लिवरमोर कैलीफोर्निया की प्रयोगशाला
अमेरिका के वैज्ञानिकों ने संलयन ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने की घोषणा की है। हालांकि व्यावसायिक रूप से इस पद्धति
से बिजली बनाने में अभी कई दशक लगेंगे, पर भविष्य में यह ऊर्जा का सबसे विश्वसनीय
स्रोत साबित होगा। हालांकि यह बिजली भी परमाणु के नाभिकीय में छिपे ऊर्जा स्रोत पर
आधारित होगी, पर अभी प्रचलित विखंडन पर आधारित नाभिकीय ऊर्जा से एकदम अलग और सुरक्षित
होगी। यह ऊर्जा उसी प्राकृतिक सिद्धांत पर आधारित होगी, जो सूर्य और अंतरिक्ष में
फैले तमाम नक्षत्रों के निरंतर प्रज्ज्वलन के कारण को बताता है।
अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने 13 दिसंबर, 2022 को कहा कि पहली बार-और कई दशकों के प्रयास के बाद-वैज्ञानिकों
ने ऊर्जा प्राप्ति की प्रक्रिया में लगाई जाने वाली ऊर्जा से अधिक ऊर्जा प्राप्त
करने में कामयाबी हासिल की है। कैलिफोर्निया में अमेरिकी सरकार की नेशनल इग्नीशन
फैसिलिटी के शोधकर्ताओं ने पहली बार प्रदर्शित किया है, जिसे
"फ्यूजन इग्नीशन" के रूप में जाना जाता है। इग्नीशन तब होता है जब एक
संलयन प्रतिक्रिया बाहरी स्रोत से प्रतिक्रिया में डाली जा रही ऊर्जा से अधिक
ऊर्जा पैदा करती है और आत्मनिर्भर हो जाती है।
अब सवाल हैं कि इसका विकास कितना महत्वपूर्ण है?
और प्रचुर मात्रा में, स्वच्छ ऊर्जा
प्रदान करने वाले संलयन का लंबे समय से प्रतीक्षित सपना कब पूरा होगा? विश्लेषकों का अनुमान है कि हम इस ऊर्जा के इस्तेमाल से बीस से तीस
साल दूर है।
जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी
तत्व के नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।
नाभिकीय संलयन के परिणाम स्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान
संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है।
द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के
समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। नक्षत्रों के अन्दर यह
क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं
के संयोजन द्वारा एक हीलियम परमाणु का निर्माण।
दुनिया में नाभिकीय ऊर्जा प्राप्त करने की जो
पद्धति इस समय प्रचलित है, वह फ़िज़न यानी विखंडन पर आधारित है। दोनों प्रक्रियाओं
में ऊर्जा पैदा होती है, पर संलयन से प्राप्त ऊर्जा कहीं ज्यादा होती है और वह
सुरक्षित भी होती है। भौतिक विज्ञानी दशकों से परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी पर शोध
कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का असीमित
स्रोत हो सकता है।
संलयन का प्रक्रिया के लिए भी दुनिया में कम से कम दो तरीके अपनाए जा रहे हैं। दोनों तरीकों में फर्क केवल संलयन की स्थिति तैयार करने के लिए जिस उच्च तापमान की जरूरत है, उसके तरीके में फर्क है। लॉरेंस लिवरमोर फैसिलिटी में वैज्ञानिकों ने उस तापना को प्राप्त करने के लिए हाई इनर्जी लेज़र बीम्स का इस्तेमाल किया। इसे इनर्शियल फ्यूज़न का नाम दिया गया है। दूसरा तरीका फ्रांस में अपनाया जा रहा है, जिसे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपैरिमेंटल रिएक्टर या संक्षेप में ईटर या आइटर ITER कहा जाता है। इसमें बहुत शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड का इस्तेमाल उच्च तापमान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस कार्यक्रम में भारत भी शामिल है।
मंगलवार को, अमेरिकी
शोधकर्ताओं ने पुष्टि की कि उन्होंने एक बड़ी बाधा को पार कर लिया है: यानी अब वे
