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इकोनॉमिस्ट में कैल का कार्टून |
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत फिलहाल रोक दी गई है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच पिछले शुक्रवार को हुई बातचीत से ऐसा कोई समाधान नहीं निकला है, जिससे भारत की उम्मीदें बढ़ें.
व्यापार वार्ता के विफल होने से भारत की चिंताएँ
इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 50
प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो दुनिया में किसी भी
देश पर लगा सबसे ज़्यादा टैरिफ है.
25 प्रतिशत टैरिफ पहले ही लागू है, रूस के तेल व्यापार पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भू-राजनीतिक घटनाक्रम
पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा कि हम
अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की भलाई के साथ कोई
समझौता नहीं करेंगे.
रोचक बात यह है कि ट्रंप का झुकाव रूस की तरफ है, और अलास्का वार्ता कमोबेश रूस के पक्ष में ही रही है. ट्रंप की कोशिश अब यूक्रेन पर दबाव डालने की होगी. दूसरी तरफ वे भारत को धमका रहे हैं.
हमारे राष्ट्रीय हित
7 अगस्त को भी, जब ट्रंप ने
भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ की घोषणा की थी, मोदी ने कहा था कि हम ऐसा कोई समझौता नहीं करेंगे, भले
ही इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़े.
अमेरिकी वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने चेतावनी दी
थी कि ट्रंप-पुतिन वार्ता के दौरान ‘चीज़ें ठीक नहीं रहीं’ तो भारत
पर द्वितीयक शुल्क बढ़ सकते हैं. अब देखना होगा कि वे करते क्या हैं. बेहतर है कि
इसे भी बढ़ाकर देख लें.
बेशक हमें अमेरिका के साथ रिश्ते बिगाड़ने नहीं चाहिए,
पर ट्रंप की शेखी से घबराना भी नहीं चाहिए. ये बातें रियायतें हासिल करने के लिए
माहौल बनाने की हैं. भारत के टैरिफ को ‘दुनिया में सबसे ज़्यादा’ और
हमारी अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ बताकर,
वे व्यापार समझौते को अपनी जनता के सामने बड़ी जीत के रूप में पेश
करना चाहते हैं.
अलबत्ता पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर द्वारा अमेरिकी धरती से भारत के खिलाफ परमाणु
धमकी जारी करना शायद ट्रंप के दौर में भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया चलन है.
ऐसी धमकियाँ पब्लिसिटी बटोरती हैं, पर यह मौका
अमेरिका उपलब्ध करा रहा है. वही अमेरिका, जो ईरान का एटम बम बनने से रोकने के लिए
एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है. अमेरिका की ज़मीन से पाकिस्तानी एटमी-धमकी अटपटी
है.
बहरहाल कुछ दिन से ट्रंप का व्यवहार संयमित हुआ
है, लेकिन पिछले दो दशक में भारत से रिश्तों में जो सुधार
हुआ था, उसपर उन्होंने पानी फेर दिया है. कम से कम भारतीय जनता के मन में अमेरिका
को लेकर भारी आक्रोश है.
यह भी सच है कि ट्रंप से भारत में आज नाराज़ लोग
भी वही हैं, जिनमें से काफी लोग पिछले साल उनकी जीत का स्वागत कर रहे थे. ट्रंप पर
यह अतार्किक विश्वास एक झटके में खत्म हो गया.
पाकिस्तानी हौसले
जुलाई 1971 में अमेरिका के तत्कालीन विदेशमंत्री
हेनरी किसिंजर ने चीन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के लिए पाकिस्तान होते हुए
चीन की गुप्त-यात्रा की थी. अब फिर प्रचार किया जा रहा है कि ट्रंप जल्द ही
पाकिस्तान के रास्ते चीन की यात्रा कर सकते हैं.
गोकि अब इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और यह
पाकिस्तान का प्रचार ही है, पर इस वक्त किसी भी बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
उधर भारत में अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों के विरोधी भी खुश हैं.
ट्रंप के अहंकार को बढ़ावा देने की कोई ज़रूरत
नहीं है, पर यह भी नहीं मान लेना चाहिए कि रूस या चीन हमारे बेहतर दोस्त साबित
होंगे. सबके अपने-अपने हित हैं.
देश की सुरक्षा
तीन तरह के प्रश्न हमारे सामने हैं. पहला, देश
की आर्थिक और सामाजिक-प्रगति और दूसरा हमारी वैश्विक भूमिका. तीसरा देश की सुरक्षा.
