अमेरिका में पिछले हफ्ते राष्ट्रपति चुनाव हुआ। छह महीने से दुनिया
भर का मीडिया चुनाव-चुनाव चिल्ला रहा था। भारत में कब चुनाव होगा, इसे लेकर संग्राम
मचा है। पर इस हफ्ते चीन में सत्ता परिवर्तन हो रहा है तो इसका ज़िक्र वैसे ही हो रहा
है जैसे अखबारों के सांस्कृतिक समाचार। दुनिया की दूसरी नम्बर की आर्थिक महाशक्ति जो
सामरिक ताकत से लेकर ओलिम्पिक खेलों के मैदान तक अपना झंडा गाड़ चुकी है, अपने राजनीतिक
नेतृत्व की अगली पीढ़ी को आगे ला रही है। जैसा कि इमकान है शी जिनपिंग देश के नए राष्ट्रपति
होंगे और ली केचियांग नए प्रधानमंत्री। पर इस देश में केवल दो नेता ही नहीं होते। चीन
की सर्वोच्च राजनीतिक संस्था पोलित ब्यूरो के 25 सदस्य सबसे महत्वपूर्ण राजनेता होते
हैं। इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण होते हैं पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के नौ सदस्य।
इनमें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी शामिल हैं। कुछ लोगों को लगता है कि दुनिया से
कम्युनिज़्म का सफाया हो चुका है, उनके लिए चीन अभी अध्ययन का विषय है। वहाँ की अर्थ-व्यवस्था
बड़ी संख्या में लोगों को पूँजीवादी लगती है। कम से कम नीतियों के संदर्भ में चीन के
मुकाबले भारत ज़्यादा बड़ा समाजवादी देश लगता है। चीन के खुदरा बाज़ार में सौ फीसदी
विदेशी निवेश सम्भव है। भारत में 49 फीसदी सीमित निवेश लागू कराने में लाले लगे हैं।
पश्चिमी देशों की निगाह में न सिर्फ पूँजी निवेश के मामले में बल्कि व्यापार शुरू करने
और उसे चलाने के मामले में भारत के मुकाबले चीन बेहतर है।
चीन के पास अमेरिकी डॉलर का इतना बड़ा भंडार है कि भारत उसकी कल्पना
नहीं कर सकता। इस वक्त चीन के पास अगस्त 2012 में 1153.6 अरब डॉलर के ट्रेज़री बॉण्ड
हैं और वह नम्बर एक पर है। अमेरिका ने अगस्त 2012 तक कुल जमा 5430 अरब डॉलर के सरकारी
बॉण्ड ज़ारी किए थे उनमें से लगभग 20 फीसदी चीन के पास हैं। उसके मुकाबले जापान के
पास 1121.5 अरब डॉलर के बॉण्ड हैं और भारत के पास 51 अरब डॉलर के। चीन ने हाल में इन
बॉण्ड को कुछ कम किया है, अन्यथा 2011 के अक्टूबर में उसके पास 1256 अरब डॉलर के बॉण्ड
थे। ये बॉण्ड एक प्रकार का कर्ज है, जो अमेरिका ने दूसरे देशों से ले रखा है और इनके
सहारे वह अपनी घाटे की अर्थव्यवस्था चला रहा है। इनसे यह भी पता लगता है अमेरिका के
ऊपर चीन का आर्थिक प्रभाव किस कदर है।
पिछले गुरुवार को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का 18वाँ महाधिवेशन शुरू
हुआ है। यह अधिवेशन हर पाँच साल में होता है। पार्टी इस मंच के माध्यम से अपनी नीतियों
और नेतृत्व में बदलाव की घोषणा करती है। अधिवेश का विचार-विमर्श खुले में नहीं होता।
केवल घोषणाएं होती हैं। इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि कितने किस्म के विचार
चीनी राजनीति में प्रचलित हैं। नेताओं के बीच व्यक्तिगत स्पर्धा भी होती है और समर्थन
या आशीर्वाद भी। पूरे नेतृत्व पर देंग श्याओ पिंग के समर्थक हावी हैं। माओ समर्थक लगभग
खत्म हो चुके हैं। वर्तमान राष्ट्रपति हू जिंताओ को उनके पूर्व के नेता जियांग जेमिन
का पूरा समर्थन प्राप्त था। जियांग जेमिन रिटायर हो चुके हैं, पर पार्टी के लिए वे
महत्वपूर्ण हैं। खासतौर से इन दिनों पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार चर्चा का विषय है। हाल
में लोकप्रिय नेता बो शिलाई को अलग-थलग किया गया, जिनकी पत्नी पर एक ब्रटिश व्यापारी
की हत्या का आरोप है। इसमें जियांग जेमिन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस समय देश आर्थिक
और सामरिक प्रश्नों को लेकर गहरे विमर्श में डूबा है। देश को बाजार अर्थ-व्यवस्था से
जोड़ने में जियांग जेमिन की भूमिका थी। बावजूद खराब स्वास्थ्य के वे अब भी पोलित ब्यूरो
को सलाह देते रहते हैं।
दुनिया के लिए चीन रहस्यमय देश है। सबसे बड़ा रहस्य है वहाँ का
सत्ता परिवर्तन। पिछले तीन दशक से वहाँ के सत्ता परिवर्तन में निरंतरता है। माओ जे
दुंग के निधन के बाद तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष देंग श्याओ पिंग ने ‘चार आधुनिकीकरण’ के नाम से कार्यक्रम चलाया
जिसके तहत अपने बाज़ार को खोलने का कार्यक्रम भी शामिल था। इसका घोषित उद्देश्य इक्कीसवीं
सदी में चीन को महाशक्ति बनाने का था और इसमें उसे कामयाबी मिली। पार्टी में नेताओं
की उम्र का पालन सख्ती से हो रहा है और इस बार भी पार्टी पोलित ब्यूरो के मौजूदा नौ