संलयन प्रयोगों की मदद से पहले से कहीं अधिक ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस ऊर्जा को घरों तक पहुंचाने के लिए
अभी और काम किया जाना बाकी है।
यह प्रदर्शन कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल
लैबोरेटरी (एलएलएनएल) की राष्ट्रीय प्रज्वलन प्रयोगशाला में आयोजित किया गया था। यह
प्रक्रिया ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करती है और इसमें अपार अक्षय ऊर्जा की
संभावनाएं हैं। लेकिन परमाणु संलयन के लिए बहुत अधिक तापमान और दबाव की आवश्यकता
होती है और यह इसकी चुनौतियों में से एक है। किसी भी प्रयोग से इतनी ऊर्जा का
उत्पादन नहीं हुआ जितना कि इस प्रयोग ने किया है।
संलयन प्रक्रिया को अपनाकर बिजली बनाने की तकनीक में
महारत हासिल करने की कोशिशें कम से कम पचास के दशक से चल रही हैं। इस तकनीक को
अपनाने में काफी दिक्कतें हैं और अब इसमें जो सफलता हासिल हुई है, वह प्रयोगात्मक
स्तर पर ही है। हमारे यानी भारत
के लोगों के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है कि इस अंतरराष्ट्रीय प्रयास में भारत भी
शामिल है।
नाभिकीय ऊर्जा प्राप्ति के दो तरीके हैं। एक है
विखंडन (फ्यूजन) और दूसरा संलयन (फ़िज़न)। संलयन प्रतिक्रिया नाभिकीय विखंडन
प्रतिक्रिया के विपरीत होती है। नाभिकीय संलयन प्रतिक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा को
अभी तक नियंत्रित नहीं किया गया है। अलबत्ता इसमें नाभिकीय विखंडन प्रतिक्रिया की
तुलना में से बहुत अधिक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
अत्यधिक उच्च तापमान पर होने वाली परमाणु
प्रतिक्रियाओं को थर्मोन्यूक्लियर प्रतिक्रिया कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया का
उपयोग हाइड्रोजन बम बनाने में किया जाता है जो बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बनता
है। हाइड्रोजन, ड्यूटीरियम (2H), और ट्रीटियम (3H) के आइसोटोप के साथ-साथ एक तत्व लीथियम-6
का उपयोग हाइड्रोजन बम बनाने में किया जाता है। हाइड्रोजन बम का विस्फोट एटम बम (Atom
bomb) का उपयोग करके किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि
जब एक परमाणु बम का विस्फोट होता है तो उसकी विखंडन प्रतिक्रिया से बहुत अधिक
गर्मी पैदा होती है जो कुछ ही माइक्रोसेकंड में ड्यूटीरियम और ट्रीटियम के तापमान
को बढ़ाती ह। इससे संलयन प्रतिक्रिया होती है और हाइड्रोजन बम में भारी ऊर्जा का
उत्पादन होता है। हाइड्रोजन बम जीवन के विनाश का कारण बनता है।
पहले नाभिकीय ऊर्जा के लाभ और हानि पर एक नजर डालें
·
थोड़ी ही मात्रा में ईंधन (यूरेनियम -235) से
काफी ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन होता है।
·
परमाणु रिएक्टर में बार-बार ईंधन डालने की
आवश्यकता नहीं होती है। एक बार ईंधन (यूरेनियम -235) को रिएक्टर में डाल दिया जाए
तो यह दो से तीन साल तक काम कर सकता है।
·
यह ऊर्जा पर्यावरण को दूषित नहीं करती, क्योंकि
यह कार्बन डाईऑक्साइड या सल्फर डाईऑक्साइड जैसी गैसों का उत्पादन नहीं करती है।
·
पर न्यूक्लियर एनर्जी के नुकसान ज्यादा खतरनाक
हैं। परमाणु रिएक्टरों के अपशिष्ट उत्पाद रेडियो धर्मी होते हैं और हानिकारक
विकिरण का उत्सर्जन करते हैं। परमाणु रिएक्टरों में दुर्घटना का खतरा रेडियो धर्मी
सामग्री के रिसाव का कारण हो सकता है।
· खनिज रूप में ईंधन यूरेनियम की उपलब्धता सीमित है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना लागत भी बहुत ज्यादा होती है।
कल पढ़ें इस ऊर्जा संधान का इतिहास
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