देश की राजधानी में 2022 की शुरुआत ‘यलो-अलर्ट’ से हुई थी। साल का समापन भी कोविड-19 के नए अंदेशों के साथ हो रहा है। यों भी साल की उपलब्धियाँ महामारी पर विजय और आर्थिक पुनर्निर्माण से जुड़ी हैं। वह ज़माना अब नहीं है, जब हम केवल भारत की बात करें और दुनिया की अनदेखी कर दें। हमारी राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर यूक्रेन-युद्ध का भी उतना ही असर हुआ, जितना दो साल पहले कोविड-19 का हुआ था। कोविड-19, जलवायु-परिवर्तन और आर्थिक-मंदी वैश्विक बीमारियाँ हैं, जो हमारे जीवन और समाज को प्रभावित करती रहेंगी। खासतौर से तब, जब हमारी वैश्विक-उपस्थिति बढ़ रही है।
साल के आखिरी महीने की पहली तारीख को भारत ने
जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण करने के बाद 2023 की इस कहानी के पहले पन्ने पर दस्तखत
कर दिए हैं। भारत को लेकर वैश्विक-दृष्टिकोण में बदलाव आया है। इसका पता इस साल मई
में मोदी की यूरोप यात्रा के दौरान लगा। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद भारत ने
दोनों पक्षों से दूरी बनाने का रुख अपनाया। इसकी अमेरिका और पश्चिमी देशों ने शुरू
में आलोचना की। उन्हें यह समझने में समय लगा कि भारत दोनों पक्षों के बीच
महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है। यह बात हाल में बाली में हुए जी-20 शिखर
सम्मेलन में भी स्पष्ट हुई, जहाँ नौबत बगैर-घोषणापत्र के सम्मेलन
के समापन की थी। भारतीय हस्तक्षेप से घोषणापत्र जारी हो पाया।
यह साल आजादी के 75वें साल का समापन वर्ष था।
अब देश ने अगले 25 साल के कुछ लक्ष्य तय किए हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री ने
‘अमृतकाल’ घोषित किया है। इस साल 13 से 15 अगस्त के बीच हर घर तिरंगा अभियान के
जरिए राष्ट्रीय चेतना जगाने का एक नया अभियान चला, जिसके
लिए 20 जुलाई को एक आदेश के जरिए इस राष्ट्रीय-ध्वज कोड में संशोधन किया गया।
राजनीतिक-दृष्टि से इस साल के चुनाव परिणाम
काफी महत्वपूर्ण साबित हुए हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के अलावा सात
राज्यों के विधानसभा चुनावों ने राजनीति की दशा-दिशा का परिचय दिया। एक
यक्ष-प्रश्न का उत्तर भी इस साल मिला और कांग्रेस ने गैर-गांधी अध्यक्ष चुन लिया।
जम्मू-कश्मीर में पिछले एक साल में सुधरी कानून-व्यवस्था ने भी ध्यान खींचा है।
पंडितों को निशाना बनाने की कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो
लंबे अरसे से वहाँ हड़तालों और आंदोलनों की घोषणा नहीं हो रही है।
देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती
द्रौपदी मुर्मू का चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक था। जनजातीय समाज से वे देश की
पहली राष्ट्रपति बनीं। इसके अलावा वे देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। यह चुनाव
राजनीतिक-स्पर्धा भी थी। उनकी उम्मीदवारी का 44 छोटी-बड़ी पार्टियों ने समर्थन
किया था, पर ज्यादा महत्वपूर्ण था, विरोधी दलों की कतार तोड़कर अनेक सांसदों और विधायकों का उनके पक्ष
में मतदान करना। यह चुनाव बीजेपी का मास्टर-स्ट्रोक साबित हुआ, जिसका प्रमाण क्रॉस
वोटिंग।
‘फूल-झाड़ू’ इस साल का राजनीतिक रूपक है। आम आदमी पार्टी बीजेपी की प्रतिस्पर्धी है, पूरक है या बी टीम है? इतना स्पष्ट है कि वह कांग्रेस की जड़ में दीमक का काम कर रही है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की विजय भविष्य की राजनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण रही। उत्तर प्रदेश में जिस किस्म की जीत मिली, उसकी उम्मीद उसके बहुत से समर्थकों को नहीं थी। वहीं, पंजाब में कांग्रेस की ऐसी पराजय की आशंका उसके नेतृत्व को भी नहीं रही होगी। आम आदमी पार्टी की असाधारण सफलता ने भी ध्यान खींचा। इससे पार्टी का हौसला बढ़ा और उसने गुजरात में बड़ी सफलता की घोषणाएं शुरू कर दीं। पार्टी को करीब 13 फीसदी वोट मिले, जिनके सहारे अब वह राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। कांग्रेस को दिलासा के रूप में हिमाचल प्रदेश में सफलता मिली। एक बात धीरे-धीरे स्थापित हो रही है कि आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के क्षय का लाभ मिल रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने इस साल उदयपुर में