में से सात नेताओं के हट जाने की उम्मीद है। इन सात नेताओं में राष्ट्रपति हू जिंताओ
और प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भी शामिल हैं। यह साफ नहीं है कि अधिवेशन कब तक चलेगा,
पर पिछले अधिवेशन
आमतौर पर सात दिन चलते रहे हैं। आखिरी दिन सभी नेता अपने वरीयताक्रम से देश के सामने
पेश होते हैं। अनुमान है कि पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्यों की संख्या नौ
से घटाकर सात की जा सकती है ताकि फैसले करने की प्रक्रिया आसान हो जाए।
चीनी
राजनीति में भी सिद्धांत और व्यवहार साथ-साथ चलते हैं। वहाँ भी बैकरूम पोलिटिक्स काम
करती है। सिद्धांततः पार्टी कांग्रेस, केंद्रीय समिति के सदस्यों का चुनाव
करती है जो पोलित ब्यूरो और इसकी स्थायी समिति को चुनते हैं। व्यावहारिक रूप से बड़े
नेता महत्वपूर्ण फैसले करते हैं, जिन्हें पार्टी संगठन मान लेता है। माओ जेदुंग और
देंग श्याओपिंग के समय शीर्ष नेताओं ने अपने उत्तराधिकारियों का नाम खुद तय किया था।
अलबत्ता माओ ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में हुआ ग्वो फेंग को चुना या देंग श्याओ
पिंग को आज यह बता पाना मुश्किल है, पर गैंग ऑफ फोर के रूप में धिकृत नेताओं में माओ
के करीबी लोग भी थे। पर लगता है कि चीन की राजनीति में ताकतवर राजनेताओं का दौर खत्म
हो गया है। दुनिया बदल रही है और पश्चिम का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। चीन के वर्तमान
राजनीतिक ढाँचे को पश्चिम की मल्टी पार्टी व्यवस्था में बदला नहीं जा सकता, पर चीन
में निचले स्तर पर चुनाव होने लगे हैं। राजनीतिक सुधारों की जरूरत बढ़ती जा रही है।
लेकिन कुछ ताकतवर समूह हैं जो बुनियादी बदलाव का विरोध करते हैं।
भारत की तरह चीन में भी भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा
है। खासकर मीडिया के बढ़ते असर को देखते हुए लगता है कि चीनी मध्यवर्ग और अमेरिका में
रह रहे चीनियों के बीच संवाद बढ़ने से व्यवस्था और खुलेगी। पार्टी कांग्रेस के ठीक
पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने रपट छापी कि प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के परिवार ने पिछले
दस वर्षों के उनके सत्तारूढ़ रहने के दौरान 2.7 अरब डॉलर के अधिक की संपत्ति अर्जित
की है। हालांकि अखबार ने बेन जियाओ बाओ पर सीधे कोई आरोप नहीं लगाया, पर चीन में यह
नए किस्म का अपराध था। इससे पहले एक न्यूज़ एजेंसी ने उपराष्ट्रपति शी जिनपिंग के परिवार
वालों पर इसी तरह के आरोप लगाए थे। इसी तरह बो शिलाई और पूर्व रेलवे मंत्री लिउ झिझुन
को भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद हटाना पड़ा। पार्टी कांग्रेस की शुरुआत करते हुए ही
राष्ट्रपति हू जिंताओ ने चेतावनी दी कि सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी में भ्रष्टाचार
देश पर उसके 63 वर्ष पुराने नियंत्रण के लिए घातक हो सकता है। पार्टी के अनुशासन को
और देश के क़ानून को तोड़ने वालों को, वे चाहे जिस पद पर हों, बिना रहम के न्याय के
कटघरे में लाना होगा।
हाल में वैश्विक जनमत संग्रह करने वाली संस्था प्यू ने चीन के
सर्वेक्षण के बाद जो रपट जारी की है उसमें भी भ्रष्टाचार महत्वपूर्ण मुद्दा है। चीन
की 90 फ़ीसदी जनता अपनी जीवनशैली को अपने माता-पिता की जीवनशैली की
तुलना में काफ़ी बेहतर मानती है, लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार, सामाजिक
असमानता और खाद्य सुरक्षा जैसी समस्याओं को लेकर लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है।
हमारी दृष्टि से चीनी समाज को दो तरह से देखना चाहिए। एक तो राजनातिक-आर्थिक रिश्तों
के लिहाज से और दूसरे राज-व्यवस्था को आम जनता से जोड़ने के नज़रिए से भी चीन महत्वपूर्ण
देश है। उसकी अनेक समस्याएं हमारी जैसी हैं। उसने एक खेतिहर समाज को जिस तरीके से आधुनिक
बनाया है, उसे हमें देखना चाहिए। आने वाली दुनिया में हमें चीन के साथ-साथ चलना है। सी एक्सप्रेस में प्रकाशित
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दीप पर्व की
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
देह देहरी देहरे, दो, दो दिया जलाय-रविकर
लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी...
ReplyDeleteयदि देश को कुछ देने में नेतृत्व सक्षम है तो वह नेतृत्व अच्छा है।
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