेता मैदान में हैं। उत्तर भारत के इन तीन राज्यों के अलावा मणिपुर और गोवा में भी अगले साल चुनाव हैं। इन पाँचों राज्यों से लोकसभा की 100 सीटें है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मसले अलग और वक्त भी अलग है, पर कहीं न कहीं वोटर के मिजाज़ का पता लगने लगता है। अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद पहली बार देश के बड़े हिस्से के लोगों की राजनीतिक राय सामने आएगी। हर लिहाज़ से ये चुनाव महत्वपूर्ण साबित होंगे।

शहरयार की तस्वीर


19 सितम्बर के टाइम्स ऑफ इंडिया में अंदर के पेज पर शहरयार को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की तस्वीर छपी है। 20 के टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले सफे पर लीड खबर के रूप में टाइम्स ऑफ इंडिया के सोशल इम्पैक्ट अवार्ड्स की खबर तमाम तस्वीरों के साथ छपी है। अंदर के पन्नों पर भी अच्छी कवरेज है। दोनों खबरों में कोई टकराव नहीं, पर खबर पेश करने के तरीके में अंतर है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देने वाली संस्था भी टाइम्स ग्रुप से सम्बद्ध है। यह देश का सबसे बड़ा पुरस्कार है। एक ज़माने तक इस पुरस्कार की तस्वीरें टाइम्स ग्रुप के अखबारों में पहले सफे पर ही छपती थीं। मुझे लगता है अखबार से ज्यादा पाठकों के मन में अपने साहित्य और संस्कृति से अनुराग कम हुआ है।  

Monday, September 19, 2011

राजनीति में जिसका स्वांग चल जाए वही सफल है



दारुल-उल-उलूम देवबंद के पूर्व मोहातमिम गुलाम मुहम्मद वस्तानवी ने नरेन्द्र मोदी के बारे में क्या कहा था? यही कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात का विकास हुआ है। और दूसरे यह कि जहाँ तक विकास की बात है मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं बरता गया। उन्होंने यह भी कहा कि 2002 के दंगे देश के लिए कलंक हैं। दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। दंगों के दौरान पुलिस ने मुसलमानों को नहीं बचाया, क्योंकि ऊपर से राजनीतिक दबाव था। वस्तानवी ने इसके अलावा यह भी कहा कि मुसलमानों को अच्छी शिक्षा लेनी चाहिए। उनके लिए नौकरियों का बंदोबस्त तभी हो सकता है जब वे अच्छी तरह पढ़ें।

मोदी के बारे में वस्तानवी का बयान एकतरफा नहीं था। पर शायद देवबंद के प्रमुख पद पर बैठे व्यक्ति से देश के ज्यादातर मुसलमानों को ऐसी उम्मीद नहीं थी। मोदी के बारे में मुसलमानों को नरम बयान नहीं चाहिए। गुजरात में मुसलमानों का जिस तरह संहार किया गया वह क्या कभी भुलाया जा सकता है? फिर वस्तानवी ने ऐसा बयान क्यों दिया? वे तो गुजराती हैं। उन्हें तो दंगों की भयावहता की जानकारी थी। उनकी ईमानदारी पर पहले किसी को संदेह नहीं था। पर इस बयान से कहानी बदल गई। उन्हें पद से हटा दिया गया। और जब उन्हें हटाया जा रहा था तभी यह बात कही जा रही थी कि उनके हटने की वजह यह भी है कि वे गुजरात से हैं। वस्तानवी उन कुछ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी राय है कि हमें गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से आगे बढ़ना चाहिए। बात मोदी को माफ करने या उन्हें समर्थन देने की नहीं है। बल्कि नए दौर में मुसलमानों के दूसरे सवालों को रेखांकित करने की भी है।

Sunday, September 18, 2011

चीन में जनता का विरोध


चीन में ऐसी तस्वीरें मीडिया में प्रसारित नहीं होतीं। हेनिंग, जेंगजियांग प्रांत के होंगशियाओ के तरकीबन 500 निवासियों ने जिंको सोलर कॉरपोरेशन के सामने प्रदर्शन किया और उसके आस-पास खड़ी आठ गाड़ियों को उल्टा कर दिया। यह कार उनमें से एक है। चीन की जनता नाराज होती है और उपद्रव भी करती है, इस बात पर  विस्मय होता है। यह फोटो ग्लोबल टाइम्स की वैबसाइट पर नजर आई।