चिंतन-शिविर करके भविष्य का रोडमैप तैयार किया है। राहुल गांधी चुनाव की राजनीति
में पड़ने के बजाय राष्ट्रीय-नेता के रूप में उभारे जाएंगे। इसके लिए 7 सितंबर से
भारत-जोड़ो यात्रा शुरू की गई है। इस यात्रा के निहितार्थ भी 2024 के चुनाव में
स्पष्ट होंगे। बिहार में नीतीश कुमार का एनडीए से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के
साथ मिलकर सरकार बनाना इस साल की मोदी-विरोधी राजनीति की सबसे बड़ी घटना थी। उधर बीजेपी
ने महाराष्ट्र में शिवसेना के भीतर दरार पैदा करके विरोधी राजनीति को धक्का
पहुँचाया है।
मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष के रूप
में चुनाव भी साल की महत्वपूर्ण परिघटना है। पहले लगता था कि पार्टी अशोक गहलोत को
अध्यक्ष बनाना चाहती है। विचार शायद उन्हें हटाकर सचिन पायलट को राजस्थान के
मुख्यमंत्री पद पर बैठाने का था। इससे कुछ नाटकीय स्थितियाँ पैदा हुईं। खड़गे क्या
कांग्रेस में जान डाल सकेंगे? या अब पार्टी की विफलताओं का ठीकरा
उनपर फूटेगा और सफलता का श्रेय राहुल गांधी को मिलेगा? बीजेपी
के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर क्या कोई गठबंधन खड़ा होगा? होगा
तो उसमें कांग्रेस की भूमिका क्या होगी? वह इस गठबंधन के
केंद्र में होगी या परिधि में?
भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ इस साल भी आगे
बढ़ा। यह भी साबित हुआ कि नरेंद्र मोदी का जादू अभी कायम है, पर हिमाचल प्रदेश की पराजय ने बताया कि वह अजेय पार्टी नहीं है।
बिहार का गठबंधन भी बीजेपी के लिए चुनौती बनेगा। कर्नाटक, मध्य
प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अगले
साल होने वाले चुनावों में पार्टी की ताकत का पता लगेगा।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की भविष्यवाणी थी कि
इस साल भारत की पूरे वेग के साथ वापसी होने वाली है, पर जो हुआ वह आधा-अधूरा था।
यूक्रेन-युद्ध और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दरों में इजाफे से भारत में
मुद्रास्फीति बढ़ी और ब्याज की दरें भी। मोदी सरकार के पहले दौर में राजकोषीय घाटा
कम हो रहा था। महामारी के कारण इसमें उछाल आया और यह 9.2 प्रतिशत पर पहुंच गया।
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सरकार उसे 5.3 प्रतिशत तक लाने में कामयाब रही
है। इस वर्ष का लक्ष्य 6.4 प्रतिशत है, और 2024-25 तक उसे
4.5 प्रतिशत पर लाने का दावा किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव नजदीक आने के साथ,
सब्सिडी को घटाने की चुनौती भी है, जो
सरकार के बढ़ते खर्च का बड़ा हिस्सा है।
भारत में खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में 11
महीनों के निचले स्तर पर आ गई फिर भी यह 4 फीसदी के स्तर से काफी ऊपर है। बड़ी
चुनौती है कि जीडीपी-संवृद्धि को गति कैसे दी जाए। दूसरी तिमाही में संवृद्धि 6.3
फीसदी रही। यह अनुमान से बेहतर है। पूरे साल के लिए शुरुआती अनुमान 7.2 से 7.5
फीसदी तक के थे, जिन्हें घटाकर 6.5 फीसदी तक कर दिया
गया था। फिर भी विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2022-23 की सकल संवृद्धि 7 फीसदी से
ऊपर रह सकती है।
अरुणाचल के तवांग में भारत और चीन के सैनिकों
की भिड़ंत के बाद फिर से सवाल उठा है कि चीन के साथ हमारे सामरिक रिश्ते खराब हो
रहे हैं, तो कारोबारी रिश्ते क्यों बढ़ रहे हैं? हम
क्यों नहीं चीन से माल मंगाना बंद करते हैं? यह इतना आसान नहीं है। चीन से व्यापार
खत्म करने का मतलब आर्थिक संवृद्धि का बलिदान करना होगा। पहले हमें विकल्प बनाने होंगे।
ब्रिटेन और यूरोपीय संघ समेत कुछ देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर बात चल
रही हैं। अमेरिका जैसा ताकतवर देश चीन या रूस पर प्रतिबंध लगाने में कामयाब नहीं
है। हम अभी उस स्तर पर नहीं हैं।
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