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में तीनों बातें शामिल हैं. उसका सबसे महत्वपूर्ण संदेश
है कि हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए, ताकि किसी दूसरे के सहारे न रहना पड़े.
टैरिफ का झगड़ा भारत-पाकिस्तान टकराव के दौरान
ट्रंप के अहंकारी वक्तव्यों से जुड़ा है. इसके पीछे कोई दूरदर्शी विचार नहीं है. रिश्तों
में आई खटास और आसिम मुनीर की अमेरिका की ज़मीन से दिखाई गई अकड़बाज़ी, एक-दूसरे
से जुड़ी हैं.
अच्छा समय
प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में
कहा कि आश्वस्त रहें कि हमारा अच्छा समय है. संयोग है कि जिस समय हम टैरिफ की
बातें कर रहे हैं, उसी समय स्टैंडर्ड एंड पुअर ने भारत की रेटिंग में एक पायदान का
सुधार कर दिया.
यह ट्रंप की इस बात का जवाब है कि भारत की
अर्थव्यवस्था ‘डैड’ है. फिर भी हमारे पास वह आर्थिक क्षमता नहीं है, जो
चीन के पास है और जिसके कारण ट्रंप साहब चीन को लेकर ओछी बात बोलने की हिम्मत नहीं
करते हैं.
भारत के पास लंबा खेल खेलने की क्षमता है, पर हमारी
परिस्थितियाँ अमेरिका और चीन दोनों से फर्क हैं. आर्थिक और क्षेत्रीय स्थिरता में हमारा
महत्व है, जिसके कारण अमेरिका और चीन दोनों को हमारी ज़रूरत
है, पर यह महत्व आंशिक है.
आर्थिक सामर्थ्य
हम आर्थिक रूप से उस स्तर पर नहीं हैं कि
तुर्की-ब-तुर्की जवाब दे सकें. मसलन चीन के पास रेअर अर्थ का विशाल भंडार है, जो
डिजिटल अर्थव्यवस्था में उपयोगी वस्तु है और उसकी अमेरिका को ज़रूरत है. यह उन
अनेक बातों में से एक है, जिसके कारण अमेरिका ने चीन पर टैरिफ को न केवल कम किया
है, बल्कि 90 दिन की राहत भी दी है.
भारत के पास उस तरह की आर्थिक क्षमता नहीं है.
दवा उत्पादों को छोड़कर, अमेरिका जाने वाला हमारा ज्यादातर निर्यात—परिधान,
रत्न और आभूषण, झींगा मछली, बासमती
चावल या स्टील और एल्युमिनियम—ऐसी चीजें हैं, जो अमेरिका को कहीं से भी मिल पाएँगी.
सच यह भी है कि हमारी अर्थव्यवस्था बहुत ज्यादा
निर्यातमुखी है भी नहीं, जैसी चीन की है. हम अपने ही उपभोग के सहारे चलते हैं, जो
अच्छी बात है.
दरवाज़े बंद नहीं
भारत ने अमेरिका के साथ रिश्तों में कोई
नकारात्मक बात नहीं कही है, केवल संबंधों
को सुधारने के लिए 'ठोस एजेंडे' पर जोर
दिया है. यानी कि दरवाजे बंद नहीं किए हैं.
दूसरी तरफ भारत ने वैश्विक स्तर पर अपने रिश्तों
को सुधारने के लिए कई तरह की गतिविधियाँ की हैं. विदेशमंत्री एस जयशंकर मॉस्को जा
रहे हैं और चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत में हैं.
एनएसए अजित डोभाल मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन से मिलकर वापस आ गए हैं और प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक एससीओ नेताओं के शिखर सम्मेलन
के लिए चीन के तियानजिन की यात्रा पर जा रहे हैं.
रक्षा साझेदारी
भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी, कुछ मूलभूत रक्षा समझौतों पर आधारित है, जो उसे अलग
बनाती है. इस महीने अमेरिकी रक्षा नीति दल के भारत आने की आशा है. संयुक्त सैन्य
अभ्यास-युद्ध अभ्यास-का 21वां संस्करण भी इसी महीने के अंत
में अलास्का में होने की उम्मीद है.
दोनों देशों के बीच महीने के अंत में कार्यकारी
स्तर पर 2+2 अंतर-सत्र बैठक भी होने वाली है. ये बातें
हालाँकि व्यापार वार्ता से अलग हैं, पर क्या अमेरिकी-प्रशासन इनकी अनदेखी करेगा?
सितंबर के आखिरी हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी की अमेरिका यात्रा की तैयारियाँ चल रही हैं. यात्रा का प्रत्यक्ष कारण
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेना है, लेकिन
यदि वे अमेरिका जाएँ और राष्ट्रपति से मुलाकात नहीं हो, तब उसका कोई मतलब नहीं है.
भारत का भाषण 26 सितंबर की
सुबह निर्धारित किया गया है. ट्रंप 23 सितंबर को भाषण देंगे.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है इस यात्रा पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया
है. स्पष्ट है कि यह यात्रा व्यापार-वार्ता की प्रगति पर निर्भर करेगी.
मुनीर का उदय
एक पहेली अब भी अबूझी है कि पाकिस्तान के पास अचानक
कहाँ से ऊर्जा आई है, वह भी खासतौर से सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर के खाते में,
जिन्होंने अपने कठपुतली प्रधानमंत्री को आदेश देकर फील्ड मार्शल के सितारे अपने
कंधे पर टँकवा लिए हैं.
पाकिस्तान में सेना सर्वशक्तिमान होती है,
लेकिन मुनीर के उत्थान में उसकी कमजोर नागरिक सरकार, खराब आर्थिक स्थिति और इस बात का योगदान रहा है कि वे ट्रंप के
अप्रत्याशित कृपा पात्र हैं.
मुनीर इस महीने दूसरी बार अमेरिका यात्रा करके
आए हैं. उन्होंने वहाँ सर्वोच्च रैंकिंग वाले अमेरिकी सैन्य अधिकारी, संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल डैन केन से मुलाकात की और इस इलाके में
अमेरिका-पाकिस्तान के सफल आतंकवाद-रोधी सहयोग प्रयासों पर चर्चा की.
सेना का वर्चस्व
परवेज़ मुशर्रफ के बाद से पाकिस्तान में कई
मजबूत सेना प्रमुख हुए हैं, पर कोई भी वैसी जगह नहीं बना पाया जैसी मुनीर ने बनाई
है. मुनीर ने खुद को मजबूत और असैनिक सरकार को कमजोर किया और देश के असली नेता बन गए हैं, लेकिन
कई पूर्ववर्तियों की तरह उन्होंने तख्तापलट नहीं किया.
शहबाज़ शरीफ का राजनीतिक गठबंधन देश के इतिहास
में सबसे कमजोर सरकारों में से एक है. और प्रधानमंत्री के बड़े भाई नवाज शरीफ पृष्ठभूमि
में चले गए हैं. बिलावल भुट्टो जरदारी और आसिफ अली जरदारी की पीपीपी भी उबर नहीं
पाई है.
जनता के एक बड़े हिस्से में जोश भरने वाला
एकमात्र नेता, इमरान खान, जेल में है. इमरान
ने उनकी सरकार को अस्थिर करने का आरोप अमेरिका पर लगाया था. बहरहाल सेना ने सबको दबाकर
रखा है.
खटारा ट्रक
पर क्या मुनीर अपने देश की आर्थिक बदहाली को दूर
कर पाएँगे? आईएमएफ के राहत पैकेजों से अर्थव्यवस्था ज़िंदा है. पर क्या वह फिर से पूरी
तरह स्वस्थ हो पाएगी?
देश के बजट का काफी बड़ा हिस्सा सेना के खाते
में जाता है. पाकिस्तान ने चीन, सऊदी अरब, यूएई और तुर्की जैसे मददगार पकड़ रखे
हैं. अमेरिका के साथ रिश्ते रहस्य के घेरे में हैं.
भारत का सकल घरेलू उत्पाद पाकिस्तान से 10 गुना से भी ज्यादा है, और यह अंतर न केवल आर्थिक
रूप से, बल्कि दोनों देशों की वैश्विक स्थिति के संदर्भ में
भी बढ़ ही रहा है.
मुनीर ने हाल में भारत की तुलना मर्सिडीज और
पाकिस्तान की तुलना डंपर ट्रक से की है. उनका मतलब था कि लड़ाई हुई, तो भारत के
पास खोने के लिए बहुत कुछ है. यह डंपर ट्रक अब खटारा हाल में जा रहा है. जाने
दीजिए.
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